ज़रा सोचिए… 2000 के दशक के शुरुआती साल। मोहल्लों में नए-नए मोबाइल टॉवर खड़े हो रहे थे, हाथों में मोटे-मोटे फोन झूल रहे थे, और हर गली-कूचे में एक ही सवाल गूंज रहा था—“आपके पास कनेक्शन किस कंपनी का है?” उन दिनों जब लोग एयरटेल और रिलायंस की बात करते थे, तभी एक नया नाम तेजी से लोगों के बीच जगह बनाने लगा—TATA Indicom।
बड़े-बड़े पोस्टर लगे होते थे, टीवी पर अजय देवगन और काजोल हंसते-खेलते नजर आते थे और उनकी आवाज़ गूंजती थी—“TATA Indicom, do more, live more।” हर किसी को लगता था कि टाटा जैसा भरोसेमंद नाम अगर टेलिकॉम में उतर आया है, तो अब खेल बदल जाएगा। लेकिन किसे पता था कि यह चमक-दमक ज़्यादा वक्त टिक नहीं पाएगी और धीरे-धीरे यह ब्रांड मोबाइल इतिहास के पन्नों में समा जाएगा। सवाल उठता है—ऐसा क्या हुआ कि टाटा जैसा साम्राज्य भी इस दौड़ में पीछे छूट गया? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
टाटा ग्रुप, भारत का सबसे पुराना और सम्मानित औद्योगिक घराना, जिसने इस्पात से लेकर मोटरगाड़ियाँ और आईटी से लेकर केमिकल्स तक हर क्षेत्र में अपनी धाक जमाई, उसने टेलिकॉम इंडस्ट्री में कदम रखा तो उम्मीदें आसमान छूने लगीं। 2002 में टाटा टेलीसर्विसेज ने TATA Indicom ब्रांड लॉन्च किया। यह कंपनी CDMA तकनीक पर आधारित थी। उस दौर में CDMA को GSM से कहीं बेहतर माना जाता था—बेहतर कॉल क्वालिटी, तेज़ डेटा और कम ड्रॉप कॉल्स। शुरुआती सालों में इंडिकॉम ने तेजी से अपनी पहचान बनाई। कॉल रेट्स सस्ते थे, नेटवर्क स्थिर था और टाटा का नाम भरोसे का दूसरा नाम था।
लेकिन बाजार इतना आसान नहीं था। GSM प्लेयर्स—एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया—धीरे-धीरे मजबूत हो रहे थे। 2000 के दशक के बीच आते-आते रिलायंस ने भी बाजार में धूम मचाई। लाखों ग्राहकों को “मोबाइल सस्ता करो” ऑफर देकर जोड़ा। ऐसे माहौल में TATA Indicom को लगातार दबाव झेलना पड़ा।
फिर भी कंपनी ने हिम्मत नहीं हारी। बड़े-बड़े विज्ञापन कैंपेन चलाए। अजय देवगन और काजोल की जोड़ी को ब्रांड एंबेसडर बनाया गया। उनके विज्ञापन इतने पॉपुलर हुए कि लोग उन्हें देखकर स्टोर में जाते और TATA Indicom का कनेक्शन लेते। कई राज्यों में इसने मजबूत पकड़ बनाई। लेकिन समस्या यह थी कि CDMA तकनीक अब धीरे-धीरे महंगी पड़ने लगी थी। GSM तेजी से फैल रहा था और उसके मोबाइल सस्ते होते जा रहे थे। लोग GSM की ओर आकर्षित होने लगे।
2008 में टाटा ने GSM सेवाएँ शुरू कीं और तभी जापान की दिग्गज कंपनी NTT Docomo के साथ साझेदारी की। दुनिया भर में Docomo अपनी तकनीक और इनोवेशन के लिए जानी जाती थी। जब टाटा और डोकोमो साथ आए तो लगा कि यह साझेदारी बाजार में क्रांति ला देगी। और हुआ भी ऐसा। 2011 में TATA Indicom का विलय टाटा डोकोमो में कर दिया गया। ब्रांडिंग बदल गई, विज्ञापन बदल गए और नए-नए ऑफर्स आने लगे। डोकोमो के नाम का ग्लैमर भारतीय ग्राहकों को खूब लुभाने लगा।
