नमस्कार दोस्तों, भारत के सबसे सम्मानित उद्योगपति रतन टाटा, जिन्होंने अपने जीवनभर की मेहनत से टाटा ग्रुप को एक वैश्विक ब्रांड बनाया, उनकी वसीयत जब खोली गई, तो उसमें एक ऐसा नाम सामने आया, जिसने सबको चौंका दिया। हर कोई सोच रहा था कि रतन टाटा अपनी हजारों करोड़ की संपत्ति किसे सौंपेंगे?
क्या यह उनके ट्रस्ट को जाएगी, क्या उनके करीबी रिश्तेदारों को कुछ मिलेगा, या फिर उनके बिजनेस सहयोगियों को कुछ दिया जाएगा? लेकिन जब वसीयत को पढ़ा गया, तो उसमें एक अनजाना नाम उभरकर आया—Mohini Mohan Dutta।
Mohini Mohan Dutta को वसीयत में 500 करोड़ रुपये दिए गए। यह नाम सुनकर न केवल टाटा ग्रुप के करीबी लोग, बल्कि पूरा बिजनेस जगत हैरान रह गया। आखिर यह व्यक्ति कौन हैं? कैसे वे इतने बड़े धनराशि के हकदार बन गए? क्या वे रतन टाटा के कोई रिश्तेदार थे, या उनके जीवन में उनकी कोई खास भूमिका थी?
यह खबर जब मीडिया में आई, तो सवालों की बौछार शुरू हो गई। क्या यह रतन टाटा का कोई पुराना कर्ज चुकाने का तरीका था, या फिर यह कोई गुप्त रिश्ता था, जिसकी चर्चा कभी बाहर नहीं आई? इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए हमें रतन टाटा और Mohini Mohan Dutta के संबंधों की गहराई में जाना होगा। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
Mohini Mohan Dutta कौन हैं?
Mohini Mohan Dutta का नाम सुनने में जितना नया लग रहा है, उतना नया यह व्यक्ति टाटा ग्रुप से नहीं है। वे कोई आम कारोबारी नहीं, बल्कि रतन टाटा के बेहद करीबी माने जाते थे। उनकी मुलाकात 1960 के दशक में पहली बार जमशेदपुर के डीलर्स हॉस्टल में रतन टाटा से हुई थी, जब रतन टाटा सिर्फ 24 साल के थे।
वह दौर था जब रतन टाटा अपने विशाल व्यापार साम्राज्य में अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहे थे। उस समय Mohini Mohan Dutta उनकी जिंदगी में एक अहम व्यक्ति के रूप में सामने आए। उनकी दोस्ती सिर्फ एक कारोबारी संबंध नहीं थी, बल्कि वे रतन टाटा के बेहद निजी दायरे में शामिल हो गए। कुछ रिपोर्ट्स का तो यह भी कहना है कि दत्ता खुद को रतन टाटा का दत्तक पुत्र बताते थे, हालांकि कानूनी रूप से यह साबित नहीं हुआ है कि रतन टाटा ने कभी किसी को गोद लिया था।
रतन टाटा का जीवन निजी तौर पर बेहद गोपनीय रहा है। उन्होंने कभी शादी नहीं की, न ही उनका कोई आधिकारिक उत्तराधिकारी था। इसीलिए जब Mohini Mohan Dutta को इतनी बड़ी संपत्ति दी गई, तो यह सवाल और बड़ा हो गया कि क्या वे केवल एक करीबी दोस्त थे, या उनसे रतन टाटा का कोई गहरा व्यक्तिगत संबंध था?
रतन टाटा और Mohini Mohan Dutta की दोस्ती कैसे शुरू हुई, और उनका सफर कैसा रहा?
रतन टाटा और Mohini Mohan Dutta के बीच का संबंध कोई साधारण दोस्ती नहीं थी। जब 1960 के दशक में रतन टाटा अपने करियर की शुरुआत कर रहे थे, तब वे जमशेदपुर के डीलर्स हॉस्टल में रहे। उसी समय उनकी मुलाकात Mohini Mohan Dutta से हुई, जो उस समय एक सामान्य कारोबारी थे।
उनकी यह पहली मुलाकात धीरे-धीरे एक गहरी दोस्ती में बदल गई। रतन टाटा ने दत्ता को व्यापार के गुर सिखाए, उनके बिजनेस आइडियाज को समर्थन दिया और उन्हें आगे बढ़ाने में मदद की। यह सहयोग इतना मजबूत था कि वर्षों बाद जब टाटा ग्रुप अपनी ऊंचाइयों पर था, तब भी Mohini Mohan Dutta उनके बेहद करीबी बने रहे।
2024 में जब रतन टाटा का अंतिम संस्कार हुआ, तब Mohini Mohan Dutta भी वहां मौजूद थे। उन्होंने उस समय कहा था कि, “हम पहली बार जमशेदपुर में डीलर्स हॉस्टल में मिले थे, जब रतन टाटा 24 साल के थे। उन्होंने मेरी मदद की और मुझे वाकई आगे बढ़ाया।” यह एक ऐसा बयान था जिसने यह साफ कर दिया कि उनकी दोस्ती सिर्फ एक कारोबारी रिश्ते से कहीं ज्यादा थी।
Mohini Mohan Dutta का टाटा ग्रुप से क्या संबंध है, और वे किन बिजनेस और कंपनियों से जुड़े हुए हैं?
