कल्पना कीजिए… दो Global ताकतें—अमेरिका और चीन—जो लंबे समय से एक-दूसरे पर भारी टैरिफ लगाकर दुनिया के बाजारों को हिला चुकी थीं, अचानक एक टेबल पर बैठती हैं। टैरिफ की तलवारें वापस म्यान में चली जाती हैं। और दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक जंग को कुछ समय के लिए विराम मिल जाता है। लेकिन इस शांति के बीच एक तीसरा देश चुपचाप देख रहा है—India। सवाल ये है कि इस अस्थायी युद्धविराम से India को फायदा होगा या नुकसान? क्या चीन की वापसी India के बाजारों में डंपिंग की बाढ़ लाएगी, या India इस समझौते का सबसे चतुर लाभार्थी बनेगा? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
अमेरिका और चीन ने संयुक्त बयान जारी करके दुनिया को चौंकाया कि वे अगले 90 दिनों के लिए अपने पारस्परिक टैरिफ वापस ले लेंगे। इस दौरान चीन अमेरिका से आने वाले उत्पादों पर 10% शुल्क लगाएगा, जबकि अमेरिका चीनी वस्तुओं पर 30% टैक्स लेगा। यह टैरिफ पहले क्रमशः 125% और 145% था। इस कदम ने Global investors की धड़कनों को शांत किया है, लेकिन India के लिए यह कई परतों वाली कहानी बन गई है—जिसमें मौके भी हैं और खतरे भी।
बाजार experts की मानें, तो अमेरिका और चीन की सुलह का पहला असर India को डंपिंग से राहत के रूप में मिल सकता है। किशोर ओस्तवाल जैसे वरिष्ठ experts का कहना है कि जब चीन को अमेरिका का बाजार फिर से खुला मिलेगा, तब वह अपनी सस्ती वस्तुएं India में नहीं डंप करेगा। इससे भारत की घरेलू इंडस्ट्री को सांस लेने का मौका मिलेगा। कपड़ा, स्टील, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सेक्टर्स जहां चीनी सामान की बाढ़ से नुकसान हो रहा था, अब वहां भारतीय कंपनियां फिर से मजबूती पा सकती हैं।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के देवर्ष वकील का कहना है कि India की अर्थव्यवस्था ने, पहले ही बार-बार Global उथल-पुथल के बीच लचीलापन दिखाया है। उन्होंने कहा कि इस अस्थायी टैरिफ विराम से न केवल Investors का आत्मविश्वास लौटेगा, बल्कि भारतीय शेयर बाजारों में भी स्थिरता आएगी। यही नहीं, आने वाले दिनों में यह Global व्यापार का रास्ता आसान कर सकता है।
अनिता रंगन, इक्किरस सिक्योरिटीज की प्रमुख अर्थशास्त्री, इसे global level पर महंगाई नियंत्रण में मददगार मानती हैं। उनका कहना है कि पहले यह डर था कि अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ युद्ध महंगाई को और बढ़ाएगा। लेकिन अब जब दोनों देशों ने कदम पीछे खींच लिए हैं, तो Inflation के Risk कुछ हद तक कम हो गए हैं। और इसका सीधा लाभ भारत जैसे देशों को मिलेगा, जो अमेरिका पर सेवाओं और Investment के लिए बहुत हद तक निर्भर हैं।
लेकिन सबसे दिलचस्प बात है कि अमेरिका के इस कदम से उसके व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिलेगी। अमेरिका का मौजूदा व्यापार घाटा लगभग 1.2 ट्रिलियन डॉलर है। experts का मानना है कि चीन के साथ Import-export relations में नरमी आने से अमेरिका को व्यापार संतुलन बनाने में राहत मिलेगी। और यही अमेरिका को भारत की ओर और आकर्षित कर सकता है—क्योंकि India अब एक विश्वसनीय सप्लाई पार्टनर के रूप में उभर रहा है।
भारत की भूमिका अब केवल एक ‘तटस्थ दर्शक’ की नहीं रह गई है। फेडरल रिज़र्व की नीतियों में भी इस समझौते का असर पड़ेगा। अगर अमेरिका में मंदी का डर टलता है, तो फेड 2025 की तीसरी या चौथी तिमाही में ब्याज दरों में कटौती कर सकता है। इससे India जैसे विकासशील देशों में Capital flows बढ़ेगा। भारतीय रुपए को समर्थन मिलेगा, Investors को भरोसा मिलेगा और सरकार की योजनाएं जैसे PLI और Make in India को नई रफ्तार मिलेगी।
