ज़रा सोचिए… सुबह की ठंडी हवा में कोई किसान अपने खेतों की ओर जाता है। उसके सपनों की फसल लहलहा रही होती है—धान की पौधियों की हरियाली, मक्के के ऊँचे झुरमुट और कपास के सफेद फूल मानो उसे समृद्धि का वादा कर रहे हों। लेकिन अचानक काले बादल छा जाते हैं, गरजती बिजली आसमान को चीरती है और देखते ही देखते आसमान से बरसता पानी नदी के उफान के साथ खेतों को लील जाता है। जिन घरों में चूल्हे जलते थे, वे पानी में बह जाते हैं। सड़कें, गलियाँ और पुल सब गायब हो जाते हैं। इंसान बेबस होकर अपनी आँखों से अपनी मेहनत को बर्बाद होते देखता है।
यह कोई काल्पनिक दृश्य नहीं है, बल्कि Punjab के लाखों लोगों की दर्दनाक हकीकत है। इस बार 12 जिलों की धरती पूरी तरह जलमग्न है, लगभग 15 लाख लोग प्रभावित हुए हैं, 3 लाख से अधिक लोग अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर शरण ले चुके हैं और हजारों किसानों का भविष्य पानी में बह गया है। सवाल यह है कि क्यों हर कुछ सालों में Punjab इसी त्रासदी से जूझता है? क्या यह महज़ कुदरत का खेल है, या इसके पीछे हमारी लापरवाही और राजनीति की भी भूमिका है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
आपको बता दें कि Punjab के मौजूदा हालात बेहद गंभीर हैं। सतलज, ब्यास, रावी और घग्गर जैसी नदियाँ अपने सामान्य बहाव से बहुत ऊपर चल रही हैं। खतरे के निशान को पार कर चुकी ये नदियाँ अब अपने पुराने रास्तों से हटकर गांवों और कस्बों में घुस आई हैं। सैकड़ों किलोमीटर तक फैले खेत तालाब बन चुके हैं और हजारों घर पानी के नीचे डूबे हुए हैं। लगभग एक हजार गांव पूरी तरह Flood की चपेट में आ चुके हैं।
अब तक 30 से अधिक लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत रूप से मुख्यमंत्री भगवंत मान से बात कर राहत और बचाव कार्यों की जानकारी ली है। सेना, एनडीआरएफ और स्थानीय आपदा प्रबंधन दल लगातार नावों और ट्रैक्टरों के सहारे लोगों को सुरक्षित निकाल रहे हैं। लेकिन राहत की इन कोशिशों के बावजूद लोगों के चेहरे पर केवल डर और अनिश्चितता है, क्योंकि उन्हें नहीं पता कि वे कब तक अपने घर लौट पाएँगे और क्या लौटने पर उनका घर सही सलामत बचेगा भी या नहीं।
Punjab की असली ताकत उसकी खेती है, और इसी खेती को इस Flood ने सबसे गहरी चोट दी है। लगभग 3 लाख एकड़ में फैली धान, मक्का और कपास की फसल बर्बाद हो गई है। किसान महीनों से धान की नर्सरी तैयार कर रहे थे, खेतों में मेहनत कर रहे थे और उर्वरक, बीज और मजदूरी पर हजारों रुपए खर्च कर चुके थे। लेकिन कुछ ही घंटों की बारिश ने उनकी सारी मेहनत को मिट्टी में मिला दिया।
धान की फसल पानी में डूबकर सड़ गई, मक्के की जड़ें गल गईं और कपास की बाली पानी में सड़ गई। यह केवल किसानों की निजी आय का नुकसान नहीं है, बल्कि पंजाब की अर्थव्यवस्था के लिए भी बड़ा झटका है, क्योंकि यह राज्य देश को खाद्यान्न उपलब्ध कराने में सबसे आगे है। जब Punjab की खेती डूबती है तो उसका असर पूरे देश की food supply और कीमतों पर पड़ता है।
मौसम विभाग ने Punjab के लिए रेड अलर्ट जारी कर दिया है। आने वाले दिनों में और भारी बारिश की चेतावनी दी गई है। इसका मतलब है कि राहत की उम्मीद फिलहाल बहुत कम है। मुख्यमंत्री भगवंत मान खुद प्रभावित इलाकों का दौरा कर चुके हैं। उन्होंने लोगों से कहा है कि सरकार हर संभव मदद कर रही है, लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि प्राकृतिक आपदाओं के सामने इंसानी प्रयास अक्सर कमजोर पड़ जाते हैं। यह बात सच है, लेकिन अधूरी भी। क्योंकि बाढ़ केवल आसमान से बरसने वाली बारिश का नतीजा नहीं होती, बल्कि इंसानी लापरवाही भी इसे कहीं अधिक खतरनाक बना देती है।
दरअसल, यह पहली बार नहीं है कि Punjab Flood की तबाही झेल रहा है। 2019 और 2023 में भी राज्य ने इसी तरह का संकट देखा था। 2023 की बाढ़ में लगभग 1500 गांव प्रभावित हुए थे और लाखों हेक्टेयर फसल डूब गई थी। 2019 में भी 300 से अधिक गांवों पर बाढ़ का पानी चढ़ गया था। यानी यह कोई नई समस्या नहीं है। यह बार-बार दोहराई जाने वाली त्रासदी है। सवाल यह है कि अगर हर कुछ सालों में ऐसी स्थिति आती है तो सरकार क्यों हर साल इसकी तैयारी समय रहते नहीं करती?
