क्या आपने कभी सोचा है कि किसी एक देश के नेता की आर्थिक चाल पूरी दुनिया को हिला सकती है? ऐसा ही कुछ इस वक्त हो रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की Tariff नीति ने न सिर्फ अमेरिका और चीन को आमने-सामने खड़ा कर दिया है, बल्कि एशिया से लेकर यूरोप तक, ग्लोबल शेयर बाजारों से लेकर आम उपभोक्ताओं तक सबको झकझोर कर रख दिया है।
और अब जब दुनिया की नामी रेटिंग एजेंसी मूडीज ने अपनी नई रिपोर्ट जारी की है, तो साफ हो गया है कि ट्रंप की ये चाल सिर्फ एक देश नहीं, पूरी Global अर्थव्यवस्था पर असर डालने जा रही है। क्या होगा अमेरिका का? क्या चीन संभल पाएगा? और भारत को इस ट्रेड वॉर में फायदा होगा या नुकसान? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
मूडीज की रिपोर्ट में जो सबसे पहली बात सामने आई है, वो है—अमेरिका की व्यापार नीति अब खुद अमेरिका के ही उपभोक्ताओं के सेंटिमेंट को कमजोर कर रही है। जब उपभोक्ताओं को बाजार में अस्थिरता नजर आती है, कीमतों में उछाल होता है, और Imported सामान महंगे हो जाते हैं, तो उनका भरोसा डगमगाने लगता है। इससे बाजार की खपत घटती है और अर्थव्यवस्था की रफ्तार पर ब्रेक लग जाता है। ट्रंप की Tariff नीति में यही डर छुपा है—कि वो अमेरिकी बाजार की मांग को कम कर सकती है, जिससे Investor भी सतर्क हो जाते हैं।
इस रिपोर्ट में एशिया को लेकर खास चिंता जताई गई है। मूडीज का कहना है कि अमेरिका-चीन तनाव जितना बढ़ेगा, उसका असर पूरे एशियाई क्षेत्र की आर्थिक संभावनाओं पर पड़ेगा। चीन की अर्थव्यवस्था पहले से ही सुस्ती के दौर से गुजर रही है, और अगर उस पर और दबाव पड़ा, तो चीन में उत्पादन, Export और Investment तीनों घट सकते हैं। इसका सीधा असर एशिया की उन अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ेगा जो चीन के साथ व्यापारिक रूप से गहराई से जुड़ी हैं।
मूडीज की रिपोर्ट बताती है कि चीन की यह सुस्ती न सिर्फ उसके खुद के लिए बल्कि पूरी एशिया-पैसिफिक रीजन के लिए खतरे की घंटी है। रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर ट्रंप की नीति के चलते चीन का एक्सपोर्ट घटता है और Investment कम होता है, तो इसका असर ताइवान, साउथ कोरिया, वियतनाम, मलेशिया और थाईलैंड जैसे देशों पर भी पड़ेगा। इन देशों की अर्थव्यवस्था चीन की मांग पर काफी हद तक निर्भर करती है। ऐसे में वहां के लाखों लोगों की नौकरियों पर भी संकट आ सकता है।
हालांकि, इस संकट में भारत के लिए एक अवसर भी छिपा है। मूडीज की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत जैसे देश, जहां घरेलू बाजार विशाल और मजबूत हैं, वे इस स्थिति में कुछ हद तक लाभ में रह सकते हैं। चीन से हटकर जो कंपनियां नए बाजार ढूंढ़ रही हैं, वे भारत की ओर रुख कर सकती हैं। लेकिन, इसमें भी एक चेतावनी दी गई है—कि यह बदलाव रातों-रात नहीं होगा। Investors को भरोसा पाने में और भारत की पॉलिसी स्थिरता देखने में कई साल लग सकते हैं।
मूडीज की वरिष्ठ उपाध्यक्ष निकी डांग ने कहा कि ट्रंप की ओर से 90 दिन के लिए, कुछ देशों पर Tariff टालना एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन चीन को इससे बाहर रखा गया है। इसका मतलब है कि चीन पर दबाव बरकरार रहेगा। और अगर चीन ने भी जवाबी Tariff लगाए, तो ये तनाव और गहराएगा। डांग ने यह भी जोड़ा कि अगर ट्रंप इस नीति को आगे बढ़ाते हैं, तो यह अमेरिका की खुद की आर्थिक वृद्धि पर भी असर डाल सकता है।
एक अहम बिंदु जो मूडीज ने उठाया है, वो है—अमेरिकी व्यापार नीति की अनिश्चितता। जब नीतियां लगातार बदलती हैं, Tariff कभी लगते हैं, कभी हटते हैं, तो बाजार में असमंजस की स्थिति पैदा होती है। इससे कंपनियों की योजना प्रभावित होती है और वे Investment के फैसले टालने लगती हैं। इस स्थिति में न केवल विदेशी कंपनियां, बल्कि घरेलू व्यापार भी प्रभावित होता है। यही कारण है कि मूडीज का मानना है कि यह नीतिगत अस्थिरता Global विकास की रफ्तार को भी धीमा कर सकती है।
भारत के संदर्भ में बात करें तो मूडीज एनालिटिक्स ने हाल ही में एक नई रिपोर्ट जारी की है, जिसमें भारत की GDP ग्रोथ का अनुमान घटाकर 6.1% कर दिया गया है। यह वही भारत है, जिसके बारे में कुछ ही महीने पहले 6.4% की ग्रोथ रेट की उम्मीद जताई गई थी। यह गिरावट मामूली नहीं है, और इसका सीधा संबंध Global आर्थिक स्थिति से जुड़ा है। अमेरिका और चीन के बीच चल रही यह Tariff जंग भारत के लिए न तो पूरी तरह से खतरे से खाली है और न ही पूरी तरह से अवसरों से भरी।
