Bond Yield का इशारा साफ है: भारत बना रहेगा ग्लोबल मंदी में भी मजबूत खिलाड़ी! 2025

क्या कभी आपने सुना है कि बाजार के एक कोने में खामोशी से उठ रही एक लहर पूरी दुनिया के Financial structure को हिला सकती है? वो लहर न कोई तूफान है, न कोई युद्ध, और न ही कोई प्राकृतिक आपदा—बल्कि यह है ‘Bond Yield‘। आज अमेरिका और जापान जैसे शक्तिशाली देशों के Bond Yield में आई उथल-पुथल पूरी दुनिया को आर्थिक झटकों की चेतावनी दे रही है। पर सबसे अहम सवाल यह है—क्या भारत इस संकट से बचा रहेगा या एक और Global झटका उसकी अर्थव्यवस्था को भी चीर कर रख देगा? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, जापान के 40 साल के सरकारी बॉन्ड की यील्ड एक नए ऐतिहासिक रिकॉर्ड पर पहुंच गई है। यह उस देश के लिए एक असामान्य संकेत है जो दशकों से अपनी ब्याज दरों को, शून्य या निगेटिव के करीब बनाए रखने के लिए जाना जाता है। वहीं, अमेरिका में 30 साल के ट्रेजरी बॉन्ड की यील्ड 5 प्रतिशत के पार चली गई है, जो Investors में अनिश्चितता और अस्थिरता का संकेत देती है। एक्सपर्ट्स इसे केवल ब्याज दरों का उतार-चढ़ाव नहीं मानते, बल्कि एक बड़ी Global आर्थिक चेतावनी के रूप में देख रहे हैं।

कैपिटलमाइंड के सीईओ दीपक शेनॉय ने 20 मई को एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, “कुछ बहुत भयंकर हो रहा है डेब्ट मार्केट में, हालांकि भारत में स्थिति अब भी स्थिर है। लेकिन खतरा मंडरा रहा है।” उनके इस बयान ने एक बार फिर ध्यान खींचा है कि जब जापान जैसा देश, जो अमेरिकी बॉन्ड का सबसे बड़ा खरीदार है, खुद अपने बॉन्ड की यील्ड बढ़ा रहा है—तो इसका असर अमेरिकी मार्केट पर भी गहरा पड़ सकता है।

इंडियाबॉन्ड्स डॉट कॉम के को-फाउंडर विशाल गोयनका का मानना है कि अगर जापानी Investor, अब अपने अमेरिकी Bond Yield (UST) बेचकर जापानी गवर्नमेंट बॉन्ड (JGB) खरीदना शुरू करते हैं, तो अमेरिकी ट्रेजरी मार्केट में भारी बेचवाली हो सकती है। और ये कोई पहली बार नहीं होगा जब ऐसा संभावित संकट सामने आ रहा हो—साल 2000 के बाद से अब एक बार फिर ये डर ज़िंदा हो उठा है। गौर करने वाली बात यह है कि जब बॉन्ड की कीमत घटती है, तो उसकी यील्ड बढ़ जाती है। यही अब हो रहा है—बॉन्ड की बिक्री बढ़ रही है और यील्ड अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच रही है।

ऐसे में सवाल उठता है—भारत का क्या? क्या हम इस Global Finance उथल-पुथल से सुरक्षित हैं? इसका उत्तर है—अभी के लिए हाँ, लेकिन आगे क्या होगा यह निश्चित नहीं है। भारत की वर्तमान स्थिति अपेक्षाकृत मजबूत है। महंगाई फिलहाल नियंत्रित है, foreign currency reserves करीब 691 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है और सरकार की Fiscal Policy स्थिर बनी हुई है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि भारत इस खतरे से पूरी तरह अछूता रहेगा।

विशाल गोयनका ने यह भी चेताया कि अगर Bond Yield में global level पर यह तेजी जारी रही, तो भारत के सरकारी बॉन्ड पर भी इसका असर पड़ सकता है। ऐसे में सरकार को अपनी Interest rate policy और Debt Management को लेकर अतिरिक्त सतर्क रहना होगा। यह वो समय है जब Global घटनाओं की एक छोटी सी चिंगारी भी भारतीय बाजारों में आग भड़का सकती है।

