बिना एक भी गोली चले, बिना कोई सेना सीमा पार करे—एक ऐसा हमला हो जो दुश्मन देश की नींदें उड़ा दे, उसकी अर्थव्यवस्था हिला दे, और उसकी अंतरराष्ट्रीय साख को मिट्टी में मिला दे। यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं है, बल्कि हकीकत बन चुकी है पाकिस्तान के लिए। 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने जो कदम उठाए हैं, वे किसी सैन्य कार्रवाई से कम नहीं हैं। Pakistan, जो हमेशा दूसरों पर हमला करने की फिराक में रहता है, इस बार खुद एक रणनीतिक ‘डबल अटैक’ का शिकार हो गया है—और ये हमला उसकी रीढ़ तोड़ने वाला साबित हो रहा है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
आतंकवाद किसी भी देश के लिए सबसे खतरनाक बीमारी की तरह होता है। लेकिन कुछ देश ऐसे हैं, जो इस बीमारी को खुद के फायदे के लिए पालते-पोसते हैं और फिर दूसरों के घर में आग लगाने भेज देते हैं। पाकिस्तान इस बीमारी का सबसे बड़ा उदाहरण है। दशकों से भारत इस जहरीले नेटवर्क से लड़ता आ रहा है, लेकिन पाकिस्तान ने कभी अपनी आदत नहीं बदली। आतंकियों को शरण देना, ट्रेनिंग देना, और फिर भारत जैसे शांतिप्रिय देशों पर हमला करवाना—यही उसकी नीति रही है। मगर इस बार भारत ने सिर्फ निंदा करके बैठ जाने की गलती नहीं की, बल्कि ऐसी योजना बनाई कि बिना बंदूक चलाए पाकिस्तान की सांसें रुकने लगीं।
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई। इस हमले ने न केवल भारत को झकझोर कर रख दिया, बल्कि पाकिस्तान की असलियत एक बार फिर दुनिया के सामने ला दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कहा—इस बार सिर्फ आतंकियों को नहीं, बल्कि उनके आकाओं को भी मिट्टी में मिला दिया जाएगा। यह बयान सिर्फ शब्दों का खेल नहीं था, बल्कि एक ठोस रणनीति की घोषणा थी। भारत ने सैन्य कार्रवाई से पहले ही Pakistan को दो ऐसे आर्थिक झटके देने की योजना बना डाली, जो उसके लिए किसी जंग से कम नहीं हैं।
पहला हमला—फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी FATF की ‘ग्रे लिस्ट’ में Pakistan की वापसी की कोशिश। ये वही लिस्ट है जो दुनियाभर में आतंक को फंड देने वाले देशों की पहचान करती है। जब कोई देश इस लिस्ट में आता है, तो उसकी अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है। विदेशी निवेशक पीछे हट जाते हैं, कंपनियाँ सतर्क हो जाती हैं, और कर्ज लेना मुश्किल हो जाता है। भारत की कोशिश है कि Pakistan को एक बार फिर इस लिस्ट में डलवाया जाए। और इस बार भारत अकेला नहीं है।
पहलगाम हमले के बाद दुनिया के कई बड़े देश—ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय आयोग, सऊदी अरब और यूएई—ने भारत के साथ सहानुभूति जताई है। ये देश FATF के सदस्य हैं और भारत को उनके समर्थन की ज़रूरत है। अगर ये देश समर्थन करते हैं, तो Pakistan के लिए दोबारा ग्रे लिस्ट में जाना लगभग तय है। पहले भी भारत के प्रयासों से पाकिस्तान जून 2018 में ग्रे लिस्ट में डाला गया था। लेकिन कुछ दिखावटी कार्रवाई के बाद 2022 में उसे निकाल दिया गया। अब जब पहलगाम जैसी घटनाएं सामने आ रही हैं, तो यह ज़ाहिर हो गया है कि Pakistan की नीयत में कोई बदलाव नहीं आया।
FATF की ग्रे लिस्ट में डाले जाने का मतलब है—आर्थिक संकट। विदेशी कर्ज मिलना मुश्किल हो जाता है। Pakistan जैसे देश के लिए, जो पहले ही आर्थिक तंगी झेल रहा है, यह झटका जानलेवा साबित हो सकता है। वर्तमान में 23 देश इस ग्रे लिस्ट में हैं, जिनमें सीरिया, यमन, जिम्बाब्वे, और फिलीपींस जैसे देश शामिल हैं। अगर Pakistan दोबारा इसमें शामिल होता है, तो उसकी स्थिति भी इन देशों जैसी हो सकती है।
