कल्पना कीजिए… सीमा पर खड़े हमारे जवान, जिनकी हर गतिविधि होती है गोपनीय, जिनकी हर चाल होती है रणनीतिक। लेकिन अचानक, एक हमले से पहले दुश्मन को उनकी लोकेशन, मूवमेंट और पूरे इलाके की सैटेलाइट इमेज पहले से मिल जाती है। और वो भी किसी ड्रोन या हैकिंग से नहीं, बल्कि अमेरिका की एक वैध कंपनी से।
जी हां, यह कोई फिल्मी साजिश नहीं, बल्कि हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले से जुड़ा सबसे खौफनाक खुलासा है—जहां एक अमेरिकी कंपनी Maxar Technologies पर यह आरोप लगा है कि, उसने भारत के संवेदनशील क्षेत्रों की हाई-रेजोल्यूशन सैटेलाइट इमेज पाकिस्तान की एक संदिग्ध कंपनी को बेची, और वह भी एक आतंकी हमले से कुछ हफ्ते पहले। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
इस खुलासे ने भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की सुरक्षा एजेंसियों के कान खड़े कर दिए हैं। क्योंकि बात सिर्फ़ तस्वीरों की नहीं है, बात उन तस्वीरों के पीछे छिपे मंसूबों की है। बात उस डेटा की है, जो अगर गलत हाथों में पड़ जाए, तो किसी भी देश की सुरक्षा को मिनटों में भेद सकता है। और यही हुआ भारत के पहलगाम, पुलवामा, राजौरी और अनंतनाग जैसे संवेदनशील इलाकों के साथ—जहां से सैटेलाइट इमेज लेकर भेजी गईं एक पाकिस्तानी कंपनी को… जिसने उन्हें भारत पर हमला करने की योजना बनाने में इस्तेमाल किया।
इस कहानी की शुरुआत होती है उस कंपनी से, जिसका नाम है Maxar Technologies—एक अमेरिकी सैटेलाइट इमेजिंग कंपनी, जिसकी छवियों की गुणवत्ता इतनी तेज़ होती है कि ज़मीन पर रखी हुई वस्तु की भी पहचान की जा सकती है। Maxar की इमेजिंग तकनीक की रेजोल्यूशन 30 सेंटी मीटर से लेकर 15 सेंटी मीटर तक होती है। मतलब, किसी सैन्य वाहन की हरियाली में छिपी लोकेशन भी साफ देखी जा सकती है। और यही तकनीक जब गलत हाथों में जाती है, तो वह बन जाती है युद्ध का सबसे खतरनाक हथियार।
Maxar की सेवाओं का इस्तेमाल भारत की कई सरकारी एजेंसियां करती रही हैं, जिनमें रक्षा मंत्रालय, ISRO, और अनगिनत प्राइवेट स्पेस टेक कंपनियां शामिल हैं। Antrix Corporation, CYRAN AI Solutions, Lepton Software जैसी कंपनियों ने Maxar के साथ समझौते किए हैं। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात तब सामने आई जब पता चला कि साल 2023 में Maxar ने एक पाकिस्तानी कंपनी—Business Systems International private limited यानी BSI—को अपना आधिकारिक पार्टनर बना दिया। अब सवाल उठता है कि ये BSI कंपनी कौन है? और इससे भारत को क्या खतरा है?
BSI पाकिस्तान की एक कंपनी है, जिसके मालिक हैं ओबैदुल्लाह सैयद—एक पाकिस्तानी-अमेरिकी नागरिक, जिन्हें अमेरिका की अदालत ने 2022 में एक साल की जेल की सज़ा सुनाई थी। आरोप था कि उन्होंने प्रतिबंधित कंप्यूटर डिवाइसेज़ को गैरकानूनी रूप से पाकिस्तान की न्यूक्लियर अथॉरिटी तक पहुंचाया। यानि एक व्यक्ति जो पहले ही न्यूक्लियर स्मगलिंग में दोषी पाया गया है, वह अब एक अमेरिकी सैटेलाइट कंपनी का ‘पार्टनर’ बनता है और फिर भारत के सबसे संवेदनशील इलाकों की तस्वीरें मांगता है। क्या यह केवल संयोग हो सकता है?
