पहलगाम हमले के बाद भारत जब पाकिस्तान पर सर्जिकल जवाब की तैयारी कर रहा था, तब एक और मोर्चा चुपचाप भारत के पूरब में खुल रहा था। बांग्लादेश के एक रिटायर्ड मेजर जनरल ने ऐसा बयान दे डाला जिसने न केवल Northeast भारत को खतरे में डाला, बल्कि चीन के साथ एक संभावित गठजोड़ की ओर इशारा कर दिया।
उन्होंने सुझाव दिया कि अगर भारत पाकिस्तान पर हमला करता है, तो बांग्लादेश को भारत के सात Northeast राज्यों पर कब्जा कर लेना चाहिए—और इसके लिए चीन से Joint Military System की बात शुरू करनी चाहिए। हालांकि बांग्लादेश सरकार ने इस बयान से खुद को अलग कर लिया, लेकिन इससे भारत के लिए एक सख्त संदेश जरूर गया—कि अब खतरा सिर्फ पश्चिम से नहीं, पूरब से भी है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
आपको बता दें कि इस बयान की टाइमिंग और उसका रणनीतिक संदर्भ भारत के लिए बेहद संवेदनशील था। बांग्लादेश का यह उकसाऊ रवैया तब सामने आया, जब वह खुद अंदरूनी राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहा है। शेख हसीना की सरकार के हटने के बाद से ही बांग्लादेश की विदेश नीति में भारत विरोधी तेवर साफ दिखने लगे थे। चीन, जो पहले ही भारत के खिलाफ रणनीतिक रूप से सक्रिय है, अब बांग्लादेश के जरिए भारत की पूर्वी सीमा पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है। और यही वह मोमेंट था जब भारत ने न केवल इस खतरे को पहचाना, बल्कि एक ऐसी रणनीति बनाई जो ना सिर्फ जवाब थी, बल्कि एक masterstroke भी।
भारत के लिए Northeast सिर्फ एक Geographical क्षेत्र नहीं है, वह सामरिक और सांस्कृतिक रूप से देश की रीढ़ है। और अब जब बांग्लादेश चीन को वहां बुला रहा है, तब भारत के लिए यह जरूरी हो गया कि वह न केवल अपनी सुरक्षा मजबूत करे, बल्कि Northeast को आर्थिक रूप से इतना मजबूत बनाए कि कोई बाहरी ताकत वहां घुसपैठ की हिम्मत ही न करे। और यहीं से शुरू होती है भारत की ‘त्रिदेव रणनीति’—एक ऐसा आर्थिक वार जो सीधे बांग्लादेश और चीन की उस साजिश पर हमला करता है, जो Northeast को भारत से काटने का सपना देख रहे थे।
मुहम्मद यूनुस, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के सलाहकार और वही व्यक्ति जिनका बयान भारत के लिए अलार्म बेल बन गया, उन्होंने जब चीन की चार दिवसीय यात्रा में भारत के सातों Northeast राज्यों को ‘लैंडलॉक्ड’ कहकर उन्हें चीन के आर्थिक विस्तार के लिए उपयुक्त बताया, तो वो सिर्फ आर्थिक बातें नहीं कर रहे थे। उनका इशारा था—भारत के उस कमजोर चोकपॉइंट की ओर जिसे ‘सिलीगुड़ी कॉरिडोर’ कहते हैं। ये वही ‘चिकन नेक’ है, जो सिर्फ 22 किलोमीटर चौड़ा है और Northeast को भारत के बाकी हिस्सों से जोड़ता है।
चीन इस कॉरिडोर को लंबे समय से एक रणनीतिक कमजोरी के तौर पर देखता आया है। और अब अगर बांग्लादेश का लालमोनिरहाट एयरबेस—जो भारत से महज़ 12 से 15 किमी दूर है—चीन की मदद से एक्टिव हो जाता है, तो यह कॉरिडोर एक सीधा खतरा बन सकता है। और इसी प्लान को अंजाम देने के लिए चीनी अफसरों ने हाल ही में उस साइट का दौरा भी किया। सवाल ये नहीं कि वह एयरबेस सैन्य उद्देश्य से इस्तेमाल होगा या नहीं, असली चिंता यह है कि चीन की मौजूदगी भारत के इतने नजदीक हो जाएगी कि वह केवल एक निगाह नहीं, एक घातक रणनीति बन सकती है।
