क्या कोई प्रधानमंत्री, जिसने कुछ समय पहले ही एक महाशक्ति देश की बागडोर संभाली हो, अचानक कॉरपोरेट दुनिया में एक बार फिर जूनियर की तरह नौकरी शुरू करेगा? सोचिए… वो शख्स जिसने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बड़े-बड़े फैसले लिए, अब कॉन्फ्रेंस रूम में बैठकर सलाह देने वाला बनने जा रहा है।
ये कहानी है ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री Rishi Sunak की, जो अब राजनीति छोड़कर वॉल स्ट्रीट की दुनिया में दोबारा वापसी कर रहे हैं—और वो भी किसी छोटी-मोटी कंपनी में नहीं, बल्कि गोल्डमैन सैक्स जैसी दुनिया की सबसे बड़ी फाइनेंशियल संस्था में। यह फैसला सिर्फ करियर ट्रांजिशन नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि कैसे सत्ता का शिखर छूने वाला व्यक्ति फिर से ज़मीन से शुरू करने का हौसला रखता है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
Rishi Sunak, जिन्होंने अक्टूबर 2022 से जुलाई 2024 तक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता संभाली, अब एक बार फिर कॉर्पोरेट गलियारों में कदम रख रहे हैं। 2024 के आम चुनाव में उनकी पार्टी की ऐतिहासिक हार के बाद, उन्होंने प्रधानमंत्री पद और कंजरवेटिव पार्टी के नेता के रूप में इस्तीफा दे दिया था।
उस हार ने उन्हें राजनीतिक पटल से भले ही पीछे धकेल दिया, लेकिन उनके भीतर की महत्वाकांक्षा को शांत नहीं किया। राजनीति से अलग होते ही उन्होंने खुद को एक नए रूप में ढालना शुरू कर दिया। अब वह न केवल कॉर्पोरेट जगत में सक्रिय होंगे, बल्कि अपनी पुरानी क्षमताओं और संपर्कों का इस्तेमाल करके वहां भी अपनी अलग छाप छोड़ना चाहेंगे।
ये एक तरह से Rishi Sunak के लिए ‘घर वापसी’ भी है। क्योंकि उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 2001 में इसी गोल्डमैन सैक्स से की थी, जब वे एक समर इंटर्न और फिर जूनियर एनालिस्ट हुआ करते थे। अब दो दशक बाद, जब वे दुनिया की राजनीति की ऊंचाइयों को छूकर लौटे हैं, वही कंपनी उन्हें अपने नेतृत्व और ग्राहकों को आर्थिक और Geopolitical सलाह देने के लिए लेकर आ रही है। एक तरह से यह शुरुआत और परिपक्वता का विलय है, जिसमें उनका अनुभव अब केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि वह नीतियों को भी दिशा देगा।
गोल्डमैन सैक्स के सीईओ डेविड सोलोमन ने खुद यह जानकारी दी कि वे ऋषि को कंपनी में पाकर बेहद उत्साहित हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ऋषि अब दुनिया भर में कंपनी के लोगों के साथ मिलेंगे, सीखने-सिखाने की संस्कृति में योगदान देंगे और ग्राहकों को गहराई से समझ आने वाले Geopolitical और आर्थिक सलाह देंगे। यानी, उनका रोल केवल एक डेस्क तक सीमित नहीं होगा, बल्कि उनकी मौजूदगी ग्लोबल लेवल पर महसूस की जाएगी। ऋषि सुनक अब डेटा एनालिसिस से कहीं आगे बढ़ चुके हैं—वे अब रणनीतिक दिशा तय करने वाले व्यक्तित्व बन चुके हैं।
लेकिन ये सिर्फ करियर ट्रांजिशन नहीं है—ये एक बहुत बड़ी प्रतीकात्मक कहानी भी है। एक प्रधानमंत्री, जिसे एक वक्त दुनिया के सबसे युवा नेताओं में गिना जाता था, अब फिर से कॉरपोरेट दुनिया में वापस लौट रहा है। वो भी तब जब राजनीति में उनकी पार्टी के लिए सब कुछ उल्टा हो चुका है। 2019 में जिन कंजरवेटिव्स ने 365 सीटों के साथ संसद में बड़ी जीत दर्ज की थी, वे 2024 में सिर्फ 121 सीटों पर सिमट गए। पार्टी का ये एक सदी का सबसे खराब प्रदर्शन रहा। और सुनक को इसके लिए राजनीतिक ज़िम्मेदारी लेनी पड़ी। उनका ये ट्रांजिशन यह भी दर्शाता है कि असफलता के बाद भी नई दिशा संभव है।