इस ग्रोथ अनुमान में कटौती इसलिए की गई है क्योंकि भारत की भी एक बड़ी हिस्सेदारी Global व्यापार में है। अगर अमेरिका और चीन के बीच तनाव बना रहता है, तो भारत के लिए Export करना कठिन हो सकता है। इसके अलावा कच्चे तेल की कीमतें, डॉलर का उतार-चढ़ाव और फॉरेन इन्वेस्टमेंट पर पड़ने वाला असर भी भारत की आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर सकता है।
एक और दिलचस्प पहलू है भारत का घरेलू उपभोक्ता बाजार। मूडीज की रिपोर्ट कहती है कि भारत की एक ताकत उसका बड़ा और विविधतापूर्ण घरेलू बाजार है। अगर सरकार समय रहते सही कदम उठाए, तो भारत घरेलू खपत के दम पर मंदी के असर को कुछ हद तक टाल सकता है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि पॉलिसी स्थिरता बनी रहे, कारोबारी माहौल सुधरे और Investors को भरोसा दिलाया जाए।
अब बात करें चीन की तो चीन की आर्थिक सुस्ती कोई नई बात नहीं है, लेकिन ट्रंप के Tariff ने उसे और कठिन बना दिया है। चीनी exporters को अब अपने प्रोडक्ट अमेरिका में बेचने के लिए ज्यादा टैक्स देना पड़ रहा है, जिससे उनका मुनाफा घट गया है। इसके साथ ही अमेरिका में चीनी सामान महंगे होने से मांग भी घट गई है। इससे न केवल चीन का उत्पादन प्रभावित हुआ है, बल्कि वहां की कंपनियों में छंटनी और मंदी का दौर भी तेज हो गया है।
चीन की यह स्थिति बाकी एशियाई देशों के लिए भी चिंता का विषय है क्योंकि चीन का आर्थिक नेटवर्क पूरे एशिया में फैला हुआ है। अगर वहां आर्थिक संकट गहराता है, तो इसका असर पूरे क्षेत्र पर पड़ेगा। मूडीज का मानना है कि अगर ये ट्रेड वॉर और गहरा होता है, तो एक बड़ी global recession की शुरुआत हो सकती है। और यह मंदी 2008 के वित्तीय संकट से भी भयानक साबित हो सकती है क्योंकि इस बार, कारण केवल बैंकिंग या हाउसिंग नहीं बल्कि पूरे व्यापारिक तंत्र में फैला हुआ तनाव है।
इस पूरे घटनाक्रम में अमेरिका खुद भी सुरक्षित नहीं है। मूडीज की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिकी उपभोक्ता अब महंगाई से परेशान हैं। Tariff के कारण Imported सामान महंगे हो गए हैं, जिससे रोजमर्रा की चीजें तक आम आदमी की पहुंच से बाहर होने लगी हैं। इससे अमेरिका में भी महंगाई दर में इजाफा हो रहा है और उपभोक्ता सेंटिमेंट कमजोर पड़ रहा है। अगर यह स्थिति बनी रही, तो अमेरिका में भी खपत घटेगी और GDP पर असर पड़ेगा।
दूसरी तरफ, अमेरिकी कंपनियां भी इससे अछूती नहीं हैं। जो कंपनियां चीन से सामान मंगाकर अमेरिका में बेचती थीं, अब उन्हें या तो टैक्स देना पड़ रहा है या विकल्प ढूंढना पड़ रहा है। इससे उनकी लागत बढ़ गई है, और मुनाफा घट गया है। कई कंपनियों ने तो चीन से बाहर निकलकर वियतनाम, भारत और इंडोनेशिया में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाने की योजना बनाई है, लेकिन इसमें समय और पूंजी दोनों लगते हैं। इसलिए, अल्पकालिक तौर पर ये कंपनियां घाटे में चल रही हैं।
अगर अमेरिका और चीन दोनों अपने Tariff फैसलों पर अडिग रहे, तो नतीजा पूरी दुनिया को भुगतना होगा। मूडीज की रिपोर्ट एक तरह से चेतावनी है कि अगर जल्द ही समाधान नहीं निकला, तो global recession का खतरा वास्तविकता बन सकता है। और इस मंदी से निकलने में वर्षों लग सकते हैं।
भारत के संदर्भ में, यह जरूरी है कि सरकार इन बदलती परिस्थितियों में सही रणनीति अपनाए। विदेश व्यापार को स्थिर रखने, Domestic investment को प्रोत्साहित करने और MSME सेक्टर को मजबूत करने की जरूरत है। इसके अलावा, सरकार को Global कंपनियों को आकर्षित करने के लिए Tax policy, land allocation, labor reform जैसे मुद्दों पर ठोस कदम उठाने होंगे।
इस पूरी कहानी से एक बात साफ है—कि Global अर्थव्यवस्था अब पहले से कहीं ज्यादा आपस में जुड़ी हुई है। एक देश की नीति का असर कई महाद्वीपों तक जाता है। ट्रंप की Tariff नीति ने यह दिखा दिया है कि अब कोई भी देश पूरी तरह से खुद को अलग-थलग रखकर सुरक्षित नहीं रह सकता। चाहे अमेरिका हो या चीन, भारत हो या यूरोप—सबको मिलकर ऐसे संकटों से निपटने की जरूरत है।
Conclusion
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