Dark pattern पर मोदी सरकार का बड़ा वार: अब ऑनलाइन शॉपिंग में नहीं चलेगा छल, ग्राहक होंगे सुरक्षित! 2025

कल्पना कीजिए कि आप किसी वेबसाइट से शॉपिंग कर रहे हैं। एक ऐसा ऑफर अचानक स्क्रीन पर आता है जो कहता है—”लास्ट 5 मिनट! अभी खरीदें वरना ऑफर चला जाएगा।” आप घबरा जाते हैं, क्लिक करते हैं, और बिना सोचे-समझे ऑर्डर कन्फर्म कर देते हैं। फिर आपको पता चलता है कि आपके अकाउंट से कुछ ऐसे शुल्क भी कटे हैं, जिनकी जानकारी न तो साफ-साफ दी गई थी और न ही आपकी अनुमति ली गई थी। क्या यह सिर्फ एक इत्तेफाक है? नहीं।

यही है “Dark pattern”—एक चुपचाप लेकिन बेहद प्रभावी तरीका, जिससे ई-कॉमर्स कंपनियां आपके निर्णयों को नियंत्रित करती हैं। यह इतना खतरनाक होता है कि ग्राहक को पता भी नहीं चलता कि वह किस तरह एक मनोवैज्ञानिक जाल में फंस चुका है। यह नई डिजिटल दुनिया का सबसे काला सच है, जिसे अब सरकार खत्म करने जा रही है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

Central Consumer Protection Authority (CCPA) ने हाल ही में सभी ई-कॉमर्स कंपनियों को एक स्पष्ट और सख्त निर्देश दिया है—”Dark pattern” को तुरंत बंद करो। इन भ्रामक डिज़ाइन तकनीकों को हटाने के लिए कंपनियों को तीन महीने के भीतर सेल्फ-ऑडिट करना होगा।

इसके बाद, उन्हें खुद यह डिक्लेयर करना होगा कि उनके प्लेटफॉर्म पर ऐसा कोई तरीका इस्तेमाल नहीं हो रहा है, जो उपभोक्ताओं को धोखा दे। यह सिर्फ एक प्रशासनिक कदम नहीं, बल्कि डिजिटल युग में उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक बड़ा परिवर्तन है। यह पहली बार है जब सरकार ने टेक्नोलॉजी के उस पहलू को गंभीरता से लिया है, जो आम जनता की जेब पर सीधा असर डालता है।

CCPA का कहना है कि इस तरह का सेल्फ डिक्लेरेशन ग्राहकों और कंपनियों के बीच भरोसे को मजबूत करेगा। यह कदम डिजिटल बाजार में पारदर्शिता और ईमानदारी बढ़ाने के लिए आवश्यक है। अक्सर ग्राहक इस बात को लेकर असमंजस में रहते हैं कि उन्हें क्या चुनना चाहिए और क्या नहीं, लेकिन जब डिजाइन ही इस तरह बनाया गया हो कि ग्राहक का दिमाग भ्रमित हो जाए, तो यह सीधा-सीधा धोखा है।

CCPA का यही मानना है कि ऐसी गतिविधियों पर अब पूरी तरह से रोक लगनी चाहिए, और इसके लिए नियमों को कड़ाई से लागू किया जाएगा। यह इस बात का संकेत है कि सरकार अब केवल विज्ञापनों की भाषा नहीं देखेगी, बल्कि वेबसाइट्स की डिजाइन तक में छिपे फरेब को खत्म करेगी।

Dark pattern को खत्म करने के लिए सरकार ने केवल दिशा-निर्देश ही नहीं दिए, बल्कि एक Joint Working Group – JWG भी बनाया है। इस समूह में Consumer organizations, ministries, law universities और Representative of the Regulators शामिल हैं। इसका काम है—ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स की गतिविधियों की निगरानी करना, रिपोर्ट तैयार करना और सुझाव देना कि उपभोक्ताओं को इन भ्रामक तरीकों से कैसे बचाया जा सकता है। यह ग्रुप समय-समय पर रिपोर्टिंग करेगा और इसके सुझावों के आधार पर नीतियों में बदलाव भी किए जाएंगे। इसके गठन का उद्देश्य यह है कि एक जगह बैठकर केवल नियम नहीं बने, बल्कि एक सामूहिक सोच विकसित हो, जो टेक्नोलॉजी और नैतिकता को एकसाथ जोड़े।

