क्या आपने कभी सोचा है कि एक 10 साल का बच्चा, जो अभी तक जेब खर्च के लिए मम्मी-पापा पर निर्भर रहता था, अब बैंक अकाउंट चला सकेगा? वो भी बिना किसी Guardian की मदद के? जी हां, अब वो समय आ गया है जब छोटे-छोटे हाथ बैंक की चेकबुक थामेंगे, और छोटी आंखें इंटरनेट बैंकिंग की दुनिया में झांकेंगी। RBI ने एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला लिया है, जिसने देश में बच्चों की वित्तीय दुनिया को पूरी तरह से बदल दिया है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
RBI (RBI) ने सोमवार को एक बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि अब 10 साल या उससे अधिक उम्र के बच्चे, खुद से अपना बैंक अकाउंट खोल सकते हैं और उसे पूरी तरह से ऑपरेट भी कर सकते हैं। ये फैसला न सिर्फ बैंकिंग सिस्टम के लिए ऐतिहासिक है, बल्कि उन बच्चों के लिए भी जो कम उम्र में ही जिम्मेदारी समझना चाहते हैं और फाइनेंशियल नॉलेज हासिल करना चाहते हैं।
अब तक हमारे देश में यह व्यवस्था थी कि कोई भी नाबालिग यानी 18 साल से कम उम्र का बच्चा जब बैंक खाता खोलता था, तो उसका संचालन माता-पिता या कानूनी Guardian करते थे। लेकिन अब RBI ने साफ कर दिया है कि 10 साल या उससे अधिक उम्र के बच्चों को, बैंकिंग की दुनिया में कदम रखने की पूरी आज़ादी मिलनी चाहिए। इससे उनमें न केवल जिम्मेदारी का भाव आएगा, बल्कि फाइनेंशियल लिटरेसी भी बचपन से ही विकसित होगी।
सोचिए, जब कोई बच्चा पहली बार खुद बैंक में जाकर फॉर्म भरता है, अपनी चेकबुक लेता है या ATM कार्ड से पैसे निकालता है—तो उस आत्मविश्वास का स्तर क्या होगा? यही तो RBI का असली उद्देश्य है। बच्चों को माता-पिता के मार्गदर्शन में ही सही, लेकिन वित्तीय रूप से स्वतंत्र बनाना।
RBI के इस नए फैसले के बाद नाबालिग खाताधारकों को बैंक सेवाओं का पूरा लाभ मिलेगा। यानी 10 साल का बच्चा भी अब ATM कार्ड रख सकता है, चेकबुक यूज़ कर सकता है और यहां तक कि इंटरनेट बैंकिंग भी चला सकता है। हालांकि यह सब कुछ संबंधित बैंक की रिस्क मैनेजमेंट पॉलिसी पर निर्भर करेगा। हर बैंक यह तय करेगा कि वह किन सुविधाओं को किस हद तक नाबालिगों को उपलब्ध कराए।
इसका सीधा मतलब यह है कि बैंक अपने स्तर पर ये निर्णय लेंगे कि किस उम्र के बच्चों को कितनी बैंकिंग सुविधा दी जाए, और किन बातों की उन्हें जानकारी दी जाए। यह एक तरह से बच्चों को छोटी उम्र से ही प्रोफेशनल सोच और सिस्टम की आदत डालने की दिशा में बड़ा कदम है।
PTI की रिपोर्ट के अनुसार, RBI ने यह भी स्पष्ट किया है कि अगर किसी बच्चे की उम्र 10 साल से कम है, तो वह भी बैंक खाता खोल सकता है, लेकिन उसके लिए उसके माता-पिता या Guardian का सहयोग आवश्यक होगा। हालांकि जैसे ही बच्चा 10 साल का हो जाता है, वह इन सेवाओं को खुद से इस्तेमाल कर सकता है। और जब वह 18 साल का होगा, तो बैंक उस अकाउंट को Adult खाते में तब्दील करने के लिए नए ऑपरेटिंग दिशा-निर्देश और हस्ताक्षर मांगेंगे।
इस फैसले से यह साफ हो गया है कि देश अब बच्चों की वित्तीय क्षमता को गंभीरता से ले रहा है। जब बच्चे छोटी उम्र से ही पैसों की अहमियत, बचत की आदत और ट्रांजैक्शन की समझ हासिल करेंगे, तो आगे चलकर वही बच्चे समझदार Investor और जिम्मेदार नागरिक बनेंगे।
सोचिए, जिस देश में आज भी बहुत सारे Adult लोग बैंकिंग से Ignorant हैं, वहां बच्चों को बैंक अकाउंट ऑपरेट करने की छूट देना एक क्रांतिकारी बदलाव है। RBI ने यह कदम उठाकर एक नई पीढ़ी को भविष्य की आर्थिक जिम्मेदारियों के लिए तैयार करने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल की है।
