कल्पना कीजिए, आपने किसी कंपनी में नई नौकरी ज्वाइन की है, वहां आपको Training दिया गया, कंपनी ने आपके ऊपर समय और संसाधन खर्च किए, और कुछ महीनों बाद ही एक बेहतर पैकेज मिलते ही आप नई कंपनी में चले गए। अब सोचिए, कुछ समय बाद आपके घर एक नोटिस आता है—कंपनी कहती है कि आपने ‘Service Bond’ तोड़ा है, इसलिए अब आपको दो लाख रुपये भरने होंगे।
आप सोचते हैं, क्या ये वैध है? क्या ऐसा संभव है? सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद, जवाब है—हां। अब कंपनियों के पास अपने कर्मचारियों से Service Bond के तहत पैसे वसूलने का कानूनी अधिकार है, और यह निर्णय न केवल Private कंपनियों बल्कि public sector की इकाइयों के लिए भी बड़ा राहतकारी संदेश है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
भारत की सर्वोच्च अदालत ने 16 मई 2025 को एक ऐसा फैसला सुनाया है जिसने देश भर के कर्मचारियों, और कंपनियों के बीच चल रहे एक पुराने विवाद को नया मोड़ दे दिया है। यह फैसला सीधे उन लाखों युवाओं को प्रभावित करेगा जो हर दो-तीन साल में नौकरी बदलने को आज़ादी और करियर ग्रोथ का नाम देते हैं।
अब यह आज़ादी सीमित हो सकती है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि यदि कोई कंपनी अपने कर्मचारियों को Training देती है, तो वह उनसे न्यूनतम सेवा अवधि की शर्त पर Service Bond साइन करवा सकती है, और अगर वह कर्मचारी Service Bond तोड़ता है, तो उसे Training की लागत भरनी होगी। यह फैसला कॉर्पोरेट संस्कृति में एक नई जिम्मेदारी और अनुशासन का संकेत देता है।
यह मामला प्रशांत नरनावरे नामक कर्मचारी से जुड़ा है, जो विजया बैंक में काम कर रहे थे। उन्होंने नियुक्ति के समय एक तीन साल का Service Bond साइन किया था, जिसमें स्पष्ट उल्लेख था कि यदि वह इस अवधि से पहले नौकरी छोड़ते हैं, तो उन्हें दो लाख रुपये की लागत चुकानी होगी।
लेकिन प्रशांत ने समय से पहले इस्तीफा दे दिया, और बैंक ने उनसे ‘लिक्विडेटेड डैमेज’ के तौर पर दो लाख रुपये की मांग की। जब यह मामला कर्नाटक हाई कोर्ट पहुंचा, तो कोर्ट ने कर्मचारी के पक्ष में फैसला दिया, जिसे अब सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया। इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया कि Service Bond केवल एक कागज़ी औपचारिकता नहीं, बल्कि कानूनन प्रभावी Contract है जिसे तोड़ने पर Financial accountability तय की जा सकती है।
इस ऐतिहासिक फैसले में अदालत ने कहा, “Employer-Employee Relationship अब केवल पे एंड वर्क का संबंध नहीं रह गया है। आज यह संबंध तकनीकी कौशल, रिस्किलिंग, इंडस्ट्री 4.0, और इंटरनेशनल टैलेंट मोबिलिटी जैसे कारकों से जुड़ा हुआ है। ऐसे में यदि कोई संगठन किसी कर्मचारी पर Investment करता है, उसे trained करता है, और उस कर्मचारी की सेवाएं एक निश्चित समय तक चाहता है, तो यह अनुचित नहीं है।” इस फैसले ने यह संकेत दिया कि भारत अब उन देशों की श्रेणी में शामिल हो रहा है जहां Workforce stability को Legal protection मिलता है।
यह फैसला खासकर आईटी, बैंकिंग, फार्मा, और तकनीकी क्षेत्रों में काम करने वाली उन कंपनियों के लिए राहत की सांस जैसा है, जो वर्षों से इस बात की शिकायत करती आ रही थीं कि वे लाखों रुपये खर्च कर किसी कर्मचारी को trained करती हैं, और वह कुछ ही महीनों बाद उन्हें छोड़कर दूसरी कंपनी में चला जाता है। इससे कंपनियों को दोहरा नुकसान होता है—एक, Investment डूब जाता है, और दो, क्लाइंट प्रोजेक्ट्स पर प्रभाव पड़ता है। यह फैसला कंपनियों को न केवल कर्मचारियों में Investment करने के लिए प्रेरित करेगा, बल्कि उन्हें यह भरोसा भी देगा कि उनका Investment सुरक्षित रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर पेश हुए एडवोकेट ऑन रिकार्ड अश्विनी दुबे का कहना है कि यह फैसला एक संतुलनकारी पहलू रखता है। यह न तो पूरी तरह से Employer को ताकत देता है और न ही कर्मचारी की स्वतंत्रता को खत्म करता है। यह कहता है कि यदि कंपनी ने किसी कर्मचारी को कोई स्किल सिखाई है, ट्रेनिंग दी है, और उसके बदले कुछ वर्ष की सेवा की अपेक्षा की है, तो वह जायज़ है—लेकिन कंपनी को भी Service Bond की शर्तों को तर्कसंगत और स्पष्ट बनाना होगा। यह पारदर्शिता की दिशा में एक मजबूत कदम है।
