Inspiring: Car companies की चालाकी से चीन की साजिश नाकाम! भारत में अब बनेगा नया मैन्युफैक्चरिंग हब। 2025

भारत की सड़कों पर दौड़ती लाखों गाड़ियां आज एक अदृश्य संकट की ओर बढ़ रही हैं—एक ऐसा संकट जो दिखाई नहीं देता, पर इसकी गूंज हर घर, हर फैक्ट्री, हर ऑटो डीलरशिप तक पहुंच सकती है। सोचिए, अगर आपके शहर की Car companies का उत्पादन एकाएक रुक जाए, शोरूम सूने हो जाएं और कामगारों के हाथ खाली हो जाएं, तो हालात कैसे होंगे? यह कोई कल्पना नहीं है, बल्कि वह वास्तविकता है, जो चीन के एक अप्रत्याशित फैसले से तेजी से भारत की ओर बढ़ रही है।

रॉयटर्स की एक चौंकाने वाली रिपोर्ट के अनुसार, चीन द्वारा रेयर अर्थ मैग्नेट के Export पर लगाई गई पाबंदियों के चलते, भारत की ऑटो इंडस्ट्री का उत्पादन एक सप्ताह में ही रुक सकता है। और यह संकट सिर्फ उद्योगपतियों या फैक्ट्री मालिकों का नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति का है जिसकी जिंदगी किसी न किसी रूप में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री से जुड़ी है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार है, आज उस मोड़ पर खड़ा है जहां स्टॉक खत्म होने के कगार पर है और नई सप्लाई मिलना लगभग असंभव होता जा रहा है। रॉयटर्स को मिले गोपनीय दस्तावेजों के अनुसार, देश की प्रमुख ऑटोमोबाइल कंपनियों जैसे मारुति सुजुकी, महिंद्रा एंड महिंद्रा और टाटा मोटर्स की ओर से सरकार को अलर्ट किया गया है कि, यदि तत्काल समाधान नहीं निकला तो जून की शुरुआत से देशभर में गाड़ियों का उत्पादन ठप हो जाएगा।

उद्योग संगठन SIAM (Society of Indian Automobile Manufacturers) ने वाणिज्य मंत्रालय से यह आग्रह किया है कि, चीन पर राजनयिक दबाव बनाया जाए ताकि वहां के बंदरगाहों पर फंसे मैग्नेट के शिपमेंट भारत तक पहुंच सकें। इन कंपनियों के मुताबिक, कुछ ही दिनों में उपलब्ध स्टॉक खत्म हो सकता है और उसके बाद उत्पादन रोकने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा।

SIAM पिछले एक महीने से लगातार केंद्र सरकार से गुहार लगा रहा है कि, प्रधानमंत्री कार्यालय इस मामले में दखल दे और चीन से इन चुम्बकों की डिलीवरी सुनिश्चित कराई जाए। 19 मई को हुई एक बैठक में, जिसमें देश की प्रमुख कार कंपनियों के शीर्ष अधिकारी मौजूद थे, यह स्पष्ट किया गया कि चीन से चुंबक Export की प्रक्रिया में देरी भारत की ऑटो इंडस्ट्री के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।

यह स्थिति सिर्फ कंपनियों के मुनाफे पर असर नहीं डालेगी, बल्कि लाखों नौकरियों, करोड़ों की सप्लाई चेन और आम उपभोक्ताओं के विकल्पों पर भी सीधा प्रहार करेगी। रिपोर्ट में कहा गया कि जहां चीन ने जर्मनी जैसे देशों को आंशिक रूप से चुंबक उत्पादों की Supply की मंजूरी दे दी है, वहीं भारत को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। कूटनीतिक तनावों के कारण भारतीय कंपनियों को डर है कि उन्हें शीघ्र अनुमति नहीं मिलेगी, जिससे यह संकट और गहरा हो सकता है।

इस पूरी स्थिति की जड़ एक तकनीकी लेकिन बेहद जरूरी कंपोनेंट में छुपा है—रेयर अर्थ मैग्नेट। ये वे चुम्बक हैं जिनके बिना आज की आधुनिक गाड़ियां अधूरी हैं। इलेक्ट्रिक मोटर, पॉवर विंडो, स्पीकर, डोर क्लोजर जैसे कई महत्वपूर्ण पुर्जों में इन चुम्बकों का इस्तेमाल होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि भारत इन मैग्नेट्स का लगभग 90% हिस्सा चीन से ही Import करता है।

