कल्पना कीजिए… एक ऐसा रिश्ता जो कभी दोस्ती का वादा करता है, तो कभी बंदूक की धमकियों में उलझ जाता है। एक ऐसा बॉर्डर जो कभी कारोबार से गुलजार होता है, तो कभी गोलीबारी से सन्नाटा पसरा होता है। भारत और पाकिस्तान के बीच का रिश्ता भी कुछ ऐसा ही है—जहां इतिहास है, भावनाएं हैं, राजनीति है और बीच में फंसा है व्यापार। लेकिन सवाल यह है कि जब गोलियां चलती हैं और बयानबाज़ी गरम होती है, तब क्या दोनों देशों के बीच कारोबार भी रुकता है?
या फिर व्यापार एक ऐसी डोर है जो कड़वाहट में भी जुड़ी रहती है? जम्मू-कश्मीर के Pahalgam आतंकी हमले के बाद जो हालात बने हैं, उन्होंने इस सवाल को और ज़्यादा Relevant बना दिया है। भारत ने पाकिस्तान पर जो कड़े कदम उठाए हैं, उनमें सिंधु जल समझौते पर रोक, वीजा बंदी और बॉर्डर सील करना शामिल है—और अब इस टकराव की सीधी चपेट में है दोनों देशों के बीच का व्यापार। यह केवल आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक मोर्चे पर एक ठोस संदेश है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
आपको बता दें कि हमले के जवाब में भारत सरकार ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि, अब आतंक के खिलाफ जवाब सिर्फ सैन्य या कूटनीतिक नहीं होगा, बल्कि आर्थिक मोर्चे पर भी कार्रवाई होगी। इसके तहत पाकिस्तान के नागरिकों को वीजा देने पर रोक लगा दी गई, अटारी-वाघा बॉर्डर को बंद कर दिया गया और सिंधु जल समझौते को भी स्थगित कर दिया गया।
जवाब में पाकिस्तान ने भी गुरुवार को भारत के विमानों के लिए अपना एयरस्पेस बंद कर दिया, और दोनों देशों के बीच चल रहे व्यापार को ठप कर दिया। यह एक और उदाहरण है कि जब भी रिश्तों में तल्खी आती है, सबसे पहला शिकार व्यापार बनता है। लेकिन यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती। इसके पीछे जो आंकड़े हैं, वो बताते हैं कि व्यापार चाहे जितना छोटा क्यों न हो, इसका असर हर स्तर पर गूंजता है।
अब सवाल यह है—आखिर भारत और पाकिस्तान के बीच कितना व्यापार होता है? और यह किस दिशा में जा रहा है? सबसे पहले बात करें एक्सपोर्ट की। भारत हर साल पाकिस्तान को हजारों करोड़ का सामान एक्सपोर्ट करता है। 2024 में यह आंकड़ा 1.21 अरब डॉलर यानी करीब 10 हजार करोड़ रुपये के पार चला गया था, जो पिछले पांच सालों में सबसे अधिक है।
2020 के मुकाबले भारत का पाकिस्तान को एक्सपोर्ट लगभग 300% तक बढ़ चुका था। यानी जहां कूटनीति विफल होती है, वहां बाजार अब भी बोलता है। यह ग्रोथ तब देखने को मिली जब पाकिस्तान में महंगाई और डॉलर संकट के चलते, जरूरी वस्तुओं की मांग बढ़ गई और भारत सबसे सस्ता और पास का विकल्प बना।
लेकिन यह रिश्ता हमेशा इतना आसान नहीं रहा। 2018 में भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार अपने रिकॉर्ड स्तर पर था—करीब 2.35 अरब डॉलर। लेकिन फिर 2019 में पुलवामा आतंकी हमला हुआ, जिसमें भारत के 40 जवान शहीद हुए।
इस हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से Import पर 200% टैरिफ लगा दिया और ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा वापस ले लिया। इसका असर यह हुआ कि पाकिस्तान से भारत को होने वाला एक्सपोर्ट 2019 में, 547 मिलियन डॉलर से घटकर 2024 में सिर्फ 4.8 मिलियन डॉलर रह गया। यानी जहां पहले कंटेनर चलते थे, अब खाली ट्रक लौटने लगे। यह गिरावट सिर्फ आंकड़ों में नहीं, बल्कि उन परिवारों की आमदनी में भी दिखी जो बॉर्डर ट्रेड पर निर्भर थे।
2019 में जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया, तो पाकिस्तान ने गुस्से में आकर भारत के साथ सभी द्विपक्षीय व्यापार को बंद करने की घोषणा कर दी। यह फैसला भी ज्यादा समय नहीं टिक सका। पाकिस्तान में जैसे ही महंगाई और supply crisis गहराया, वहां की सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना पड़ा।
क्योंकि हकीकत यही है—राजनीति कुछ दिन की हो सकती है, लेकिन लोगों की जरूरतें हर रोज होती हैं। और व्यापार, उन्हीं जरूरतों का एक अहम हिस्सा है। जैसे खाने-पीने के सामान, दवाइयां, निर्माण सामग्री—इन सबके बिना कोई भी देश लंबे समय तक नहीं चल सकता, और पाकिस्तान इसका एक बड़ा उदाहरण है।
अब अगर बात करें कि भारत पाकिस्तान को क्या-क्या एक्सपोर्ट करता है, तो इसमें प्रमुख रूप से Biochemicals, pharmaceutical products, minerals, sugar, मिठाइयां और प्रोसेस्ड फूड शामिल हैं। वहीं पाकिस्तान भारत में नमक, गंधक, चूना, कपड़े और सीमेंट एक्सपोर्ट करता रहा है।
लेकिन भारत द्वारा 200% टैरिफ लगाए जाने के बाद पाकिस्तानी Products की कीमतें भारतीय बाजार में अस्वीकार्य हो गईं। यही कारण है कि आज पाकिस्तान का भारत में Export न के बराबर है। यहां तक कि दिल्ली, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों की मंडियों में भी अब पाकिस्तानी सामान शायद ही कभी दिखाई देता है। इसका असर वहां के छोटे व्यापारियों पर तो पड़ा ही, साथ ही उन ग्रामीणों पर भी पड़ा जो इन वस्तुओं की बिक्री पर निर्भर थे।
लेकिन यह कहानी सिर्फ टैरिफ या टैक्स की नहीं है। यह कहानी उस अविश्वास की है, जिसने दो पड़ोसियों को कारोबारी साझेदार बनने नहीं दिया। पाकिस्तान का यह तर्क रहा है कि जब भारत जम्मू-कश्मीर को लेकर आक्रामक नीति अपनाता है, तो वह व्यापार कैसे जारी रखे?