अब बात करें उन सेक्टर्स की जो इस घटनाक्रम से सबसे अधिक लाभ ले सकते हैं। India का ऑटो पार्ट्स, सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्नोलॉजी और आईटी हार्डवेयर सेक्टर Global सप्लाई चेन के रीअलाइनमेंट से सीधा फायदा उठाएगा। क्योंकि अमेरिका की कई कंपनियां अब चीन के विकल्प के तौर पर भारत को देख रही हैं। यदि भारत इस मौके पर सही नीतियों के साथ खड़ा होता है, तो अगले दशक में भारत Global निर्माण और Export का अगला बड़ा केंद्र बन सकता है।
हालांकि, इस बीच एक चेतावनी भी है। भारतीय exporters के लिए Competition बढ़ सकती है—खासतौर पर दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे बाजारों में, जहां भारत ने हाल के वर्षों में चीन-अमेरिका तनाव का लाभ उठाकर पकड़ बनाई थी। लेकिन अब जब चीन को अमेरिका फिर से गले लगा रहा है, तो वही सस्ते उत्पाद India की राह में चुनौती बन सकते हैं।
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (FIEO) के अध्यक्ष एससी रल्हन कहते हैं कि, India को अब और अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है। उनके अनुसार, “भारत को अमेरिका के साथ सक्रिय रूप से जुड़कर व्यापारिक समझौते को मज़बूत करना होगा। हमें चीन के लिए विकल्प के तौर पर खुद को और मजबूत तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए।” इसके अलावा, कंपनियों को भविष्य की अनिश्चितता से बचने के लिए PLI स्कीम, और Make in India के तहत India में ही मैन्युफैक्चरिंग बेस बनाने की सलाह दी गई है।
FIEO प्रमुख का मानना है कि India को उन क्षेत्रों में ध्यान केंद्रित करना चाहिए जहां अमेरिका-चीन व्यापार का प्रभाव सीमित है—जैसे फार्मा API, रत्न और आभूषण, कार्बनिक रसायन, इंजीनियरिंग सामान और आईटी सेवाएं। इन क्षेत्रों में भारत की Competitive बढ़त है और इन्हें Global बाज़ार में और मज़बूती से स्थापित किया जा सकता है।
अब बात करते हैं बाजार की प्रतिक्रिया की। जैसे ही अमेरिका-चीन के बीच टैरिफ समझौता हुआ, एशियाई बाजारों में उछाल आया। हांगकांग में 3%, शंघाई में 1%, जापान और ताइवान में भी सकारात्मक बढ़त दर्ज की गई। India में सेंसेक्स और निफ्टी दोनों में हल्का सुधार देखा गया, जो संकेत देता है कि भारत की वित्तीय प्रणाली इस Global शांति से राहत महसूस कर रही है।
परंतु यह राहत अस्थायी भी हो सकती है। क्योंकि यह टैरिफ कटौती सिर्फ 90 दिनों के लिए है। सवाल यह है कि उसके बाद क्या होगा? क्या अमेरिका-चीन फिर से टकराएंगे? या ये समझौता लंबी शांति की शुरुआत है? India को अभी से तैयारी करनी होगी कि अगर युद्ध फिर शुरू होता है तो हमारे पास कौन-सी रणनीति होगी, और अगर शांति बनी रहती है तो भारत कैसे अपना दबदबा बढ़ाएगा।
एक बात स्पष्ट है—India अब Global व्यापार का “साइलेंट टाईब्रेकर” बन चुका है। चाहे अमेरिका को अपनी सप्लाई चेन बचानी हो या चीन को अपने Export के लिए नया रास्ता खोजना हो—दोनों की नज़र India पर है। और यही India का सबसे बड़ा अवसर भी है और सबसे बड़ी परीक्षा भी।
India को अब निर्णय लेना है—क्या वह सिर्फ़ मौके देखकर Investment जुटाएगा या एक ऐसी नीति बनाएगा जो लंबी अवधि के लिए Investment, रोजगार और उत्पादन की नींव रखेगी। PLI, Free Trade Agreements और लॉजिस्टिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर अब केवल नीति के शब्द नहीं, बल्कि रणनीतिक अस्त्र बनने जा रहे हैं।
कुल मिलाकर, अमेरिका-चीन सुलह India के लिए राहत भी है और संकेत भी—कि दुनिया की निगाहें अब सिर्फ़ दो नहीं, तीन देशों पर हैं। और तीसरा देश—भारत—अब चुप नहीं बैठ सकता। उसे तेजी से कदम बढ़ाने होंगे, क्योंकि इतिहास केवल उन्हीं को याद रखता है जो मौके को समझकर बदलते हैं, और बदलकर पूरी दुनिया को दिशा दिखाते हैं।
Conclusion
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