कल्पना कीजिए… आप किसी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर खड़े हैं, चारों ओर सुरक्षा का पुख्ता इंतज़ाम, हर सामान की जांच, हर कदम पर निगरानी। लेकिन इसी हवाई अड्डे पर एक कंपनी है, जिसके तार सीधे उस देश से जुड़े हैं जिसने हाल ही में भारत के दुश्मन का साथ दिया है। और इस कंपनी के पीछे नाम जुड़ता है एक ऐसे व्यक्ति का, जिसने दुनिया के सबसे खतरनाक युद्धक ड्रोन बनाए हैं।
यही नहीं, उसकी पत्नी, Turkey के राष्ट्रपति की बेटी—भारत में एक विवाद का चेहरा बन चुकी है। सवाल उठता है—क्या ये सिर्फ एक इत्तेफाक है, या फिर कोई छिपी हुई रणनीति? क्या भारत की ज़मीन पर विदेशी प्रभाव किसी गंभीर खतरे का संकेत है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
रेचेप तैय्यप अर्दोआन—एक ऐसा नाम जो Turkey की सत्ता में बीते दो दशकों से छाया हुआ है। लेकिन हाल के दिनों में भारत में उनका नाम एक विवाद की वजह से चर्चा में आया। वजह है उनकी बेटी सुमैया अर्दोआन, जिनका नाम भारतीय सोशल मीडिया पर एक एविएशन कंपनी के साथ जुड़ने लगा। आरोप लगे कि वो भारत में काम करने वाली सेलेबी एविएशन इंडिया की मालिक हैं। यह वही कंपनी है जो भारत के सबसे अहम एयरपोर्ट्स पर ग्राउंड हैंडलिंग और कार्गो सेवाएं देती है। लेकिन जब यह नाम सामने आया, तो मानो बवंडर आ गया—कंपनी ने दावा खारिज किया, लेकिन शक की लकीरें मिट नहीं पाईं।
सेलेबी एविएशन ने तुरंत सफाई दी कि उनका सुमैया अर्दोआन से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि कंपनी के असली मालिक हैं—कैन सेलेबी ओलु और कैनन सेलेबी ओलु, जो Turkey के प्रतिष्ठित सेलेबी परिवार से हैं। वहीं दूसरी ओर, कंपनी ने यह भी साफ किया कि उनका नियंत्रण अब पूरी तरह बहुराष्ट्रीय Investors के पास है। 65% हिस्सेदारी कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर और यूएई के Investors के पास है, बाकी नीदरलैंड और जर्सी के Investment फंड्स के पास। यानी कंपनी अब पूरी तरह एक वैश्विक इकाई है, और किसी एक देश से नियंत्रित नहीं होती।
लेकिन इस विवाद की आग को हवा तब मिली, जब भारत सरकार ने सेलेबी एविएशन की दिल्ली एयरपोर्ट पर सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी। यह फैसला ऐसे वक्त में आया, जब तुर्की ने भारत के विरोधी पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया था। खासकर कश्मीर को लेकर Turkey के बयानों ने भारत की भावनाओं को आहत किया। और शायद यही वजह थी कि भारत ने न सिर्फ सुरक्षा मंजूरी वापस ली, बल्कि दिल्ली में सेलेबी की कार्गो सेवाओं की अनुमति भी समाप्त कर दी।
अब इसी कहानी का अगला और सबसे चौंकाने वाला चेहरा सामने आता है—सेल्जुक बायरकटार। ये नाम किसी आम व्यापारी का नहीं, बल्कि Turkey के राष्ट्रपति का दामाद है। और ये वही व्यक्ति है जो दुनिया की सबसे घातक और चर्चित ड्रोन तकनीक का निर्माता है। बायरकटार कंपनी के चेयरमैन और ड्रोन टेक्नोलॉजी के मास्टरमाइंड सेल्जुक, न सिर्फ तुर्की की रक्षा प्रणाली को नया रूप दे चुके हैं, बल्कि कई अंतरराष्ट्रीय संघर्षों में Turkey की सैन्य उपस्थिति को भी मजबूती दी है।

सेल्जुक की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। उनका जन्म एक इंजीनियरिंग परिवार में हुआ, और टेक्नोलॉजी को लेकर उनका जुनून उन्हें अमेरिका की प्रतिष्ठित MIT और पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी तक ले गया। वहीं से लौटकर उन्होंने अपने पिता की कंपनी बायकर को एक नई ऊंचाई दी। बायकर ने Turkey के पहले पूरी तरह स्वदेशी ड्रोन—Bayraktar TB2—को बनाया, जो अब विश्व स्तर पर प्रसिद्ध है। इस ड्रोन की वजह से Turkey ने कई युद्धों में बिना सैनिकों को ज़मीन पर भेजे बड़ी सैन्य विजय हासिल की।
लेकिन यह ड्रोन सिर्फ रक्षा तक सीमित नहीं रहे। इनके ज़रिये Turkey ने एक ‘नया कूटनीतिक हथियार’ भी बना लिया। बायकर कंपनी के ड्रोन अब Turkey के कई मित्र देशों को बेचे जाते हैं। यूक्रेन से लेकर अज़रबैजान और कतर तक, तुर्की के ये ड्रोन जंग के मैदान में तख़्त-पलट कर देते हैं। और यही वजह है कि भारत में अब यह सवाल ज़ोर पकड़ रहा है—क्या भारत के एयरपोर्ट्स पर काम करने वाली एक कंपनी के मालिकों का तुर्की के इस रक्षा और राजनीतिक वर्चस्व से कोई अप्रत्यक्ष संबंध है?
