सोचिए, आप एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं—तनख्वाह अच्छी है, काम स्थिर है, और करियर की ग्रोथ की पूरी संभावना है। आपका परिवार भी यही सोचकर निश्चिंत है कि अब सब कुछ सुरक्षित है। लेकिन एक दिन अचानक एक ईमेल आता है, जिसमें लिखा होता है: “आपकी सेवाओं की अब आवश्यकता नहीं है।” यह झटका न केवल आपकी आर्थिक स्थिरता को तोड़ता है, बल्कि आत्मसम्मान को भी। और अगर यही ईमेल एक-दो नहीं, बल्कि 8,000 लोगों को एक साथ भेजा जाए तो?
यही कर रहा है IBM—एक ऐसी कंपनी जो कभी टेक्नोलॉजी और रोजगार की गारंटी मानी जाती थी, आज वो भी नौकरियों पर कैंची चला रही है। एक बार फिर से यह सवाल उठने लगा है कि क्या तकनीक की प्रगति इंसान की प्रगति के लिए है, या फिर उसकी नौकरी की समाप्ति का संकेत? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
गूगल और माइक्रोसॉफ्ट पहले ही अपने हजारों कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा चुके हैं, लेकिन IBM की ताजा छंटनी ने खासतौर पर HR स्टाफ को निशाना बनाया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, करीब 8,000 लोगों की नौकरी एक झटके में चली गई है। इस छंटनी की चौंकाने वाली बात यह है कि यह केवल आर्थिक मंदी या बजट कटौती की वजह से नहीं, बल्कि Technological innovation की वजह से हुई है। और इसकी सबसे बड़ी वजह है—आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस। वही AI जो कभी काम को आसान और उत्पादकता को बेहतर बनाने के लिए लाया गया था, अब इंसानों की जगह ले रहा है और उनकी आजीविका पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है।
फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, IBM ने जो AI टूल्स डेवलप किए हैं, वो अब उन कामों को भी करने लगे हैं जिन्हें पहले HR डिपार्टमेंट संभालता था। यानी इंटरव्यू शेड्यूल करना, रिज्यूमे स्क्रीनिंग, जॉब डिस्क्रिप्शन बनाना, परफॉर्मेंस ट्रैकिंग—ये सब अब मशीनें कर रही हैं। पहले यह सिर्फ एक संभावना थी, लेकिन अब यह एक वास्तविकता बन चुकी है। और जब मशीनें इंसानों की तरह सोचने, निर्णय लेने और काम करने लगती हैं, तो Human labor की उपयोगिता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। यह सिर्फ HR सेक्टर तक सीमित नहीं रहेगा—बैंकर, टीचर, वकील जैसे प्रोफेशन भी इस खतरे के घेरे में हैं।
इसकी पुष्टि IBM के CEO अरविंद कृष्णा ने भी की है। उन्होंने हाल ही में बयान दिया था कि कंपनी अब अपनी कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए, AI और ऑटोमेशन को आक्रामक रूप से अपना रही है। उन्होंने कहा कि Competition के इस दौर में टिके रहना है तो तेजी से बदलती तकनीक के साथ तालमेल बिठाना ही होगा। लेकिन क्या यह तालमेल केवल मशीनों से होगा? और इंसान का क्या होगा? क्या उसका भविष्य केवल स्किल अपग्रेडेशन के भरोसे छोड़ा जा सकता है? यह एक ऐसा सवाल है जो आज हर कामकाजी व्यक्ति के मन में उठ रहा है।

अरविंद कृष्णा ने यह भी कहा कि जो बचत AI और ऑटोमेशन से होगी, उसे कंपनी अब मार्केटिंग, सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग और सेल्स ऑपरेशंस में दोबारा invest करेगी। यानी एक तरफ नौकरियां जा रही हैं, तो दूसरी तरफ कंपनियां AI पर भारी पैसा लगा रही हैं। यह टेक्नोलॉजी की दुनिया का नया गणित बन गया है—जहां एक ओर उत्पादकता और लाभ की बात की जाती है, वहीं दूसरी ओर भावनाएं, परिवार और इंसानी रिश्ते कहीं पीछे छूट जाते हैं। आखिरकार, इंसान केवल एक डेटा पॉइंट बनकर रह गया है जिसे कभी भी हटाया जा सकता है।
IBM का Annual Think Conference इसी महीने हुआ था, जिसमें उन्होंने AI-पावर्ड एंटरप्राइज टूल्स का एक पूरा सूट पेश किया। इनका मकसद था—क्लाइंट्स को अपने खुद के AI एजेंट्स विकसित करने में मदद देना। ये टूल्स खासतौर पर OpenAI, Amazon और Microsoft के प्लेटफॉर्म्स के साथ इंटीग्रेट करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। यह दिखाता है कि IBM न केवल खुद को ऑटोमेट कर रहा है, बल्कि पूरी दुनिया की कंपनियों को भी उसी दिशा में धकेल रहा है। एक तरह से देखा जाए तो यह एक ‘AI इकोनॉमी’ का विस्तार है, जो धीरे-धीरे Global workforce के स्वरूप को बदल रहा है।