अब चीन ने इन चुम्बकों के Export को लाइसेंस और एंड-यूज सर्टिफिकेट से जोड़ दिया है, यानी अब कोई भी कंपनी सीधे Import नहीं कर सकती। उन्हें पहले एक विस्तृत प्रमाणपत्र देना होगा कि ये मैग्नेट सैन्य उद्देश्यों के लिए नहीं हैं, और फिर उसे दिल्ली स्थित चीनी दूतावास से सत्यापित कराना होगा। यह प्रक्रिया इतनी जटिल और समय लेने वाली है कि emergency situation में कंपनियों के लिए इससे गुजरना लगभग असंभव हो जाता है।

SIAM ने इस समस्या का त्वरित समाधान सुझाते हुए सरकार से अनुरोध किया है कि चीन के दूतावास, और वाणिज्य मंत्रालय के बीच एक विशेष तंत्र बनाया जाए जो इन प्रमाणपत्रों की तुरंत जांच कर सके। उनके मुताबिक, यदि कुछ ओर दिनों की भी देरी हुई तो पूरा प्रोडक्शन चक्र प्रभावित हो सकता है।

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सरकार को चीनी suppliers के साथ मिलकर यह प्रक्रिया “कुछ ही घंटों में” पूरी करनी चाहिए, ताकि सप्लाई चैन को जीवित रखा जा सके। चीन की ओर से जहां एक ओर आधिकारिक बयान में कहा गया है कि वह अपने नियमों के तहत प्रक्रियाओं को सरल बनाने की कोशिश कर रहा है, वहीं भारतीय उद्योग को अभी तक कोई ठोस राहत नहीं मिल पाई है।

आंकड़ों की बात करें तो Customs डेटा इस संकट को स्पष्ट रूप से उजागर करता है। अप्रैल 2025 में चीन के स्थायी चुंबकों का Export 51% गिरकर 2,626 टन रह गया, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह मात्रा लगभग दोगुनी थी। यह गिरावट दर्शाती है कि चीन ने अपने Export को किस हद तक नियंत्रित किया है।

भारत, जिसने वित्त वर्ष 24 में कुल 460 टन रेयर अर्थ मैग्नेट Import किए थे, उनमें से लगभग सभी चीन से ही आए थे। अनुमान है कि 2025 में यह संख्या 700 टन तक पहुंच सकती है, जिसकी कीमत करीब 30 मिलियन डॉलर आंकी जा रही है। लेकिन अगर मौजूदा पाबंदियां जारी रहीं, तो यह लक्ष्य केवल कागजों पर ही रह जाएगा।

सवाल यह है कि अब आगे क्या? क्या भारत को चीन की रहम पर रहना होगा? या वह इस संकट को अवसर में बदल सकता है? experts का मानना है कि यह वक्त भारत के लिए ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति को तेज करने का है। यानी चीन पर निर्भरता कम करते हुए Alternative suppliers जैसे वियतनाम, मलेशिया, अमेरिका, या ऑस्ट्रेलिया से रेयर अर्थ चुम्बकों की सप्लाई सुनिश्चित करना होगा। इसके अलावा, भारत को अपनी घरेलू रेयर अर्थ मैग्नेट मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री को भी विकसित करना होगा, ताकि भविष्य में ऐसे किसी झटके से बचा जा सके। लेकिन यह लंबी प्रक्रिया है और तत्काल समाधान के लिए सरकार को चीन के साथ कूटनीतिक स्तर पर तेज संवाद स्थापित करना ही होगा।

इस पूरी कहानी का सबसे बड़ा सबक यही है कि वैश्विक सप्लाई चैन में किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता, विशेषकर रणनीतिक वस्तुओं के लिए, किसी भी समय राष्ट्रीय संकट का कारण बन सकती है। आज भारत की Car कंपनियों के शोरूम में दिखने वाली चमकदार गाड़ियां सिर्फ इंजीनियरिंग का चमत्कार नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति, व्यापार और Resource management की पेचीदा कड़ी का हिस्सा हैं। अगर उन चुम्बकों की एक खेप समय पर न पहुंचे, तो वह पूरी इंडस्ट्री को ठप कर सकती है। यही वजह है कि सरकार, कंपनियों और नागरिकों सभी को मिलकर इस संकट से निपटने की रणनीति बनानी होगी—और वह भी जल्द से जल्द।

Conclusion

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