एक ओर जब पड़ोसी मुल्क की जमीन से आतंकी हमला होता है, देश में मातम छा जाता है, भारत सरकार कड़े फैसले लेती है, बॉर्डर बंद कर दिए जाते हैं, तो दूसरी ओर उसी समय भारत को एक और मोर्चे पर Global जीत मिलती है। ऐसी जीत जो न गोलियों से मिली, न बयानों से—बल्कि भारत की आर्थिक ताकत, भरोसेमंद नीति और मैन्युफैक्चरिंग क्षमता से मिली।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद जब पूरा देश दुख और गुस्से में था, उसी समय एक और खबर दुनिया भर की सुर्खियां बनने लगी—दक्षिण कोरियाई दिग्गज Samsung अब वियतनाम को छोड़कर भारत में प्रोडक्शन बढ़ाने का मन बना रही है, और वो भी अमेरिका के लिए।
ये महज एक कंपनी का निर्णय नहीं, बल्कि एक बदलते भारत का संकेत है, जो अब सिर्फ एक बाज़ार नहीं, बल्कि मैन्युफैक्चरिंग सुपरपावर बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। भारत की यह जीत सिर्फ व्यापारिक नहीं है, यह उस भरोसे की जीत है जिसे दुनिया अब भारत की नीति और स्थिरता में देख रही है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
सबसे पहले बात करते हैं पाकिस्तान की। भारत द्वारा सिंधु जल समझौते को स्थगित करना, अटारी बॉर्डर को बंद करना और वीज़ा सुविधा रद्द करना सिर्फ कूटनीतिक कदम नहीं थे—ये संकेत थे कि अब भारत आतंक के खिलाफ हर मोर्चे पर लड़ने को तैयार है। और इसी तनाव के बीच जब पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंच पर समर्थन की गुहार लगा रहा था, भारत को एक आर्थिक जीत मिली, जिसने दुनिया का ध्यान खींचा।
गूगल की पेरेंट कंपनी Alphabet के बाद अब Samsung भी भारत को वियतनाम से बेहतर विकल्प मान रहा है। खासतौर पर अमेरिका के लिए होने वाली मैन्युफैक्चरिंग के लिए। यानी अब भारत वियतनाम से प्रोडक्शन छीनने की स्थिति में है, जो एक दशक तक ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति का सबसे पसंदीदा विकल्प माना जाता रहा। यह केवल नीति की जीत नहीं, बल्कि भरोसे और स्थायित्व की लंबी साधना का फल है।
Samsung ने भारत सरकार से वह एक साल का पीएलआई इंसेंटिव मांगा है, जो उसे उस समय नहीं मिला जब वह प्रोडक्शन टारगेट को पूरा नहीं कर पाया था। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। सरकार का मानना है कि अगर यह राहत दी जाती है तो Samsung भारत में 10 बिलियन डॉलर तक का अतिरिक्त प्रोडक्शन कर सकता है।
यानी सिर्फ एक साल की छूट के बदले देश को हजारों करोड़ का प्रोडक्शन, रोज़गार और एक्सपोर्ट मिल सकता है। यह वह डील है जो किसी कूटनीतिक वार्ता से कहीं ज़्यादा असरदार साबित हो सकती है। और यह कदम केवल Samsung तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि दूसरे Global खिलाड़ियों के लिए भी भारत को आकर्षक बनाता है।
अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, दक्षिण कोरियाई कंपनी अमेरिका द्वारा शुरू किए गए टैरिफ वॉर के बीच वियतनाम से भारत में प्रोडक्शन शिफ्ट करने की संभावनाएं तलाश रही है। दरअसल अमेरिका ने कुछ समय पहले वियतनाम से आने वाले प्रोडक्ट्स पर 46% का टैरिफ लगाया था, जबकि भारत से यह दर 26% रही।
इस फर्क का फायदा भारत को मिल सकता है। उद्योग के जानकार बताते हैं कि Samsung फिलहाल भारत में हर साल 43 से 45 मिलियन स्मार्टफोन बनाता है, जिसमें से 23 से 25 मिलियन घरेलू खपत के लिए होते हैं और बाकी एक्सपोर्ट के लिए। लेकिन अगर अमेरिका की मांग भी भारत से पूरी की जाने लगे, तो यह संख्या 70 मिलियन तक जा सकती है। इसमें सैकड़ों नए इंजीनियरिंग और फैक्ट्री जॉब्स के अवसर पैदा होंगे, जिससे भारत के युवा सीधे तौर पर लाभान्वित होंगे।
वर्तमान में Samsung वियतनाम से अमेरिका को लगभग 10 बिलियन डॉलर के फोन एक्सपोर्ट करता है। लेकिन जानकारों का कहना है कि इस आंकड़े का बड़ा हिस्सा अब भारत में शिफ्ट हो सकता है। कंपनी इस ट्रांजिशन की शुरुआत चालू तिमाही से ही करने की तैयारी में है।