experts का कहना है कि Punjab में Flood की असली वजह केवल बारिश और नदी का उफान नहीं है। असली वजह है—कमजोर बुनियादी ढांचा और तैयारी की कमी। हर साल फरवरी में राज्य सरकार को बाढ़ प्रबंधन की बैठक करनी होती है। इसमें तटबंधों की मरम्मत, नदियों और नहरों की सफाई, ड्रेनेज सिस्टम को मजबूत करने जैसे फैसले लिए जाते हैं। लेकिन इस बार यह बैठक
फरवरी में नहीं हुई। यह बैठक जून में हुई, जब मानसून दरवाज़े पर था। तब तक बहुत देर हो चुकी थी। फरवरी में आम आदमी पार्टी का पूरा ध्यान दिल्ली चुनाव पर था और मुख्यमंत्री भगवंत मान खुद अपनी पार्टी की रणनीतियों में व्यस्त थे। नतीजा यह हुआ कि बाढ़ नियंत्रण की तैयारियाँ अधूरी रह गईं।
डैम Management भी इस बार Flood की बड़ी वजह बना। भाखड़ा-नांगल, रंजीत सागर और पोंग डैम जैसे बड़े बांधों में पानी खतरनाक स्तर तक भर गया था। सामान्य स्थिति में इन डैमों से धीरे-धीरे पानी छोड़ा जाता है ताकि निचले इलाकों पर असर न पड़े। लेकिन इस बार पानी इतना तेजी से भरा कि एक साथ बड़े पैमाने पर पानी छोड़ना पड़ा। इससे निचले इलाकों में अचानक पानी का स्तर बढ़ गया और गांव बहने लगे। यह केवल प्राकृतिक मजबूरी नहीं थी, बल्कि डैम Management की कमजोरियों और राजनीतिक खींचतान का नतीजा भी था।
हालांकि, डैमों को लेकर Punjab, हरियाणा और राजस्थान के बीच पानी बंटवारे का विवाद भी समय पर फैसले में बाधा बना। पानी किसे मिलेगा और कितनी मात्रा में मिलेगा, इस पर महीनों तक झगड़ा चलता रहा। इस दौरान पानी को रोका गया और जैसे ही भारी बारिश आई, डैमों में पानी खतरनाक स्तर पर पहुंच गया। तब मजबूरी में अचानक पानी छोड़ा गया और पंजाब के गांव बर्बादी का शिकार हो गए। यह राजनीति की खींचतान का ऐसा उदाहरण है, जिसका खामियाज़ा आम इंसान और किसान भुगत रहे हैं।
आज Punjab के 23 में से 12 जिले Flood से बुरी तरह प्रभावित हैं। लुधियाना, जालंधर, होशियारपुर, कपूरथला, फरीदकोट और मोगा जैसे जिलों में हालात सबसे ज्यादा खराब हैं। गांव के गांव पानी में डूब गए हैं। लोग अपने घर छोड़कर सरकारी राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं। लेकिन इन शिविरों में न तो साफ पानी है, न पर्याप्त खाना और न ही स्वास्थ्य सुविधाएँ।
बच्चे बीमार पड़ रहे हैं, महिलाएँ परेशान हैं और बुजुर्गों की दवाइयाँ खत्म हो रही हैं। लोग घंटों कतार में खड़े होकर केवल पीने के पानी के लिए इंतज़ार कर रहे हैं। यह तस्वीर बताती है कि बाढ़ सिर्फ खेतों और घरों को नहीं डुबाती, बल्कि इंसानों की इज़्ज़त और उम्मीदों को भी डुबा देती है।
