Turkey को भारत ने दिया करारा जवाब! एविएशन से लेकर चॉकलेट तक हुआ बायकॉट I 2025

भारत, एक ऐसा देश जो शांति और सहयोग की बात करता है, लेकिन जब उसकी सीमाओं पर हमला होता है, तब वह केवल हथियारों से नहीं, अपने बाज़ार से भी जवाब देता है। ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत ने जब पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को तबाह किया, तब पूरी दुनिया ने देखा कि भारत अब सिर्फ जवाब देने वाला नहीं, बल्कि आगे बढ़कर अपने दुश्मनों को रोकने वाला देश बन चुका है।

लेकिन जिस बात ने भारतीयों को सबसे ज्यादा चौंकाया, वह था Turkey का पाकिस्तान का खुला समर्थन। और अब भारत ने इस दोस्ती की कीमत Turkey को ऐसे चुकाई है कि उसका व्यापार, उसका ब्रांड और उसकी पहचान सब खतरे में पड़ गए हैं। यह सिर्फ जवाबी कार्रवाई नहीं, बल्कि एक संदेश है कि भारत अब कूटनीतिक मंचों तक सीमित नहीं, बल्कि हर मोर्चे पर एक सशक्त राष्ट्र के रूप में खड़ा है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

भारत में अब Turkey के हर उस उत्पाद का बहिष्कार शुरू हो गया है जो कभी भारतीय बाज़ार में लोकप्रिय हुआ करता था। एयरपोर्ट पर ग्राउंड हैंडलिंग से लेकर चॉकलेट, ड्राइफ्रूट, फैशन और यहां तक कि शिक्षा तक—हर क्षेत्र में Turkey के खिलाफ बायकॉट का बिगुल बज चुका है।

यह सिर्फ व्यापार का मामला नहीं रहा, यह अब देश की अस्मिता और स्वाभिमान की बात बन चुकी है। और इसी वजह से अब भारत सरकार से लेकर आम नागरिक तक एक सुर में कह रहे हैं—Turkey नहीं चलेगा। यह आंदोलन केवल आंकड़ों का नहीं, बल्कि भावना का भी हिस्सा बन चुका है जिसमें भारत की जनता खुद नेतृत्व कर रही है।

15 मई को भारत ने पहला बड़ा झटका दिया जब ब्यूरो ऑफ सिविल एविएशन सिक्योरिटी, (BCAS) ने ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी सेलेबी की सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी। यह वही कंपनी है जो भारत के नौ प्रमुख हवाईअड्डों पर ग्राउंड और कार्गो सेवाएं देती थी। इस निर्णय के बाद एयरपोर्ट ऑपरेटर्स ने एक-एक कर के सेलेबी के साथ अपने अनुबंध खत्म करने शुरू कर दिए।

एयर इंडिया ने तो Ministry of Civil Aviation से यह तक मांग कर डाली कि, इंडिगो और Turkey एयरलाइंस के बीच लीजिंग टाई-अप को भी बंद किया जाए, क्योंकि इसमें सुरक्षा और व्यावसायिक हित दोनों को खतरा है। यह केवल एक कॉन्ट्रैक्ट नहीं, बल्कि उस भरोसे का अंत था जो अब भारत Turkey पर नहीं करना चाहता। यह फैसला यह भी दर्शाता है कि भारत अब अपने एविएशन इंफ्रास्ट्रक्चर को, आत्मनिर्भर और भरोसेमंद विदेशी भागीदारों तक ही सीमित रखना चाहता है।

केवल एविएशन ही नहीं, भारत के यात्रियों ने भी अपना विरोध स्पष्ट कर दिया। MakeMyTrip जैसी बड़ी ट्रैवल कंपनियों ने खुलासा किया है कि Turkey और अज़रबैजान के लिए, फ्लाइट बुकिंग में पिछले एक हफ्ते में 60 प्रतिशत की गिरावट आई है। और वहीं, कैंसलेशन 250 प्रतिशत तक बढ़ चुका है।

इसका सीधा मतलब है कि आम भारतीय अब केवल सरकार पर निर्भर नहीं, बल्कि वह खुद अपने फैसलों से देश की नीति को दिशा दे रहा है। यात्रा अब केवल घूमने का साधन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय भावना का हिस्सा बन चुकी है। इस रुझान से स्पष्ट है कि Turkey और उससे जुड़े देशों का Tourism revenue बुरी तरह प्रभावित होने जा रहा है, जिससे न केवल उनका आर्थिक संतुलन बिगड़ेगा, बल्कि वैश्विक पर्यटन बाज़ार में उनकी साख को भी झटका लगेगा।

एक और बड़ा झटका Turkey को तब लगा जब अखिल भारतीय Consumer Products Distributors Association ने, 4.5 लाख FMCG डिस्ट्रीब्यूटर्स की ओर से तुर्की के उत्पादों के पूर्ण बहिष्कार की घोषणा कर दी। इनमें चॉकलेट, जैम, सिरप, कुकीज़, वेट वाइप्स, कॉस्मैटिक्स और स्किनकेयर प्रोडक्ट्स शामिल हैं।

