एक देश जो खुद को किसी का सबसे करीबी दोस्त बताता है, लेकिन उसी दोस्ती की आड़ में आपकी आर्थिक रीढ़ तोड़ रहा हो। एक ऐसा पड़ोसी जो आपको ‘भाई’ कहता है, लेकिन आपकी ज़मीन, व्यापार, सेना, और भविष्य तक पर कब्ज़ा जमा चुका हो। Pakistan के साथ ठीक यही हो रहा है—और इस साजिश की पटकथा कोई और नहीं, चीन लिख रहा है। दोनों देश भले ही दुनिया के सामने मुस्कुरा कर फोटो खिंचवाते हों, लेकिन हकीकत में चीन ने पाकिस्तान को एक ऐसी गिरफ़्त में जकड़ लिया है, जिससे निकलना आसान नहीं। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले ही बीमार थी, लेकिन अब तो वह वेंटिलेटर पर आ चुकी है। और इस स्थिति तक उसे लाने में सबसे बड़ी भूमिका रही है उसके कथित ‘आयरन ब्रदर’ चीन की। चीन ने शुरुआत की बड़े-बड़े वादों से—बिजली संयंत्रों से लेकर बंदरगाहों तक, हाईवे से लेकर रेलवे तक। लेकिन इन वादों के पीछे असली मकसद था—कर्ज का जाल बिछाना। कर्ज, जो दिखता तो मदद जैसा है, पर अंदर से है एक शिकंजा जो हर साल कसता चला जाता है।
CPEC यानी चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर… यह परियोजना जब शुरू हुई थी, तो इसे ‘सदी की सबसे बड़ी विकास योजना’ बताया गया। लेकिन समय के साथ ये पाकिस्तान की आत्मनिर्भरता को निगलता जा रहा है। 62 बिलियन डॉलर के CPEC प्रोजेक्ट्स में से अधिकांश ऐसे हैं, जिनमें न तकनीक पाकिस्तान की है, न मज़दूर। सब कुछ चीन से आता है—और फिर Pakistan को भारी ब्याज दरों पर उसका भुगतान करना पड़ता है। Pakistan की ज़मीन पर, पाकिस्तान के लोगों के पैसे से, चीन का साम्राज्य खड़ा हो रहा है।
साल 2024 में Pakistan ने चीन से 16 बिलियन डॉलर का सामान Import किया—यह उसके कुल Import का सबसे बड़ा हिस्सा है। मोबाइल, कंप्यूटर, मशीनरी, कृषि उपकरण, स्टील, कपड़ा—हर सेक्टर में Pakistan चीन पर निर्भर है। और यही सबसे बड़ी चिंता है, क्योंकि पाकिस्तान के पास खुद की इंडस्ट्री बची ही नहीं। चीन का माल पाकिस्तान के हर बाज़ार में छाया है, और बदले में पाकिस्तान चीन को सिर्फ 2 से 3 बिलियन डॉलर का सामान बेच पाता है। ये व्यापार नहीं, गुलामी है।
केवल व्यापार नहीं, Pakistan की रक्षा जरूरतें भी अब चीन के रहमोकरम पर हैं। 2019 से 2023 के बीच चीन ने Pakistan को 82% हथियारों की आपूर्ति की। JF-17 फाइटर जेट, टैंक, पनडुब्बियां, मिसाइल—सब कुछ चीन से आता है। और ये कोई मुफ्त का सौदा नहीं है। चीन के इस सैन्य सहयोग के बदले पाकिस्तान अपनी रणनीतिक आज़ादी भी गिरवी रख चुका है। सोचिए, अगर कल को चीन कोई शर्त रखे, तो क्या Pakistan मना कर पाएगा?
