Tariff War 2025! चीन ने अमेरिका को दिया करारा जवाब 34% टैक्स से पलटा पासा, भारत को मिल सकता है बड़ा फायदा I

सोचिए कि आप एक सुपरपावर देश हैं। आपकी अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी ताकतों में से एक है। लेकिन एक दिन अचानक आपके सामने एक ऐसा देश खड़ा हो जाए जो न सिर्फ आपके हर कदम का जवाब दे, बल्कि व्यापार के मैदान में आपको घुटनों पर लाने की तैयारी में लग जाए। और अब ये कल्पना नहीं, हकीकत बन चुकी है।

जी हां, जिस बात का डर था वही हुआ—चीन ने आखिरकार अमेरिका के रेसिप्रोकल Tariff का करारा जवाब दे दिया है। अमेरिका ने जैसा किया, वैसा ही अब चीन ने भी किया—टूट पड़ा अमेरिकी सामान पर 34 प्रतिशत का भारी भरकम टैक्स लगाकर। लेकिन ये कहानी यहीं खत्म नहीं होती, असली खेल तो अब शुरू हुआ है। इसमें इतिहास, रणनीति, तकनीक और राजनीतिक दबाव का वो तूफान है, जिसने Global बाजार की नींव हिला दी है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में चीन से आने वाले Products पर 34 प्रतिशत Import duty लगाने की घोषणा की थी। यह शुल्क पहले से लागू 20 प्रतिशत शुल्क के अतिरिक्त था, जिससे कुल Tariff 54 प्रतिशत तक पहुंच गया। इस फैसले से चीन में हलचल मच गई और अब बीजिंग ने भी पलटवार करते हुए ऐलान कर दिया कि वह, 10 अप्रैल से अमेरिका से Import होने वाले तमाम सामानों पर 34 प्रतिशत Tariff लगाएगा। यानी व्यापार युद्ध अब औपचारिक रूप से एक और खतरनाक मोड़ पर आ चुका है, जहाँ हर फैसला पूरी दुनिया की आर्थिक स्थिरता पर असर डाल सकता है।

चीन के Ministry of Commerce ने इस कार्रवाई को और भी आक्रामक बनाते हुए 11 अमेरिकी कंपनियों को ‘अनरिलायबल एंटिटी लिस्ट’ में डाल दिया है। इसका मतलब साफ है—ये कंपनियां अब चीन में व्यापार नहीं कर पाएंगी, न ही चीनी कंपनियों से कोई करार कर सकेंगी।

इससे उन अमेरिकी कंपनियों को बड़ा झटका लग सकता है जो चीन में मैन्युफैक्चरिंग या सप्लाई चेन पर निर्भर थीं। इनमें से कई कंपनियां तकनीकी क्षेत्र की हैं, जो पहले ही global recession और चीन से घटते संबंधों की मार झेल रही हैं। चीन का यह कदम Global व्यापारिक व्यवस्था के उस विश्वास पर भी सवाल खड़ा करता है, जिस पर दशकों से दुनिया टिकी थी।

चीन ने सिर्फ Tariff ही नहीं बढ़ाए, बल्कि तकनीकी और औद्योगिक स्तर पर भी अमेरिका को घेरने की तैयारी शुरू कर दी है। चीन के Ministry of Commerce ने अमेरिका को सात Rare और भारी धातु तत्वों के, Export पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक लाइसेंसिंग सिस्टम लागू कर दिया है। इन तत्वों का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक कारों, स्मार्ट बमों, सैटेलाइट्स और मिसाइलों तक में होता है।

सबसे खास बात ये है कि इन तत्वों का Mining और प्रोसेसिंग मुख्य रूप से चीन में ही होता है। यानी अमेरिका को इनकी जरूरत है, लेकिन अब इनका रास्ता चीन के नियंत्रण में है। यह supply chain पर एक ऐसा नियंत्रण है जिसे दुनिया का हर देश गंभीरता से ले रहा है।

इसके अलावा चीन ने अमेरिकी मेडिकल इमेजिंग उपकरणों पर भी जांच शुरू कर दी है। यह एक ऐसा सेक्टर है जहां अमेरिका का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबदबा रहा है। चीन का यह कदम अमेरिकी तकनीकी और हेल्थकेयर इंडस्ट्री पर सीधा हमला माना जा रहा है। साथ ही, चीन ने अमेरिका से आने वाले चिकन और ज्वार के Import पर भी रोक लगाने की बात कही है।

यह सीधे तौर पर अमेरिकी कृषि क्षेत्र पर असर डालेगा, जो पहले से ही ट्रंप की Tariff पॉलिसी से जूझ रहा है। खास बात यह है कि अमेरिका के कई चुनावी क्षेत्रों में ये उद्योग वोट बैंक पर गहरा प्रभाव डालते हैं। यानी यह चीन की रणनीति का हिस्सा भी है।

अब बड़ा सवाल ये है—इस व्यापार युद्ध में आखिर सबसे ज्यादा नुकसान किसका होगा? क्या अमेरिका की आक्रामक Tariff नीति सफल होगी या चीन की सधी हुई जवाबी रणनीति भारी पड़ेगी? आर्थिक विश्लेषकों के मुताबिक, नुकसान दोनों तरफ होगा, लेकिन असर का स्वरूप अलग-अलग होगा।

