Pakistan: मददगार चीन खुद मुश्किल में! ट्रंप के Tariff वार से बिखरते सपने। 2025

दुनिया का सबसे बड़ा Exporter देश, जिसे आर्थिक ताकत का प्रतीक माना जाता था, आज अपनी ही फैक्ट्रियों में ताले लगते हुए देख रहा है। जहां कभी मशीनों की गूंज थी, आज सन्नाटा पसरा हुआ है। जहां लाखों मजदूरों के हाथ व्यस्त रहते थे, आज बेरोजगारी की मार से कराह रहे हैं। और इसी बीच, वह देश जिसे पूरी दुनिया कभी ‘वर्ल्ड फैक्ट्री’ कहती थी, अब मदद के लिए इधर-उधर देख रहा है। जी हां, हम बात कर रहे हैं चीन की — वही चीन, जो अब तक Pakistan का सबसे बड़ा मददगार बना हुआ था।

लेकिन अब जब Pakistan मदद की भीख लेकर उसके दरवाजे पर खड़ा है, तो चीन खुद इतनी बड़ी मुसीबतों में फंसा है कि अपने घाव भरने का भी वक्त नहीं मिल रहा। ट्रंप के टैरिफ वार ने ड्रैगन के घमंड को ऐसा तोड़ा है कि अब उसे अपने बचाव के लिए भारत की ओर देखना पड़ रहा है। यह कहानी सिर्फ आर्थिक संकट की नहीं है — यह कहानी है बदलती Global balance of power की, टूटती उम्मीदों की, और एक नए विश्व व्यापार युद्ध की आहट की। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और Pakistan के बीच, तनातनी एक बार फिर से दुनिया के नक्शे पर एक बड़ी चिंता बनकर उभरी है। भारत ने आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाया, और Pakistan एक बार फिर खुद को घिरा हुआ महसूस कर रहा है। Pakistan, जिसकी आर्थिक हालत पहले ही पतली थी, अब अपने पुराने मित्रों के दरवाजे खटखटा रहा है।

खासतौर पर चीन से — जिस पर वह वर्षों से अपनी आधी-अधूरी उम्मीदें टिकाए बैठा है। हाल ही में Pakistan ने चीन से 10 अरब डॉलर की स्वैप लाइन बढ़ाने की गुहार लगाई है, ताकि थोड़ी सांस ले सके। लेकिन विडंबना देखिए — चीन, जो कभी दुनिया भर के देशों को कर्ज बांटने में गर्व महसूस करता था, अब खुद आर्थिक संकट की गहरी दलदल में धँसता जा रहा है।

चीन की हालत इतनी नाजुक हो गई है कि उसके अपने उद्योग-धंधे ठप्प पड़ने लगे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए हाई टैरिफ का असर अब साफ दिखने लगा है। सीएनबीसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट बताती है कि चीन के कई बड़े-बड़े औद्योगिक केंद्रों में फैक्ट्रियां अपना उत्पादन बंद कर रही हैं। खिलौनों से लेकर खेल के सामान तक, हर सेक्टर पर चोट पड़ी है। शंघाई स्थित टाइडलवेव सॉल्यूशंस के सीनियर पार्टनर कैमरन जॉनसन ने खुलासा किया कि, कई फैक्ट्रियों ने अपने आधे से ज्यादा कर्मचारियों को घर भेज दिया है, क्योंकि उनके पास प्रोडक्शन करने के लिए न तो ऑर्डर हैं और न ही बाजार।

जॉनसन बताते हैं कि यिवू और डोंगगुआन जैसे बड़े औद्योगिक केंद्रों में हालात चिंताजनक होते जा रहे हैं। खिलौने, खेल उपकरण और सस्ते कंज्यूमर प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनियां सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। शुरुआत में यह असर स्थानीय स्तर पर था, लेकिन अब इसका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। फैक्ट्रियों के बंद होने का सीधा असर उन करोड़ों मजदूरों पर पड़ रहा है, जिनकी रोजी-रोटी इन्हीं कारखानों पर निर्भर थी।

गोल्डमैन सैक्स जैसी प्रतिष्ठित वित्तीय संस्थाओं ने भी चेतावनी दी है कि, ट्रंप टैरिफ के चलते चीन में करीब 1 से 2 करोड़ नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है। बीते वर्ष चीन के शहरों में काम करने वाले मजदूरों की संख्या 47 करोड़ से ज्यादा थी। यानी लगभग हर चार में से एक मजदूर अब इस अनिश्चितता की भट्ठी में झुलस रहा है। सिर्फ कल्पना कीजिए — दो करोड़ बेरोजगार लोग, जो हर रोज काम की तलाश में दर-दर भटकते हैं। इसका असर सिर्फ आर्थिक नहीं, सामाजिक ताने-बाने पर भी पड़ने लगा है।

