Share buyback क्या होता है? क्यों अपने ही शेयर खरीद लेती हैं कंपनियां? 2025

ज़रा सोचिए… आप शेयर बाज़ार में Investment करते हैं, आपके पास किसी नामी कंपनी के शेयर हैं। अचानक एक दिन न्यूज़ आती है कि वही कंपनी, जिसके शेयर आपके पास हैं, अब उन शेयरों को खुद ही वापस खरीदना चाहती है। आपके दिमाग़ में सबसे पहला सवाल यही आता है—“अरे भई, ये कंपनी अपने ही शेयर क्यों खरीद रही है? क्या इसके पीछे कोई गुप्त कारण है?

या फिर ये हमारे लिए किसी बड़े मुनाफ़े का संकेत है?” यह कहानी किसी रहस्य की तरह लगती है, लेकिन असल में यह है Share buyback की दुनिया—जहाँ कंपनियां अपने ही शेयरों को दोबारा खरीदकर बाजार और Investors को कई तरह के संदेश देती हैं। यह सिर्फ वित्तीय प्रक्रिया नहीं है, बल्कि भरोसे और रणनीति का खेल है।

भारत की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी Infosys ने हाल ही में बाज़ार में हलचल मचाते हुए, अपना अब तक का सबसे बड़ा Share buyback ऑफर घोषित किया। तारीख़ थी 12 सितंबर। जैसे ही ये ऐलान हुआ, Investors और विश्लेषकों की नज़रें Infosys पर टिक गईं। हर कोई सोचने लगा कि आखिर इतनी बड़ी कंपनी अपने ही शेयरों को वापस क्यों खरीद रही है।

कुछ लोगों ने इसे आत्मविश्वास का संकेत बताया, तो कुछ ने सोचा कि शायद कंपनी के पास इतने ज़्यादा पैसे हैं कि अब वह उन्हें कहीं और खर्च करने के बजाय Share buyback पर लगा रही है। आम Investors के मन में भी उत्सुकता बढ़ गई कि क्या इससे उन्हें सीधा फायदा होगा या यह सिर्फ़ कंपनी की चाल है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

सबसे पहले समझते हैं कि बायबैक होता क्या है। ज़रा कल्पना कीजिए—आपने कोई अनमोल कलाकृति बनाई हो और बाद में वो किसी नीलामी में बिक जाए। लेकिन कुछ साल बाद आपको एहसास हो कि वह कलाकृति जितनी कीमत में बिकी थी, उससे कहीं ज़्यादा मूल्यवान है। तब आप उसे वापस खरीदना चाहेंगे, है ना? Share buyback भी बिल्कुल ऐसा ही है। कंपनी को लगता है कि उसके शेयर इस समय जितने भाव पर बाज़ार में बिक रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा कीमती हैं। इसलिए वह उन्हें वापस खरीद लेती है। यह कंपनी का अपनी ही क़ाबिलियत पर भरोसा होता है।

Share buyback के दो तरीके होते हैं। पहला—ओपन मार्केट से सीधे खरीदना। यानी कंपनी शेयर बाज़ार में जाकर अपने ही शेयर खरीद ले। दूसरा तरीका—टेंडर ऑफर। इसमें कंपनी एक तय समय देती है और कहती है कि जिन Investors को अपने शेयर बेचना हैं, वे हमें बेच दें। इस ऑफर में अक्सर कंपनी बाजार की मौजूदा कीमत से ज्यादा दाम देती है। इसका फायदा सीधे Investors को मिलता है। यानी अगर आपके पास उस कंपनी के शेयर हैं और आप उन्हें बायबैक ऑफर में बेचते हैं, तो आपको मार्केट प्राइस से ज्यादा पैसे मिल सकते हैं।

अब सवाल उठता है कि आखिर कंपनी को अपने ही शेयर वापस खरीदने की ज़रूरत क्यों पड़ती है। इसके पीछे कई अहम कारण होते हैं। पहला कारण—कंपनी के पास बहुत ज़्यादा कैश पड़ा हो लेकिन Investment करने के लिए अच्छे प्रोजेक्ट न हों। मान लीजिए Infosys जैसी कंपनी ने इतना पैसा कमा लिया है कि उसके पास हज़ारों करोड़ रुपये जमा हैं। लेकिन फिलहाल उसे कोई ऐसा प्रोजेक्ट नहीं मिल रहा जिसमें वह यह पैसा Investment करके अच्छा रिटर्न कमा सके। ऐसे में वह अपने Investors को खुश करने और उस पैसे का सही इस्तेमाल करने के लिए बायबैक करती है।

दूसरा कारण टैक्स से जुड़ा है। भारत में अगर कंपनियां अपने Investors को डिविडेंड देती हैं, तो उस पर कई तरह के टैक्स लगते हैं—कंपनी पर भी, Investor पर भी। लेकिन अगर वही कंपनी बायबैक करती है, तो टैक्स का बोझ अपेक्षाकृत कम होता है। यानी कंपनी और Investor दोनों के लिए यह एक तरह से टैक्स-इफिशिएंट तरीका बन जाता है। इसी वजह से कई बड़ी कंपनियां डिविडेंड देने के बजाय Share buyback करना पसंद करती हैं।

तीसरा कारण—कंपनी अपना नियंत्रण बनाए रखना चाहती है। सोचिए, अगर किसी कंपनी में बहुत सारे छोटे-छोटे Investor आ जाते हैं, तो हर फैसले पर बहुत बहस होने लगती है। कभी-कभी बड़े फैसले लेने में दिक्कत भी आती है। ऐसे में कंपनी अपने ही शेयर खरीदकर बाज़ार में उपलब्ध कुल शेयरों की संख्या घटा देती है। इससे बोर्ड के पास ज्यादा वोटिंग पावर बनी रहती है और कंपनी अपने फैसलों पर बेहतर नियंत्रण रख पाती है।