अमेरिका ने चीन से कम सामान खरीदा और ज्यादा बेचा, इसलिए चीन के पास जवाबी दायरा सीमित था। लेकिन अब उसने जो कदम उठाए हैं, उनसे अमेरिका की रणनीतिक इंडस्ट्रीज पर चोट पहुंच सकती है। अमेरिका की कुछ हाईटेक कंपनियाँ अब नए बाज़ार खोजने में जुटी हैं, लेकिन इतने बड़े स्केल पर यह आसान नहीं।

पिछले साल चीन ने अमेरिका से करीब 148 बिलियन डॉलर के Semiconductors, fossil fuels, agricultural products और अन्य जरूरी सामान खरीदे थे। जबकि अमेरिका को चीन ने लगभग 427 बिलियन डॉलर के स्मार्टफोन, फर्नीचर, खिलौने, मशीनरी और अन्य उत्पाद बेचे। यानी व्यापार का पलड़ा चीन के पक्ष में भारी है।

ऐसे में जब अमेरिका Tariff लगाता है तो चीन की कंपनियों को झटका लगता है, लेकिन साथ ही अमेरिका में कीमतें बढ़ने लगती हैं, जिससे वहां के उपभोक्ताओं पर सीधा बोझ पड़ता है। ट्रंप की इस नीति से कई घरेलू व्यवसाय भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो सकते हैं।

लेकिन अब जब चीन ने हर अमेरिकी सामान पर 34 प्रतिशत Tariff लगाने का ऐलान किया है, तो यह अमेरिका के उन exporters के लिए बहुत बड़ा झटका हो सकता है जो पहले से ही Competition के दबाव में हैं। खास बात यह है कि ट्रंप प्रशासन ने सेमीकंडक्टर और फार्मास्यूटिकल सेक्टर को Tariff से बाहर रखा था, लेकिन चीन ने ऐसा कोई अपवाद नहीं दिया है।

यानी चीन ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि वह हर मोर्चे पर बराबरी से जवाब देगा, चाहे वो टेक्नोलॉजी हो या कृषि, दवा हो या खनिज। चीन ने यह भी स्पष्ट किया है कि अगर अमेरिका और दबाव बढ़ाता है, तो वह और सख्त कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगा।

दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अब व्यापारिक युद्ध की उस दिशा में बढ़ चुकी हैं, जहां से लौटना मुश्किल होता है। यह सिर्फ दो देशों की लड़ाई नहीं है, बल्कि इसका असर global supply chain, Investors के विश्वास और Global economic stability पर पड़ने वाला है।

जैसे-जैसे ये टकराव गहराता जाएगा, दुनिया के बाकी देश भी अपनी रणनीतियाँ तय करने लगेंगे—कौन किसके साथ जाएगा, और किसका आर्थिक भविष्य किससे जुड़ा रहेगा। यह एक नई Global polarization की शुरुआत मानी जा रही है, जहां हर देश को अपने पक्ष चुनने होंगे।

अब सवाल ये है कि क्या भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं इस युद्ध से फायदा उठा पाएंगी या इनकी स्थिति भी अस्थिर हो जाएगी? भारत को अमेरिका और चीन दोनों से ही व्यापारिक संबंधों में संतुलन बनाए रखना होगा, और यह काम आसान नहीं होगा।

एक तरफ अमेरिका का राजनीतिक दबाव, दूसरी ओर चीन का बड़ा बाजार—भारत को हर कदम सोच-समझकर रखना होगा। भारत के लिए यह अवसर भी है और चुनौती भी—क्योंकि अगर वह सही तरीके से अपने Export को पुनर्गठित करता है, तो वह दोनों देशों के स्थान पर अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है।

वर्तमान में व्यापार युद्ध की यह आग और भी तेज़ हो रही है। 10 अप्रैल से चीन के नए Tariff लागू होंगे, और अमेरिका की कंपनियां अब चिंतित हैं कि उनकी लागत कैसे बढ़ेगी, उनके उत्पाद चीन में कैसे टिक पाएंगे, और कहीं उनकी पूरी supply chain ही न बिखर जाए। वहीं चीन भी तैयार है—हर अगला कदम सोच-समझकर, अमेरिका की हर चाल का जवाब देने के लिए।

experts का मानना है कि आने वाले तीन से छह महीने में यह टकराव और अधिक व्यापक हो सकता है। कहानी अभी बाकी है, लेकिन इतना तय है—दांव बहुत बड़ा है और खिलाड़ी दोनों ही किसी भी कीमत पर हार मानने को तैयार नहीं हैं। यह सिर्फ एक आर्थिक युद्ध नहीं, बल्कि 21वीं सदी की सबसे बड़ी व्यापारिक रणनीति की लड़ाई बन चुकी है, जिसकी परिणति Global politics को भी प्रभावित कर सकती है।

Conclusion:-

“अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

GRT Business विभिन्न समाचार एजेंसियों, जनमत और सार्वजनिक स्रोतों से जानकारी लेकर आपके लिए सटीक और सत्यापित कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। हालांकि, किसी भी त्रुटि या विवाद के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। हमारा उद्देश्य आपके ज्ञान को बढ़ाना और आपको सही तथ्यों से अवगत कराना है।

अधिक जानकारी के लिए आप हमारे GRT Business YouTube चैनल पर भी विजिट कर सकते हैं। धन्यवाद!”

Spread the love

Leave a Comment