चीन, जो वर्षों से अमेरिका को सस्ते सामान सप्लाई करता आ रहा था, अब उस सप्लाई चेन के ध्वस्त होने के बाद नई राहें तलाशने को मजबूर हो गया है। और इसी तलाश में उसकी नजर भारत की ओर मुड़ी है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिकी ग्राहकों को बनाए रखने के लिए कई चीनी कंपनियाँ अब भारतीय एक्सपोर्टर्स से संपर्क साध रही हैं। भारत से अमेरिका को सामान भेजने पर फिलहाल केवल 10% टैरिफ है, जबकि चीन पर यह दर 145% तक पहुँच चुकी है। यही वजह है कि चीन के Exporter अब भारत को अपने सपनों की नई नाव मान रहे हैं।

लेकिन सवाल उठता है — क्या भारत इस मौके को भुना पाएगा? क्या भारतीय उद्योगपति इस नए ट्रेड शिफ्ट का फायदा उठाकर अपनी हिस्सेदारी बढ़ा पाएंगे? और अगर हाँ, तो क्या इसका मतलब होगा कि भारत वाकई Global supply chain का अगला बड़ा केंद्र बन सकता है?

इस बीच, Pakistan का हाल देखकर दुनिया हैरान है। जो Pakistan कभी ‘आल वेदर फ्रेंड’ चीन के भरोसे बड़े-बड़े दावे करता था, आज उसी चीन के दरवाजे पर हाथ पसार कर खड़ा है। Pakistan के वित्त मंत्री मुहम्मद औरंगजेब ने हाल ही में चीन से 10 अरब युआन की अतिरिक्त स्वैप लाइन बढ़ाने का अनुरोध किया है। लेकिन जिस चीन की खुद की कमर ट्रंप के टैरिफ ने तोड़ रखी है, वह अब दूसरों को कितना सहारा दे पाएगा — यह एक बड़ा सवाल है।

चीन का झुकाव अब स्पष्ट रूप से अपनी आर्थिक प्राथमिकताओं की ओर है। वह खुद को बचाने की जद्दोजहद में लगा है, अपने जॉब मार्केट को स्थिर रखने की लड़ाई लड़ रहा है। चीन का पूरा ध्यान अब इस बात पर है कि कैसे अमेरिकी बाजार में अपनी बची-खुची हिस्सेदारी को बचाया जाए, और कैसे वियतनाम जैसे नए प्रतिस्पर्धियों के बढ़ते खतरे से निपटा जाए।

डोनाल्ड ट्रंप के आक्रामक टैरिफ वॉर ने चीन के लिए संकट की कई परतें खोल दी हैं। पहले वियतनाम जैसे देशों ने चीन की supply chain को चुनौती दी थी। अब ट्रंप ने वियतनाम पर भी 46% का रेसिप्रोकल टैरिफ लगा दिया है, जिससे भारत जैसे देशों के लिए रास्ता खुल गया है। पर यह भी सच है कि भारत को इस मौके का फायदा उठाने के लिए तेजी से सुधार करने होंगे — लॉजिस्टिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर ट्रेड पालिसी तक में।

दूसरी ओर, Pakistan की स्थिति और भी चिंताजनक होती जा रही है। विदेशी कर्ज का पहाड़ बढ़ता जा रहा है, और नई-नई रियायतों की मांग के बावजूद International Monetary Fund (IMF) की शर्तें दिन पर दिन सख्त होती जा रही हैं।

कुल मिलाकर, इस पूरी कहानी में एक बड़ा ट्विस्ट यह है कि जो चीन कभी Pakistan के लिए संकटमोचक था, आज खुद संकट में है। और जो Pakistan कभी चीन के समर्थन से भारत को आंखें दिखाने की कोशिश करता था, आज वही भारत के सामने कमजोर पड़ता जा रहा है।

यह सिर्फ एक देश की कहानी नहीं है। यह बदलते विश्व समीकरणों का आइना है। यह दिखाता है कि कैसे Global politics और global economy, एक दूसरे के इतने गहरे जुड़े हुए हैं कि एक छोटे से झटके का असर दुनिया के कोने-कोने तक पहुँच जाता है।

तो अगली बार जब आप खबरों में देखें कि चीन में फैक्ट्रियां बंद हो रही हैं, मजदूर सड़क पर आ गए हैं, और Pakistan मदद की गुहार लगा रहा है — तो याद रखिएगा कि यह कोई संयोग नहीं है। यह उस भूचाल का परिणाम है, जिसे डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर ने पैदा किया है। क्योंकि जब आर्थिक जंग के बादल मंडराते हैं, तो सिर्फ अर्थव्यवस्थाएँ ही नहीं, सपने भी दरकने लगते हैं।

Conclusion

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