Donkey Economy: पाकिस्तान ने खोजा नया कमाई का जरिया, चीन को गधे बेचकर बना करोड़ों का कारोबार! 2025

सोचिए अगर आपको कोई कहे कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अब गधों पर टिकी है, तो क्या आप यकीन करेंगे? शायद नहीं। लेकिन यही वो सच्चाई है जो इस वक्त दुनिया की दो बड़ी ताकतों—चीन और पाकिस्तान—के बीच व्यापारिक रिश्तों को परिभाषित कर रही है। चीन, जो हाईटेक हथियार, हाई-स्पीड ट्रेन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बादशाह है, वह अपने सबसे करीबी दोस्त पाकिस्तान से सबसे ज्यादा क्या खरीद रहा है?

जवाब चौंकाने वाला है—Donkey! जी हां, Donkey। एक ऐसा जानवर जो अक्सर बोझ ढोने और मजाक का विषय बनता है, आज पाकिस्तान की आर्थिक रीढ़ बनने जा रहा है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे। तो चलिए, इस अनसुनी, मगर हैरान करने वाली गधा-गाथा की परतें खोलते हैं और जानते हैं कि, आखिर चीन को पाकिस्तान के गधों में ऐसी क्या खास बात लगती है जो उसे हर साल करोड़ों रुपये इस कारोबार में लगाने पड़ते हैं।

चीन और पाकिस्तान की दोस्ती वैसे तो पुरानी है—हथियारों से लेकर सड़क परियोजनाओं तक। लेकिन अब इस रिश्ते में एक नया ट्रेड कॉम्पोनेंट जुड़ चुका है—Donkey का व्यापार। ताज़ा सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान में गधों की आबादी में तेजी से वृद्धि हो रही है।

लेकिन ये कोई प्राकृतिक बढ़ोतरी नहीं, बल्कि पूरी तरह से एक योजनाबद्ध व्यापारिक रणनीति का हिस्सा है। चीन की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए पाकिस्तान में गधों के प्रजनन को बढ़ावा दिया जा रहा है। और इस व्यापार की सबसे बड़ी मांग है—गधों की खाल, जिसका इस्तेमाल चीन की पारंपरिक औषधीय प्रणाली में एक बहुत ही महंगे और बहुप्रचलित उत्पाद ‘Ejiao’ के निर्माण में किया जाता है।

चीन में गधों की खाल का इस्तेमाल पारंपरिक दवा ‘Ejiao’ बनाने में होता है। यह एक जिलेटिन जैसा पदार्थ होता है, जिसे पारंपरिक चीनी चिकित्सा में खून की कमी, इम्यून सिस्टम को मजबूत करने, और स्किन की सुंदरता के लिए प्रयोग किया जाता है। खास बात ये है कि 1644 से 1912 तक चीन पर राज करने वाले किंग राजवंश के दौरान यह दवा अमीरों की पहली पसंद हुआ करती थी।

और अब 21वीं सदी में चीन के मध्यम वर्ग और बुजुर्ग आबादी में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। चीन के टीवी सीरियल ‘एम्प्रेस इन द पैलेस’ ने इस दवा की लोकप्रियता को आसमान पर पहुंचा दिया और इसे एक लक्जरी उत्पाद बना दिया, जिसकी कीमत पिछले कुछ वर्षों में 30 गुना तक बढ़ चुकी है।

चीन में गधों की संख्या लगातार घट रही है, वहीं मांग में कोई कमी नहीं। ऐसे में पाकिस्तान चीन के लिए एक प्रमुख स्रोत बन गया है। यहां सरकार ने गधों की संख्या बढ़ाने के लिए विशेष योजनाएं शुरू की हैं। सिर्फ खाल ही नहीं, गधों के मांस और हड्डियों का भी चीन में बड़ा बाजार है। चीन में Donkey मांस एक स्ट्रीट फूड की तरह खाया जाता है—बर्गर, नूडल्स और सूप में गधे का मांस एक लोकप्रिय सामग्री है। कई रेस्त्रां अपने साइनबोर्ड पर गधों की तस्वीर लगाकर ग्राहकों को आकर्षित करते हैं, और यह वहां के खाने की संस्कृति का एक हिस्सा बन गया है।

इस मांग को पूरा करने के लिए पाकिस्तान में ग्वादर जैसे इलाकों में बड़े पैमाने पर बूचड़खाने बनाए जा रहे हैं। ग्वादर में हाल ही में चालू हुआ Donkey प्रोसेसिंग प्लांट एक विशाल इकाई है, जहां मांस, खाल, और हड्डियों को अलग कर पैकिंग कर Export के लिए तैयार किया जाता है। पाकिस्तान के Ministry of Food Safety and Research के मुताबिक, चीन के साथ यह समझौता 2,16,000 गधों की सालाना खाल और मांस की Supply के लिए हुआ है। इस पूरे समझौते की बाजार कीमत करीब 8 मिलियन डॉलर आंकी गई है। इस व्यापार से पाकिस्तान को Foreign currency भी मिल रही है, जो उसकी कमजोर होती अर्थव्यवस्था के लिए फिलहाल एक राहत मानी जा रही है।