अब सवाल यह उठता है कि यह सब क्या इतना आसान होगा? क्या हर बच्चा सही ढंग से इन सुविधाओं का इस्तेमाल कर पाएगा? क्या साइबर सेफ्टी, फाइनेंशियल फ्रॉड और ओवरस्पेंडिंग से बचाव के लिए पर्याप्त उपाय किए गए हैं? RBI का कहना है कि बैंकों को यह जिम्मेदारी दी जाएगी कि वे बच्चों को यह सारी जानकारी दें और उन्हें जागरूक करें।
यानी यह सिर्फ एक नियम नहीं है, बल्कि एक पूरे सिस्टम को बच्चों के लिए नए ढंग से डिजाइन करने का मौका है। बैंकिंग स्टाफ को अब बच्चों को फाइनेंशियल सलाह देने की ट्रेनिंग देनी होगी, और साथ ही माता-पिता को भी जागरूक करना होगा कि वे अपने बच्चों को समझदारी से गाइड करें।
एक और बड़ी बात यह है कि यह नियम 1 जुलाई 2025 से लागू होंगे। यानी बैंकों को 1 जुलाई तक अपनी मौजूदा पॉलिसियों को नए नियमों के अनुरूप बनाना होगा। इस बीच, बैंकों को सलाह दी गई है कि वे अपने मौजूदा सिस्टम में बदलाव लाएं और नए दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए अपनी सेवाओं को अपग्रेड करें।
RBI के इस फैसले से देशभर के बैंकों में हलचल मच गई है। कुछ बैंक पहले से ही बच्चों के लिए स्पेशल सेविंग अकाउंट ऑफर कर रहे थे, लेकिन अब उन्हें अपनी पॉलिसी को पूरी तरह से बदलना होगा। अब बच्चों को सिर्फ मनी-बॉक्स नहीं, बल्कि बैंकिंग की असली दुनिया से जोड़ना होगा।
सोचिए, जब कोई बच्चा अपने स्कूल प्रोजेक्ट के पैसे को सेविंग अकाउंट में जमा करता है और फिर वही पैसे ATM से निकालता है, तो उसमें आत्मनिर्भरता का कितना बड़ा बीज बोया जाएगा। यही RBI का उद्देश्य है—देश को फाइनेंशियली स्मार्ट बनाना, और वह भी जड़ से, यानी बचपन से।
इसका दूरगामी प्रभाव यह होगा कि अगली पीढ़ी पैसों को लेकर ज्यादा सचेत, प्लानिंग में माहिर और Investment के लिए तैयार होगी। आज जो बच्चे डिजिटल वॉलेट, UPI और ATM का इस्तेमाल सीख रहे हैं, वही कल स्टॉक मार्केट, म्यूचुअल फंड और रियल एस्टेट में समझदारी से Investment करेंगे।
लेकिन इसके साथ ही एक जिम्मेदारी भी जुड़ती है—माता-पिता, स्कूल और बैंकिंग संस्थानों की। बच्चों को सिर्फ ATM कार्ड देना काफी नहीं होगा, उन्हें यह भी सिखाना होगा कि उसे कैसे सुरक्षित रखा जाए, किस जगह खर्च करना सही है और किन बातों से बचना चाहिए।
अगर यह शिक्षा सही तरीके से दी गई, तो आने वाले समय में भारत वित्तीय रूप से एक बेहद मजबूत राष्ट्र बन सकता है। क्योंकि जब हर नागरिक पैसे को समझने लगेगा, तभी वह देश की अर्थव्यवस्था को सही दिशा दे पाएगा। और इस पूरी प्रक्रिया की नींव आज RBI ने रख दी है।
RBI ने यह भी सुनिश्चित किया है कि नाबालिग खाताधारकों को बैंकिंग टर्म्स और शर्तें पूरी तरह समझाई जाएं। बैंकों को यह निर्देश दिए गए हैं कि वे बच्चों को सरल भाषा में समझाएं कि उनका खाता कैसे काम करता है, कितना पैसा वे निकाल सकते हैं, और क्या उनकी लिमिट्स होंगी।
इससे एक और बड़ा लाभ यह होगा कि बच्चों को खुद पर भरोसा करना सिखाया जाएगा। आज जब माता-पिता बच्चों के लिए सब कुछ संभालते हैं, तो कई बार बच्चे ज़िम्मेदारियों से दूर हो जाते हैं। लेकिन जब वे खुद फैसले लेंगे, तो गलती भी करेंगे और सीख भी पाएंगे।
और यह सीख ही उन्हें भविष्य में मजबूत इंसान बनाएगी। RBI का यह फैसला बच्चों को केवल बैंकिंग की सुविधा नहीं दे रहा, वह उन्हें ज़िंदगी के लिए तैयार कर रहा है—एक ऐसी ज़िंदगी जिसमें फाइनेंस का सही प्रबंधन सबसे ज़रूरी स्किल बन चुका है। आख़िर में बात यही है कि यह नियम सिर्फ एक एडमिनिस्ट्रेटिव फैसला नहीं है, यह एक सामाजिक बदलाव की शुरुआत है। अब बच्चे Piggy Bank से निकलकर Real Bank की दुनिया में कदम रखेंगे। और जब छोटे-छोटे कदम बड़ी सोच से भर जाएंगे, तो देश को आर्थिक शक्ति बनने से कोई नहीं रोक सकता।
Conclusion
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