लेकिन असली चुनौतियाँ यहीं से शुरू हुईं। GSM के दिग्गज—एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया—पहले से ही मजबूत थे। रिलायंस कम्युनिकेशन तेजी से विस्तार कर रहा था। और टाटा डोकोमो, जिसने देर से GSM में एंट्री ली, वह इस दौड़ में पिछड़ने लगा। ग्राहक बढ़े जरूर, लेकिन मुनाफा नहीं हुआ।
2014 में बड़ा झटका लगा। NTT Docomo ने टाटा ग्रुप से अलग होने का फैसला कर लिया। जापानी कंपनी का कहना था कि भारतीय बाजार में उन्हें वह फायदा नहीं मिल रहा जो उन्होंने सोचा था। ग्राहकों की संख्या बढ़ रही थी, लेकिन Revenue गिर रहा था। ऊपर से कॉल रेट्स घटते जा रहे थे और डेटा का खेल अभी शुरू भी नहीं हुआ था। टाटा के लिए यह साझेदारी अब बोझ बनने लगी।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, टाटा टेलीसर्विसेज पर कर्ज़ का बोझ बढ़ता गया। महंगी CDMA तकनीक, गिरता हुआ GSM बाजार हिस्सा और नए-नए नियम-कायदे ने कंपनी को और कमजोर कर दिया। 2016 आते-आते यह साफ़ हो गया कि टाटा डोकोमो इस Competition में टिक नहीं पाएगी।
2017 में टाटा ग्रुप ने एक कठिन लेकिन जरूरी फैसला लिया। उन्होंने अपनी मोबाइल यूनिट को भारती एयरटेल को बेच दिया। इस तरह भारत का सबसे प्रतिष्ठित औद्योगिक घराना मोबाइल टेलीकॉम बिजनेस से बाहर हो गया। टाटा ग्रुप, जिसने भारत को पहली कार दी, स्टील प्लांट्स दिए और IT सर्विसेज़ में क्रांति लाई, वह टेलीकॉम की दौड़ में हार गया।
लेकिन सवाल है—आखिर क्यों? एक्सपर्ट्स कहते हैं कि सबसे बड़ी वजह थी गलत समय पर गलत तकनीक पर भरोसा। जब दुनिया GSM की ओर जा रही थी, तब टाटा ने CDMA को चुना। और जब GSM में एंट्री ली, तब तक देर हो चुकी थी। इसके अलावा, बाजार में पहले से मौजूद दिग्गजों के बीच जगह बनाना आसान नहीं था।
आपको बता दें कि CDMA और GSM मोबाइल नेटवर्क की दो अलग-अलग तकनीकें हैं, जिनमें कई अंतर हैं। GSM यानी Global System for Mobile Communication ऐसी तकनीक है, जो टाइम डिवीजन और फ्रीक्वेंसी डिवीजन पर काम करती है। इसमें अलग-अलग यूज़र्स को कॉल और डेटा के लिए अलग-अलग समय स्लॉट और फ्रीक्वेंसी दी जाती है। दूसरी तरफ CDMA यानी Code Division Multiple Access तकनीक में हर यूज़र को एक यूनिक कोड मिलता है, और सभी लोग एक ही समय पर एक ही फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल कर सकते हैं। यही वजह है कि CDMA में कॉल क्वालिटी और वॉइस क्लैरिटी GSM से बेहतर मानी जाती थी।
