Turkey के लिए बड़ा झटका या भारत की बड़ी छलांग? अब नहीं खरीदेगा India ये सामान – पूरी लिस्ट और वजह जानिए! 2025

कल्पना कीजिए… एक दिन आप सुबह उठते हैं, टीवी पर न्यूज चल रही है—भारत की सीमा पर पाकिस्तानी ड्रोन हमला। लेकिन इस बार खबर में एक और नाम जुड़ता है—तुर्की। रिपोर्ट बताती है कि भारत पर गिराए गए कई ड्रोन और मिसाइल Turkey में बने थे। आंखें चौंधिया जाती हैं, क्योंकि यही Turkey तो है जहां लाखों भारतीय हर साल छुट्टियां बिताने जाते हैं, जहां के कालीन, जैतून का तेल, ड्राय फ्रूट्स और सजावटी सामान भारत के बड़े-बड़े मॉल्स और घरों की शोभा बने हुए हैं। लेकिन अब सवाल उठता है—क्या हम उसी देश को अपना पैसा देंगे जो हमारे खिलाफ हथियार भेज रहा है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

भारत और पाकिस्तान के बीच भले ही सीजफायर की घोषणा हो चुकी हो, लेकिन हाल ही में जो घटनाएं घटीं, उन्होंने बहुत से रिश्तों का असली चेहरा उजागर कर दिया। सैन्य विश्लेषकों से लेकर आम नागरिकों तक, हर कोई इस बात को मान रहा है कि पाकिस्तान का साथ देने वाला सबसे मुखर देश Turkey ही था। पाकिस्तान को हथियार सप्लाई करना, ड्रोन देना, टेक्नोलॉजी मुहैया कराना और यहां तक कि कूटनीतिक मंचों पर भारत का विरोध करना—Turkey ने सब कुछ किया, वो भी खुलेआम।

जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, तब दुश्मन की एक-एक हरकत पर नजर रखी गई। और जब हमारे एयर डिफेंस सिस्टम ने दुश्मन के ड्रोन और मिसाइल हवा में ही उड़ा दिए, तब उनकी जांच में जो निकला, वो वाकई चौंकाने वाला था। कई ड्रोन जिनका मलबा बरामद हुआ, उन पर तुर्की की कंपनियों का नाम और सीरियल नंबर दर्ज था। यही वो बिंदु था जिसने भारत के जनमानस में Turkey के खिलाफ गुस्से की लहर पैदा कर दी।

सोशल मीडिया पर जैसे ही यह जानकारी फैली, लोगों ने Turkey, अजरबैजान और उज्बेकिस्तान के उत्पादों के बहिष्कार की मांग शुरू कर दी। ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर #Boycott Turkey ट्रेंड करने लगा। इस बहिष्कार की वजह सिर्फ एक ड्रोन नहीं, बल्कि वो लगातार दिख रही भूमिका थी जो Turkey ने भारत के विरोध में निभाई थी। पहले कश्मीर मुद्दे पर तुर्की का पाकिस्तान को समर्थन, फिर संयुक्त राष्ट्र में भारत के खिलाफ बयानबाजी—इन सबका मिला-जुला प्रभाव अब Turkey के व्यापार पर पड़ने वाला है।

भारतीय उपभोक्ताओं का रवैया अब बदलने लगा है। पहले जो लोग टर्किश डेकोर को लग्जरी मानते थे, अब वही लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या एक देश जो हमारे दुश्मन को हथियार देता है, उसका सामान हमारे घर में होना चाहिए? भारतीय व्यापारी जो Turkey से कालीन, टाइल्स, मोज़ेक आर्ट, हैंडमेड शोपीस और सिल्क फैब्रिक Import करते थे, वे अब अपने स्टॉक को डिस्काउंट में निकालने की सोच रहे हैं। क्योंकि अब ग्राहक पूछते हैं—“ये मेड इन टर्की है क्या?”

भारत में Turkey के सामान की बात करें तो यह केवल सजावटी उत्पादों तक सीमित नहीं है। जैतून का तेल, हर्बल टी, सूखे मेवे जैसे बादाम, अखरोट, चेरी जैसी हेल्दी चीजें भारत के मेट्रो शहरों में बहुत पसंद की जाती हैं। लेकिन अब इन्हीं ब्रांड्स को रिटेलर दूसरी जगह से रिप्लेस कर रहे हैं। Turkey से आने वाले ड्राय फ्रूट्स की जगह अब इरान, अमेरिका और अफगानिस्तान के सप्लायर्स को तरजीह दी जा रही है।

