जब भारत युद्ध से उबर रहा था… एक नहीं, दो-दो जंगों की तबाही झेल चुका था। साल था 1965। एक ओर पाकिस्तान की गोलियां गूंज रही थीं, दूसरी ओर खेत सूख चुके थे, अनाज खत्म हो चुका था और लोग भूख की मार झेल रहे थे। उस समय भारत की हालत इतनी खराब थी कि दाने-दाने के लिए तरसना पड़ रहा था। और तब अमेरिका ने भी अपनी असली औकात दिखा दी। उसने भारत को राहत के नाम पर ऐसा गेहूं भेजा जिसे देखकर लोग भी सोच में पड़ गए—क्या ये इंसानों के खाने लायक है?
सड़ा हुआ, बदबूदार लाल गेहूं। वो वक्त था जब पूरा देश हिला हुआ था। लेकिन ऐसे संकट में, एक आवाज उठी… जिसने न सिर्फ देश को हौसला दिया, बल्कि कुछ लोगों की ज़िंदगी ही बदल डाली। वो आवाज थी लाल बहादुर शास्त्री की—‘जय जवान, जय किसान’। और उस नारे ने दिल्ली के एक युवा की सोच को झकझोर दिया। उसने ठान लिया कि अब वो अपने पुश्तैनी कपड़े के कारोबार को छोड़ देगा और किसानों के लिए कुछ करेगा। आज वही युवा RG Aggarwal के नाम से जाना जाता है—धानुका कंपनी का संस्थापक, और भारत के कृषि परिवर्तन का एक सशक्त चेहरा। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से पढ़ाई पूरी करने के बाद RG Aggarwal के सामने दो रास्ते थे। एक रास्ता जो उनके पूर्वजों ने चुना था—कपड़े का कारोबार। और दूसरा, एक नया, अनजाना रास्ता—जो न खेतों से परिचित था, न Pesticides से। लेकिन लाल बहादुर शास्त्री के उस एक नारे ने उनकी सोच की दिशा ही बदल दी। उन्होंने न सिर्फ अपने परिवार को चौंका दिया, बल्कि देश को भी दिखा दिया कि अगर इरादे सच्चे हों, तो बदलाव लाना मुश्किल नहीं होता।
वो बताते हैं कि उस समय सोमवार के दिन होटल और रेस्टोरेंट बंद रहते थे। लोग उपवास करते थे। यह शास्त्री जी की अपील का असर था। देश ने पहली बार देखा कि प्रधानमंत्री की एक भावनात्मक अपील पर करोड़ों लोग अपना एक वक्त का खाना छोड़ सकते हैं। RG Aggarwal भी इससे बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने घर पर घोषणा कर दी कि अब वह खेती-किसानी से जुड़ा कोई काम करेंगे। परिवार को लगा कि यह एक युवा की भावुकता है, जो वक्त के साथ ठंडी हो जाएगी। लेकिन आरजी ने ठान लिया था, और जब कोई व्यक्ति ठान ले, तो फिर कोई बाधा मायने नहीं रखती।
खेती-किसानी की ओर पहला कदम उठाते हुए उन्होंने सरकार की उस योजना का लाभ उठाया, जिसमें प्राइवेट सेक्टर को फर्टिलाइजर और Pesticides के क्षेत्र में उतरने की इजाज़त दी गई थी। लेकिन यह राह इतनी आसान नहीं थी। उत्तर भारत में लोग उस समय Chemical fertilizers और Pesticides से डरते थे। उन्हें लगता था कि इससे ज़मीन बंजर हो जाएगी। लेकिन दक्षिण भारत में किसानों की सोच अलग थी। उन्होंने रिस्क लिया, और नतीजा भी पाया—उपज डेढ़ से दो गुना तक बढ़ गई। यहीं से RG Aggarwal की यात्रा शुरू हुई।
हैदराबाद में पहला ऑफिस खोला गया। एक छोटा सा ऑफिस, कुछ कर्मचारियों के साथ एक बड़ा सपना। लेकिन यह सपना सिर्फ व्यापार का नहीं था, यह सपना था भारत को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाने का। साल 1974 में शुरू हुआ यह सफर, आज छः दशकों के बाद भी प्रेरणा देता है।
जब कारोबार थोड़ा बड़ा हुआ, तो उन्होंने गुड़गांव की उस फैक्ट्री पर नज़र डाली जो कभी 1960 में शुरू हुई थी, लेकिन घाटे में चलने के कारण बंद हो गई थी। 1980 में उन्होंने वह फैक्ट्री खरीद ली। यही वो टर्निंग पॉइंट था जहां से धानुका ग्रुप का औद्योगिक विस्तार शुरू हुआ। उस समय भारत में लाइसेंस राज चल रहा था। हर चीज़ के लिए सरकारी अनुमति लेनी पड़ती थी। Import duty 150 फीसदी तक था। विदेशी कंपनियों का एकाधिकार था। लेकिन आरजी ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने छोटे भाई को हैदराबाद ऑफिस की जिम्मेदारी दी और खुद दिल्ली लौट आए।