यह चेतावनी केवल सैद्धांतिक नहीं है। इसके असर अब दिखने भी लगे हैं। अमेरिकी Bond Yield में उछाल का असर भारतीय शेयर बाजार पर भी पड़ा। पिछले सप्ताह foreign investors ने भारतीय बाजार से करीब 10,000 करोड़ रुपये निकाल लिए। इसका कारण केवल यील्ड नहीं, बल्कि उससे जुड़े एक श्रृंखलाबद्ध घटनाक्रम हैं—अमेरिका की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग में गिरावट, जापानी यील्ड में उछाल, भारत के कुछ हिस्सों में कोविड मामलों का बढ़ना और पश्चिम एशिया में इजरायल-ईरान तनाव। ये सारी घटनाएं मिलकर एक ऐसी परिस्थिति बना रही हैं जहां Investor डर के चलते सुरक्षित एसेट्स की ओर भाग रहे हैं।

Geojit Investment के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट ने इसे लेकर साफ चेतावनी दी है—”अगर यह ट्रेंड यूं ही जारी रहा तो इक्विटी मार्केट और करेंसी दोनों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।” यह एक दोहरी मार की तरह होगा, जहां एक ओर डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होगा, वहीं दूसरी ओर भारतीय Investors का विश्वास भी हिलेगा।

Bond Yield के बढ़ने के पीछे एक और बड़ा कारण है—अमेरिका और जापान की monetary policies में संभावित बदलाव। अगर इन देशों के केंद्रीय बैंक ब्याज दरों को और बढ़ाते हैं या Bond Yield बेचते हैं, तो मार्केट में Bond Yield की आपूर्ति बढ़ेगी और कीमतें और गिरेंगी, जिससे यील्ड और ऊपर जाएगी। यह एक चक्रवात जैसा है, जो शुरू होते ही व्यापक स्तर पर प्रभाव छोड़ता है।

भारत के सामने चुनौती यह है कि वह इस चक्रवात में फंसने से खुद को कैसे बचाए। इसके लिए एकमात्र रास्ता है—अर्थव्यवस्था की आंतरिक मजबूती को बनाए रखना, Global संकेतों पर नजर रखना और नीति निर्धारण में सतर्कता बरतना। फिलहाल भारत की financial system तुलनात्मक रूप से बेहतर स्थिति में है, लेकिन Global बाजार में उठी हर लहर कभी भी यहां पहुंच सकती है।

सरकार और आरबीआई को चाहिए कि वे ऐसे संकेतों पर जल्दी प्रतिक्रिया दें। केंद्रीय बैंक को फॉरेन इन्वेस्टमेंट की चाल पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर बाजार में स्थिरता लाने के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए। साथ ही, सरकार को Investors के विश्वास को बनाए रखने के लिए फिस्कल डिसिप्लिन और पारदर्शिता दिखानी होगी।

यह संकट इस बात की भी याद दिलाता है कि Global इकोनॉमी किस कदर आपस में जुड़ी हुई है। जापान के Bond Yield में एक हलचल से अमेरिका में डर का माहौल बनता है, और उसका असर भारतीय बाजार तक पहुंचता है। यही Globalization की असली तस्वीर है—एक बाजार की बेचैनी, दूसरे देश की चिंता बन सकती है।

इस समय भारत को सतर्क रहना होगा। केवल अपनी मजबूती पर गर्व करने से काम नहीं चलेगा, बल्कि हर छोटी-बड़ी global activity पर पैनी नजर रखनी होगी। अब वक्त आ गया है जब आम नागरिक से लेकर नीति निर्माता तक सभी को इस बात का एहसास हो कि, फाइनेंशियल लहरें अब सीमाओं में नहीं बंधतीं।

Bond Yield केवल एक तकनीकी शब्द नहीं है। यह आज की Global व्यवस्था का तापमान है, जो बताता है कि कब बर्फ पिघलेगी और कब तूफान आएगा। सवाल सिर्फ यही है—क्या भारत वक्त रहते छाता खोल लेगा या जब तक बारिश आएगी, तब तक देर हो चुकी होगी?

अब हम सबकी निगाहें अगले कुछ हफ्तों पर टिकी हैं। क्या जापानी Investor वाकई अमेरिकी Bond Yield छोड़ेंगे? क्या अमेरिका और जापान अपनी monetary policies को सख्त करेंगे? और सबसे बड़ा सवाल—क्या भारत इस तूफान से बचेगा या एक बार फिर Global बाजारों की चोट उसके आर्थिक संतुलन को डगमगाएगी?

यह कोई सामान्य आर्थिक घटना नहीं, बल्कि एक संकेत है। एक इशारा है उस तूफान का, जो आ सकता है। और इस बार, भारत को केवल बचाव नहीं, बल्कि आक्रमण की रणनीति बनानी होगी—नीतियों से, डेटा से और जनता के भरोसे से।

Conclusion

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