एक ऐसा समझौता जो केवल दो देशों के बीच व्यापार नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा तय करने वाला हो। एक ऐसा दस्तावेज़ जिसमें कुछ पन्नों पर हस्ताक्षर भर से अरबों डॉलर की संभावनाएं खुल जाती हैं। ऐसा ही ऐतिहासिक और बहुप्रतीक्षित समझौता इस सप्ताह भारत और यूनाइटेड किंगडम के बीच हुआ है—Free Trade Agreement (FTA)। लेकिन इस सौदे में केवल जीत की कहानियां नहीं हैं, बल्कि रणनीति, संवेदनशीलता, और लंबी कूटनीतिक चालें भी छिपी हैं।
क्या यह डील भारत को global platform पर और ताकतवर बनाएगी या ब्रिटेन को मंदी से उबरने का सहारा देगी? आइए जानते हैं, इस समझौते की अंदरूनी कहानी, हर उस सेक्टर की जिसे मिलेगा फायदा और हर उस इंडस्ट्री की जो पड़ सकती है दबाव में।
भारत और ब्रिटेन के बीच यह वार्ता जनवरी 2022 में शुरू हुई थी। तब से लेकर अब तक दोनों देशों के बीच कुल 14 दौर की बातचीत हुई, और आख़िरकार 2025 की पहली तिमाही में इस समझौते पर मुहर लगी। इसका घोषित उद्देश्य है—2030 तक दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को मौजूदा 60 अरब डॉलर से बढ़ाकर 120 अरब डॉलर तक पहुंचाना। ये कोई मामूली आंकड़ा नहीं है। यह उस विश्वास का प्रतीक है जो दोनों देशों की अर्थव्यवस्था, बाजार और क्षमता में झलकता है।
इस समझौते के तहत भारत को लगभग 99 प्रतिशत टैरिफ लाइनों पर पूरी तरह से टैरिफ फ्री एक्सेस मिला है। इसका मतलब यह है कि अब भारत की वस्तुएं ब्रिटेन में लगभग शून्य शुल्क के साथ प्रवेश कर सकेंगी। ये टैरिफ लाइनें वस्तुतः लगभग भारत के Total export value को कवर करती हैं। यानी भारत के exporters के लिए एक विशाल बाजार अब शुल्क की दीवारों के बिना खुला है।
चलिए जरा विस्तार से देखें कि भारत को किन-किन वस्तुओं पर सबसे बड़ा फायदा मिलेगा। ब्रिटेन ने भारत को लगभग सभी औद्योगिक उत्पादों पर शून्य शुल्क की सुविधा दी है। इसका मतलब है कि अब भारतीय चमड़े के जूते, परिधान, रत्न और आभूषण, बेस मेटल्स, फर्नीचर, खेल सामग्री, ऑटो पार्ट्स, रसायन, लकड़ी, यांत्रिक व इलेक्ट्रॉनिक मशीनरी, खनिज और कई अन्य वस्तुएं ब्रिटेन में आसानी से बिकेंगी। वर्तमान में इन पर ब्रिटेन 4 से 16 प्रतिशत तक शुल्क लगाता था, जो अब खत्म हो जाएगा। इसका सीधा फायदा भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मिलेगा, खासकर MSME को।
दूसरी ओर, भारत ने अपनी घरेलू सुरक्षा और किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए कुछ संवेदनशील कृषि, और औद्योगिक उत्पादों को बहिष्कृत सूची में रखा है। इसका अर्थ है कि इन उत्पादों पर भारत कोई टैरिफ रियायत नहीं देगा। इसमें डेयरी उत्पाद, सेब, पनीर, जई, पशु और वनस्पति तेल जैसे कृषि उत्पाद शामिल हैं। इसी तरह, प्लास्टिक, हीरा, चांदी, स्मार्टफोन, ऑप्टिकल फाइबर और टेलीविजन कैमरा ट्यूब जैसी औद्योगिक वस्तुएं भी इस लिस्ट में हैं।
कुछ ऐसे उत्पाद हैं जिन पर भारत धीरे-धीरे—अर्थात लंबी समयसीमा में—टैरिफ कम करने पर सहमत हुआ है। इनमें प्रमुख हैं—सिरेमिक, पेट्रोलियम उत्पाद, रसायन जैसे क्लोरोसल्फ्यूरिक एसिड, सल्फ्यूरिक एसिड, बोरिक एसिड, प्लैटिनम आधारित धातुएं, विमान इंजन और अन्य इंजीनियरिंग उपकरण। यह व्यवस्था भारत को अपने घरेलू उद्योग को समय देने का अवसर देती है ताकि वे अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार हो सकें।
अब बात करते हैं सबसे चर्चित हिस्से की—स्कॉच व्हिस्की और ब्रिटिश लग्जरी कारों की। भारत वर्तमान में स्कॉच व्हिस्की पर 150 प्रतिशत का Import duty लगाता है। यह समझौता इस शुल्क को पहले चरण में 75 प्रतिशत और आने वाले 10 वर्षों में 40 प्रतिशत तक घटाने का प्रस्ताव करता है। इससे ब्रिटेन को अपने हाई-एंड स्पिरिट्स के लिए भारत में एक बड़ा बाजार मिलेगा। हालांकि यह स्पष्ट किया गया है कि स्कॉच वर्तमान में भारत के व्हिस्की बाजार का केवल 2.5% हिस्सा है, और इस छूट का घरेलू उद्योग पर सीमित असर होगा।
