क्या आप सोच सकते हैं कि जो Real Estate सेक्टर कभी नोटबंदी, जीएसटी और कोविड जैसे तीन-तीन झटकों से हिल चुका था, वहीं आज फिर से भारत की सबसे तेजी से उभरती हुई इंडस्ट्री बन चुका है? एक ऐसा सेक्टर जिसे कई Investor ‘खतरे की घंटी’ समझकर छोड़ चुके थे, अब Investment का सबसे बड़ा आकर्षण बन रहा है। जिन इमारतों के सामने सिर्फ सन्नाटा था, वहां अब काम की आवाजें, मशीनों की गूंज और उम्मीद से भरी आंखों वाले खरीदार दिखने लगे हैं।
यह एक चमत्कार जैसा है, लेकिन इसके पीछे कुछ ठोस कारण हैं, जिनकी कहानी समझना जरूरी है। भारत में लाखों परिवार ऐसे हैं जिनका सपना है एक अपना घर। और जब अधूरी इमारतें, जो बरसों से वीरान पड़ी थीं, अचानक फिर से सांस लेने लगें, तो समझिए कि बाजार में सिर्फ पैसों की नहीं, भरोसे की वापसी हो चुकी है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
2016 की नोटबंदी ने नकदी की किल्लत पैदा की, 2017 की जीएसटी ने Tax system को बदल डाला और 2020 का कोविड लॉकडाउन तो जैसे पूरे Real Estate को ठप कर गया। उस वक्त सबसे बड़ी मार पड़ी घरों की मांग पर, क्योंकि न तो लोग Investment को तैयार थे और न ही डेवलपर्स के पास नए प्रोजेक्ट्स के लिए फंड था। इस स्थिति में कई प्रोजेक्ट्स अधूरे रह गए, कुछ पूरी तरह से बंद हो गए और कुछ तो केवल नक्शों में ही रह गए।
उस समय का दृश्य इतना निराशाजनक था कि Investors और खरीदारों ने इस सेक्टर को असुरक्षित मानकर दूरी बना ली थी। लेकिन मंदी का हर दौर कभी न कभी लौटता है, और जब Real Estate का यह दौर लौटा, तो उसने इतिहास रच दिया।
जैसे ही 2022 आया, बाजार की हवा बदलने लगी। दो सालों के भीतर, 2024 तक आते-आते Real Estate ने जिस तेजी से वापसी की, उसने सबको चौंका दिया। प्रॉपर्टी की मांग अचानक इतनी बढ़ी कि अधूरी परियोजनाएं भी फिर से सक्रिय हो गईं। इनकी कीमतें भी इस कदर बढ़ीं कि जो प्रोजेक्ट एक समय घाटे में चल रहे थे, वे अब मुनाफा देने लगे।
यह बदलाव सिर्फ आंकड़ों में नहीं था, बल्कि जमीन पर भी साफ दिखा—नए बोर्ड लगे, पुराने फ्लैटों की बुकिंग शुरू हुई और वर्षों से बंद कामकाज दोबारा चल पड़ा। लोगों का विश्वास वापस लौटा और Investors ने इस सेक्टर में फिर से संभावनाएं देखनी शुरू कीं। जो फ्लैट पहले बिक नहीं रहे थे, वे अब ओवरबुक हो गए।
इन अधूरी परियोजनाओं की वापसी का सबसे अहम कारण था—बढ़ती यूनिट डिमांड और लगातार चढ़ती कीमतें। पुराने प्रोजेक्ट जो पहले लागत निकालने में भी असमर्थ थे, अब उन्हें पूरा करना लाभदायक लगने लगा।
इनमें से कई में पहले से कुछ निर्माण हो चुका था, इसलिए नई परियोजनाओं के मुकाबले उन्हें पूरा करना ज्यादा संभव था। यही नहीं, बायर्स को भी ऐसा लगने लगा कि अधूरी प्रोजेक्ट्स अब जल्दी पूरी हो सकती हैं, क्योंकि इन पर काम पहले से कुछ हद तक हुआ है। इस भरोसे ने बायर्स को एक बार फिर बाजार में उतारा और डेवेलपर्स को फिर से फंडिंग जुटाने की हिम्मत दी।
लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती। सबसे बड़ी रुकावट—फंडिंग, आज भी सबसे बड़ा संकट है। क्रेडाई पश्चिमी यूपी के सचिव दिनेश गुप्ता ने साफ कहा कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा जैसे क्षेत्रों में, सैकड़ों प्रोजेक्ट्स आज भी अधूरे पड़े हैं क्योंकि उनमें फंड की गंभीर कमी है।
यही प्रोजेक्ट्स या तो ठप हैं या फिर एनसीएलटी तक पहुंच चुके हैं, जो किसी भी सेक्टर के लिए खतरे की घंटी है। ऐसे में सिर्फ फंडिंग के सोर्स बढ़ाना ही काफी नहीं है, बल्कि ऐसी नीति चाहिए जो फंसी परियोजनाओं को दोबारा चालू करने में मदद कर सके। यह सिर्फ इमारतें नहीं, बल्कि उन लाखों परिवारों का सपना है जो एक स्थायी घर की चाह में वर्षों से भटक रहे हैं।
