NRI के लिए सुनहरा मौका! ट्रंप टैरिफ के बाद कैसे हो सकता है निवेश और भी फायदेमंद? जानिए नया रास्ता। 2025

कल्पना कीजिए, आप अमेरिका में नौकरी कर रहे हैं। हर महीने की कमाई से एक हिस्सा अपने भारत में बसे परिवार को भेजते हैं—कभी माता-पिता के इलाज के लिए, तो कभी बच्चों की पढ़ाई के लिए। लेकिन अचानक एक नया टैक्स आपकी इस नियमित मदद को महंगा और मुश्किल बना देता है। यह कोई काल्पनिक डर नहीं, बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई टैरिफ नीति की असलियत है।

उन्होंने रेमिटेंस यानी विदेश से भेजे जाने वाले पैसों पर नया टैक्स लागू कर दिया है, और इसका सीधा असर भारतीय प्रवासियों पर पड़ने वाला है। सवाल यह उठता है—अब क्या करें NRI? कैसे इस नई व्यवस्था में खुद को और अपने परिवार को सुरक्षित रखें? और क्या भारत सरकार को अब प्रवासी भारतीयों की इस नई मुश्किल में कोई हस्तक्षेप करना चाहिए? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

अमेरिका की इस नई नीति के तहत, अब विदेश से भारत भेजे जाने वाले पैसों पर 3.5% का रेमिटेंस टैक्स लागू होगा। इसका मतलब है कि हर 1 लाख रुपये भेजने पर लगभग 3,500 रुपये टैक्स के तौर पर काट लिए जाएंगे।

यह टैक्स ऐसे समय में लगाया गया है जब महंगाई और जीवनयापन की लागत पहले से ही ऊंचाई पर है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस कदम से हर साल अमेरिका में रहने वाले भारतीयों पर 1.6 अरब डॉलर का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। यह न केवल प्रवासी भारतीयों के लिए एक झटका है, बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था पर भी इसका अप्रत्यक्ष असर देखने को मिल सकता है। क्योंकि यह पैसा सिर्फ घर भेजा गया एक ट्रांसफर नहीं, बल्कि foreign currency reserves का एक मजबूत स्तंभ भी है।

भारतीय रिजर्व बैंक यानी RBI के आंकड़ों के मुताबिक, 2011 में भारत को कुल 55.6 अरब डॉलर रेमिटेंस के तौर पर मिले थे। लेकिन 2024 में यह आंकड़ा बढ़कर 118.7 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। भारत को मिलने वाले इस विदेशी धन का एक बड़ा हिस्सा अमेरिका से आता है।

2021 में अमेरिका की हिस्सेदारी 23.4% थी, जो अब बढ़कर 27.7% हो चुकी है। यानी भारत की अर्थव्यवस्था में अमेरिकी रेमिटेंस की भूमिका और भी अहम होती जा रही है। ऐसे में नया टैक्स न केवल व्यक्तिगत स्तर पर मुश्किलें पैदा करेगा, बल्कि भारत के foreign currency reserves को भी प्रभावित कर सकता है। और इसका असर भारत की आर्थिक स्थिरता से लेकर आम लोगों की जेब तक पड़ेगा।

ट्रंप प्रशासन जिस बिल को लाने की तैयारी कर रहा है, उसका नाम है—”द वन, बिग, ब्यूटीफुल बिल”। इस नाम के पीछे की राजनीति तो अलग विषय है, लेकिन इस बिल के तहत रेमिटेंस पर 5% तक टैक्स लगाने का प्रस्ताव है। यह टैक्स पैसे भेजने वाले व्यक्ति को देना होगा, चाहे वह किसी भी देश का निवासी हो।

इसका मतलब यह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पैसा भेजना पहले से कहीं अधिक महंगा हो जाएगा। हां, यह टैक्स केवल ‘वेरीफाइड यूएस सेंडर’ यानी पंजीकृत अमेरिकी नागरिकों पर लागू नहीं होगा। लेकिन भारत, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका जैसे देशों से अमेरिका गए नागरिकों को अब हर डॉलर भेजते समय उसका 3.5 से 5% अतिरिक्त भुगतान करना होगा।

रिपोर्ट्स के अनुसार, यह टैक्स उन लोगों पर खासतौर से असर डालेगा जो नियमित रूप से अपने परिवार को पैसा भेजते हैं। अमेरिका में रहने वाले लाखों भारतीय प्रवासी, जो हर महीने अपनी कमाई का एक हिस्सा अपने घर भेजते हैं, उन्हें अब हर बार अतिरिक्त चार्ज देना पड़ेगा।

इससे उनके बजट पर सीधा असर पड़ेगा और वे कम पैसा भेजने पर मजबूर हो सकते हैं। कुछ एक्सपर्ट्स का तो यह भी कहना है कि इस टैक्स के चलते कई NRI, अब पैसा भारत भेजने की बजाय अमेरिका में ही Investment करना शुरू कर देंगे। जिससे भारत के अंदर Foreign currency का प्रवाह धीमा हो सकता है और कई जरूरतमंद परिवारों पर इसका असर गहरा हो सकता है।

