सोचिए, आप किसी इंटरनेशनल फ्लाइट में बैठे हैं, आप की मंज़िल सामने है, लेकिन अचानक पायलट की आवाज़ आती है — “हम लंबा रास्ता अपना रहे हैं, फ्लाइट में देरी होगी।” आप खिड़की से बाहर झांकते हैं, अनजान आसमान के नीचे उड़ते हुए यह नहीं जान पाते कि इस देरी के पीछे सिर्फ मौसम नहीं, बल्कि एक खतरनाक राजनीतिक लड़ाई है।
पाकिस्तान ने एक बार फिर भारत की उड़ानों के लिए अपना airspace बंद कर दिया है। इतिहास को देखें तो साल 2019 की उस चुभती याद की तरह, जब भारत को 700 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान झेलना पड़ा था। लेकिन सवाल उठता है — इस बार हालात और कितने बिगड़ सकते हैं? क्या भारत तैयार है? और आखिर अब विकल्प क्या हैं? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने जबरदस्त और ऐतिहासिक फैसले लिए। सिंधु जल संधि को रद्द करना, अटारी बॉर्डर को बंद करना और पाकिस्तान में रह रहे भारतीय नागरिकों को वापस बुलाना — ये कदम इस बार महज चेतावनी नहीं थे, बल्कि निर्णायक थे। भारत का संदेश साफ था — अब कोई भी हमला अनुत्तरित नहीं रहेगा। लेकिन जब भारत ने कार्रवाई की, तो पाकिस्तान भी बौखलाया। जल्दबाजी में, भारत की नकल करते हुए, उसने वाघा बॉर्डर बंद कर दिया, शिमला समझौते को रद्द कर दिया और सबसे अहम — भारतीय उड़ानों के लिए अपना Airspace बंद कर दिया।
जैसे ही यह खबर सामने आई, भारत की प्रमुख एयरलाइंस ने अलर्ट जारी किया। इंडिगो, एयर इंडिया और अकासा एयर जैसी कंपनियों ने यात्रियों को सूचित किया कि अब यूरोप, उत्तरी अमेरिका और मध्य पूर्व जाने वाली फ्लाइट्स के लिए वैकल्पिक मार्ग अपनाए जाएंगे। मतलब — उड़ानें लंबी होंगी, समय ज्यादा लगेगा और सबसे बड़ी बात — खर्चा बढ़ेगा। और जब खर्चा बढ़ता है, तो उसका बोझ किसके सिर आता है? जी हां, सीधे यात्रियों पर।
बात सिर्फ समय की नहीं है। दूरी बढ़ने का सीधा असर ईंधन की खपत पर पड़ता है। एयरलाइंस को ज्यादा ईंधन चाहिए, जिससे उनकी Operating costs में इजाफा होता है। और इस अतिरिक्त लागत को पूरा करने के लिए सबसे आसान रास्ता होता है — टिकट के दाम बढ़ाना। 2019 में जब ऐसा हुआ था, तब हवाई किराए में 8 से लेकर 40% तक की वृद्धि देखी गई थी। और इस बार भी वही डर सताने लगा है। उद्योग से जुड़े जानकारों का मानना है कि अगर Airspace लंबे समय तक बंद रहा, तो यात्रियों को अपने टिकट के लिए गहरी जेब करनी पड़ेगी।
वैसे तो एयरलाइंस ने आश्वासन दिया है कि वे वैकल्पिक मार्गों के जरिए परिचालन को सामान्य बनाए रखने की कोशिश करेंगी। लेकिन हकीकत यह है कि दिल्ली, मुंबई जैसे प्रमुख केंद्रों से यूरोप और उत्तरी अमेरिका के लिए जाने वाली फ्लाइट्स पर असर पड़ना तय है। अब विमान गुजरात या महाराष्ट्र के रास्ते घूमकर जाएंगे, जिससे दूरी बढ़ेगी, समय बढ़ेगा और यात्री थकान भी महसूस करेंगे। और अगर आप सोच रहे हैं कि इससे सिर्फ इंटरनेशनल ट्रैवलर्स प्रभावित होंगे, तो ऐसा नहीं है — मिडिल ईस्ट के लिए भी कुछ उड़ानों पर असर देखने को मिल सकता है।
इंडिगो ने स्पष्ट किया है कि कुछ इंटरनेशनल उड़ानों को रीबुकिंग या रिफंड के लचीले विकल्प दिए जा रहे हैं। एयर इंडिया ने भी कहा है कि उत्तरी अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप और मध्य पूर्व के लिए उनकी फ्लाइट्स अब लंबे रूट से चलेंगी। यानी यात्रियों को पहले से ज्यादा यात्रा समय झेलना पड़ेगा। यह न सिर्फ यात्रियों के धैर्य की परीक्षा है, बल्कि एयरलाइंस के Operational management की भी अग्नि परीक्षा है।
इधर अकासा एयर का रुख थोड़ा संतुलित रहा। उन्होंने कहा कि वे सक्रिय रूप से उन उड़ानों के रूट बदल रहे हैं जो आमतौर पर पाकिस्तान के Airspace से होकर गुजरती थीं। अकासा ने भरोसा जताया कि इसका उनके परिचालन पर बहुत अधिक असर नहीं पड़ेगा और यात्री ज्यादा असुविधा महसूस नहीं करेंगे। हालांकि, जमीनी सच्चाई यह है कि जब भी वैकल्पिक रूट लिया जाता है, लागत में वृद्धि तय है — चाहे वह कम हो या ज्यादा।
