Rasna ने रचा इतिहास: कैसे एक सस्ते ड्रिंक ने बदल दी भारत की गर्मियों की तस्वीर! 2025

एक ऐसा समय, जब गर्मी की छुट्टियों का मतलब था दोपहर की तेज धूप, पसीने से तर चेहरे, और घर लौटते ही फ्रिज से निकला एक ठंडा गिलास रसना। जैसे ही वो मीठा, खुशबूदार पेय गले से उतरता था, शरीर में मानो ठंडक की लहर दौड़ जाती थी। बच्चों के लिए Rasna गर्मियों की पहचान थी और बड़ों के लिए एक सस्ती, स्वादिष्ट राहत।

और अब वही ब्रांड जिसने देश के लाखों घरों में बचपन की यादें बसाई, उसने अपने विस्तार की नई कहानी लिखनी शुरू कर दी है। Rasna ने हर्षीज इंडिया से जंपिन ब्रांड का Acquisition कर रेडी-टू-ड्रिंक सेगमेंट में एक मजबूत छलांग लगाई है। इस कदम के साथ रसना ने न केवल मार्केट में नई ऊर्जा भरी है, बल्कि यह भी साबित किया है कि एक समय का क्लासिक ब्रांड आज भी खुद को नए जमाने के हिसाब से ढाल सकता है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

Rasna के चेयरमैन पिरुज खंबाटा ने इस Acquisition की पुष्टि करते हुए बताया कि, हर्षीज से केवल ब्रांड Acquired किया गया है, मैन्युफैक्चरिंग एसेट्स नहीं। यानी जंपिन की प्रोडक्शन अब भी उसी फैसिलिटी से होगी, लेकिन नाम पर अब Rasna का अधिकार होगा। खास बात यह है कि जंपिन की शुरुआत पहले गोदरेज ग्रुप ने की थी, जिसे बाद में हर्षीज इंडिया ने संभाला और अब यह सफर Rasna के नाम से आगे बढ़ेगा। इस Acquisition से Rasna अब रेडी-टू-ड्रिंक सेगमेंट में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने जा रहा है, जो आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी में उपभोक्ताओं के बीच बेहद लोकप्रिय हो चुका है।

यह Acquisition केवल एक ब्रांड खरीदने की कहानी नहीं है, यह उस पुराने साम्राज्य को दोबारा खड़ा करने की कोशिश है जिसने एक जमाने में भारतीय समर ड्रिंक मार्केट पर राज किया था। जंपिन अब PET बोतलों और टेट्रापैक्स में लॉन्च होगा, जिसकी कीमत 10 रुपए से शुरू होकर 125 मिली की मात्रा में उपभोक्ताओं तक पहुंचेगी। नींबू, लीची, अमरूद और आम जैसे फ्लेवर में उपलब्ध यह प्रोडक्ट Rasna को उस नए बाजार में स्थापित करेगा, जहां अब उपभोक्ता इंस्टैंट नहीं, बल्कि रेडी-टू-ड्रिंक विकल्प चाहते हैं। और कंपनी का लक्ष्य दो साल में 1,000 करोड़ रुपये की रेवेन्यू सीमा पार करना है। यह लक्ष्य महत्वाकांक्षी है, लेकिन रसना की ब्रांड विरासत और मार्केट की समझ इसे संभव बना सकती है।

Rasna नाम सुनते ही यादें ताज़ा हो जाती हैं—पांच रुपये का एक पैकेट, और उससे बनते थे पूरे 32 गिलास। हर मध्यमवर्गीय घर में फ्रिज के अंदर रसना की बोतल जरूर होती थी। बच्चों के लिए यह किसी इनाम से कम नहीं था और मेहमानों के स्वागत में यह एक गर्व की बात। रसना को लोकप्रियता की ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले शख्स थे अरीज पिरोजशॉ खंबाटा, जिन्होंने अपने पिता फिरोज खंबाटा से इस कंपनी की बागडोर संभाली थी और उसे 60 से अधिक देशों में पहचान दिलाई थी। उन्होंने सिर्फ एक ब्रांड नहीं, बल्कि एक समर कल्चर की नींव रखी थी, जिसमें भारतीयता, किफायत और स्वाद का अनूठा संगम था।

1970 के दशक में जब भारत में विदेशी कोल्ड ड्रिंक्स की पहुंच केवल Upper class तक सीमित थी, तब अरीज ने इस खाई को पाटते हुए रसना पैक लॉन्च किया। 5 रुपए में मिलने वाला एक Rasna पैक मध्यमवर्गीय परिवारों की गर्मियों का साथी बन गया। उसकी टैगलाइन थी—”32 गिलास केवल 5 रुपए में”—जिसने देश के हर घर में इस ब्रांड को स्थापित कर दिया। यह केवल एक ड्रिंक नहीं, बल्कि एक भावना बन गई। बच्चों की गर्मियों में स्कूल की छुट्टियों के साथ रसना एक परंपरा बन गई थी, जिसे हर किसी ने सहेजा और पीढ़ियों तक दोहराया।

