आज भारत एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर राष्ट्र है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर Turkey नाम का देश इस दुनिया के नक्शे पर न होता… तो शायद अंग्रेज भारत तक पहुंच ही नहीं पाते? और तब जो कुछ हुआ—वो इतिहास नहीं बनता, बल्कि पूरी दुनिया का भविष्य ही बदल जाता। जी हां, ये कोई काल्पनिक कहानी नहीं, बल्कि ऐतिहासिक सच्चाई है। एक ऐसा मोड़… जिसने भारत को सोने की चिड़िया बनाया, फिर उसी के बाद भारत को सदियों तक गुलामी की बेड़ियों में जकड़ दिया। और इस सबके केंद्र में था—Turkey। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
आज जब भारत और तुर्की के रिश्ते तल्ख हैं, जब तुर्की पाकिस्तान का साथ दे रहा है, भारत के खिलाफ बयानबाज़ी कर रहा है, तब भारत में हर जगह Turkey को कोसा जा रहा है। लेकिन यह विरोध वर्तमान से जुड़ा है। अगर हम पीछे जाएं, 600 साल पहले, तब हमें समझ आएगा कि Turkey ने सिर्फ आज की राजनीति नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की इकोनॉमी और पॉलिटिक्स की दिशा ही बदल दी थी।
ये कहानी शुरू होती है साल 1453 से। तब मई का महीना था। आज जिसे हम इस्तांबुल कहते हैं, उस शहर को तब ‘कुस्तुनतुनिया’ कहा जाता था—एक ऐसा शहर जो एशिया और यूरोप को जोड़ने वाला था। वहां पिछले 1500 सालों से रोमन साम्राज्य का राज था। लेकिन उस साल एक नए साम्राज्य ने उसकी सत्ता छीन ली—ऑटोमन साम्राज्य। और यहीं से शुरू हुई एक ऐसी ऐतिहासिक यात्रा, जिसने भारत की किस्मत तय की।
जब ऑटोमन साम्राज्य ने कुस्तुनतुनिया पर कब्जा किया, तो उन्होंने सबसे पहले वह ज़मीनी व्यापारिक रास्ता बंद कर दिया जो यूरोप और एशिया को जोड़ता था। ये रास्ता सिर्फ व्यापार का नहीं था, बल्कि वो सेतु था, जो भारत के मसालों और वस्त्रों को यूरोप की रॉयल टेबल्स तक पहुँचाता था। खासकर भारत की काली मिर्च और ढाका की मसलिन—जो यूरोप में अमीरों की पहली पसंद थी। लेकिन रास्ता बंद होते ही ये व्यापार थम गया।
और यहीं से शुरू होती है समुद्री रास्तों की खोज। यूरोपीय देश बेचैन हो उठे। स्पेन, फ्रांस, पुर्तगाल और ब्रिटेन के जहाजों ने नई राहों की तलाश में समुद्रों में कूच कर दिया। क्रिस्टोफर कोलंबस भी इसी खोज में निकला था कि भारत पहुंच जाए, लेकिन वो गलती से अमेरिका पहुँच गया। इस गलती ने 1492 में अमेरिका की खोज करवा दी। वहीं, पुर्तगाल से निकले वास्को डी गामा ने अफ्रीका के किनारे-किनारे चलते हुए ‘केप ऑफ गुड होप’ को पार किया और भारत के कालीकट पहुंच गया।
भारत के लिए ये एक नया युग था। अब समुद्र के रास्ते व्यापार शुरू हुआ और पहले पुर्तगाल, फिर डच व्यापारी यहां आने लगे। भारत के मसाले और वस्त्रों की मांग यूरोप में इतनी ज्यादा थी कि इन व्यापारियों की किस्मत बदल गई। लेकिन भारत की किस्मत भी चमकने लगी—काली मिर्च और मसलिन के बदले यूरोप से सोने और चांदी के सिक्के आने लगे। भारत सचमुच सोने की चिड़िया बन गया था।
लेकिन ये दौलत भी भारत को बचा नहीं सकी। क्योंकि जैसे-जैसे यूरोप की ताकतें भारत पहुंचीं, उनके इरादे बदलते गए। अब वे सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि शासन चाहते थे। 1600 में अंग्रेज भारत पहुंचे, और जल्द ही फ्रांसीसी और डेनिश लोग भी। व्यापार की इस Competition ने भारत को युद्ध के मैदान में बदल दिया। इन ताकतों के बीच भारत के व्यापारिक नियंत्रण को लेकर कई लड़ाइयाँ लड़ी गईं।