कारों की बात करें तो इस समझौते में ब्रिटिश लग्जरी गाड़ियों जैसे रोल्स-रॉयस, बेंटले, एस्टन मार्टिन और जेएलआर (जगुआर-लैंड रोवर) को लेकर बड़ी राहत दी गई है। इन पर पहले जहां 100 प्रतिशत तक का Import duty लगता था, अब यह FTA के तहत कोटे में आने वाले वाहनों के लिए घटाकर 10 प्रतिशत किया जाएगा। इससे भारत में इन वाहनों की कीमतें घट सकती हैं और टाटा-जेएलआर को रणनीतिक बढ़त मिल सकती है। हालांकि यह छूट केवल सीमित कोटा तक है, जिससे घरेलू वाहन उद्योग की सुरक्षा बनी रहेगी।
इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर भी एक समझदारीभरा कदम उठाया गया है। FTA के तहत केवल कुछ हज़ार ईवी को ही रियायती शुल्क दर पर भारत में Import की अनुमति दी जाएगी। कोटे के बाहर इन वाहनों पर कोई रियायत नहीं दी गई है। यह भारत के ईवी मिशन और मेक इन इंडिया रणनीति के अनुरूप है, ताकि घरेलू ईवी निर्माता सुरक्षित रहें।
सिर्फ व्यापार ही नहीं, यह समझौता लोगों की आवाजाही—यानि “मोबिलिटी” के लिए भी नए अवसर खोलता है। ब्रिटेन ने भारत के कई पेशेवर क्षेत्रों को लेकर स्थायी वीज़ा व्यवस्था तैयार की है। अब भारतीय व्यापारिक विज़िटर्स, अंतर-कारपोरेट ट्रांसफर्स, कॉन्ट्रैक्ट सर्विस प्रोवाइडर्स, स्वतंत्र पेशेवर, इन्वेस्टर्स और उनके आश्रितों को ब्रिटेन में अस्थायी प्रवास और कार्य की सुविधा मिलेगी। इससे भारत के Professionals को ब्रिटेन में काम करने, व्यवसाय करने और स्थायी रूप से बसने में सहायता मिलेगी।
ब्रिटेन ने विशेष रूप से Yoga instructors, Indian musicians और विशिष्ट भारतीय खानपान के experts के लिए कुल 1,800 लोगों तक की सीमा तय की है। इसके अलावा कंप्यूटर, R&D, इंजीनियरिंग और कंसल्टेंसी सेवाओं में भी लगभग 16 उप-सेक्टर्स को शामिल किया गया है, जिससे IT और टेक आधारित भारत की कंपनियों को भारी लाभ मिलेगा। इसके साथ ही, ब्रिटेन ने स्पष्ट कर दिया है कि इन Professionals के लिए कोई Economic Needs Test नहीं लगाया जाएगा, जिससे यह प्रक्रिया और सरल हो जाएगी।
अगर इन सभी प्रावधानों को समग्र रूप से देखें, तो यह FTA भारत के लिए एक रणनीतिक जीत कही जा सकती है। जहां एक तरफ हमने अपने संवेदनशील क्षेत्रों को बचाया है, वहीं दूसरी ओर अपने exporters को एक विशाल, उन्नत और विकसित बाजार तक आसान पहुंच दी है। खासतौर पर टियर-2 और टियर-3 शहरों के MSME अब ब्रिटेन जैसे हाई वैल्यू मार्केट में अपने प्रोडक्ट्स को सीधे बेच पाएंगे।
इस समझौते के राजनीतिक महत्व को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपनी खोई हुई साख वापस पाना चाहता है। भारत के साथ FTA सिर्फ व्यापार का मामला नहीं, बल्कि ब्रिटेन की विदेश नीति का एक अहम हिस्सा बन गया है। दूसरी ओर, भारत अपनी “Act West” नीति के तहत यूरोप और अमेरिका के साथ व्यापारिक रिश्तों को गहराई देना चाहता है। ऐसे में यह समझौता दोनों देशों के लिए भू-राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से बेहद अहम है।
हालांकि, इस समझौते की सफलता इस बात पर भी निर्भर करेगी कि भारत की इंडस्ट्री इसे कितना अपनाती है, और किस गति से ब्रिटेन में भारतीय ब्रांड्स अपनी पकड़ मजबूत करते हैं। इसके अलावा, निगाहें अब इस बात पर भी रहेंगी कि भारत-EU और भारत-अमेरिका के साथ FTA वार्ता में यह समझौता कितनी सकारात्मक भूमिका निभाता है।
Conclusion
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