यही वजह है कि भारत अब सिर्फ डिफेंस से नहीं, डेवेलपमेंट से जवाब दे रहा है। भारत ने बांग्लादेश की गलत नीयत और चीन की चालाकी का तोड़ निकाला है—और इसका नाम है ‘इकोनॉमिक डोमिनेशन’। भारत ने सबसे पहले बांग्लादेश के टेक्स्टाइल प्रोडक्ट्स पर पाबंदी लगाकर सीधा संदेश दिया कि तुम जो बोलोगे, उसका असर तुम्हारी जेब पर होगा। लेकिन इससे भी बड़ा दांव भारत ने तब चला जब उसने Northeast में ऐसा Investment घोषित किया, जिसकी गूंज बीजिंग से ढाका तक सुनी गई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘राइजिंग नॉर्थ ईस्ट इन्वेस्टर समिट’ में जब कहा कि Northeast भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ का केंद्र बनेगा, तो उन्होंने भूगोल को चुनौती दी। उन्होंने साफ कर दिया कि Northeast अब न सिर्फ भारत का द्वार है, बल्कि आसियान व्यापार का पुल भी होगा। और इसके बाद सामने आए तीन नाम, जिन्हें आज भारत के ‘त्रिदेव’ कहा जा रहा है—रिलायंस, अडानी और वेदांता।
मुकेश अंबानी ने घोषणा की कि रिलायंस आने वाले वर्षों में Northeast भारत में 45,000 करोड़ रुपए अतिरिक्त Investment करेगा। अभी तक रिलायंस इस क्षेत्र में 30,000 करोड़ रुपए का Investment कर चुका है, और अब ये Investment 75,000 करोड़ तक पहुंचाया जाएगा। अंबानी ने स्पष्ट शब्दों में कहा—यह क्षेत्र भारत के डिजिटल, ऊर्जा और कनेक्टिविटी भविष्य का इंजन बनेगा। और यह बात सिर्फ आर्थिक नहीं, राजनीतिक और रणनीतिक भी है।
इसके तुरंत बाद गौतम अडानी सामने आए। उन्होंने कहा कि अडानी ग्रुप अगले 10 वर्षों में Northeast में 1 लाख करोड़ रुपये का Investment करेगा। यह Investment ग्रीन एनर्जी, सड़कें, पॉवर ट्रांसमिशन, डिजिटल इन्फ्रा और Human capital development में होगा। यह वही क्षेत्र है जिसे पहले भारत की मुख्यधारा से दूर माना जाता था, लेकिन अब अडानी उसे भारत का अगला ग्रोथ इंजन कह रहे हैं। ये महज कॉर्पोरेट ऐलान नहीं था—यह एक स्ट्रैटेजिक स्टेटमेंट था।
तीसरे नंबर पर आता है वेदांता ग्रुप, जिसने Northeast में 80,000 करोड़ रुपए के Investment की बात कही है, जिसमें असम अकेला 50,000 करोड़ का हिस्सा बनता है। वेदांता का Investment मुख्य रूप से तेल-गैस, खनिज, रिफाइनिंग, रिन्युएबल एनर्जी और डेटा सेंटर्स में होगा। यह Investment न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति देगा, बल्कि 1 लाख से ज्यादा नौकरियां पैदा करेगा, जिससे यह क्षेत्र आत्मनिर्भरता की दिशा में तेजी से बढ़ेगा।
ये तीनों Investor केवल पूंजी नहीं ला रहे, वे भरोसा ला रहे हैं। वे चीन और बांग्लादेश को दिखा रहे हैं कि भारत अपने Northeast को सिर्फ सुरक्षा कवच से नहीं, आर्थिक समृद्धि से भी सुरक्षित करेगा। इस रणनीति में भारत की खास बात ये है कि वह ‘विकास’ को हथियार बना रहा है—एक ऐसा हथियार जो बिना गोली चलाए दुश्मनों की रणनीति को ध्वस्त कर सकता है।
अब सोचिए, अगर सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर खतरा मंडरा रहा है, तो भारत उसका जवाब सिर्फ सीमा पर तैनाती से नहीं दे रहा, बल्कि वहां सड़कों का जाल बिछा रहा है, इंडस्ट्रियल कॉरिडोर बना रहा है, और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के गेटवे खोल रहा है। यह वही Northeast है जिसे कभी उपेक्षित क्षेत्र कहा जाता था, लेकिन अब यहां मल्टीनेशनल कंपनियों की दिलचस्पी बढ़ रही है। ये वही क्षेत्र है जिसे अब भारत अपनी सामरिक शक्ति के साथ-साथ आर्थिक ताकत से भी फोर्टिफाई कर रहा है।
भारत की यह रणनीति सिर्फ तत्काल जवाब नहीं है, यह एक दीर्घकालिक नीति है। बांग्लादेश को यह अब समझ आ गया है कि भारत अब ‘नो टॉलरेंस’ नीति पर काम कर रहा है—चाहे बात आतंक की हो, व्यापारिक अड़चनों की हो या रणनीतिक घेराबंदी की। और चीन को भी यह संदेश गया है कि भारत सिर्फ एलएसी पर नहीं, हर मोर्चे पर तैयार है। और इस तैयारी की सबसे बड़ी मिसाल है—50,000 करोड़ का त्रिदेव मॉडल, जो अब Northeast को भारत का सबसे बड़ा स्टार्टअप हब बना सकता है।
Conclusion
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