Tariff war में छिपा भारत का बड़ा मौका! शेयर मार्केट देगा कोविड जैसा बंपर रिटर्न? 2025

क्या आपने कभी सोचा है कि जब दो महाशक्तियाँ आपस में Tariff war में उलझ जाती हैं, तो एक तीसरा देश चुपचाप उस युद्ध से ताकतवर बन सकता है? क्या इतिहास खुद को दोहराने जा रहा है, जहां संकट के बीच छिपा होता है एक सुनहरा अवसर? और क्या ये मौका भारत के लिए वही साबित हो सकता है, जो कोविड के बाद शेयर बाजार में हुआ था—एक ऐसा पल, जब जो डर गया वो हार गया, लेकिन  जो डटा रहा वो करोड़पति बन गया?

इस बार, यह मौका आया है टैरिफ वॉर की शक्ल में। अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते टकराव ने पूरी दुनिया को हिला दिया है, लेकिन भारत के लिए यह बन गया है एक संभावित गेमचेंजर। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

टैरिफ यानी सीमा शुल्क—यह अब सिर्फ व्यापार का शब्द नहीं रह गया है, बल्कि Global economic politics का एक हथियार बन चुका है। डोनाल्ड ट्रंप जब से अमेरिका की सत्ता में लौटे हैं, उन्होंने “अमेरिका फर्स्ट” नीति को फिर से जिंदा कर दिया है। इस नीति का सीधा असर दुनिया के हर उस देश पर पड़ रहा है, जो अमेरिका को सामान बेचता है। ट्रंप ने कई देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगा दिए हैं—यानि जितना टैरिफ तुम लगाओगे, हम भी उतना ही या उससे ज्यादा लगाएंगे। इससे Global व्यापार व्यवस्था में भूचाल आ गया है, और Investor बाजार की अस्थिरता को लेकर डरे हुए हैं। लेकिन इसी अस्थिरता के बीच भारत के सामने खुला है एक नया रास्ता।

सबसे अहम बात यह है कि ट्रंप प्रशासन ने अधिकांश देशों को 90 दिनों की टैरिफ राहत दी है, और भारत भी उनमें शामिल है। इसका मतलब यह हुआ कि भारत के लिए अमेरिकी बाजार तक पहुंच फिलहाल आसान बनी हुई है। इसके उलट चीन को इस छूट से बाहर रखा गया है, क्योंकि उसने अमेरिका के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया है। चीन ने जवाबी कार्रवाई में अमेरिकी सामानों पर टैरिफ को 34% से बढ़ाकर 125% तक कर दिया है, वहीं अमेरिका ने चीन पर टैरिफ 145% तक बढ़ा दिए हैं। ये आंकड़े सिर्फ नंबर नहीं हैं, ये संकेत हैं एक भयंकर टकराव के जो Global supply chain को तोड़ सकते हैं।

इस ट्रेड वॉर की आग में कुछ खास सेक्टर जल रहे हैं—जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्नोलॉजी, फार्मास्युटिकल्स और सेमीकंडक्टर्स। हालांकि ट्रंप प्रशासन ने स्मार्टफोन और लैपटॉप जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक सामान को अस्थायी छूट दी है, लेकिन अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लटनिक ने साफ कर दिया है कि यह छूट अल्पकालिक है। आने वाले समय में फार्मास्युटिकल्स पर भी टैरिफ लगाने की तैयारी की जा रही है ताकि कंपनियां अमेरिका में ही मैन्युफैक्चरिंग शुरू करें। इसका सीधा मतलब है कि चीन पर अमेरिका का विश्वास कमजोर हो रहा है और वह अपने वैकल्पिक suppliers की तलाश में है।

और यही वह जगह है, जहां भारत सामने आता है। भारत इस समय एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां उसके पास है स्टेप-इन करने का परफेक्ट मौका। भारत को दुनिया की सबसे बड़ी खपत वाली अर्थव्यवस्था—अमेरिका—में अपनी पैठ मजबूत करने का अवसर मिला है। एक सरकारी आंतरिक आकलन में बताया गया है कि भारत ने कम से कम, 10 ऐसे क्षेत्रों की पहचान की है जहां वह चीन की जगह ले सकता है। इनमें शामिल हैं—taxtile, Chemicals, Plastics, Rubber, Gems और आभूषण, लोहे और स्टील के सामान, एसेंशियल ऑयल्स और यहां तक कि खिलौने भी।