दुबे ने कहा, “यह अब स्पष्ट है कि Service Bond केवल कागज़ पर नहीं रहेगा। उसकी वैधानिकता को अदालत ने मान्यता दी है। अब कर्मचारी Service Bond को नजरअंदाज़ कर नौकरी छोड़ने का Risk नहीं उठा पाएंगे। यह Employer और कर्मचारी दोनों के बीच पारदर्शिता और जिम्मेदारी की संस्कृति को बढ़ावा देगा।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस फैसले के बाद कंपनियां भी Service Bond की भाषा को, कानूनी और समझने योग्य बनाएं ताकि भविष्य में विवाद की संभावना कम हो।
लेकिन यह भी सच है कि इस फैसले को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कुछ लोग इसे कर्मचारियों की स्वतंत्रता पर अंकुश मानते हैं, तो कुछ इसे इंडस्ट्री में अनुशासन लाने का एक सकारात्मक कदम। आलोचकों का कहना है कि इससे कर्मचारियों की मोलभाव करने की ताकत कमजोर होगी, जिससे वे बेहतर अवसरों को चुनने में हिचकिचा सकते हैं। वहीं समर्थकों का मानना है कि इससे नौकरी को लेकर एक नई गंभीरता आएगी, और कंपनियां भी कर्मचारियों को बेहतर स्किल देने के लिए Investment करेंगी।
यह फैसला न केवल मौजूदा कर्मचारियों को प्रभावित करेगा, बल्कि उन हजारों छात्रों और फ्रेशर्स को भी जो अभी कॉलेज में हैं और जल्द ही कॉर्पोरेट की दुनिया में कदम रखने वाले हैं। अब उन्हें नौकरी चुनने से पहले केवल सैलरी नहीं, बल्कि Service Bond की शर्तों को भी बारीकी से पढ़ना होगा। यह बदलाव एचआर पॉलिसी से लेकर कैंपस प्लेसमेंट तक हर स्तर पर महसूस किया जाएगा, और संभावित रूप से भविष्य की नौकरी संस्कृति को नया स्वरूप देगा।
इस फैसले के दूरगामी प्रभाव और कानूनी मान्यता को देखते हुए अब यह भी संभव है कि, आने वाले समय में कॉन्ट्रैक्ट लेटर में बॉन्ड की शर्तों को और अधिक मजबूत, स्पष्ट और कानूनी भाषा में शामिल किया जाए। कंपनियां अब यह सुनिश्चित करेंगी कि ट्रेनिंग के दौरान किए गए खर्च का पूरा लेखा-जोखा मौजूद हो, ताकि यदि मामला अदालत तक पहुंचे तो उन्हें अपनी बात साबित करने में कठिनाई न हो। यह एक नई कॉर्पोरेट नियामक व्यवस्था की शुरुआत हो सकती है।
एक तरफ यह फैसला उन कंपनियों को राहत देता है जो लंबे समय से टैलेंट रिटेंशन की समस्या से जूझ रही थीं, वहीं दूसरी तरफ यह कर्मचारियों को भी एक संदेश देता है—कि अब हर जॉब स्विच करने का फैसला केवल करियर ग्रोथ के नाम पर नहीं हो सकता। उन्हें अपने निर्णयों की जिम्मेदारी लेनी होगी, और अपने अनुबंधों को गंभीरता से समझना और निभाना होगा। यह कार्यस्थल पर अनुशासन और परिपक्वता लाने की दिशा में एक आवश्यक पहल है।
आखिर में यह कहा जा सकता है कि यह फैसला भारत के कॉर्पोरेट और रोजगार क्षेत्र में एक नई व्यवस्था की नींव रखता है। जहां एक ओर कर्मचारी की स्वतंत्रता को महत्व दिया जाएगा, वहीं कंपनियों के हितों की भी रक्षा होगी। अब ज़रूरत है कि कंपनियां भी इस नए संतुलन को समझें और बॉन्ड की शर्तों को पारदर्शी और न्यायसंगत बनाएँ। साथ ही कर्मचारियों को भी यह समझना होगा कि ट्रेनिंग सिर्फ एक सुविधा नहीं, बल्कि एक Investment है—और हर Investment का एक मूल्य होता है। यह न्यायिक निर्णय अब उस दिशा में पहला, लेकिन बेहद ठोस कदम बन चुका है।
Conclusion
अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।
GRT Business विभिन्न समाचार एजेंसियों, जनमत और सार्वजनिक स्रोतों से जानकारी लेकर आपके लिए सटीक और सत्यापित कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। हालांकि, किसी भी त्रुटि या विवाद के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। हमारा उद्देश्य आपके ज्ञान को बढ़ाना और आपको सही तथ्यों से अवगत कराना है।
अधिक जानकारी के लिए आप हमारे GRT Business Youtube चैनल पर भी विजिट कर सकते हैं। धन्यवाद!”