इससे भी बड़ी बात है—Turkey की इंडस्ट्रियल मशीनरी और कंस्ट्रक्शन उपकरण, जो भारत में बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स में इस्तेमाल होते हैं। अब इन उपकरणों की जगह भारतीय और यूरोपीय विकल्पों की तलाश शुरू हो चुकी है। सरकार की “आत्मनिर्भर भारत” नीति के चलते पहले ही विदेशी उपकरणों की जगह घरेलू विकल्पों को बढ़ावा दिया जा रहा था, और अब तुर्की के खिलाफ यह माहौल उस दिशा में नया ईंधन साबित हो रहा है।

अब थोड़ा व्यापार के आंकड़ों की बात करें। साल 2024 में भारत और Turkey के बीच कुल व्यापार 10.43 अरब डॉलर का रहा। इसमें भारत का Export 6.65 अरब डॉलर और Import 3.78 अरब डॉलर रहा। यानी भारत Turkey को ज्यादा सामान बेचता है और कम मंगाता है। फिर भी यह छोटा हिस्सा अब भारत के रणनीतिक नजरिए से बड़ा हो चुका है, क्योंकि यह उस देश से हो रहा है जो खुलकर पाकिस्तान का साथ दे रहा है।

भारत से Turkey को भेजे जाने वाले प्रमुख सामानों में मशीनरी, लोहे और स्टील के उत्पाद, तिलहन, कीमती पत्थर और फल शामिल हैं। वहीं, तुर्की से भारत आने वाले उत्पादों में खनिज तेल, प्लास्टिक, ऑर्गेनिक केमिकल और कपड़े प्रमुख हैं। लेकिन इस व्यापार में अब गिरावट देखी जा रही है। फरवरी 2024 से 2025 के बीच भारत से तुर्की को Export घटकर 470 मिलियन डॉलर से 461 मिलियन डॉलर हो गया। वहीं Turkey से Import भी 375 मिलियन डॉलर से गिरकर सिर्फ 143 मिलियन डॉलर रह गया—यानी 232 मिलियन डॉलर की सीधी गिरावट।

अब सवाल यह नहीं है कि भारत Turkey से सामान क्यों नहीं खरीदेगा, सवाल है कि भारत कब तक तुर्की को उसकी हरकतों के बावजूद व्यापारिक फायदे देता रहेगा? और इसका जवाब भारत की नीति अब धीरे-धीरे स्पष्ट कर रही है। रक्षा मंत्रालय पहले ही कई Turkey कंपनियों को ब्लैकलिस्ट करने की प्रक्रिया में है। कॉमर्स मिनिस्ट्री व्यापार समीक्षाएं कर रही है, और नीति आयोग ने भी तुर्की से व्यापारिक निर्भरता कम करने की सिफारिश की है।

उद्योग मंडल FICCI और CII के कई प्रतिनिधियों ने इस पर चिंता जताई है कि, Turkey की व्यापारिक रणनीति अब राजनीतिक रूप से पक्षपाती हो चुकी है। ऐसे में भारत को अपने व्यापारिक रिश्ते उन देशों के साथ मजबूत करने चाहिए, जो उसकी संप्रभुता और रक्षा नीति का सम्मान करते हैं। Turkey जैसी अपारदर्शी और राजनीतिक रूप से विभाजित नीति वाले देश से व्यापार भारत के लिए केवल जोखिम ही लाता है।

इस पूरे घटनाक्रम में एक बात और सामने आई है—भारत का जनमत अब केवल राजनीति तक सीमित नहीं रहा। अब लोग जागरूक हैं, और वे जानते हैं कि उनके द्वारा खरीदा गया हर उत्पाद एक तरह का वोट है। अगर वे तुर्की से आया सामान खरीदते हैं, तो वे उस देश को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देते हैं। और इसी जागरूकता ने इस बहिष्कार को सिर्फ एक ऑनलाइन ट्रेंड नहीं, बल्कि जमीनी सच्चाई बना दिया है।

अब जब देश की जनता तैयार है, व्यापारी सतर्क हैं, और सरकार रणनीति बना रही है, तो यह साफ है कि तुर्की जैसे देशों के लिए भारत एक आसान बाजार नहीं रहेगा। भारत ने दिखा दिया है कि व्यापारिक ताकत भी एक कूटनीतिक हथियार हो सकता है। और अब वह इस हथियार का इस्तेमाल अपने सम्मान और सुरक्षा के लिए करेगा।

यह कहानी केवल बॉयकॉट की नहीं है, यह कहानी है आत्मसम्मान, आत्मनिर्भरता और जागरूकता की। यह उस भारत की कहानी है जो अब आंख मूंदकर विदेशी सामान नहीं अपनाता, बल्कि सोच समझकर फैसले लेता है। और यही बदलाव तुर्की जैसे देशों को सबसे बड़ा सबक देगा।

Conclusion

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