चौथा कारण—कंपनी को लगता है कि उसके शेयर अंडरवैल्यूड हैं। यानी बाज़ार उसकी असली कीमत को नहीं पहचान रहा। उदाहरण के लिए, अगर किसी कंपनी की असली वैल्यू 2,000 रुपये प्रति शेयर है लेकिन वह इस समय बाजार में सिर्फ 1,500 रुपये पर ट्रेड कर रहा है, तो कंपनी बायबैक करती है। इससे बाजार को संदेश मिलता है कि कंपनी को अपने भविष्य पर भरोसा है, और उसे लगता है कि उसके शेयर की असली कीमत और ऊपर जाएगी।

पाँचवां कारण—Investors को रिवार्ड देना। जैसे कंपनियां डिविडेंड देकर Investors को खुश करती हैं, वैसे ही बायबैक भी एक तरीका है। जब कंपनी शेयर वापस खरीदती है, तो उसकी मांग बढ़ जाती है और अक्सर शेयर का दाम ऊपर चला जाता है। इसका फायदा लंबे समय में भी Investors को मिलता है।

अब बात करते हैं Share buyback के असर की। इसका सबसे बड़ा असर E P S यानी Earnings Per Share पर पड़ता है। जब कंपनी शेयरों की संख्या घटा देती है, तो उसका मुनाफा कम शेयरों में बंटता है। नतीजा यह होता है कि E P S बढ़ जाता है। Investors के लिए यह एक अच्छा संकेत है, क्योंकि E P S बढ़ना मतलब कंपनी हर शेयर पर ज्यादा कमा रही है।

दूसरा असर बैलेंस शीट पर पड़ता है। बायबैक के बाद कंपनी के पास जो नकद पैसा था, वह घट जाता है। यानी उसके कुल एसेट्स कम हो जाते हैं और शेयरहोल्डर्स की इक्विटी भी घट जाती है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इससे R O E (Return on Equity) और R O A (Return on Assets) जैसे रेशियो अक्सर बेहतर दिखने लगते हैं। यही वजह है कि कंपनियां कई बार सिर्फ अपनी वित्तीय स्थिति को मज़बूत दिखाने के लिए भी बायबैक करती हैं।

Share buyback का असर कंपनी की इमेज पर भी पड़ता है। जब कोई कंपनी अपने शेयर वापस खरीदती है, तो यह संकेत होता है कि उसे अपने भविष्य पर भरोसा है। यह Investors के लिए भी एक सकारात्मक संदेश होता है। यही कारण है कि कई बार बायबैक की घोषणा होते ही कंपनी के शेयर की कीमत बढ़ जाती है।

अगर हम इतिहास पर नज़र डालें, तो भारत में Infosys, TCS, Wipro और HCL Technologies जैसी कंपनियों ने कई बार बायबैक किए हैं। 2017 में TCS ने करीब 16,000 करोड़ का बायबैक किया था। वहीं अमेरिका में Apple और Microsoft जैसी कंपनियों ने तो अरबों डॉलर के बायबैक किए हैं। Apple ने तो 2022 में 90 बिलियन डॉलर का बायबैक प्रोग्राम घोषित किया था। यह अब तक की सबसे बड़ी बायबैक घोषणाओं में से एक थी। इन उदाहरणों से साफ़ है कि बायबैक केवल भारतीय कंपनियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक रणनीति है।

लेकिन Investors के लिए एक चेतावनी भी है। बायबैक हमेशा पॉजिटिव संकेत नहीं होता। कई बार कंपनियां गिरते हुए शेयर दाम को रोकने के लिए भी यह कदम उठाती हैं। यानी Investors के भरोसे को बनाए रखने के लिए। यह एक मनोवैज्ञानिक खेल भी है। जब लोग देखते हैं कि कंपनी खुद अपने शेयर खरीद रही है, तो उन्हें लगता है कि कंपनी के पास कोई बड़ी योजना है। चाहे वह नया प्रोडक्ट लॉन्च करना हो, किसी दूसरी कंपनी का अधिग्रहण करना हो या अपने बिजनेस को तेजी से बढ़ाना हो।

अब सवाल है कि आम Investor क्या करें। अगर आपके पास उस कंपनी के शेयर हैं, तो बायबैक ऑफर आपके लिए तुरंत मुनाफ़ा कमाने का मौका हो सकता है। क्योंकि आपको बाजार कीमत से ज्यादा दाम मिलेंगे। लेकिन अगर आप लंबे समय के Investor हैं, तो हो सकता है आप अपने शेयर न बेचें। क्योंकि अगर कंपनी खुद को इतना मजबूत मान रही है, तो भविष्य में उसके शेयर और भी महंगे हो सकते हैं।

Share buyback हमें यह भी सिखाता है कि किसी कंपनी की असली ताकत सिर्फ उसके प्रोडक्ट्स में नहीं, बल्कि उसके वित्तीय फैसलों में भी होती है। Infosys जैसी कंपनियां जब बायबैक करती हैं, तो यह केवल पैसे खर्च करना नहीं होता, बल्कि यह अपने भविष्य पर भरोसा जताने का तरीका होता है।

इसलिए अगली बार जब आप सुनें कि कोई कंपनी बायबैक कर रही है, तो इसे सिर्फ़ एक लेन-देन न समझें। इसे कंपनी की आत्मविश्वास भरी घोषणा समझें, उसके भविष्य की योजनाओं का संकेत समझें और एक ऐसा मौका मानें जिससे आप भी अपनी Investment रणनीति को बेहतर बना सकते हैं।

Conclusion

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