Sawan Monday बना जीवन बदलने का वरदान! जानिए शिव कृपा, व्रत और आस्था की चमत्कारी कहानी। 2025

कल्पना कीजिए, सुबह चार बजे का समय हो… वातावरण में शांति ऐसी कि सिर्फ मंदिर की घंटियों की आवाज़ सुनाई दे… और आप नंगे पांव, हाथ में पूजा की थाली लेकर, मंदिर की ओर बढ़ रहे हों। ठंडी हवा शरीर से टकरा रही हो, पर आपके मन में बस एक ही भाव हो—श्रद्धा। ये भाव कोई सामान्य नहीं… ये भाव है भगवान शिव के प्रति अगाध प्रेम का।

और यही प्रेम बन जाता है Sawan सोमवार का व्रत, जो न सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि आत्मा को छू लेने वाला अनुभव भी। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है—लाखों लोग हर साल Sawan में सोमवार का व्रत क्यों रखते हैं? आखिर भगवान शिव को ये दिन इतना प्रिय क्यों है? क्या सिर्फ आस्था ही वजह है… या इसके पीछे कोई गहरी आध्यात्मिक शक्ति छिपी है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

हर साल जैसे ही जुलाई का महीना आता है, भारत के कोने-कोने में शिवालयों में रौनक दिखने लगती है। भक्तों की कतारें बढ़ने लगती हैं, आवाज़ें गूंजने लगती हैं—“हर हर महादेव!”। और इस बार, साल 2025 में, ये पावन महीना 14 जुलाई से शुरू हो चुका है। Sawan सोमवार का ये पर्व केवल एक व्रत भर नहीं, बल्कि शिव से आत्मिक जुड़ाव की एक गहरी प्रक्रिया है। इस दौरान लोग शिव मंदिरों में जाते हैं, रुद्राभिषेक करते हैं, बेल पत्र चढ़ाते हैं और पूरे दिन उपवास रखते हैं। यह वो समय होता है जब भक्त अपनी इच्छाओं को शिव के चरणों में अर्पित कर देते हैं, और बदले में पाते हैं मानसिक शांति, इच्छाओं की पूर्ति और आध्यात्मिक उन्नति।

Sawan का यह व्रत केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में बसे हिंदुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूके और दुबई तक—जहां भी भारतीय बसे हैं, वहां Sawan की घंटियां बजती हैं। कई लोग अपने घरों को ही शिवालय बना देते हैं। खास बात ये है कि इस व्रत को सिर्फ महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी बड़ी श्रद्धा से करते हैं। कुछ लोग संतान की कामना से, कुछ अपने विवाह की सफलता के लिए, तो कुछ आत्मिक शुद्धि और मोक्ष के लिए इस व्रत को करते हैं।

लेकिन क्या आपको पता है कि ये व्रत कब से शुरू होता है और किन राज्यों में इसकी शुरुआत की तिथियां अलग-अलग होती हैं? दरअसल, भारत के अलग-अलग हिस्सों में Sawan की शुरुआत भिन्न पंचांगों के अनुसार होती है। उत्तर भारत के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, पंजाब, राजस्थान, हिमाचल और उत्तराखंड में Sawan इस साल 11 जुलाई से शुरू हुआ है, और पहला सोमवार का व्रत 14 जुलाई को पड़ा। जबकि महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में सावन की शुरुआत 25 जुलाई से मानी जाती है, और वहाँ पहला व्रत 28 जुलाई को रखा जाएगा। नेपाल और हिमाचल के कुछ क्षेत्रों में ये 16 जुलाई से शुरू हुआ है।

अब बात करते हैं सोलह सोमवार के उस गूढ़ व्रत की, जिसे निभाना हर किसी के लिए आसान नहीं होता। एक ओर ये व्रत भक्तों को मानसिक रूप से मजबूत बनाता है, वहीं दूसरी ओर यह शरीर को भी अनुशासित करता है। इस व्रत में अनुशासन का बहुत महत्व है। सुबह जल्दी उठना, स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करना, मंदिर जाना, शिवलिंग पर पंचामृत से अभिषेक करना, बेल पत्र चढ़ाना, मंत्रों का 108 बार जाप करना और फिर सोलह सोमवार व्रत की कथा सुनना—ये सारी विधियां भक्त की आंतरिक ऊर्जा को सक्रिय करती हैं।

रोज़मर्रा की भागदौड़ में अक्सर हम अपने शरीर और आत्मा की सुन नहीं पाते। लेकिन इस व्रत के दौरान, उपवास के साथ-साथ ध्यान, जाप और नियमों के पालन से आत्मिक शुद्धि होती है। खासकर तब जब भक्त रुद्राभिषेक करते हैं—गंगाजल, दूध, दही, शहद और घी से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं—तो सिर्फ जल नहीं, अपने भीतर की नकारात्मकता भी भगवान शिव को सौंपते हैं।