लेकिन जिस चीज़ ने Rasna को असली ऊंचाइयों तक पहुंचाया, वह थी इसकी मार्केटिंग। एक छोटी सी लड़की की मासूमियत से भरी आवाज़—”आई लव यू, रसना”—जो सीधे दिल में उतर जाती थी। यह आवाज़ थी अंकिता झावेरी की, जो दूरदर्शन पर प्रसारित उस ऐड में पहली बार ‘रसना गर्ल’ बनी थीं। इस ऐड ने भारतीय विज्ञापन इतिहास में एक क्रांतिकारी बदलाव लाया। पहली बार बच्चों को उपभोक्ता के रूप में देखा गया, और उन्होंने ही ब्रांड को पहचाना भी। एक साधारण सी लाइन और एक प्यारा चेहरा पूरे भारत में रसना को एक नई पहचान दे गया।

कई लोगों ने पूछा कि एक लड़की को ब्रांड का चेहरा क्यों बनाया गया, किसी लड़के को क्यों नहीं? इसका जवाब पिरुज खंबाटा ने खुद दिया था—’रसना’ नाम सुनने में खुद एक लड़की के नाम जैसा लगता है, इसलिए हमें यह स्वाभाविक लगा। यह वही समझदारी थी, जिसने Rasna को भारत के सबसे चहेते ब्रांड्स की सूची में ला खड़ा किया। साथ ही यह भी दिखाया कि कैसे एक सटीक नाम और चेहरा मिलकर एक मजबूत ब्रांड छवि बना सकते हैं, जो वर्षों तक लोगों की यादों में ताजा रहती है।

शुरुआत में इसका नाम ‘Jaffe’ रखा गया था, लेकिन 1979 में देशव्यापी लॉन्च से पहले O&M ने सलाह दी कि इसे अधिक देसी नाम दिया जाए—तब जाकर ‘रसना’ अस्तित्व में आया। और तब से लेकर अब तक, Rasna न सिर्फ एक पेय बना, बल्कि भारतीय गर्मियों की संस्कृति का हिस्सा बन गया। यह नाम अपने आप में एक सादगी और अपनत्व लिए हुए है, जो मध्यमवर्गीय भारतीय परिवारों की सोच से पूरी तरह मेल खाता है।

बाद के वर्षों में, जैसे-जैसे नई जनरेशन आई, Rasna के विज्ञापनों में भी नए चेहरे आए—तरुणी सचदेव और करिश्मा कपूर जैसे सितारे जुड़े—लेकिन जो जगह अंकिता झावेरी ने बनाई थी, वह आज भी अविस्मरणीय है। Rasna को लेकर भावनात्मक जुड़ाव सिर्फ उसके स्वाद से नहीं, बल्कि उसकी मासूम मार्केटिंग से भी था। हर विज्ञापन बच्चों की मासूमियत, परिवार की गर्माहट और सस्ते लेकिन स्वादिष्ट पेय के भाव को साथ लेकर आता था।

हालांकि 2000 के बाद जैसे-जैसे कोका कोला, पेप्सी, और फैंटा जैसे विदेशी ब्रांड्स भारत के हर कोने में पहुंचने लगे, रसना की चमक थोड़ी फीकी पड़ने लगी। युवाओं को फिज़्ज़ और कैफे-स्टाइल पैकेजिंग ज़्यादा आकर्षित करने लगी। लेकिन फिर भी, Rasna अपनी किफायती कीमत और पारिवारिक अपनत्व की वजह से हर गर्मी में किसी न किसी रूप में ज़रूर नज़र आता रहा। और यही बात अब रसना को दोबारा मार्केट में अपनी जगह बनाने की प्रेरणा दे रही है।

आज जब Rasna रेडी-टू-ड्रिंक मार्केट में उतरने की योजना बना रहा है, तो यह सिर्फ एक व्यवसायिक रणनीति नहीं, बल्कि एक वापसी की कोशिश है। एक ऐसा प्रयास जो केवल ब्रांड वैल्यू नहीं, बल्कि पीढ़ियों की भावनाओं से जुड़ा हुआ है। पुराने दौर के उपभोक्ता के लिए यह नॉस्टैल्जिया है, और नई जनरेशन के लिए यह एक नया अनुभव। रसना की यह नई पारी बताती है कि एक ब्रांड जब अपनी जड़ों को नहीं भूलता, तो वह हर युग में खुद को Relevant बना सकता है।

Rasna की यह वापसी यह भी बताती है कि ब्रांड भले ही समय के साथ बदल जाएं, लेकिन यदि उनका आधार भावना और उपभोक्ता से जुड़ाव पर टिका हो, तो वे कभी पुराना नहीं होते। यही कारण है कि Rasna अब केवल पैकेट वाला नहीं, बोतल में आने वाला पेय भी बनना चाहता है—हर तबके तक पहुंचने के लिए, हर पीढ़ी को जोड़ने के लिए। अब देखने वाली बात यह होगी कि जंपिन के साथ उसकी यह नई पारी कैसी रहती है।

Conclusion

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