Shocking: 1947 में गदर मचा के अकेले पाकिस्तान गए जिन्ना, भारत बना खानदान का बसेरा।

सोचिए… साल 1947। चारों तरफ़ आग लगी है। सड़कें खून से रंगी हुईं, रेलगाड़ियाँ लाशों से भरी हुईं, लोग अपने घरों से बेघर होकर भाग रहे हैं। बच्चे अपनी माँओं से बिछड़ रहे हैं और औरतें अपने पतियों को खो रही हैं। इस गदर, इस खौफ़नाक माहौल के बीच एक आदमी अकेला खड़ा है। उस आदमी के हाथ में सत्ता की चाबी है, लेकिन दिल में अजीब-सा सन्नाटा।

वही मोहम्मद अली जिन्ना—पाकिस्तान के कायदे-आजम, जिनका नाम भारत के बंटवारे और पाकिस्तान के निर्माण से हमेशा जोड़ा जाएगा। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है, जिस देश को बनाने के लिए उन्होंने पूरी ज़िंदगी लगा दी, उसी पाकिस्तान में उनके अपने कितने ही रिश्तेदार साथ क्यों नहीं गए? क्यों उनका बड़ा खानदान भारत में ही रह गया? यह कहानी सिर्फ़ एक नेता की नहीं, बल्कि उस परिवार की है, जो खुद बंटवारे का सबसे दर्दनाक शिकार बना। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

जिन्ना का नाम आते ही एक ठंडी सिहरन-सी पैदा होती है। उनकी ज़िंदगी रहस्यों और विवादों से भरी रही। एक तरफ़ वे लाखों मुसलमानों के लिए ‘मसीहा’ कहे गए, तो दूसरी तरफ़ करोड़ों हिंदुओं और सिखों की नज़रों में बंटवारे के सबसे बड़े खलनायक। लेकिन इन सब बहसों और नारों से परे, उनका निजी जीवन बेहद अकेला और जटिल था। इतिहास गवाह है कि 1947 में जब पाकिस्तान बना, तो जिन्ना अपनी बहन फातिमा के साथ अकेले ही कराची पहुँचे। उनका स्वागत ज़रूर हुआ, उन्हें ‘कायदे-आजम’ कहा गया, लेकिन उनके साथ उनके खानदान के सदस्य नहीं थे। वह पाकिस्तान गए, लेकिन उनका परिवार भारत, ब्रिटेन और यूरोप में बिखर गया।

जिन्ना का खानदान बड़ा था। उनके कई भाई-बहन थे। लेकिन विभाजन के समय ज्यादातर ने भारत में रहना चुना। जैसे उनकी बहन मरियम बाई और भाई रहमत अली। ये दोनों मुंबई और कोलकाता में रह गए। उनके वंशज आज भी भारत में मौजूद हैं। सोचिए, यह कितना अजीब है कि जिस आदमी ने पाकिस्तान को जन्म दिया, उसके अपने खून के रिश्ते उसी भारत की मिट्टी से जुड़े रहे, जिसे छोड़कर वह पाकिस्तान चले गए थे।

जिन्ना के छोटे भाई अहमद अली ने तो पूरी तरह अलग रास्ता चुना। उन्होंने ब्रिटेन को अपना ठिकाना बना लिया। एक अंग्रेज़ महिला एमी से शादी की और वहीं जीवन बिताया। उनकी एक बेटी हुई, फातिमा, जो आज स्विट्जरलैंड में रहती हैं। अहमद अली का जीवन जिन्ना से बिल्कुल अलग था। उन्होंने राजनीति और विवादों से दूरी बनाए रखी। यह दूरी इतनी गहरी थी कि जीवन के अंतिम वर्षों में उनका अपने भाई से खास संपर्क भी नहीं रहा। मानो वह अपने नाम के बोझ से बचना चाहते हों।

रहमत अली और मरियम बाई की कहानी अलग है। उन्होंने भारत को छोड़ा नहीं। उनकी संताने यहीं पली-बढ़ीं। कुछ ज़रूर पाकिस्तान चली गईं, लेकिन बड़ी शाखा भारत में ही बस गई। रहमत अली का परिवार आज भी कोलकाता और मुंबई में है। यह वही शहर हैं, जिन्होंने विभाजन के दौरान लाखों शरणार्थियों का दर्द देखा। इन गलियों में जिन्ना खानदान की पीढ़ियाँ आज भी जी रही हैं।

जिन्ना के छोटे भाई बुंदे अली और छोटी बहन शिरीन बाई पाकिस्तान गए। लेकिन बुंदे अली की कोई संतान नहीं थी। शिरीन बाई का बेटा जफरभाई सारी ज़िंदगी अविवाहित रहा। इस शाखा की कहानी पाकिस्तान में ही खत्म हो गई।

अब आइए जिन्ना की इकलौती बेटी दीना वाडिया पर। उनकी कहानी इतिहास की सबसे बड़ी विडंबना है। पाकिस्तान के संस्थापक की अपनी बेटी ने पाकिस्तान की मिट्टी को कभी अपना घर नहीं माना। उन्होंने साफ़ इंकार कर दिया कि वे पाकिस्तान जाएँगी। उन्होंने भारत को ही अपना घर चुना। दीना की शादी नेवल वाडिया से हुई। और यही शादी भारत के सबसे बड़े उद्योग घरानों में से एक का हिस्सा बन गई। उनके बेटे नुस्ली वाडिया आज भारत के प्रमुख उद्योगपति हैं। वाडिया ग्रुप का नाम हर भारतीय जानता है—ब्रिटानिया बिस्किट से लेकर बॉम्बे डाइंग तक। यही नुस्ली वाडिया जिन्ना के नाती हैं। और उनके बेटे जय और नेस वाडिया—जिन्ना के पड़पोते।

