एक तरफ भारत ने Pakistan के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं, सिंधु जल संधि पर रोक लगा दी है, अटारी-वाघा बॉर्डर सील कर दिया है, हर सेरेमनी रद्द कर दी गई है… और दूसरी तरफ, वहीं Pakistan चुपके से भारत से अरबों का सामान मंगा रहा है! सुनने में अजीब लगता है ना? लेकिन हकीकत इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली है। एक ऐसा रास्ता, जिसे देखकर लगता है कि चाहे जितनी भी दीवारें खड़ी कर दी जाएं, कारोबारियों का रास्ता कहीं न कहीं से निकल ही आता है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
पहलगाम हमले के बाद भारत और Pakistan के रिश्ते चरम तनाव में हैं। दशकों से Pakistan आतंकवाद का Exporter रहा है, और भारत ने हर बार घाव सहे हैं। पहलगाम की खूनी वारदात ने एक बार फिर इस जख्म को गहरा कर दिया। गुस्से में आकर भारत ने Pakistan से हर तरह के व्यापार और रिश्ते तोड़ने का फैसला किया। सिंधु जल संधि तक पर दोबारा सोचने लगे। बॉर्डर ट्रेड पर ब्रेक लगा दी। यहां तक कि प्रतीकात्मक “बीटिंग द रिट्रीट” सेरेमनी भी बंद कर दी गई।
ऐसा लगा जैसे अब भारत और Pakistan के बीच हर प्रकार का संवाद और संपर्क खत्म हो गया है। लेकिन असलियत कुछ और थी। पर्दे के पीछे एक ऐसा खेल चल रहा था, जिसने सबको चौंका दिया। भारत से Pakistan तक सामान पहुँच रहा था — सीधे नहीं, बल्कि घुमाकर। और इसका आंकड़ा कोई छोटा-मोटा नहीं, बल्कि पूरे 85,000 करोड़ रुपये का था!
जी हां, Pakistan अब भी भारत से सालाना 10 अरब डॉलर से ज्यादा का माल मंगा रहा है। लेकिन यह माल अब अटारी वाघा बॉर्डर से नहीं आता। यह आता है दुबई, सिंगापुर और कोलंबो जैसे तीसरे देशों के जरिए। भारतीय कंपनियाँ इन बंदरगाहों तक अपना सामान भेजती हैं, जहां स्वतंत्र कंपनियाँ उसे रिसीव करती हैं। माल को बॉन्डेड वेयरहाउस में रखा जाता है, बिना किसी शुल्क के। और फिर लेबल बदल दिए जाते हैं, दस्तावेज बदल दिए जाते हैं। अब वो सामान ‘मेड इन इंडिया’ नहीं दिखता। वह किसी तीसरे देश का बना हुआ माल लगता है। फिर यह ‘नई पहचान’ लेकर सामान Pakistan में ऊंचे दामों पर बिकता है।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने इस पूरी रणनीति का खुलासा किया है। GTRI के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा है कि यह तरीका पूरी तरह अवैध नहीं है, लेकिन इसमें गुमराह करने का तत्व जरूर है। और यही बताता है कि कारोबारी अक्सर सरकारों की प्रतिक्रिया से ज्यादा तेज होते हैं। जब सरकारें बॉर्डर बंद करती हैं, कारोबारी नए रास्ते खोज लेते हैं।
यह सिर्फ अनुमान नहीं है। वास्तविक व्यापारिक आंकड़े भी यही कहानी बयां कर रहे हैं। 2019 में पुलवामा हमले के बाद से भारत और Pakistan के बीच सीधा व्यापार लगभग समाप्त हो गया था। फिर भी, 2023 में तीसरे देशों के जरिए 523 मिलियन डॉलर का व्यापार हुआ। 2024 में यह बढ़कर 1.21 अरब डॉलर के पार चला गया — यानी लगभग 10,000 करोड़ रुपये। और अगर सब अनऑफिशियल चैनल्स को भी जोड़ा जाए तो यह आंकड़ा 85,000 करोड़ के आसपास पहुँच सकता है।
अब सवाल उठता है कि आखिर भारत से Pakistan को कौन-कौन सी चीजें भेजी जा रही हैं? तो जान लीजिए — सबसे ज्यादा मांग है कपास की। इसके अलावा केमिकल्स, दवाइयाँ, मसाले, चाय, कॉफी, रंग, प्याज, टमाटर, लोहा, इस्पात, नमक, चीनी, और ऑटो पार्ट्स जैसी तमाम चीजें भी जा रही हैं। और यह सब दुबई, सिंगापुर या मलेशिया के रास्ते पाकिस्तान पहुँच रहा है।