अगर ऐसा होता है तो भारत के लिए यह एक बड़ा आर्थिक और रणनीतिक बूस्ट होगा। क्योंकि इससे ना सिर्फ एक्सपोर्ट बढ़ेगा, बल्कि भारत का नाम Global मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में और मजबूती से स्थापित होगा। भारत को इससे ना सिर्फ डॉलर मिलेगा, बल्कि technical skills, लॉजिस्टिक सुधार और सप्लाई चेन का कायाकल्प भी संभव होगा।
स्मार्टफोन पीएलआई योजना, जो 2021 में शुरू हुई थी, का उद्देश्य था कि भारत में न केवल घरेलू जरूरतों के लिए, बल्कि Global बाजारों के लिए भी स्मार्टफोन का निर्माण हो। शुरुआत में कोविड के चलते कुछ कंपनियां टारगेट पूरा नहीं कर सकीं, लेकिन अब जब Global स्थिति बदल चुकी है और अमेरिका-चीन के बीच व्यापारिक तनाव चरम पर है, तो भारत का विकल्प के रूप में उभरना स्वाभाविक है।
Samsung समेत अन्य कंपनियों को पीएलआई के तहत छह साल की योजना दी गई थी, जिसमें से पांच साल लाभ लेने की अनुमति थी। Samsung को अब तक चार वर्षों का लाभ मिला है और वह पांचवें वर्ष का दावा कर रहा है। यदि यह अनुमति मिलती है, तो Samsung अपने Investment को दोगुना कर सकता है।
Samsung के अलावा इस योजना के तहत पांच अन्य Global कंपनियां हैं जिनमें एप्पल के कॉन्ट्रैक्ट मेन्युफैक्चरर फॉक्सकॉन, पेगाट्रॉन और विस्ट्रॉन (अब टाटा समूह का हिस्सा) शामिल हैं। इनके अलावा लोकल कंपनियों में लावा, डिक्सन टेक्नोलॉजीज, माइक्रोमैक्स और ऑप्टिमस भी शामिल हैं। ये सभी कंपनियां भारत में एक नया इंडस्ट्रियल इकोसिस्टम खड़ा कर रही हैं, जो केवल फोन बनाकर नहीं बल्कि कंपोनेंट, डिजाइन, रिसर्च और सॉफ्टवेयर इंटीग्रेशन से जुड़ी है। यह इकोसिस्टम भारत के स्टार्टअप्स, इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स और तकनीकी संस्थानों के लिए भी अवसरों का नया द्वार खोलता है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में Samsung का भारत से एक्सपोर्ट 3 से 4 बिलियन डॉलर के बीच रहा है, लेकिन अब जब अमेरिका की सप्लाई वियतनाम से हटकर भारत में आ सकती है, तो यह आंकड़ा तीन गुना तक जा सकता है। यानी हर साल लगभग 10 बिलियन डॉलर का एक्सपोर्ट अकेले सैमसंग भारत से कर सकता है। यह वह आर्थिक छलांग होगी जो न केवल स्मार्टफोन सेक्टर को, बल्कि भारत की ओवरऑल इकॉनमी को भी नया आयाम देगी। इस तेज़ ग्रोथ से भारत की GDP में मोबाइल सेक्टर का योगदान और भी मज़बूत होगा, जिससे रोजगार के साथ-साथ Export भी दोगुना हो सकता है।
इसीलिए सरकार और Samsung के बीच बातचीत अब एक तकनीकी पहलू से आगे बढ़कर रणनीतिक सहयोग की ओर जा रही है। सरकार इस बात को समझ रही है कि यह सिर्फ इंसेंटिव का सवाल नहीं है, बल्कि भरोसे, नीति स्थिरता और Global विश्वास का मामला है। अगर Samsung का भरोसा मजबूत होता है, तो अन्य कंपनियां भी भारत को प्राथमिकता देंगी। और यह सिलसिला सिर्फ मोबाइल तक नहीं रुकेगा—यह भारत को सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स, EV कंपोनेंट्स और AI हार्डवेयर तक ले जा सकता है। इस पूरे परिदृश्य में भारत अब एक निर्माता से ज़्यादा एक टेक्नोलॉजी विजन बनता जा रहा है।
इस पूरी कहानी का सबसे प्रेरक पहलू यह है कि जब एक ओर भारत को आतंकी हमले और सीमा पर तनाव का सामना करना पड़ रहा है, तब दूसरी ओर Global कंपनियां भारत को अपना पार्टनर बना रही हैं। यह वह दोहरा मोर्चा है जिस पर आज भारत एक साथ लड़ रहा है—एक ओर सुरक्षा, दूसरी ओर अर्थव्यवस्था। और दोनों ही मोर्चों पर भारत अब हार नहीं मान रहा। यह भारत की रणनीति का नया युग है—जहां राष्ट्रवाद और उद्यमिता एक साथ चलती हैं, और जहां हर चुनौती एक अवसर में बदलती है।
Conclusion
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