वहीं भारत का यह दावा रहा है कि जब तक आतंकवाद को राज्य नीति के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहेगा, तब तक व्यापार की गुंजाइश नहीं हो सकती। दोनों देशों के इस चौराहे पर सबसे ज़्यादा नुकसान उन व्यापारियों को होता है, जो वर्षों से बॉर्डर ट्रेड पर निर्भर थे। अमृतसर, जम्मू, अटारी, लाहौर—इन सभी इलाकों में व्यापार ठप होने से हजारों लोगों की रोज़ी-रोटी पर असर पड़ा है। ऐसे लोग जो न तो राजनीति समझते हैं, न ही कूटनीति—वे सिर्फ काम चाहते हैं और शांति चाहते हैं।
और ये केवल व्यापारी नहीं हैं। ट्रक ड्राइवर, पैकिंग वर्कर, मंडी क्लर्क, कस्टम एजेंट्स, टूर गाइड्स—यह पूरा एक इकोसिस्टम है जो भारत-पाक व्यापार से जुड़ा रहा है। हर बार जब बॉर्डर बंद होता है, यह इकोसिस्टम एक बार फिर धराशायी हो जाता है। और फिर जब रिश्ते थोड़े बेहतर होते हैं, तो फिर से एक उम्मीद बनती है कि शायद अब रास्ते खुलेंगे। लेकिन हर बार, यह सिलसिला अधूरा ही रह जाता है। कश्मीर से आने वाली हिंसा की खबरें, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बयानबाज़ी, और मीडिया में छपती राजनीतिक तीखी प्रतिक्रियाएं इस व्यापारिक रिश्ते को हर बार नई चोट देती हैं।
ऐसे में सवाल उठता है—क्या भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार का कोई स्थायी भविष्य है? जवाब आसान नहीं है। कूटनीति जब तक व्यापार से ऊपर रहेगी, तब तक यह रिश्ता कभी स्थिर नहीं हो पाएगा। भारत के लिए पाकिस्तान एक छोटा व्यापारिक भागीदार है, लेकिन पाकिस्तान के लिए भारत एक बड़ा बाज़ार है।
अगर संबंध सामान्य हो जाएं तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सकती है, और भारत के उत्तर-पश्चिमी राज्यों को नए Export रास्ते मिल सकते हैं। लेकिन यह तभी मुमकिन है जब दोनों देश अपने-अपने एजेंडे से ऊपर उठकर आम आदमी के फायदे की सोचें। इसके लिए न सिर्फ राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए, बल्कि व्यापार को कूटनीतिक सौदेबाजी से अलग रखने की समझ भी।
इस हमले के बाद व्यापार एक बार फिर ठप हो चुका है। एयरस्पेस बंद, बॉर्डर सील, डिप्लोमैट्स देश से बाहर—यानी राजनीतिक रिश्ता एक बार फिर बर्फ में तब्दील हो चुका है। लेकिन अगर हम इतिहास को देखें, तो यह पहली बार नहीं है। और शायद आखिरी भी नहीं। क्योंकि जब तक कूटनीति व्यापार से ऊपर रहेगी, तब तक हर गोली के साथ एक डील, और हर बयान के साथ एक सौदा मारा जाएगा।
यह कहानी सिर्फ दो देशों की नहीं, दो सोचों की है—जहां एक सोच कहती है कि गोलियों से बात करो, और दूसरी सोच कहती है कि सौदों से रास्ता बनाओ। अब देखना यह है कि आगे कौन जीतता है—गोलियों की गूंज, या व्यापार की गूंज। शायद जवाब इस बात में छुपा है कि भविष्य की पीढ़ी किस आवाज़ को चुनती है।
Conclusion
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