अब ऐसे में जब उन्होंने राजनीति से दूरी बनाई, तो सबकी नजर इस पर थी कि अब वो क्या करेंगे। कई लोगों को लगा था कि वो कुछ सालों तक गुमनाम रहेंगे। लेकिन सुनक ने एक बार फिर चौंकाया। उन्होंने न सिर्फ गोल्डमैन सैक्स जैसी फर्म में शामिल होने का फैसला लिया, बल्कि ऑक्सफोर्ड और स्टैनफोर्ड जैसी विश्वप्रसिद्ध यूनिवर्सिटीज़ में भी अपनी भूमिका स्वीकार की। यह इंगित करता है कि उनका उद्देश्य केवल पैसे कमाना नहीं है, बल्कि उनका लक्ष्य वैश्विक नीतियों और शिक्षा में सकारात्मक भूमिका निभाना है।
वो अब एक बैकबेंचर सांसद के रूप में ब्रिटिश संसद में बने रहेंगे, लेकिन उनका असली फोकस कॉरपोरेट और शिक्षण जगत में रहेगा। इससे ये भी साफ हो गया है कि वे अब अपनी अगली पारी राजनीति से बाहर खेलना चाहते हैं। वे अपनी पहचान को केवल प्रधानमंत्री के तौर पर सीमित नहीं रखना चाहते, बल्कि विश्व मंच पर एक बहुआयामी लीडर के रूप में स्थापित होना चाहते हैं।
ऋषि सुनक का ये कदम उनकी उस सोच को भी दर्शाता है, जिसमें वे नेतृत्व को सेवा से जोड़ते हैं। उन्होंने ये भी स्पष्ट किया है कि गोल्डमैन सैक्स से जो भी कमाई होगी, वो वे ‘रिचमंड प्रोजेक्ट’ नाम की एक चैरिटी को दान करेंगे, जिसे उन्होंने और उनकी पत्नी अक्षता मूर्ति ने स्थापित किया है। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य ब्रिटेन में बच्चों और युवाओं की न्यूमरेसी स्किल्स को बेहतर बनाना है। इसका अर्थ है कि वे अब भी समाज को कुछ लौटाने की भावना से प्रेरित हैं।
अब जब बात उनकी पत्नी अक्षता मूर्ति की आई है, तो ये बताना जरूरी है कि सुनक परिवार पहले से ही अरबों की संपत्ति का मालिक है। संडे टाइम्स रिच लिस्ट के अनुसार, सुनक और अक्षता की कुल संपत्ति करीब 64 करोड़ पाउंड है। अक्षता की संपत्ति का बड़ा हिस्सा इंफोसिस में उनकी हिस्सेदारी से आता है, जिसे उनके पिता और भारतीय आईटी इंडस्ट्री के पायनियर नारायण मूर्ति ने शुरू किया था। इस आर्थिक स्थिरता ने उन्हें वह आज़ादी दी है, जिससे वे अपने करियर निर्णय को स्वतंत्र रूप से ले सकते हैं।
तो सवाल उठता है—जब Rishi Sunak पहले से ही इतने अमीर हैं, तो फिर नौकरी क्यों? इसका जवाब शायद उनके अंदर छिपी ‘कर्म की भूख’ में है। वो सिर्फ आराम से बैठकर अपना समय काटने वाले नहीं हैं। चाहे वो संसद हो, यूनिवर्सिटी हो या वॉल स्ट्रीट, Rishi Sunak हर जगह खुद को सक्रिय और Relevant बनाए रखना चाहते हैं। वे उन लोगों में से हैं जो काम को पहचान मानते हैं, न कि केवल पद को।
लेकिन अब सवाल आता है—इस भूमिका के लिए उन्हें कितनी सैलरी मिलेगी? हालांकि गोल्डमैन सैक्स जैसी कंपनियां ऐसी सीनियर एडवाइजर पोस्ट की सैलरी सार्वजनिक नहीं करतीं, लेकिन कुछ उदाहरणों से अंदाज़ा लगाया जा सकता है। ब्रिटेन के ही पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने जेपी मॉर्गन में ऐसी ही भूमिका में करीब 25 लाख पाउंड सालाना कमाए थे। इसी तरह एलिस्टेयर डार्लिंग ने मॉर्गन स्टेनली में लाखों पाउंड की सैलरी ली थी। इससे यह तो तय है कि सुनक की सालाना कमाई भी करोड़ों में होगी—चाहे वो पाउंड हो या डॉलर में। उनकी मौजूदगी कंपनी के लिए न सिर्फ ज्ञान का स्रोत होगी बल्कि प्रतिष्ठा का भी।
ये नया अध्याय सुनक के लिए कई मायनों में खास है। ये उनकी कॉरपोरेट यात्रा का दूसरा अध्याय है, लेकिन इस बार अनुभव, संपर्क, और अंतरराष्ट्रीय छवि के साथ। अब वो किसी कंपनी के जूनियर एनालिस्ट नहीं, बल्कि एक ऐसा व्यक्ति हैं जिसने दुनिया की आर्थिक नीतियों को नजदीक से प्रभावित किया है। अब उनका असर बोर्डरूम मीटिंग्स में दिखेगा, जहां वो सिर्फ ग्राफ्स और रिपोर्ट्स नहीं, बल्कि रणनीति और नीति का नया चेहरा होंगे।
Conclusion
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