यानि भारत का किसान जो कपास उगाता है, भारत की फैक्ट्रियां जो दवाइयाँ बनाती हैं, भारत की फैमिलियाँ जो प्याज उगाती हैं — उनका उत्पादन, चाहे अनजाने में सही, Pakistan की जरूरतों को पूरा कर रहा है। यह एक अजीब-सी विडंबना है — दुश्मनी की आग में झुलसते दो मुल्क, लेकिन व्यापार की अदृश्य डोर फिर भी उन्हें जोड़े हुए है।
2008 से 2018 के बीच भारत और Pakistan के बीच Line of Control (L o C) के पार व्यापार भी खूब हुआ था। लगभग 7,500 करोड़ रुपये का व्यापार उस दौरान हुआ। इससे न सिर्फ कारोबार बढ़ा, बल्कि 66 करोड़ रुपये से अधिक का Revenue भी इकट्ठा हुआ। लेकिन 2019 में भारत सरकार ने L o C ट्रेड पर भी रोक लगा दी थी, क्योंकि खुफिया एजेंसियों ने रिपोर्ट दी थी कि इसके जरिए अवैध हथियार, नकली करेंसी और ड्रग्स की तस्करी हो रही थी।
इतिहास पर नजर डालें तो हर बार जब भी तनाव बढ़ा है, व्यापार ठप किया गया है। लेकिन कुछ समय बाद फिर कोई रास्ता निकल आया है। कश्मीर आंदोलन के समय भी, करगिल युद्ध के बाद भी, और पुलवामा हमले के बाद भी। आज भी वही हो रहा है — बस सीधा रास्ता बंद हुआ है, पर परोक्ष रास्ते खुल गए हैं।
इस पूरे खेल में सबसे अहम भूमिका निभा रहे हैं तीसरे देश। यूएई, सिंगापुर, मलेशिया, श्रीलंका जैसे देश इस व्यापार के लिए ट्रांजिट हब बन चुके हैं। वहाँ के व्यापारी भी इस ‘बिना नाम के व्यापार’ से अच्छा पैसा कमा रहे हैं। और इस व्यवस्था में सभी को फायदा है — भारतीय सप्लायर को, तीसरे देश के ट्रेडर को और Pakistan खरीदार को भी।
लेकिन यह भी सच है कि इस व्यापार से Pakistan को भारत पर निर्भरता का अहसास लगातार बना रहता है। भले ही मंच से पाकिस्तान भारत को दुश्मन घोषित करे, लेकिन हकीकत ये है कि उसकी अर्थव्यवस्था भारत से जुड़ी हुई है — चाहे वह अनाज के लिए हो, दवाइयों के लिए हो या स्टील और मशीनरी के लिए।
अब सोचिए, जब भारत सरकार ने वाघा बॉर्डर बंद किया, सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार शुरू किया, और बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी तक बंद कर दी, तब भी व्यापार पूरी तरह बंद नहीं हो पाया। व्यापारिक जरूरतें हर दीवार को तोड़ देती हैं। और यही कारण है कि साल दर साल यह इनडायरेक्ट ट्रेड बढ़ता ही जा रहा है।
वैसे इस स्थिति में एक सवाल और उठता है — क्या भारत सरकार को इस अप्रत्यक्ष व्यापार पर भी रोक लगानी चाहिए? क्या तीसरे देशों के जरिए सामान पहुँचने पर नजर रखनी चाहिए? या फिर इसे खुला छोड़ देना चाहिए ताकि अर्थव्यवस्था अपनी गति से चले? यह एक जटिल सवाल है, जिसके राजनीतिक और रणनीतिक दोनों पहलू हैं।
फिलहाल जो स्थिति है, वह यह बताती है कि भारत-Pakistan के बीच व्यापार भले ही सीधा न हो, लेकिन पूरी तरह रुका भी नहीं है। और व्यापार की इस अदृश्य डोर ने एक बार फिर साबित किया है कि बाज़ार की ताकतें बंदूक की नोक से भी बड़ी होती हैं।
भविष्य में अगर हालात सुधरते हैं, तो शायद दोनों देश फिर से खुलेआम व्यापार कर सकें। लेकिन तब तक यह छुपा हुआ रास्ता दोनों को जोड़ता रहेगा — एक अनकहा रिश्ता, एक अनदेखा व्यापार, एक अनसुनी कहानी।
Conclusion
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