अब बात करते हैं कर्ज की—वह तलवार जो Pakistan की गर्दन पर हर वक्त लटकती रहती है। 2023 तक Pakistan पर 131 बिलियन डॉलर का बाहरी कर्ज था, जिसमें अकेले चीन का हिस्सा 29 बिलियन डॉलर था। लेकिन ये आधिकारिक आंकड़ा है। कुछ अनुमानों के मुताबिक, वास्तविक ऋण 69 बिलियन डॉलर तक हो सकता है। यानी चीन अब पाकिस्तान की रगों में दौड़ते खून की तरह बन चुका है—बिना जिसके वो जिंदा तो है, पर स्वतंत्र नहीं।
CPEC के नाम पर पाकिस्तान ने चीन से जितना कर्ज लिया है, उस पर ब्याज दर 3.7% है। OECD देशों की तुलना में ये करीब तीन गुना ज्यादा है। और कुछ मामलों में तो ब्याज 7 से 8% तक पहुंचता है। इसका मतलब ये है कि Pakistan ने जितना लिया, उससे कई गुना ज्यादा वह चुका रहा है—वो भी बिना कोई आर्थिक वापसी के। 2020 में पाकिस्तान ने जो कर्ज लिया था, उसे चुकाने के लिए फिर से नया लोन लिया गया। यानी यह कर्ज अब ‘ऋण चक्रवात’ बन चुका है।
2023 में पाकिस्तान ने चीन से फिर 700 मिलियन डॉलर का अतिरिक्त ऋण लिया। 2024 में Pakistan ने 16 बिलियन डॉलर के ऊर्जा क्षेत्र के कर्ज और 4 बिलियन डॉलर के कैश लोन की मियाद बढ़ाने की मांग की। चीन ने अस्थायी राहत दी, लेकिन लंबे समय तक यह रोलओवर जारी नहीं रह सकता। Pakistan की स्थिति ऐसी है कि 2023 में उसके कुल Export का 43% हिस्सा सिर्फ कर्ज चुकाने में चला गया। और ये सिर्फ शुरुआत है।
अब बात करते हैं पाकिस्तान में चीन के कारोबार की—जिसे कई लोग ‘सौदे के पीछे की चाल’ भी कहते हैं। चीन ने पाकिस्तान में कई कोल-बेस्ड पावर प्लांट लगाए हैं, जिनसे बनने वाली बिजली पाकिस्तान को बहुत महंगे दामों पर मिलती है—भले ही वो बिजली इस्तेमाल हो या नहीं। साहिवाल और पोर्ट कासिम जैसे प्लांट्स में चीन ने Investment किया है, लेकिन उनसे होने वाली आय से ज्यादा है पाकिस्तान पर बढ़ता बिल।
ग्वादर बंदरगाह—CPEC का सबसे चमकदार मोती—वो भी अब चीन को 40 साल की लीज पर सौंपा जा चुका है। इसका अर्थ है कि आने वाले चार दशकों तक इस बंदरगाह से चीन को फायदा होगा और पाकिस्तान सिर्फ गेटकीपर बनकर रहेगा। इसके अलावा ML-1 रेलवे प्रोजेक्ट में चीन 9.8 बिलियन डॉलर Investment कर रहा है, लेकिन निर्माण कार्य में न स्थानीय श्रमिक हैं, न पाकिस्तानी कंपनियां। यानी हर एंट्री पर लिखा है—Made in China.
CPEC के दूसरे चरण में अब चीन ने टेक्नोलॉजी, AI, कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे क्षेत्रों में 26.8 बिलियन डॉलर की योजनाएं शुरू की हैं। लेकिन इन प्रोजेक्ट्स में भी स्थानीय साझेदारी नहीं है, और रोजगार के अवसर पाकिस्तानियों के लिए नाममात्र हैं। और तो और, इन प्रोजेक्ट्स पर कोई सरकारी निगरानी या पारदर्शिता भी नहीं है। कोई नहीं जानता कि समझौते के असली शर्तें क्या हैं।
पाकिस्तानियों को लगता था कि चीन उन्हें गरीबी से बाहर निकालेगा। लेकिन अब वे देख रहे हैं कि चीन केवल उन्हें अपनी फैक्टरी बना रहा है—बिना हिस्सेदारी, बिना अधिकार। और ऐसे में ये सवाल ज़रूरी है—क्या ये दोस्ती पाकिस्तान के लिए फायदे की है या फिर यह एक ‘नीति’ है जो धीरे-धीरे उसकी आत्मा को खा रही है?
अब इस कहानी का सबसे दुखद पहलू सामने आता है—पाकिस्तान की वैश्विक छवि। IMF से लेकर सऊदी अरब और UAE तक, हर जगह पाकिस्तान भीख मांग रहा है। चीन से रोलओवर, IMF से बेलआउट, अरब देशों से लोन… यह कोई आत्मनिर्भर राष्ट्र की तस्वीर नहीं, बल्कि एक गिरती हुई व्यवस्था की चीख है। और चीन इस हालात का भरपूर फायदा उठा रहा है।
Expert चेतावनी दे रहे हैं कि अगर पाकिस्तान ने समय रहते कदम नहीं उठाए, तो ग्वादर की तरह अन्य रणनीतिक संस्थान भी चीन के हाथ में चले जाएंगे। भविष्य में सैन्य अड्डों की संभावना भी इन क्षेत्रों में बन सकती है। जो आज आर्थिक मदद है, कल सामरिक अधिपत्य में बदल सकती है।
आज पाकिस्तान को ज़रूरत है आत्मावलोकन की। क्या वो इस ऋण जाल से बाहर निकल पाएगा? क्या वह अपनी अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा कर पाएगा? या फिर वो हमेशा के लिए एक ‘डिफॉल्ट दोस्त’ बनकर चीन की उंगली पर नाचता रहेगा? ये दोस्ती नहीं… ये सौदा है। और जब सौदे में आत्मनिर्भरता गिरवी रखी जाती है, तो उसका अंजाम सिर्फ कर्ज नहीं होता—बल्कि एक पूरे राष्ट्र की पहचान का मिटना होता है।
Conclusion
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