और फिर वो दिन आया—1757 का ‘प्लासी का युद्ध’। बंगाल की धरती पर अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला को हराया, और भारत में उनकी नींव मजबूत हो गई। इसके बाद 1764 में ‘बक्सर का युद्ध’ हुआ, जिसने अंग्रेजों को भारतीय प्रशासन और वित्त व्यवस्था का सीधा नियंत्रण दे दिया। और यहीं से शुरू हुई भारत की सदी भर लंबी गुलामी की दास्तान।
पर क्या यह सब होता अगर कुस्तुनतुनिया न गिरता? अगर Turkey यानी ऑटोमन साम्राज्य यूरोप और एशिया के बीच के व्यापार को बाधित न करता? शायद नहीं। तब यूरोपीय देश समुद्रों में नई राहें खोजने नहीं निकलते। न कोलंबस अमेरिका जाता, न वास्को डी गामा भारत आता। और तब भारत न गुलाम बनता, न उसकी अस्मिता लूटी जाती।
इतिहास की इस जटिलता को समझना जरूरी है। एक शहर का पतन, एक रास्ते का बंद होना, और एक नई खोज—इन्होंने मिलकर पूरी दुनिया की दिशा बदल दी। आज जब हम Turkey को एक विरोधी की तरह देख रहे हैं, हमें याद रखना चाहिए कि इसी Turkey ने कभी एक ऐसी चिंगारी जलाई थी, जिससे भारत का भाग्य ही बदल गया।
Turkey का इतिहास सिर्फ कुस्तुनतुनिया तक सीमित नहीं है। ऑटोमन साम्राज्य ने सैकड़ों साल तक मध्य एशिया, यूरोप और अफ्रीका के हिस्सों पर राज किया। इस्लामी दुनिया का नेतृत्व तुर्की के पास था। उन्होंने कला, वास्तुकला, व्यापार और शासन की जो परंपराएं शुरू कीं, उसका असर आज भी दुनिया के कई हिस्सों में देखा जा सकता है।

लेकिन वक्त बदला, ताकतें बदलीं। ऑटोमन साम्राज्य खत्म हुआ और Turkey एक लोकतांत्रिक देश बना। पर आज, आधुनिक तुर्की फिर से उसी ताकत और विस्तारवाद की ओर लौट रहा है। पाकिस्तान को हथियार देना, भारत के खिलाफ बयानबाजी करना, वैश्विक मंचों पर भारत विरोधी रुख अपनाना—ये उसी विस्तारवादी सोच की छाया हैं।
भारत ने जब 2023 में Turkey में आए भूकंप के बाद ‘ऑपरेशन दोस्ती’ चलाया था, तब दुनिया ने देखा कि भारत कैसे मानवता के लिए खड़ा होता है। लेकिन जब 2025 में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक प्रहार किया, तो तुर्की ने उसी मानवता को भुला दिया। पाकिस्तान का साथ देकर उसने दोस्ती के रिश्ते को झुठला दिया।
अब सवाल यह है—क्या भारत फिर Turkey पर भरोसा कर सकता है? क्या यह वही Turkey है, जिसने इतिहास को मोड़ा था, या अब वह सिर्फ अपनी रणनीतिक ज़रूरतों में उलझा एक अवसरवादी देश बन चुका है? भारत को यह तय करना होगा कि वो अतीत के रिश्तों को माफ करे या वर्तमान की सच्चाई के आधार पर नीति बनाए।
भारत के पास आज विकल्प हैं—आर्थिक मोर्चे पर Turkey को जवाब देने के, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसका विरोध करने के, और देश के भीतर जागरूकता फैलाने के कि तुर्की अब सिर्फ एक ऐतिहासिक शक्ति नहीं, बल्कि आज की राजनीति में भारत की भावनाओं और सुरक्षा से खेलने वाला एक देश बन गया है।
इस पूरी कहानी में एक बात साफ है—इतिहास सिर्फ किताबों में बंद नहीं होता। वो बार-बार लौटता है, नए चेहरों, नए इरादों और नए सबक के साथ। Turkey ने कभी भारत को सोने की चिड़िया बनाया, और फिर उसी रास्ते से गुलाम भी। अब जब Turkey फिर से अपनी पुरानी चालें चल रहा है, भारत को इतिहास से सीखकर आगे बढ़ना होगा। और यही इतिहास का न्याय है—जो समय के साथ बदलता है, लेकिन यादों में हमेशा जिंदा रहता है।
Conclusion
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