पाकिस्तान इस व्यापार को Foreign currency कमाने का अवसर मानता है। सरकार के मंत्रियों के अनुसार यह पहल न केवल Export बढ़ाएगी, बल्कि स्थानीय रोजगार के अवसर भी पैदा करेगी। पाकिस्तानी मंत्री राणा तनवीर हुसैन ने एक चीनी प्रतिनिधिमंडल को आश्वस्त किया कि, गधे की स्थानीय नस्लों को संरक्षित करने के लिए विशेष कानून और रेगुलेशन बनाए जा रहे हैं। साथ ही जीवित गधों के Export को लेकर भी बातचीत जारी है, हालांकि इसे चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है। लेकिन चीन की मांग को देखते हुए पाकिस्तान इस दिशा में भी प्रयास कर रहा है।

लेकिन इस Donkey अर्थव्यवस्था के अपने विरोधाभास भी हैं। पाकिस्तान में कई पशु प्रेमी और एनजीओ इस पूरे व्यापार को अमानवीय मानते हैं। उनका कहना है कि गधों का अंधाधुंध प्रजनन, उनका वध और दुर्व्यवहार इस व्यापार के साइड इफेक्ट्स हैं। ग्वादर में स्थानीय लोगों ने बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन किए हैं। उनका आरोप है कि पाकिस्तान सरकार चीन के साथ मिलकर बलूचिस्तान जैसे इलाकों के संसाधनों का दोहन कर रही है। स्थानीय लोगों को विश्वास में लिए बिना इस तरह के बूचड़खाने बनाना उनके अधिकारों का उल्लंघन है। ये विरोध प्रदर्शन केवल सामाजिक मुद्दा नहीं, बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक असंतोष का भी संकेत हैं।

पाकिस्तान का कराची भले ही औद्योगिक शहर हो, लेकिन वहां भी आज गधों का इस्तेमाल सामान ढोने के लिए होता है। यानी जो गधे सड़कों पर मेहनत करते हैं, वही अब चीन के सौंदर्य प्रसाधनों और दवाओं का हिस्सा बनते जा रहे हैं। पाकिस्तान के स्तंभकार तहरीम अजीम ने खुलासा किया कि, चीन के हेबेई प्रांत में Donkey मांस इतना लोकप्रिय है कि वहां के बर्गर में इसका इस्तेमाल आम बात है। इसका मतलब यह है कि पाकिस्तान अब सिर्फ खाल और दवा ही नहीं, बल्कि मांस भी Export कर रहा है, जो इस व्यापार को और अधिक बहुआयामी बना देता है।

यह पूरा व्यापार एक दिलचस्प लेकिन चिंता का विषय है। जहां एक ओर पाकिस्तान Foreign currency कमा रहा है, वहीं दूसरी ओर वह अपने ही जीव-जंतुओं को एक आर्थिक साधन भर मानकर उनके साथ व्यवहार कर रहा है। पशु अधिकारों के नजरिए से यह गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है। ग्वादर में चल रहे विरोध प्रदर्शन इस बात का संकेत हैं कि ‘Donkey इकोनॉमी’ जितनी दिखने में हल्की लगती है, असल में उतनी ही जटिल है। इस व्यापार ने एक नई सामाजिक बहस को जन्म दिया है—क्या हम जानवरों को सिर्फ एक संसाधन मानकर उनके साथ अन्याय कर सकते हैं, या फिर हमें उनके अधिकारों और भावनाओं का भी सम्मान करना चाहिए?

पाकिस्तान और चीन के इस अनोखे रिश्ते की यह परत दर परत कहानी एक बड़ी सच्चाई को उजागर करती है। यह दोस्ती केवल हथियारों, सीपैक और विकास परियोजनाओं की नहीं, अब इसमें ‘Donkey डिप्लोमेसी’ भी जुड़ चुकी है। और अगर यही रफ्तार रही, तो शायद वह दिन दूर नहीं जब पाकिस्तान की जीडीपी में गधों का बड़ा योगदान दर्ज किया जाएगा। जहां एक ओर भारत स्पेस टेक्नोलॉजी, डिजिटल पेमेंट और स्टार्टअप्स के माध्यम से विश्व मंच पर अपनी जगह बना रहा है, वहीं पाकिस्तान की कमाई का नया रास्ता अब गधों से होकर निकल रहा है। यह विरोधाभास न केवल नीति निर्माताओं के लिए बल्कि आम नागरिकों के लिए भी सोचने का विषय है।

यह कहानी उस भारत के लिए भी एक आइना है, जो अपनी तकनीक, युवाशक्ति और आत्मनिर्भरता पर गर्व करता है। और यह दिखाता है कि अपने संसाधनों का उपयोग कैसे किया जाए, ये हर देश का अपना रास्ता होता है—कोई उसमें सॉफ्टवेयर बेचता है, कोई चावल, और कोई गधे। और यही है आज की दुनिया की सबसे विचित्र लेकिन असल सच्चाई—जहां भूगोल से ज़्यादा ज़रूरी हो गया है व्यापार का मॉडल और दोस्ती की परिभाषा अब केवल रक्षा समझौतों तक नहीं, बल्कि खाल और मांस तक पहुंच गई है।

Conclusion

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