एक सैन्य शिविर के बीचों-बीच, जहां धूल उड़ती है, जवान बूटों की आवाज़ से ज़मीन थरथराती है, और हर दिशा में सिर्फ अनुशासन का सन्नाटा पसरा है—वहां एक महिला अधिकारी अपनी फौज के सामने खड़ी होती है। उसकी आंखों में आत्मविश्वास, आवाज़ में गर्जना और वर्दी पर लगे सितारों में इतिहास की चमक होती है। वो न कोई रानी है, न कोई फिल्मी हीरोइन—वो है भारत की सच्ची नायिका।
वो है लेफ्टिनेंट कर्नल Sophia Qureshi। एक ऐसा नाम, जिसने भारतीय सेना में महिलाओं के लिए वो दरवाजे खोले, जिन पर पहले ‘केवल पुरुष’ की अदृश्य तख्ती लटकती थी। जब दुनिया सोचती थी कि युद्ध सिर्फ पुरुषों का काम है, तब Sophia Qureshi ने अपनी कमांड में 18 देशों की सैन्य टुकड़ियों के सामने परेड करवाकर यह मिथक तोड़ डाला। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
लेफ्टिनेंट कर्नल Sophia Qureshi की यह यात्रा किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं लगती—लेकिन यह सच्ची है, और इसमें संघर्ष, तपस्या, समर्पण और राष्ट्रभक्ति का वो तेज़ है, जिसे शब्दों में बांधना कठिन है। महज़ 35 वर्ष की उम्र में उन्होंने वो मुकाम हासिल कर लिया, जिसे पाने में कई अधिकारियों को दशकों लग जाते हैं। मार्च 2016 में आयोजित भारत के सबसे बड़े बहुराष्ट्रीय सैन्य अभ्यास ‘एक्सरसाइज फोर्स 18’ में उन्होंने 40 भारतीय सैनिकों की टुकड़ी का नेतृत्व किया। यह न केवल भारत के लिए गौरव का विषय था, बल्कि वैश्विक सैन्य परिदृश्य में यह पहली बार था जब किसी महिला अधिकारी ने एक बहुराष्ट्रीय सेना की यूनिट का नेतृत्व किया।
यह अभ्यास सिर्फ एक सामान्य ड्रिल नहीं था। इसमें ASEAN के सभी सदस्य देशों के अलावा अमेरिका, रूस, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, कोरिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों की सेनाएं शामिल थीं। कुल 18 देशों की टुकड़ियों ने भाग लिया और इस पूरी संरचना में सिर्फ एक महिला थी, जिसने एक टुकड़ी की कमान संभाली—वो थीं Sophia Qureshi। भारत ने उनके ज़रिए दुनिया को ये संदेश दिया कि उसकी बेटियां अब सिर्फ घरों की रक्षक नहीं, बल्कि सीमा की सेनापति भी हैं।
लेकिन Sophia Qureshi की यह ऊंचाई यूं ही नहीं आई। वह वडोदरा, गुजरात के एक सैन्य परिवार से आती हैं। 1981 में जन्मी Sophia Qureshi ने अपनी शुरुआती पढ़ाई के बाद बायोकैमिस्ट्री में Graduate की डिग्री ली। विज्ञान की गहराई में उतरने वाली यह लड़की अचानक वर्दी के सपने क्यों देखने लगी? क्योंकि उनके खून में देशभक्ति बहती थी। उनके दादा भी भारतीय सेना में रह चुके थे। परिवार में अनुशासन, कर्तव्य और राष्ट्रसेवा का जो बीज बचपन में बोया गया था, वह युवावस्था तक आते-आते वटवृक्ष बन चुका था।
Sophia Qureshi ने 1999 में चेन्नई स्थित ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी से सेना में प्रशिक्षण लिया। जब पहली बार उन्होंने वर्दी पहनी होगी, तो शायद उनके आस-पास खड़े लोगों को भी अंदाज़ा नहीं रहा होगा कि यह वही वर्दी है, जो एक दिन भारत का इतिहास रचेगी। सेना में दाखिल होने के बाद उन्होंने हर क्षेत्र में खुद को साबित किया। उनकी तकनीकी क्षमता, लीडरशिप स्किल्स और अद्वितीय समझ ने जल्द ही उन्हें सिग्नल कोर में एक भरोसेमंद अधिकारी बना दिया।
साल 2006 में जब संयुक्त राष्ट्र ने कांगो में शांति स्थापना मिशन के लिए विश्व भर से सैनिकों की मांग की, तब भारत ने अपने सबसे विश्वसनीय military observer के रूप में Sophia Qureshi को भेजा। कांगो का माहौल आसान नहीं था—राजनीतिक अस्थिरता, जनसंहार और सीमित संसाधनों के बीच Sophia Qureshi ने न केवल ज़िम्मेदारियों को निभाया, बल्कि भारत का गौरव भी बढ़ाया। उन्होंने एक बार फिर सिद्ध किया कि जब बात विश्व शांति की हो, तो भारत की बेटी अग्रिम पंक्ति में खड़ी होती है।