Mohini Mohan Dutta का कारोबार टाटा समूह से गहराई से जुड़ा हुआ था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत ताज ग्रुप ऑफ होटल्स से की थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने अपना खुद का बिजनेस शुरू किया। उन्होंने स्टैलियन ट्रैवल एजेंसी की स्थापना की, जो बाद में ताज ग्रुप ऑफ होटल्स के एक विभाग “ताज सर्विसेज” के साथ विलय हो गई।
उनकी कंपनी का टाटा इंडस्ट्रीज में भी Investment था। जब टाटा कैपिटल ने इस व्यवसाय का 80% acquisition कर लिया, तो यह बाद में थॉमस कुक (इंडिया) को बेचा गया। Mohini Mohan Dutta टाटा कैपिटल और टीसी ट्रैवल सर्विसेज में डायरेक्टर भी रह चुके हैं। उनकी बेटी भी ताज होटल्स में काम कर चुकी हैं और लगभग एक दशक तक टाटा ट्रस्ट के साथ जुड़ी रही हैं।
रतन टाटा की वसीयत में क्या खुलासा हुआ, और उनकी संपत्ति का बंटवारा कैसे किया गया?
जब रतन टाटा की वसीयत खोली गई, तो यह पता चला कि Mohini Mohan Dutta 500 करोड़ रुपये के वारिस बने हैं। लेकिन यह सिर्फ यहीं खत्म नहीं हुआ। उन्होंने वसीयत को लेकर अपना असंतोष भी जताया, क्योंकि वे टाटा की बाकी बची हुई संपत्ति का एक-तिहाई हिस्सा पाने के हकदार भी माने जा रहे हैं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्हें 350 करोड़ रुपये की बैंक डिपॉजिट, पेंटिंग्स, घड़ियां और अन्य निजी संपत्तियों की नीलामी से मिलने वाली आय भी मिल सकती है। दत्ता को उम्मीद है कि आखिरकार उनकी विरासत की कुल कीमत 650 करोड़ रुपये तक हो सकती है। वहीं, टाटा की संपत्ति का बाकी दो-तिहाई हिस्सा उनकी सौतेली बहनों शिरीन जीजीभॉय और डीनना जीजीभॉय को मिलने वाला है।
नोएल टाटा को रतन टाटा की वसीयत में हिस्सा क्यों नहीं मिला?
रतन टाटा की वसीयत में सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि उनके सौतेले भाई नोएल टाटा और उनके बच्चों का नाम इसमें नहीं था। नोएल टाटा टाटा संस के बोर्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं और लंबे समय से टाटा ग्रुप के विभिन्न कारोबार संभालते आए हैं। इसके बावजूद, उनका नाम वसीयत में न होना कई सवाल खड़े करता है।
नोएल टाटा ने टाटा इंटरनेशनल, ट्रेंट और टाटा इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन का नेतृत्व किया है और कभी रतन टाटा के उत्तराधिकारी के संभावित दावेदारों में से एक थे। लेकिन 2012 में साइरस मिस्त्री को चुना जाना इस ओर संकेत था कि रतन टाटा पेशेवर योग्यता को अधिक महत्व देते थे। अब वसीयत में नोएल टाटा को पूरी तरह नजरअंदाज किया जाना यह दर्शाता है कि रतन टाटा ने स्पष्ट और सोची-समझी योजना बनाई थी। संभव है कि उन्हें पहले ही टाटा समूह के कुछ हिस्सों में भागीदारी मिल चुकी हो, या वे वित्तीय रूप से सुरक्षित हों।
इस वसीयत पर कानूनी विवाद होगा?
कई लोग अनुमान लगा रहे हैं कि क्या रतन टाटा की वसीयत को बिना किसी विवाद के स्वीकार किया जाएगा या इस पर कानूनी लड़ाई हो सकती है। इतनी बड़ी संपत्ति के बंटवारे पर सवाल उठना स्वाभाविक है। वसीयत की अभी बॉम्बे हाई कोर्ट से प्रमाणिकता होनी बाकी है, और कोई भी हितधारक इसे चुनौती दे सकता है। Mohini Mohan Dutta को 500 करोड़ रुपये देने और उनकी 650 करोड़ रुपये की संभावित दावेदारी पर, टाटा परिवार के अन्य सदस्य आपत्ति जता सकते हैं।
टाटा ट्रस्ट और टाटा ग्रुप के बोर्ड के कुछ प्रमुख सदस्य भी इस पर पुनर्विचार की मांग कर सकते हैं। हालांकि, अगर रतन टाटा ने कानूनी रूप से मजबूत वसीयत तैयार करवाई है, तो इसे चुनौती देना मुश्किल हो सकता है। फिर भी, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह मामला अदालत तक जाता है या बिना किसी रुकावट के लागू हो जाता है।
Conclusion
तो दोस्तों, Mohini Mohan Dutta केवल एक कारोबारी नहीं थे, बल्कि रतन टाटा के करीबी दोस्त और विश्वासपात्र थे। यह दर्शाता है कि व्यक्तिगत संबंध व्यावसायिक रिश्तों से अधिक शक्तिशाली हो सकते हैं। रतन टाटा ने दत्ता के प्रति अपनी वफादारी दर्शाते हुए उन्हें संपत्ति सौंपी, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह वसीयत कानूनी रूप से लागू होगी या इसमें बदलाव आएगा? इस फैसले से टाटा ग्रुप की छवि पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह देखने योग्य होगा। क्या दत्ता टाटा ग्रुप से अपने संबंध और मजबूत करेंगे? यह सवाल आने वाले दिनों में स्पष्ट होंगे।
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