एक बड़ा सवाल यह भी है कि अगर कोई NRI अमेरिका में Investment करता है, और बाद में उस Investment से पैसे निकाल कर भारत भेजना चाहता है, तो क्या उस पर भी यह टैक्स लागू होगा? एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह इस बात पर निर्भर करेगा कि पैसा कैसे और कहां से भेजा जा रहा है।

उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति अमेरिका में बैंक खाता खोलकर वहीं से Investment करता है, और फिर उसी खाते से पैसा भारत भेजता है, तो उस पर टैक्स लग सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि लोग अपने Investment और रेमिटेंस की रणनीति को फिर से देखें और समझदारी से फैसला लें। क्योंकि Investment और रेमिटेंस की प्रक्रिया अब टैक्स के बोझ से प्रभावित होगी।

यह टैक्स तब लागू होगा जब पैसा भारत भेजा जा रहा होगा—यानी रेमिटेंस के समय ही इसे काट लिया जाएगा। इसका सीधा असर NRE (Non-Resident External) और NRO (Non-Resident Ordinary) अकाउंट्स पर भी पड़ेगा। अगर आप अमेरिका से अपने इन खातों में पैसा ट्रांसफर कर रहे हैं, तो वह भी इस टैक्स के दायरे में आएगा। हालांकि, जिनके पास अमेरिकी सोशल सिक्योरिटी नंबर है, उन्हें कुछ हद तक राहत मिल सकती है। वे लोग टैक्स क्रेडिट या छूट के लिए पात्र हो सकते हैं। लेकिन फिर भी प्रक्रिया जटिल होगी और हर किसी को इसकी जानकारी और सही डॉक्यूमेंटेशन की जरूरत होगी।

इस बिल में एक और नियम जोड़ा गया है जिसे ‘एंटी-कंड्यूट नियम’ कहा जा रहा है। इसका मकसद है कि लोग टैक्स से बचने के लिए किसी अन्य देश के जरिए पैसा न भेजें। लेकिन यह नियम सिर्फ उन्हीं पर लागू होगा जो अमेरिकी नागरिक नहीं हैं। यानी अगर आप अमेरिका के वेरीफाइड सिटीजन हैं तो यह टैक्स आप पर लागू नहीं होगा। इसका साफ मतलब है कि प्रवासी भारतीयों को अब एक अतिरिक्त बोझ के साथ जीना होगा, जो उनकी मेहनत की कमाई को सीधा प्रभावित करेगा।

इसका मतलब साफ है कि यह नया कानून उन NRI भारतीयों के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है, जो अमेरिका में रहकर भारत में अपने परिवार का सहारा बनते हैं। अब उन्हें हर बार पैसे भेजते वक्त 3.5% से 5% तक की कटौती झेलनी होगी। और यही वजह है कि कई भारतीय प्रवासी अब यह सोच रहे हैं कि क्या भारत में पैसा भेजना अब उतना फायदेमंद रहेगा जितना पहले था? या फिर उन्हें अपनी आर्थिक रणनीति बदलनी चाहिए? ऐसे समय में सही वित्तीय सलाह और जागरूकता बेहद जरूरी हो गई है ताकि भावनाओं के साथ-साथ वित्तीय फैसले भी सुरक्षित रह सकें।

तो NRI को अब क्या करना चाहिए? पहला कदम यही है कि वे अपनी वित्तीय प्लानिंग पर दोबारा विचार करें। जो लोग नियमित रूप से पैसा भारत भेजते हैं, उन्हें अब यह देखना होगा कि किस माध्यम से भेजा जाए जिससे टैक्स की मार कम पड़े। दूसरी बात यह है कि भारत में रहने वाले परिजनों को भी इस बदलाव की जानकारी होनी चाहिए, ताकि वे अपनी फाइनेंशियल डिपेंडेंसी का दोबारा मूल्यांकन कर सकें। क्योंकि हर महीने के खर्च अब पूरी तरह उसी मदद पर निर्भर नहीं रह सकते।

इसके अलावा, NRI को अब अमेरिका में Investment के विकल्पों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। अगर पैसा वहीं Investment हो और वहीं उपयोग हो, तो टैक्स से बचा जा सकता है। लेकिन अगर वही पैसा भारत लाना है, तो उसकी योजना पहले से बनानी होगी ताकि टैक्स का असर कम से कम हो। साथ ही, यह भी सुनिश्चित करना जरूरी है कि कोई गलती से टैक्स न कट जाए, खासकर उन लोगों के लिए जो सोशल सिक्योरिटी नंबर के अंतर्गत आते हैं। उन्हें समय रहते टैक्स क्रेडिट क्लेम करना चाहिए। क्योंकि एक बार कटे पैसे को वापस पाना आसान नहीं होता, और अनावश्यक नुकसान से बेहतर है कि पहले से तैयारी की जाए।

Conclusion

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