इस बीच तुर्की के राष्ट्रपति के परिवार की पृष्ठभूमि भी लोगों की दिलचस्पी का विषय बन गई है। रेचेप तैय्यप अर्दोआन की पत्नी एमीन गुलबरन से उनकी शादी 1978 में हुई थी। उनके चार बच्चे हैं—अहमेत बुराक, नेकमेटिन बिलाल, एसरा और सुमैया। सुमैया ने सेल्जुक बायरकटार से 2016 में शादी की थी, और तभी से उनका नाम भी मीडिया में छाया हुआ है। सुमैया पेशे से एक शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, लेकिन उनका राजनीतिक संपर्क और शादी उन्हें अक्सर राष्ट्रीय चर्चाओं में ले आता है।
फोर्ब्स की 2024 की अरबपति सूची में सेल्जुक का नाम भी आया, और उनकी कुल संपत्ति लगभग 1.2 अरब डॉलर आंकी गई। वो दुनिया के 2,410वें सबसे अमीर व्यक्ति हैं। ये सारी दौलत मुख्यतः ड्रोन कारोबार से आई है। बायकर में सेल्जुक की 52.5% हिस्सेदारी है। इससे यह भी साफ होता है कि अब Turkey के रक्षा बजट और निजी संपत्ति के बीच की दूरी बहुत कम हो गई है—एक ओर सरकारी समर्थन, दूसरी ओर निजी लाभ।
भारत में जब से यह विवाद उठा, तब से सोशल मीडिया पर दो खेमे बन चुके हैं—एक पक्ष कहता है कि सेलेबी एविएशन पर शक करना तर्कसंगत है, क्योंकि किसी भी बाहरी प्रभाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता। वहीं दूसरा पक्ष मानता है कि भारत को खुला और उदार व्यापारिक दृष्टिकोण बनाए रखना चाहिए, खासकर तब जब कंपनी खुद पारदर्शिता का दावा कर रही है। लेकिन इस बहस के बीच यह बात तो तय है कि भारत अब अपनी रणनीतिक सुरक्षा को लेकर पहले से ज्यादा सजग हो चुका है।
सेलेबी एविएशन की बात करें तो यह कंपनी भारत के नौ बड़े एयरपोर्ट्स पर ग्राउंड हैंडलिंग और कार्गो सेवाएं देती है। दिल्ली, मुंबई, चेन्नई जैसे शहरों में इनका संचालन है। कंपनी का कहना है कि वे हर नियम का पालन करती हैं और उनकी गतिविधियों पर CISF, BCAS और AAI जैसी संस्थाएं निगरानी रखती हैं। यानी सुरक्षा की दृष्टि से एक स्तर पर नियंत्रण मौजूद है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह नियंत्रण पर्याप्त है?
भारत और Turkey के संबंध अब केवल कूटनीतिक नहीं रहे—वे आर्थिक, तकनीकी और राजनीतिक स्तर पर भी टकरा रहे हैं। भारत ने हाल के वर्षों में कई बार तुर्की की नीतियों पर आपत्ति जताई है—चाहे वह संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर को लेकर Turkey के बयान हों, या पाकिस्तान को ड्रोन और सैन्य मदद देना। और अब जब भारत ने तुर्की की कंपनियों की जांच शुरू की है, तो यह एक संकेत है कि भविष्य में भारत अपनी हवाई और साइबर सुरक्षा को लेकर किसी तरह का समझौता नहीं करेगा।
दूसरी ओर, Turkey की आक्रामक विदेश नीति और उसकी सैन्य कंपनियों का वैश्विक फैलाव, भारत जैसे देशों के लिए चिंता का विषय बन गया है। भारत अपनी रक्षा प्रणाली को स्वदेशी बनाने की दिशा में बढ़ रहा है, और ऐसे में बाहरी सैन्य नेटवर्क से जुड़ी कंपनियों की उपस्थिति, चाहे वे खुद को कितनी भी निर्दोष बताएं, शक के दायरे में आती हैं।
सवाल और भी हैं। क्या सुमैया अर्दोआन का नाम जानबूझकर जोड़ा गया ताकि भारत में एक विदेशी कंपनी के खिलाफ जनमत तैयार किया जा सके? क्या यह सिर्फ एक अफवाह थी या इसके पीछे कोई सूक्ष्म रणनीति छिपी थी? या फिर यह एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी—एक ऐसे देश के नागरिक की, जो अपने देश की सुरक्षा को लेकर सचेत है और सतर्क भी।
जो भी हो, इस विवाद ने एक बात तो साफ कर दी है—भारत अब सिर्फ आर्थिक तरक्की के आंकड़ों से नहीं चलने वाला। अब देश को यह भी देखना है कि विदेशी पूंजी, तकनीक और कंपनियों की आड़ में कहीं उसकी सुरक्षा, संप्रभुता और रणनीतिक नियंत्रण को चुनौती तो नहीं मिल रही। और इसी सोच के तहत भारत अब हर उस संगठन, हर उस नाम और हर उस तकनीक को लेकर गंभीर है, जो भले ही आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद हो, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जोखिम बन सकता है।
Conclusion
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