सोचिए, यह कितना बड़ा विरोधाभास है। पाकिस्तान के कायदे-आजम का परिवार भारत के बिजनेस टायकून के रूप में फल-फूल रहा है। नेस वाडिया, जिन्हें आप IPL टीम किंग्स इलेवन पंजाब के मालिक के रूप में जानते हैं, वही जिन्ना के वंशज हैं। लेकिन पाकिस्तान में कभी उन्होंने खुद को ‘जिन्ना खानदान’ से जोड़ने की कोशिश तक नहीं की।

जिन्ना के खानदान की शाखाएँ सिर्फ भारत और पाकिस्तान तक सीमित नहीं रहीं। अहमद अली की बेटी फातिमा आज भी स्विट्जरलैंड में रहती हैं। यूरोप की वादियों में जिन्ना का खून बह रहा है। मानो इतिहास ने खुद इन रिश्तों को पूरी दुनिया में बिखेर दिया हो।

लेकिन परिवार की इस बिखरी हुई तस्वीर के साथ एक और परत थी—संपत्ति विवाद। जिन्ना की बहन फातिमा जिन्ना की मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति पर बड़ा विवाद खड़ा हुआ। कराची की अदालत में 1968 से लेकर 1984 तक मुकदमा चला। अंततः यह शरिया कानून के अनुसार सुलझाया गया। लेकिन ट्रस्ट और हिस्सेदारी को लेकर विवाद अब भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ।

जिन्ना का नाम इतना ताक़तवर था कि कई बार अजनबी लोग भी खुद को उनका वंशज बताकर सामने आ जाते थे। कुछ साल पहले असलम जिन्ना नाम का एक व्यक्ति अदालत में पहुँचा और दावा किया कि वह जिन्ना का पड़पोता है। उसने संपत्ति पर अधिकार माँगा। लेकिन जांच के बाद यह दावा झूठा निकला। अदालत ने साफ़ कहा—असलम जिन्ना का जिन्ना परिवार से कोई लेना-देना नहीं।

इतिहासकार लियाकत मर्चेंट, जो मरियम बाई के पोते थे, लिखते हैं कि जिन्ना हमेशा अपने परिवार से दूरी बनाए रखते थे। वे नहीं चाहते थे कि उनके नाम का इस्तेमाल कोई राजनीतिक या व्यक्तिगत फायदे के लिए करे। यहां तक कि जब उनके भाई-भतीजे किसी किताब में या लेख में खुद को ‘जिन्ना का रिश्तेदार’ लिखने की कोशिश करते, तो वे रोक देते थे। शायद यही वजह थी कि उनका अपना परिवार भी उनके साथ खड़ा नहीं दिखा।

और यही है बंटवारे की सबसे कड़वी सच्चाई। यह सिर्फ़ दो मुल्कों के बीच दीवार नहीं थी, बल्कि यह दीवार जिन्ना के अपने घर तक आ गई थी। खुद जिन्ना पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनका परिवार भारत, ब्रिटेन और यूरोप में बिखर गया। कोई मुंबई में बिजनेस करता रहा, कोई कोलकाता में बस गया, कोई ब्रिटेन में रहा और कोई यूरोप चला गया।

यह कहानी हमें यह भी बताती है कि राजनीति और सत्ता की सबसे बड़ी कीमत अक्सर निजी रिश्तों को चुकानी पड़ती है। जिन्ना ने पाकिस्तान को जन्म दिया, लेकिन उनकी अपनी बेटी ने पाकिस्तान की ज़मीन पर कभी कदम नहीं रखा। उनके नाती और पड़पोते भारत के सबसे बड़े बिजनेस टायकून बने।

आज जब हम पीछे मुड़कर 1947 को देखते हैं, तो समझ आता है कि यह सिर्फ़ एक देश का बंटवारा नहीं था। यह लाखों जिंदगियों का बिखराव था। मोहम्मद अली जिन्ना, जिन्हें पाकिस्तान का कायदे-आजम कहा गया, अपने ही परिवार को एक साथ नहीं रख पाए।

उनका परिवार आज भी भारत, पाकिस्तान, ब्रिटेन और यूरोप में बिखरा हुआ है। कोई अरबों का बिजनेस चला रहा है, कोई विदेश की वादियों में जिंदगी बिता रहा है, कोई पाकिस्तान में अपनी पहचान तलाश रहा है। लेकिन यह सब मिलकर एक सवाल छोड़ जाते हैं—क्या वाकई पाकिस्तान का निर्माण सिर्फ एक राजनीतिक निर्णय था? या फिर यह एक ऐसा फैसला था, जिसने इंसान और इंसानियत दोनों को खामोश कर दिया?

जिन्ना का नाम पाकिस्तान की नींव है। लेकिन जिन्ना का खानदान भारत की गलियों, यूरोप की सड़कों और कारोबारी दुनिया की ऊंचाइयों में बसा है। यही वह विरोधाभास है, जो इतिहास को सबसे दिलचस्प बनाता है। एक नेता जिसने सरहद खींच दी, लेकिन अपने ही परिवार की जड़ें उस सरहद के दोनों तरफ छोड़ दीं।

Conclusion

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