अब जरा सोचिए, जब भारत से यूरोप या अमेरिका की फ्लाइट सीधी जाती है, तो सबसे छोटा रास्ता पाकिस्तान के ऊपर से ही निकलता है। लेकिन जब यह रास्ता बंद हो जाता है, तो विमानों को दक्षिण की ओर घूमकर जाना पड़ता है — अरब सागर से होकर, फिर पश्चिमी एशिया होते हुए आगे बढ़ना पड़ता है। न सिर्फ दूरी बढ़ती है, बल्कि एयर ट्रैफिक कंट्रोलिंग में भी अतिरिक्त चुनौतियां आती हैं, जिससे देरी और असुविधा बढ़ सकती है।
2019 का अनुभव बताता है कि Airspace ब्लॉक का असर सिर्फ एयरलाइनों के मुनाफे पर नहीं पड़ा था, बल्कि यात्रियों की जेब पर भी सीधा वार किया था। कई ट्रैवल एजेंसियों ने उस वक्त साफ तौर पर कहा था कि टिकट बुकिंग में गिरावट आ गई थी क्योंकि किराया बहुत बढ़ गया था। इस बार भी एयरलाइंस ऐसी स्थिति से बचना चाहेंगी, लेकिन अगर ब्लॉकेज लंबा चलता है, तो किराया बढ़ाना मजबूरी बन जाएगा।
सवाल यह भी है कि भारत के पास विकल्प क्या हैं? क्या हम पाकिस्तान के Airspace के बिना काम चला सकते हैं? जवाब है — हां, लेकिन थोड़ी मुश्किलों के साथ। भारत के पास ओमान, ईरान, यूएई और मध्य एशिया के रास्ते खुले हैं, जो थोड़े लंबे जरूर हैं, लेकिन विकल्प के तौर पर मौजूद हैं। हालांकि इन रास्तों का मतलब है — अतिरिक्त फ्यूल, ज्यादा समय और यात्री असुविधा। एयरलाइंस के लिए लॉजिस्टिक और क्रू शेड्यूलिंग भी एक बड़ी चुनौती बन सकती है।
Expert मानते हैं कि अगर पाकिस्तान का Airspace बंद रहना लंबे समय तक चलता है, तो एयरलाइंस को अपने नेटवर्क मॉडल में बड़े बदलाव करने पड़ सकते हैं। कुछ रूट्स पर फ्लाइट्स की संख्या कम करनी पड़ सकती है, कुछ उड़ानों को पूरी तरह से सस्पेंड करना पड़ सकता है, और नए डेस्टिनेशन जोड़ने की योजनाओं पर भी ब्रेक लग सकता है। यह सब मिलकर भारतीय एविएशन इंडस्ट्री के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।
दूसरी ओर, यात्रियों के अनुभव पर भी इसका गहरा असर पड़ेगा। लंबी फ्लाइट्स का मतलब है ज्यादा ले-ऑफ टाइम, ज्यादा कनेक्टिंग फ्लाइट्स की जरुरत, और थकान से भरी यात्राएं। बिजनेस ट्रैवलर्स, जो समय को सबसे ज्यादा अहमियत देते हैं, उनके लिए यह बदलाव खासा परेशान करने वाला हो सकता है। टूरिज्म इंडस्ट्री भी प्रभावित हो सकती है क्योंकि हवाई यात्रा महंगी होगी तो इंटरनेशनल टूरिज्म पर असर पड़ना तय है।
भारत सरकार और Ministry of Civil Aviation भी इस हालात पर बारीकी से नजर रख रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, सरकार एयरलाइंस के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है कि यात्रियों को कम से कम असुविधा हो। वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत पाकिस्तान के इस कदम को लेकर कूटनीतिक स्तर पर विरोध दर्ज करा सकता है, क्योंकि Airspace को ब्लॉक करना वैश्विक उड़ानों के नियमों के तहत गंभीर मुद्दा माना जाता है।
आने वाले दिनों में अगर पाकिस्तान इस फैसले को वापस नहीं लेता है, तो भारत को अपनी एविएशन स्ट्रेटजी में दीर्घकालिक बदलाव करने पड़ सकते हैं। जैसे — भारत से पश्चिमी देशों के लिए सीधी उड़ानों की संख्या सीमित करना, मिडिल ईस्ट में हब बनाकर कनेक्टिंग फ्लाइट्स बढ़ाना और एयरलाइंस के लिए ऑपरेशनल सब्सिडी पर विचार करना ताकि टिकट की कीमतें अनियंत्रित न बढ़ें।
अभी के लिए यात्री इस बदलाव को एक अस्थायी असुविधा मानकर सहन कर सकते हैं। लेकिन अगर हालात लंबे समय तक ऐसे बने रहे, तो यात्रा का खर्च बढ़ना और सुविधाओं में गिरावट आना तय है। भारत की जनता और एविएशन इंडस्ट्री दोनों के सामने एक बड़ा सवाल है — क्या हम बिना पाकिस्तान के Airspace के लंबी दूरी तय करने के लिए तैयार हैं?
Conclusion
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