Layoffs के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2025 में अब तक 61,220 टेक वर्कर्स अपनी नौकरी गंवा चुके हैं। ये छंटनियां 130 अलग-अलग कंपनियों में हुई हैं—कुछ ने चुपचाप, तो कुछ ने बड़े ऐलान के साथ। और यह सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा। इसका असर न केवल कर्मचारियों पर पड़ रहा है, बल्कि उनके परिवार, समाज और देश की अर्थव्यवस्था पर भी है। हर नौकरी एक परिवार को चलाती है, और हर छंटनी सिर्फ एक नंबर नहीं, बल्कि एक सपना टूटने की आवाज़ है।
माइक्रोसॉफ्ट ने 13 मई को घोषणा की कि वह 6,000 नौकरियां खत्म कर रहा है। ये छंटनी कंपनी के 2,28,000 वैश्विक कर्मचारियों में से लगभग 3% को प्रभावित करती है। माइक्रोसॉफ्ट का यह कदम तब आया जब कंपनी अपने AI और क्लाउड सर्विसेज पर फोकस कर रही थी। यानी यह एक बार फिर वही पैटर्न है—AI को अपनाना और इंसानों को बाहर करना। एक समय था जब माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां ‘वर्ल्ड बेस्ट एम्प्लॉयर’ कहलाती थीं, लेकिन आज वही कंपनियां अपने सबसे पुराने कर्मचारियों को भी हटाने में देर नहीं कर रहीं।
इसके अलावा, इस मामले में गूगल भी पीछे नहीं रहा। अप्रैल में गूगल ने अपने प्लेटफॉर्म और डिवाइसेस डिविजन में कई सौ पदों को खत्म कर दिया। इसके पीछे भी वही तर्क था—कंपनी को अपनी प्राथमिकताएं बदलनी हैं, और इसके लिए AI और मशीन लर्निंग को अधिक तरजीह दी जा रही है। टेक्नोलॉजी कंपनियां अब हर वो काम मशीनों को देना चाहती हैं, जिसमें इंसानी भावना की ज़रूरत नहीं। लेकिन क्या बिजनेस केवल डेटा से चलता है? क्या ग्राहक का अनुभव, सेवा की गुणवत्ता और विश्वास जैसे मूल्य अब केवल कोड की लाइन बनकर रह जाएंगे?
यह सब देखकर सवाल उठता है—क्या AI इंसानों की सबसे बड़ी दुश्मन बन चुकी है? क्या जो तकनीक हमारी मदद के लिए बनी थी, वो अब हमारी नौकरी निगल रही है? जवाब सरल नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि ये ट्रेंड अब रुकने वाला नहीं है। IBM, Google, Microsoft जैसी कंपनियों ने जो रास्ता शुरू किया है, वही अब इंडस्ट्री स्टैंडर्ड बनने जा रहा है। आने वाले वर्षों में नौकरी की सुरक्षा, स्थायित्व और कर्मचारियों की संतुष्टि की परिभाषा पूरी तरह से बदल सकती है।
Human Resource Department, जो पहले कंपनियों का दिल माना जाता था, अब AI की नज़र में एक एक्सेल शीट जितना हो गया है। लोगों की भावनाएं, करियर ग्रोथ, ऑफिस कल्चर—ये सब अब एल्गोरिदम में बदलते जा रहे हैं। क्या एक एल्गोरिदम यह तय कर सकता है कि कौन नौकरी के लायक है और कौन नहीं? क्या मशीन कभी इंसान की सोच, समझ, और परिस्थिति की संवेदनशीलता को समझ पाएगी? इन सवालों का जवाब आने वाले समय में ही मिलेगा।
हालांकि, IBM की छंटनी इसलिए भी खास है क्योंकि यह केवल आर्थिक मंदी या घाटे की वजह से नहीं हुई, बल्कि तकनीकी बदलाव के कारण हुई। यह दिखाता है कि आने वाले सालों में Technical efficiency रखने वाले ही जॉब मार्केट में टिक पाएंगे। जो लोग नई स्किल्स नहीं सीखेंगे, उन्हें पीछे छोड़ा जाएगा। यह समय है खुद को फिर से गढ़ने का, नए सिरे से अपने करियर को डिजाइन करने का। वरना आने वाला कल और भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
छोटे शहरों, विकासशील देशों और विशेष रूप से भारत जैसे देशों में, जहां अभी भी बड़ी संख्या में युवा पारंपरिक डिग्रियों के सहारे नौकरी की तलाश में हैं, उनके लिए यह एक चेतावनी है। अब केवल डिग्री से काम नहीं चलेगा—AI, डेटा एनालिटिक्स, ऑटोमेशन जैसे Skill ज़रूरी होंगे। Governments, educational institutions और निजी क्षेत्रों को मिलकर ऐसा ecosystem बनाना होगा, जो युवाओं को भविष्य के लिए तैयार करे, न कि सिर्फ परीक्षा पास करने के लिए।
Conclusion
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