इस पूरी प्रक्रिया में ‘पुरानी कंपनी का टेकओवर’ मॉडल एक गेमचेंजर साबित हुआ है। इस मॉडल के अंतर्गत एक नई डेवलपर कंपनी किसी पुरानी, फंसी हुई Real Estate कंपनी को टेकओवर करती है और उसका अधूरा प्रोजेक्ट अपने नाम से दोबारा लॉन्च करती है। उदाहरण के लिए, रेनॉक्स ग्रुप ने निवास प्रोमोटर्स का अधिग्रहण किया और ग्रेटर नोएडा वेस्ट में 3.3 एकड़ पर ‘रेनॉक्स थ्राइव’ प्रोजेक्ट को पुनर्जीवित किया।
रेनॉक्स ग्रुप के चेयरमैन शैलेन्द्र शर्मा ने बताया कि उन्होंने सभी पक्षों—ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी, बैंक, रेरा और पुराने बायर्स—का बकाया क्लियर किया और फिर पुराने प्रोजेक्ट को रद्द कराकर नई परियोजना लॉन्च की। इससे सिर्फ कंस्ट्रक्शन ही नहीं शुरू हुआ, बल्कि नौकरियां भी पैदा हुईं और सरकारी Revenue का चक्र भी घूमने लगा। यह मॉडल अब कई कंपनियों के लिए प्रेरणा बन गया है।
दूसरा मॉडल है ‘पुरानी कंपनी में नया Management’ लाना। कई बार समस्या केवल फंड की नहीं होती, बल्कि गलत Management की भी होती है। ऐसे में उसी कंपनी में एक नया मैनेजमेंट लाकर पुराने प्रोजेक्ट को फिर से चलाया जाता है। इसका शानदार उदाहरण है डिलिजेंट बिल्डर्स, जिसने ग्रेटर नोएडा वेस्ट में ‘अंतरिक्ष वैली’ नाम की अधूरी परियोजना को दोबारा शुरू किया।
लेफ्टिनेंट कर्नल अश्वनी नागपाल (रिटायर्ड), जो अब कंपनी के COO हैं, ने बताया कि कैसे उन्होंने न केवल Authority का बकाया चुकाया, बल्कि पुराने आवंटियों को रिफंड भी दिया। सरकार की सकारात्मक नीतियों और अमिताभ कांत कमेटी की सिफारिशों की मदद से यह असंभव लगने वाला कार्य संभव हो पाया। यह मॉडल उन सभी फंसी परियोजनाओं के लिए आशा की किरण है जिन्हें सही नेतृत्व की आवश्यकता है।
अब बात करते हैं ‘एनसीएलटी से रिवर्स इनसॉल्वेंसी’ मॉडल की, जो आज भी बहुत कम कंपनियों के लिए संभव होता है। आमतौर पर जब कोई प्रोजेक्ट एनसीएलटी में चला जाता है, तो उसका दोबारा लौटना लगभग असंभव माना जाता है। लेकिन आरजी ग्रुप ने इस असंभव को संभव किया। उन्होंने अपनी कंपनी को रिवर्स इनसॉल्वेंसी के जरिए वापस लाया और ‘आरजी लक्जरी होम्स’ को पूरा कर, ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट भी हासिल किया।
कंपनी के निदेशक हिमांशु गर्ग के अनुसार, यह गौतम बुद्ध नगर में पहली ऐसी परियोजना है जिसे इस प्रक्रिया से बाहर लाकर सफलतापूर्वक पूरा किया गया। उनके अनुसार, यह सब सकारात्मक सोच और समर्पित दृष्टिकोण से ही संभव हुआ—जहां उद्देश्य केवल प्रॉफिट नहीं बल्कि घर खरीदारों को उनका घर देना था। ये उदाहरण दिखाते हैं कि अगर इच्छाशक्ति हो तो रास्ते निकल ही आते हैं।
अंत में आता है को-डेवलपर पॉलिसी का मॉडल। यह नीति खास तौर पर अमिताभ कांत समिति की सिफारिशों पर आधारित है, जिसके अंतर्गत अधूरी परियोजना को कोई दूसरा प्रोमोटर अधिकारिक रूप से पूरा कर सकता है। नए प्रोमोटर को पुराने बकाए और शेष कर्जों को चुकाकर Plot का निर्माण अधिकार दिया जाता है। इसी मॉडल के तहत निम्बस ग्रुप ने सेक्टर 168 और हवेलिया ग्रुप ने ग्रेटर नोएडा वेस्ट की अधूरी परियोजनाओं को पूरा करने की जिम्मेदारी ली है।
यह न सिर्फ कानूनी रूप से पारदर्शी प्रक्रिया है, बल्कि इससे खरीदारों को उम्मीद की एक नई किरण मिलती है। इस नीति का सफल Implementation पूरे देश के Real Estate सेक्टर के लिए एक मिसाल बन सकता है। कुल मिलाकर, Real Estate सेक्टर आज उस मोड़ पर खड़ा है, जहां अधूरी परियोजनाएं अब एक बोझ नहीं बल्कि अवसर बन गई हैं। जरूरत है सही रणनीति, पारदर्शिता और सरकार व कंपनियों के बीच सहयोग की।
Conclusion
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