अब बात करते हैं भारत के दूसरे ‘अटैक’ की—IMF यानी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से Pakistan को मिलने वाली मदद को रोकने की कोशिश। IMF ने जुलाई 2024 में पाकिस्तान को 7 अरब डॉलर की सहायता मंजूर की थी, लेकिन यह सहायता किस्तों में दी जाती है और हर बार प्रदर्शन की समीक्षा होती है। अगली समीक्षा 9 मई को होने वाली है। भारत इसी बैठक में पाकिस्तान की भूमिका को उजागर करने वाला है। भारत का सीधा आरोप है कि IMF से मिली आर्थिक सहायता को पाकिस्तान अपने देश की अर्थव्यवस्था सुधारने के बजाय, आतंकवाद फैलाने और भारत के खिलाफ सैन्य तैयारियों में इस्तेमाल कर सकता है।
जरा सोचिए—जिस देश को अपने नागरिकों के लिए दवा, रोटी और बिजली तक मुहैया कराने में दिक्कत हो रही है, वह IMF से मिले फंड को सेना के हथियार खरीदने या फिर आतंकी संगठनों को फंड देने में खर्च करता है। भारत इस सच्चाई को दुनिया के सामने लाना चाहता है, ताकि Pakistan को मिलने वाली मदद पर रोक लगे। अगर भारत इसमें कामयाब होता है, तो Pakistan की अर्थव्यवस्था पूरी तरह ढह जाएगी।
IMF की मदद सिर्फ कर्ज नहीं होती—यह एक वैश्विक संकेत होती है कि किसी देश की अर्थव्यवस्था सुधर रही है। अगर Pakistan को यह मदद नहीं मिलती, तो उसकी क्रेडिट रेटिंग गिर सकती है, विदेशी निवेश और भी कम हो सकता है, और अंततः देश की पूरी वित्तीय व्यवस्था चरमरा सकती है। IMF के साथ हुई डील में Pakistan को हर बार अपनी अर्थव्यवस्था के सुधार की रिपोर्ट देनी होती है। भारत यह साबित करने की कोशिश कर रहा है कि Pakistan सिर्फ दिखावा कर रहा है, असल में वह आतंकी संगठनों को छुपकर मदद कर रहा है।
भारत का यह ‘डबल अटैक’ सिर्फ आर्थिक दबाव नहीं है, यह एक रणनीतिक संदेश भी है—कि भारत अब आतंकवाद के खिलाफ सिर्फ डिफेंसिव नहीं, बल्कि ऑफेंसिव मोड में आ चुका है। सैन्य कार्रवाई करने से पहले ही अगर आप दुश्मन की रीढ़ तोड़ दें, तो उसे युद्ध लड़ने की जरूरत ही नहीं पड़ती। यही भारत कर रहा है। Pakistan की वित्तीय नब्ज पर ऐसा वार किया गया है, जिससे वह खुद अपने ही बोझ से टूटने को मजबूर हो जाएगा।
इतिहास गवाह है कि जब-जब भारत ने शांतिपूर्ण ढंग से आतंक के खिलाफ वैश्विक मंचों पर आवाज़ उठाई है, तब-तब उसे समर्थन मिला है। चाहे वह संयुक्त राष्ट्र हो, FATF हो या IMF, भारत की साख एक जिम्मेदार और आतंक के खिलाफ सख्त रुख रखने वाले देश की रही है। Pakistan, दूसरी तरफ, हर बार दोमुंही नीति अपनाता रहा है—एक तरफ दुनिया के सामने खुद को आतंक का शिकार बताना, और दूसरी तरफ आतंकियों को ट्रेनिंग देना। लेकिन अब यह चाल नहीं चलेगी।
भारत ने यह भी तय किया है कि सिर्फ इन दो आर्थिक झटकों से बात नहीं बनेगी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की छवि को हमेशा के लिए खराब किया जाएगा। इसके लिए भारतीय राजनयिक दुनियाभर के देशों से संपर्क कर रहे हैं। भारत की यह रणनीति एक नए युग की शुरुआत है, जहाँ युद्ध सिर्फ बंदूक से नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था और कूटनीति से लड़े जाते हैं।
अब सवाल यह है—क्या पाकिस्तान इस ‘डबल अटैक’ से उबर पाएगा? क्या वह अपनी आतंकवादी नीतियों से पीछे हटेगा? या फिर वह एक बार फिर दुनिया की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश करेगा? इन सवालों के जवाब आने वाले हफ्तों में मिलेंगे। लेकिन एक बात तय है—भारत अब हर मोर्चे पर तैयार है, और अबकी बार जवाब सिर्फ सीमा पर नहीं, हर मंच पर दिया जाएगा।
Conclusion
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