व्रत के दौरान आहार भी पूरी तरह सात्विक रखा जाता है। कुछ भक्त दिनभर केवल फल, दूध और पानी पर रहते हैं। अन्य लोग केवल एक बार फलाहार या साबूदाना, सिंघाड़े के आटे से बनी चीजें खाते हैं। प्याज, लहसुन, चाय, कॉफी, मांसाहार और शराब जैसी चीजें पूरी तरह वर्जित होती हैं। यहां तक कि टेबल सॉल्ट यानी सामान्य नमक की जगह सेंधा नमक का प्रयोग होता है। ये नियम केवल शरीर को नहीं, मन और आत्मा को भी शुद्ध करने के लिए बनाए गए हैं।

इस दौरान सबसे बड़ी बात होती है संयम। सिर्फ भोजन में नहीं, विचारों में भी। Sawan के व्रत में कई लोग मौन व्रत भी लेते हैं, कुछ लोग क्रोध पर नियंत्रण रखते हैं, कुछ अनावश्यक सोशल मीडिया या व्यर्थ की बातचीत से दूरी बना लेते हैं। यह एक आत्मानुशासन की प्रक्रिया होती है, जो धीरे-धीरे इंसान को अंदर से बदल देती है।

लेकिन सिर्फ नियम ही क्यों? क्या ये सब भगवान को प्रसन्न करने के लिए होता है? या फिर खुद को जानने का एक तरीका है? जवाब दोनों में छुपा है। शिव, जो योगेश्वर हैं, जो ध्यानमग्न होकर कैलाश पर विराजते हैं—उन्हें प्रसन्न करने का अर्थ है अपने भीतर के शिव को जगाना। और यही व्रत की असली साधना है। जब आप हर सोमवार को नियमपूर्वक उपवास करते हैं, जब आप शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं, तब आप केवल पूजा नहीं कर रहे होते—आप अपने भीतर की ऊर्जा को दिशा दे रहे होते हैं।

सोलह सोमवार व्रत की एक कथा है, जो उत्तर भारत में बेहद लोकप्रिय है। इस कथा में एक कन्या सोलह सोमवार का व्रत करती है और भगवान शिव की कृपा से उसका विवाह एक राजकुमार से हो जाता है। पर कहानी यहीं नहीं रुकती। उस कन्या की परीक्षा तब शुरू होती है जब उसकी सास उसे घर से निकाल देती है, लेकिन वह हार नहीं मानती। वह अपनी आस्था पर कायम रहती है, और अंततः भगवान शिव उसकी सारी बाधाएं दूर करते हैं। यह कहानी बताती है कि आस्था और धैर्य का कोई विकल्प नहीं।

आज भी कई महिलाएं और पुरुष अपने जीवन के कठिन समय में सोलह सोमवार व्रत को सहारा बनाते हैं। वे जानते हैं कि यह सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं, यह एक भावनात्मक शक्ति है, जो आपको टूटने नहीं देती, डगमगाने नहीं देती।

शास्त्रों के अनुसार Sawan भगवान शिव का प्रिय महीना इसलिए भी माना जाता है क्योंकि यही वह समय था जब समुद्र मंथन हुआ था और शिव ने विष का पान करके संसार की रक्षा की थी। इसलिए Sawan में भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों की सारी बाधाएं दूर होती हैं, कष्ट मिटते हैं और जीवन में स्थिरता आती है। जब शिव ने विष पीकर उसे कंठ में रोक लिया, तब वे नीलकंठ कहलाए। इस कथा का प्रतीक ये है कि जीवन के विष को अपने भीतर रोकना, उसे बाहर न फैलने देना, वही सच्ची तपस्या है।

Sawan का यह महीना केवल तीज-त्योहारों और व्रतों का नहीं, यह एक यात्रा है—अपने भीतर उतरने की। हर सोमवार को जब मंदिरों में घंटे बजते हैं, जब लोग “ओम नमः शिवाय” का जाप करते हैं, जब शिवलिंग पर दूध बहता है, तब वह केवल परंपरा नहीं निभा रहे होते—वे उस ऊर्जा से जुड़ रहे होते हैं जो सृष्टि का मूल है।

यह व्रत किसी मजबूरी में नहीं किया जाता, बल्कि इसे श्रद्धा से अपनाया जाता है। यही कारण है कि आज के आधुनिक समय में भी युवा वर्ग इसका पालन करता है। कॉलेज जाने वाले छात्र, ऑफिस में काम करने वाले प्रोफेशनल्स—हर वर्ग के लोग इस व्रत से जुड़ते हैं। उन्हें लगता है कि शायद इस भागदौड़ में यह व्रत ही वो एकमात्र मौका है जब वे खुद से मिल सकते हैं।

और शायद यही इस व्रत की सबसे बड़ी सुंदरता है—यह आपको शिव से नहीं, खुद से जोड़ता है। शिव बाहर नहीं, भीतर हैं। और जब आप सोलह सोमवार व्रत करते हैं, तो आप अपने भीतर के शिव को खोजने लगते हैं।

तो अगर आप इस बार Sawan सोमवार का व्रत कर रहे हैं या करने की सोच रहे हैं—तो यह मत सोचिए कि यह केवल एक पूजा है। यह एक अनुभव है, एक यात्रा है, और एक अवसर है खुद को शुद्ध करने का, खुद को जानने का, और अंत में—खुद को शिव बनाने का।

Conclusion

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