जांच में सामने आया है कि BSI ने Maxar से कुल 12 हाई-रेजोल्यूशन इमेजेस का ऑर्डर दिया था—जिनमें पहलगाम, पुलवामा, राजौरी और अनंतनाग जैसे इलाके शामिल थे। ये वही क्षेत्र हैं जहां भारतीय सेना की गहन गतिविधियां होती हैं, जहां आतंकवाद से लड़ने की रणनीति बनती है, और जहां भारतीय सुरक्षा का सबसे मजबूत किला होता है। और वही इमेज, आतंकी हमले से कुछ ही हफ्ते पहले BSI के हाथों में थीं।
ISRO के कुछ वैज्ञानिकों ने पहले ही चेताया था कि इस तरह की इमेज का उपयोग सैनिक मूवमेंट को समझने, हमले की योजना बनाने और बंकर की लोकेशन की जानकारी इकट्ठा करने के लिए किया जा सकता है। जब ये जानकारी सामने आई, तो भारत की खुफिया एजेंसियों ने तुरंत Maxar पर सवाल उठाने शुरू कर दिए। कि क्या ये गलती थी, या जानबूझकर की गई एक खतरनाक लापरवाही?
जब मामला मीडिया में आया, तो Maxar ने सफाई दी कि BSI ने आधिकारिक रूप से ऐसा कोई ऑर्डर नहीं दिया था। लेकिन फिर सवाल ये उठता है कि अगर ऑर्डर नहीं दिया गया, तो इमेज BSI तक कैसे पहुंचीं? और सबसे अहम बात—BSI को पार्टनर क्यों बनाया गया, जब उसके मालिक का आपराधिक रिकॉर्ड अमेरिका के सरकारी दस्तावेजों में दर्ज था?
इस पूरे प्रकरण ने Maxar Technologies की विश्वसनीयता पर गहरा सवाल खड़ा कर दिया है। और इसके मौजूदा CEO डैन स्मूट, जो नवंबर 2023 में इस पद पर नियुक्त हुए थे, उनके नेतृत्व में यह विवाद खड़ा हुआ। Maxar की शुरुआत 1992 में WorldView Imaging Corporation के रूप में हुई थी, जो बाद में Digital Globe और फिर Maxar बनी। 2023 में इसे एक अमेरिकी प्राइवेट इक्विटी फर्म Advent International ने खरीद लिया था।
लेकिन अब भारत सरकार ने इस मामले की गहन जांच की मांग की है। सवाल सिर्फ Maxar या BSI का नहीं है, सवाल यह है कि क्या वैश्विक टेक्नोलॉजी कंपनियां व्यापार के नाम पर सुरक्षा की सारी सीमाएं पार कर सकती हैं? क्या अंतरराष्ट्रीय कानून ऐसे सेंसेटिव डेटा के ट्रांसफर को लेकर अब भी कमजोर हैं?
क्योंकि सैटेलाइट इमेज अब केवल भौगोलिक जानकारी नहीं देती, वे युद्ध की नींव तय करती हैं। और अगर यही नींव किसी ऐसे देश या संस्था के पास पहुंच जाए जो भारत के खिलाफ हिंसक साजिशें रच रहा हो, तो यह सिर्फ़ एक कंपनी की गलती नहीं, बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय अपराध बन जाता है।
अब भारतीय रक्षा और अंतरिक्ष एजेंसियों के सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं—पहली, विदेशी कंपनियों पर निर्भरता को कैसे कम किया जाए और दूसरी, इस तरह के डेटा ट्रांसफर पर सख्त नियंत्रण कैसे लाया जाए। ISRO के वैज्ञानिकों ने यह मुद्दा उठाया है कि भारत को अब अपनी खुद की सैटेलाइट इमेजिंग टेक्नोलॉजी को, इतना मजबूत बनाना होगा कि किसी बाहरी सहायता की जरूरत ही न पड़े।
साथ ही, इस मुद्दे ने यह भी दिखा दिया है कि आने वाले समय में युद्ध सिर्फ़ बंदूक, टैंक और मिसाइलों से नहीं लड़े जाएंगे, बल्कि डेटा, इमेज और इंटेलिजेंस से लड़े जाएंगे। और ऐसे में सुरक्षा के मायने सिर्फ बॉर्डर तक सीमित नहीं रहेंगे—बल्कि क्लाउड स्टोरेज, सर्वर लोकेशन, और API एक्सेस तक पहुंच जाएंगे।
भारत को अब यह तय करना है कि क्या वह Maxar जैसे विवादित साझेदारों के साथ अपने सामरिक डेटा को साझा करता रहेगा, या अब वह स्वदेशी टेक्नोलॉजी पर भरोसा करेगा। और सबसे अहम बात—क्या यह केवल एक isolated मामला है, या ऐसी डील्स पहले भी हुई हैं जिनकी परतें अभी खुलनी बाकी हैं?
यह कहानी केवल एक हमले से पहले की एक इमेज शेयरिंग की नहीं है—यह कहानी है उस भरोसे की जो टूट गया, उस सुरक्षा की जो लीक हो गई, और उस टेक्नोलॉजी की जो व्यापार के नाम पर खतरे में पड़ गई।
Conclusion
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