GSM दुनिया भर में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाली तकनीक है और लगभग हर देश में इसका नेटवर्क मिलता है, जबकि CDMA कुछ ही देशों और कंपनियों तक सीमित रहा। भारत में एयरटेल, वोडाफोन और जियो जैसे ऑपरेटर्स GSM तकनीक पर चलते हैं, जबकि Reliance और Tata Indicom ने CDMA को अपनाया था, लेकिन बाद में GSM और 4G पर शिफ्ट हो गए। GSM में SIM कार्ड का इस्तेमाल होता है जिसकी वजह से फोन बदलना आसान होता है, जबकि CDMA के शुरुआती दौर में SIM कार्ड की ज़रूरत नहीं पड़ती थी और फोन सीधे नेटवर्क से जुड़े रहते थे।
अगर कॉल क्वालिटी और डेटा स्पीड की बात करें तो CDMA को हमेशा GSM से बेहतर माना गया, लेकिन GSM की सबसे बड़ी ताकत इसका ग्लोबल नेटवर्क सपोर्ट है। GSM इंटरनेशनल रोमिंग के लिए सबसे अच्छा विकल्प है क्योंकि पूरी दुनिया में यह कॉमन स्टैंडर्ड है, जबकि CDMA बहुत सीमित देशों में ही उपलब्ध रहा। यही वजह है कि GSM सस्ता, लोकप्रिय और इंटरनेशनल सपोर्टेड बन गया, जबकि CDMA धीरे-धीरे खत्म हो गया।
दूसरी बड़ी वजह थी फाइनेंशियल स्ट्रेस। टाटा टेलीसर्विसेज़ पर अरबों रुपये का कर्ज़ चढ़ गया। हर साल घाटा बढ़ता गया। टेलिकॉम ऐसा सेक्टर है जहाँ बहुत बड़े Investment की ज़रूरत होती है और लंबे समय तक घाटा सहना पड़ता है। टाटा के पास यह सब झेलने की ताकत थी, लेकिन उन्होंने महसूस किया कि यह बिज़नेस उन्हें डूबो सकता है।
तीसरी वजह थी भारतीय बाजार की नीतियाँ। उस समय स्पेक्ट्रम की नीलामी, लाइसेंस फीस और टैक्स नियम इतने जटिल थे कि कंपनियों का दम घुटने लगा। बड़े-बड़े प्लेयर जैसे रिलायंस कम्युनिकेशन और एयरसेल भी इन्हीं वजहों से बंद हो गए। ऐसे माहौल में टाटा के लिए बचना मुश्किल था।
आख़िरकार, टाटा ने अपना ध्यान अन्य व्यवसायों पर केंद्रित किया—IT (TCS), ऑटोमोबाइल (Tata Motors), स्टील, केमिकल्स और उपभोक्ता उत्पादों पर। ये सेक्टर उनके लिए ज्यादा फायदेमंद थे।
TATA Indicom और डोकोमो की यह कहानी हमें एक सबक देती है। चाहे ब्रांड कितना भी बड़ा क्यों न हो, अगर समय पर सही रणनीति न बने तो बाज़ार आपको बाहर कर देता है। भारत का टेलिकॉम बाजार इतना निर्दयी है कि यहाँ कई दिग्गज कंपनियाँ खत्म हो गईं। बीएसएनएल आज भी संघर्ष कर रही है, रिलायंस कम्युनिकेशन इतिहास बन गया, एयरसेल गायब हो गया और टाटा को भी पीछे हटना पड़ा।
आज जब हम Jio और Airtel को देखते हैं, तो लगता है कि यही दो खिलाड़ी लंबे समय तक बाजार पर राज करेंगे। लेकिन इतिहास गवाह है कि इस सेक्टर में कुछ भी स्थायी नहीं है। जिस तरह कभी TATA Indicom का नाम हर जुबान पर था, उसी तरह आने वाले समय में और भी बदलाव हो सकते हैं।
टाटा ने भले ही मोबाइल बिजनेस से बाहर निकलने का फैसला किया, लेकिन उन्होंने खुद को कहीं और मजबूत किया। टाटा ग्रुप की TCS आज भारत की सबसे बड़ी IT कंपनी है। टाटा मोटर्स इलेक्ट्रिक गाड़ियों में तेजी से आगे बढ़ रही है। एयर इंडिया को टाटा ने वापस खरीदकर फिर से उड़ान भराई है। यानी हार सिर्फ़ एक सेक्टर में हुई, लेकिन पूरे समूह की ताक़त बनी रही।
Conclusion
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