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में कई बार बाढ़ देखी है, लेकिन पहले यह हालात इतने डरावने नहीं थे। 1988 में भी Punjab Flood से प्रभावित हुआ था, लेकिन उस समय नदियाँ चौड़ी थीं, तालाब और नहरें भरी रहती थीं और पानी आसानी से बह जाता था। आज स्थिति उलटी है। नदियाँ सिकुड़ चुकी हैं, तटबंध कमजोर हो गए हैं और हर तरफ अतिक्रमण है। यही कारण है कि थोड़ी-सी बारिश भी अब बड़े संकट में बदल जाती है।
यह Flood केवल Punjab की समस्या नहीं है। यह पूरे उत्तर भारत और देश के लिए एक चेतावनी है। जलवायु परिवर्तन ने मानसून को और भी अनिश्चित बना दिया है। कभी सूखा पड़ता है तो कभी अचानक भारी बारिश हो जाती है। वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि आने वाले वर्षों में ऐसी घटनाएँ और बढ़ेंगी। अगर हमने समय रहते कदम नहीं उठाए, तो हर साल यही हालात दोहराए जाएंगे और नुकसान और भी बढ़ता जाएगा।
अब सवाल उठता है कि आखिर इसका समाधान क्या है? Expert मानते हैं कि सबसे पहले डैम Management को आधुनिक तकनीक से जोड़ना होगा। पानी छोड़ने और रोकने की रणनीति वैज्ञानिक आधार पर तय करनी होगी। नदियों की सिल्ट सफाई और तटबंधों की मरम्मत हर साल फरवरी तक पूरी करनी होगी। गांव और कस्बों में ड्रेनेज सिस्टम को मजबूत करना होगा ताकि पानी निकल सके। बाढ़ प्रभावित इलाकों में स्थायी पुनर्वास योजना बनानी होगी। इसके अलावा, किसानों के लिए बीमा और त्वरित मुआवज़े की व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी ताकि उनकी ज़िंदगी फिर से पटरी पर आ सके।
किसान खुद कहते हैं कि उन्हें केवल राहत राशि नहीं चाहिए। वे स्थायी समाधान चाहते हैं। उनका कहना है कि अगर हर साल उनकी फसलें डूबती रहेंगी, तो वे खेती छोड़ने पर मजबूर हो जाएंगे। और अगर पंजाब का किसान खेती छोड़ देता है तो यह केवल Punjab की नहीं, बल्कि पूरे देश की खाद्य सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी होगी। Punjab को भारत का अन्नदाता कहा जाता है, और अगर वही टूट जाएगा तो देश की नींव हिल जाएगी।
पंजाब की यह त्रासदी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम वास्तव में विकास कर रहे हैं, या केवल दिखावे के लिए। क्या राजनीति और चुनाव हमारी प्राथमिकता रहेंगे या आम इंसान की जिंदगी और उसकी सुरक्षा? क्या हम हर साल Flood का इंतज़ार करते रहेंगे या इस समस्या का स्थायी हल ढूँढ़ेंगे?
यह कहानी केवल पंजाब की नहीं है। यह पूरे देश के लिए सबक है। हमें यह समझना होगा कि जब तक इंसान कुदरत के नियमों का सम्मान नहीं करेगा और केवल अपनी राजनीति और लाभ के लिए फैसले लेगा, तब तक कुदरत अपना गुस्सा इसी तरह दिखाती रहेगी। Flood, सूखा और आपदाएँ महज़ घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि चेतावनी हैं। और अगर हमने इन्हें समय रहते नहीं समझा, तो हमारी आने वाली पीढ़ियाँ इसकी सबसे बड़ी कीमत चुकाएँगी।
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