कोई भी बैंक उन्हें लोन देने को तैयार नहीं था। उन्हें प्राइवेट लोन लेना पड़ा, भारी ब्याज दरों पर। लेकिन उनका विश्वास डिगा नहीं। समय बदला, मेहनत रंग लाई। आज वही बैंक, जो उन्हें लोन देने से मना कर रहे थे, उनके ऑफिस के चक्कर काटते हैं।
1985 में उन्होंने पहली पब्लिक लिस्टेड कंपनी बनाई—धानुका पेस्टीसाइड्स लिमिटेड। यह कंपनी भारत के किसानों के लिए वरदान साबित हुई। उन्होंने बताया कि 1992 में उन्होंने अमेरिका की प्रसिद्ध कंपनी ड्यूपॉन्ट को भारत लाने का काम किया। चौथे ही साल में उनका एक उत्पाद 10 लाख लीटर की बिक्री तक पहुंच गया। यह एक रिकॉर्ड था। दुकानों पर किसानों की लाइनें लगती थीं। और यह सब उस समय हुआ जब भारत पहली बार Economic liberalization की ओर कदम बढ़ा रहा था।

लेकिन जितना आसान आज सुनने में लगता है, उतना आसान वह सफर नहीं था। शेयर मार्केट में जब उन्होंने एंट्री की, तो उनके शेयर की कीमत महज दो रुपए थी। लेकिन हाल ही में वह 1,800 रुपए तक पहुंच गई थी। उनकी कंपनी सिर्फ Pesticides तक सीमित नहीं रही। उन्होंने फार्मा सेक्टर में भी कदम रखा। मानेसर में एक यूनिट लगाई, और फिर चेन्नई की ऑर्किड फार्मा को टेकओवर किया। चार साल के अंदर कंपनी कर्ज मुक्त हो गई।
RG Aggarwal को जब भी किसानों की बात होती है, एक जिम्मेदारी का एहसास होता है। वो मानते हैं कि Pesticides का इस्तेमाल जरूरी है, लेकिन सही मात्रा और वैज्ञानिक पद्धति से। यही कारण है कि उनकी कंपनी ने दो कॉल सेंटर शुरू किए, जहां किसान कॉल करके experts से सलाह ले सकते हैं।
एक रोचक किस्सा उन्होंने ड्यूपॉन्ट से जुड़े Pesticide के बारे में भी बताया। एक अमेरिकन कैटरपिलर नाम का कीट था जो किसी भी Pesticide से नहीं मरता था। उन्होंने एक नया फार्मूला बनाया, जिसका डेमो किसानों को दिखाया गया। पेड़ पर दवा का छिड़काव होता, नीचे अखबार बिछाए जाते, और कीट गिरते देखे जाते। लेकिन यह दवा इतनी प्रभावशाली थी कि उसके उपयोग में सावधानी बहुत जरूरी थी। ड्यूपॉन्ट ने मास्क पहनना अनिवार्य किया। लेकिन भारतीय किसान मास्क नहीं पहनते थे, जिसके कारण उन्हें चक्कर आते और अस्पताल जाना पड़ता। यही वजह थी कि RG Aggarwal ने अपने Products के साथ जागरूकता अभियान को भी जरूरी समझा।
भारत की बढ़ती जनसंख्या और घटती कृषि भूमि को देखते हुए RG Aggarwal मानते हैं कि नई तकनीकों को अपनाना अनिवार्य है। बिना तकनीकी मदद के ना तो उत्पादन बढ़ेगा और ना ही किसानों की आमदनी। वह सामूहिक मार्केटिंग की भी वकालत करते हैं ताकि किसानों को फसलों के सही दाम मिल सकें।
आज RG Aggarwal रिटायर हो चुके हैं। लेकिन उनका काम अभी भी जारी है—उनके बेटे, बहू और अब पोते ने भी उसी क्षेत्र में कदम रख दिया है। वह परिवार जो 100 साल तक कपड़े का व्यापार करता था, आज कृषि के क्षेत्र में देश की सबसे बड़ी कंपनियों में गिना जाता है।
यह कहानी सिर्फ एक बिजनेस की नहीं है। यह कहानी है सोच की, बदलाव की, प्रेरणा की और उस जुनून की जो एक इंसान को इतिहास रचने पर मजबूर कर देता है। एक वक्त था जब देश अमेरिका से सड़ा हुआ गेहूं लेता था, और आज वही देश कृषि निर्यात में नाम कमा रहा है। यह बदलाव रातोंरात नहीं हुआ… इसके पीछे मेहनत, त्याग और दूरदर्शिता जैसे तत्व हैं—जिनका प्रतिनिधित्व करते हैं RG Aggarwal।
Conclusion
अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।
GRT Business विभिन्न समाचार एजेंसियों, जनमत और सार्वजनिक स्रोतों से जानकारी लेकर आपके लिए सटीक और सत्यापित कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। हालांकि, किसी भी त्रुटि या विवाद के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। हमारा उद्देश्य आपके ज्ञान को बढ़ाना और आपको सही तथ्यों से अवगत कराना है।
अधिक जानकारी के लिए आप हमारे GRT Business Youtube चैनल पर भी विजिट कर सकते हैं। धन्यवाद!”