आइए आंकड़ों की जुबानी समझते हैं कि भारत कहां और कैसे चीन की जगह ले सकता है। अमेरिकी taxtile import में चीन की हिस्सेदारी लगभग 25% है, जबकि भारत की मात्र 3.8%। इलेक्ट्रॉनिक्स में तो फासला और भी बड़ा है—अमेरिका हर साल करीब 900 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक सामान Import करता है, जिसमें से 50% से अधिक चीन से आता है, और भारत की हिस्सेदारी सिर्फ 7% है। सोचिए, अगर भारत इस गैप को सिर्फ 10% भी भर दे, तो उसका Export कितनी बड़ी छलांग मार सकता है।

टॉय इंडस्ट्री एक और ऐसा क्षेत्र है, जहां भारत को अप्रत्याशित लाभ हो सकता है। अब तक अमेरिका के टॉय Import में चीन की हिस्सेदारी 77% रही है, लेकिन अब जब टैरिफ तेजी से बढ़े हैं, तो अमेरिकी रिटेलर्स नए विकल्पों की तलाश में हैं। भारत, जो पहले से टॉय सेफ्टी स्टैंडर्ड्स और पारंपरिक खिलौनों को बढ़ावा दे रहा है, इस बदलाव का प्रमुख लाभार्थी बन सकता है। भारत सरकार का भी फोकस “मेक इन इंडिया” के तहत इस सेक्टर पर रहा है।

इतना ही नहीं, फार्मा सेक्टर में भी भारत को प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिल रही है। अमेरिका, जो अब अपने दवाइयों के सोर्स को विविध बनाना चाहता है, भारत को एक भरोसेमंद सप्लायर मान रहा है। भारत की जेनेरिक दवाओं की प्रतिष्ठा, उसकी कीमतें और उसकी गुणवत्ता पहले से ही अमेरिका में मान्य हैं। ऐसे में टैरिफ के चलते चीन से हटते सप्लाई ऑर्डर अब भारत की ओर मुड़ सकते हैं।

अब बात करते हैं Investors की—जो हर ग्लोबल घटनाक्रम को अपनी नजर से देखते हैं। एक तरफ बाजार में अस्थिरता है, दूसरी ओर अवसर। इतिहास गवाह है कि जब दुनिया संकट में थी, तभी समझदार Investors ने सबसे ज्यादा कमाई की है। उदाहरण के लिए, कोविड के समय जब निफ्टी 13% एक दिन में गिरा था और 7,511 के स्तर पर पहुंच गया था, तब किसी ने कल्पना नहीं की थी कि वो कुछ ही सालों में 25,000 के पार चला जाएगा। लेकिन जो Investor डरे नहीं और टिके रहे, उन्होंने जबरदस्त मुनाफा कमाया।

आज की स्थिति उससे अलग नहीं है। टैरिफ वॉर एक तरफ ग्लोबल ट्रेड को हिला रहा है, लेकिन दूसरी तरफ भारत को फ्रंट फुट पर लाने की भूमिका निभा रहा है। यदि भारत इसका सही उपयोग करता है—व्यवसायों को प्रेरित कर, Export policy को लचीला बनाकर, और लॉजिस्टिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर को सुदृढ़ करके—तो यह समय शेयर बाजार में Investment का नया स्वर्णकाल हो सकता है।

हालांकि, इसमें सतर्कता भी जरूरी है। experts का मानना है कि यदि अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध और गहराया, तो इससे अमेरिका में मंदी आ सकती है, और इसका असर पूरे ग्लोबल डिमांड पर होगा। गोल्डमैन सैक्स के CEO ने स्पष्ट रूप से कहा है कि टैरिफ तनाव अमेरिका में मंदी की संभावना बढ़ा रहे हैं। भारत को यह समझना होगा कि उसका लाभ सिर्फ एक सीमित समय तक का हो सकता है, अगर दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं सिकुड़ती हैं, तो उसका असर भारत के Export और विकास दर पर भी पड़ेगा।

RBI ने भी संकेत दे दिए हैं। उसने विकास दर के अपने अनुमान को घटाया है और रेपो रेट को 6% पर ला दिया है। मूडीज़ एनालिटिक्स ने भी भारत की 2025 की GDP ग्रोथ को घटाकर 6.1% कर दिया है। यानी शॉर्ट टर्म में मौका है, लेकिन लॉन्ग टर्म में खतरे की घंटी भी बजी हुई है। भारत को एक साथ दोनों को साधना होगा—अवसर का उपयोग और जोखिम का प्रबंधन।

तो सवाल ये है—क्या भारत इस बार चूक जाएगा? या फिर यह वह समय है जब भारत खुद को एक Global production center के रूप में स्थापित कर सकता है? और क्या शेयर बाजार इस बार भी वैसा ही रिटर्न देगा जैसा उसने कोविड के बाद दिया था? जवाब समय देगा, लेकिन एक बात तय है—जो Investor दूरदृष्टि से सोचेंगे, वे इस Global उथल-पुथल में भी स्थायित्व पाएंगे।

Conclusion

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