दुकानदारों से कहा गया है कि वे इन प्रोडक्ट्स को स्टॉक न करें और उपभोक्ताओं को देशी विकल्पों की ओर प्रोत्साहित करें। यह केवल भावनात्मक निर्णय नहीं, बल्कि व्यापारिक रणनीति भी है, जिससे स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा और विदेशी निर्भरता घटेगी। इससे भारत के छोटे और मध्यम दर्जे के उद्योगों को Global competition में उतरने का मौका मिलेगा, और वोकल फॉर लोकल जैसे अभियानों को नई गति मिलेगी।

भारत के दो सबसे बड़े ऑनलाइन फैशन प्लेटफॉर्म्स मिंत्रा और एजियो ने भी, Turkey के लोकप्रिय फैशन ब्रांड ट्रेंडयोल को अपने प्लेटफॉर्म से हटा दिया है। अब न तो मिंत्रा पर ट्रेंडयोल सर्च में आता है और न ही एजियो पर उसके उत्पाद स्टॉक में दिखते हैं।

यह कदम फैशन की दुनिया में एक बड़ा संकेत है कि देश की नीतियों का असर अब केवल रक्षा और कूटनीति तक सीमित नहीं रहा, बल्कि आम जनता की पसंद-नापसंद को भी दिशा दे रहा है। ऑनलाइन रिटेल का यह विरोध बताता है कि देश का युवा वर्ग भी अब केवल ट्रेंड नहीं, बल्कि ट्रूथ को चुनना चाहता है—एक ऐसा ट्रूथ जो देश के सम्मान से जुड़ा हो।

फलों और सूखे मेवों के मामले में भी भारत ने Turkey को बड़ा झटका दिया है। प्रयागराज से लेकर हरिद्वार और हिमाचल प्रदेश तक व्यापारी और उपभोक्ता, तुर्की से आने वाले सेब और अन्य फलों का खुला बहिष्कार कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि हम ऐसे देश के उत्पाद नहीं खरीद सकते जो हमारे दुश्मनों के साथ खड़ा हो।

यहां तक कि किसानों ने भी मांग की है कि Turkey के सेब पर 100 प्रतिशत टैक्स लगाया जाए ताकि भारतीय सेब उत्पादकों को नुकसान न हो। यह केवल कृषि का नहीं, बल्कि एक जनभावना का विषय बन चुका है। जब देश के खेतिहर मजदूर और व्यापारी भी एक सुर में राष्ट्रीयता की बात करने लगें, तो समझ लेना चाहिए कि यह आंदोलन अब ज़मीन से जुड़ चुका है।

भारत के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय भी पीछे नहीं रहे। आईआईटी बॉम्बे, जेएनयू, जामिया मिलिया, मौलाना आज़ाद उर्दू यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी और लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी जैसी संस्थाओं ने, Turkey के साथ अपने स्टूडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम को या तो स्थगित कर दिया है या रद्द कर दिया है।

यह एक बड़ा संकेत है कि भारत अब शिक्षा के स्तर पर भी उन देशों से संबंध नहीं रखेगा जो उसकी संप्रभुता और सुरक्षा पर सवाल उठाते हैं। छात्रों और शिक्षकों दोनों ने इस निर्णय का समर्थन किया है और कहा है कि राष्ट्रीय हित सबसे ऊपर है। यह शिक्षा जगत की एक परिपक्व और आत्मनिर्भर सोच को दर्शाता है, जहां ज्ञान और राष्ट्रभक्ति एक-दूसरे के पूरक बन गए हैं।

यह पूरा बहिष्कार केवल सरकार का निर्देश नहीं है, यह उस जन-ज्वार का परिणाम है, जो भारत में हर बार तब उठता है जब कोई देश भारत की अखंडता को चुनौती देता है। भारत अब पहले जैसा देश नहीं रहा जो केवल राजनयिक भाषा में जवाब देता था। अब भारत जवाब भी देता है और वह भी ऐसे कि सामने वाला देश उसे सालों तक न भूले।

Turkey के खिलाफ यह बहिष्कार अब केवल आर्थिक नुकसान तक सीमित नहीं रहेगा, यह उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि और राजनीतिक स्थिरता पर भी असर डालेगा। यह घटनाक्रम वैश्विक पटल पर भारत की रणनीतिक और आर्थिक शक्ति के उदय का संकेत है—एक ऐसा उदय जो केवल सीमाओं पर नहीं, बल्कि हर क्षेत्र में नज़र आने लगा है।

भारत अब एक ऐसे मोड़ पर है जहां हर नागरिक, हर व्यापारी, हर स्टूडेंट यह समझ चुका है कि उसका एक छोटा-सा फैसला भी देश की सामूहिक शक्ति को बड़ा बना सकता है। Turkey के खिलाफ उठाया गया यह कदम न केवल एक सशक्त राष्ट्र की पहचान है, बल्कि एक जागरूक लोकतंत्र की परिपक्वता भी है।

भारत ने यह दिखा दिया है कि उसकी सीमाएं केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि भावनात्मक, सांस्कृतिक और आर्थिक भी हैं—और जो कोई भी इन सीमाओं को लांघेगा, उसे हर मोर्चे पर जवाब मिलेगा। अब यह सिर्फ बहिष्कार नहीं, बल्कि भारत की नई चेतना है—एक ऐसी चेतना जो अपनी शांति के लिए प्रतिबद्ध है, परंतु सम्मान से समझौता कभी नहीं करती।

Conclusion

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