उनकी सेवाओं की गुणवत्ता इतनी बेहतरीन रही कि साल 2020 में जब सुप्रीम कोर्ट ने, भारतीय सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया, तो उसमें खासतौर पर लेफ्टिनेंट कर्नल Sophia Qureshi का नाम लिया गया। कोर्ट ने कहा कि ऐसे अधिकारी भारतीय सेना में महिलाओं की भूमिका को मजबूती देते हैं और यह उदाहरण समाज को नई दिशा देने में सक्षम हैं।
सैन्य अभियानों में उनकी भागीदारी की बात करें तो ‘ऑपरेशन पराक्रम’ का नाम सबसे पहले आता है। यह ऑपरेशन 2001 में संसद पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान के साथ बढ़े तनाव के बीच शुरू किया गया था। इस दौरान Sophia Qureshi ने पंजाब बॉर्डर पर तैनात होकर युद्ध की तैयारियों में अहम भूमिका निभाई। उनके साहसिक योगदान के लिए उन्हें जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ की ओर से कमेंडेशन कार्ड प्रदान किया गया—जो सेना में बहादुरी और उत्कृष्ट कार्य के लिए मिलने वाला बड़ा सम्मान है।
पूर्वोत्तर भारत में जब भीषण बाढ़ आई, तब संचार व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी थी। ऐसी परिस्थिति में लेफ्टिनेंट कर्नल Sophia Qureshi ने तत्कालिक निर्णय क्षमता और तकनीकी ज्ञान का प्रयोग करते हुए संचार को फिर से चालू किया। उनके इस कार्य को मान्यता देते हुए उन्हें सिग्नल ऑफिसर इन चीफ की ओर से सम्मान पत्र प्रदान किया गया। यह दर्शाता है कि चाहे युद्ध का मैदान हो या प्राकृतिक आपदा—Sophia Qureshi ने हर परिस्थिति में अपना शत-प्रतिशत दिया।
Sophia Qureshi का व्यक्तिगत जीवन भी उतना ही अनुशासित और प्रेरणादायक है। उनकी शादी भारतीय सेना के ही एक अधिकारी मेजर ताजुद्दीन कुरैशी से हुई है, जो मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री में सेवा दे चुके हैं। जब दोनों पति-पत्नी एक ही लक्ष्य के लिए—देश की सेवा—के लिए जीवन समर्पित करते हैं, तो उनका जीवन केवल वैवाहिक रिश्ता नहीं, बल्कि राष्ट्रीय कर्तव्य की साझेदारी बन जाता है।
2010 से वह लगातार संयुक्त राष्ट्र और भारत सरकार के पीसकीपिंग मिशनों में सक्रिय रही हैं। उन्हें (Humanitarian Mine Action) से जुड़े अभियानों में भी प्रशिक्षित किया गया। भारत की ओर से ऐसे अभियानों में शामिल होना यह दर्शाता है कि हमारा देश सिर्फ युद्ध में ही नहीं, शांति में भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है—और उसमें लेफ्टिनेंट कर्नल Sophia Qureshi जैसे अधिकारी भारत का चेहरा बनते हैं।
वह सेना में सिर्फ एक अधिकारी नहीं हैं, बल्कि एक विचार हैं—जो ये बताते हैं कि महिलाएं न केवल बराबरी की हकदार हैं, बल्कि नेतृत्व की भी। उनका जीवन आज देशभर की लड़कियों के लिए उदाहरण बन चुका है। वो लड़कियां जो सोचती थीं कि सेना सिर्फ पुरुषों की जगह है—अब उन्हें लगता है कि अगर Sophia Qureshi कर सकती हैं, तो हम क्यों नहीं?
भारत की रक्षा नीति, सामाजिक सोच और सैन्य रणनीति में Sophia Qureshi जैसे अधिकारियों का होना यह बताता है कि हम एक नए भारत की ओर बढ़ रहे हैं—जहां प्रतिभा का सम्मान लिंग के आधार पर नहीं, कार्य के आधार पर होता है। उनकी कहानी हर भारतीय को यह विश्वास देती है कि हमारे देश की सीमाएं अब और भी मज़बूत हैं—क्योंकि उन्हें सिर्फ मर्दों की नहीं, भारत की बेटियों की भी निगरानी प्राप्त है।
Conclusion
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