JWG का एक और बड़ा कार्य यह होगा कि वह उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए कार्यक्रम प्रस्तावित करे। यह केवल कंपनियों को जिम्मेदार बनाने का मामला नहीं है, बल्कि उपभोक्ताओं को भी शिक्षित करना जरूरी है कि वे इन डिज़ाइन ट्रिक्स को पहचानें और समझें कि कहां उनसे अनुचित रूप से निर्णय लिया जा रहा है। यह Digital Literacy की दिशा में एक निर्णायक कदम है, जो भारत जैसे देश के लिए बेहद जरूरी है जहाँ करोड़ों लोग पहली बार ऑनलाइन शॉपिंग कर रहे हैं। यह पहल दर्शाती है कि सरकार अब केवल तकनीकी विकास नहीं चाहती, बल्कि चाहती है कि डिजिटल विकास नैतिक आधार पर हो।

इस सख्ती की शुरुआत यूं ही नहीं हुई। हाल ही में केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्री प्रह्लाद जोशी ने 50 से अधिक ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ बैठक की थी। इसमें बताया गया कि Dark pattern कोई छोटी-मोटी गड़बड़ी नहीं, बल्कि एक सुव्यवस्थित रणनीति है।

इस बैठक में उपभोक्ता मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह जोशी ने कंपनियों को चेतावनी दी थी कि अगर वे खुद इन तरीकों को नहीं रोकेंगी, तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इसमें यह भी स्पष्ट किया गया था कि थर्ड पार्टी मर्चेंट्स के जरिए ऐसे पैटर्न को अपनाना भी माफ नहीं किया जाएगा। यह दिखाता है कि सरकार अब बहानों से नहीं, बल्कि परिणामों से काम ले रही है।

इस मामले में ओला और ऊबर जैसी बड़ी कंपनियां भी जांच के घेरे में आ चुकी हैं। CCPA ने उन्हें उनके “एडवांस टिप” फीचर को लेकर नोटिस जारी किया है। यह फीचर उपयोगकर्ताओं से सेवा समाप्त होने से पहले ही टिप जोड़ने के लिए दबाव बनाता है, जो एक क्लासिक Dark pattern का उदाहरण है।

कई बार ग्राहक इस फीचर को बंद करने का ऑप्शन भी नहीं देखते और बिना चाहे टिप दे बैठते हैं। यह ग्राहक के निर्णय को प्रभावित करने का एक तरीका है जो उन्हें आर्थिक नुकसान पहुंचा सकता है। जब देश की सबसे बड़ी कैब कंपनियां तक ऐसे तरीकों का इस्तेमाल करती हैं, तो छोटे प्लेटफॉर्म्स की स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।

अब सवाल उठता है कि Dark pattern आखिर होता क्या है? असल में यह एक डिजाइन रणनीति है, जिसे वेबसाइट और ऐप्स के यूजर इंटरफेस और एक्सपीरियंस में इस तरह से डाला जाता है कि ग्राहक बिना सोचे-समझे किसी निर्णय पर पहुंच जाए। मसलन, एक सब्सक्रिप्शन को रद्द करने का बटन इतना छोटा या छुपा होता है कि ग्राहक उसे खोज ही नहीं पाता।

या फिर “नो” कहने के लिए आपको कई स्टेप्स से गुजरना पड़ता है, जबकि “हां” एक क्लिक में हो जाता है। यह सब इसलिए किया जाता है ताकि ग्राहक की मर्जी के बिना भी वह वही निर्णय ले जो कंपनी चाहती है। यह एक साइकोलॉजिकल ट्रैप है जिसे तकनीक के माध्यम से चालाकी से पेश किया जाता है।

2023 में मंत्रालय ने Dark pattern को रोकने के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए थे। इनमें बताया गया कि कौन-कौन से तरीके Dark pattern माने जाएंगे, जैसे—फॉर्स्ट सब्सक्रिप्शन, नकली काउंटडाउन, छुपे हुए शुल्क, या डिफॉल्ट सेलेक्टेड विकल्प। इन सबका मकसद ग्राहक को भ्रमित करके अपनी मर्जी के विरुद्ध निर्णय दिलवाना होता है। सरकार का मानना है कि उपभोक्ता का अधिकार है कि वह पूरी जानकारी के आधार पर निर्णय ले सके और उसके साथ कोई छल नहीं किया जाए। यह दिशानिर्देश इस बात को मजबूत करते हैं कि डिजिटल अधिकार अब कानूनी दायरे में लाए जा रहे हैं।

भारत में डिजिटल बाजार का दायरा तेजी से बढ़ रहा है। करोड़ों उपभोक्ता अब ऑनलाइन शॉपिंग कर रहे हैं और सैकड़ों ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स इस अवसर का लाभ उठा रहे हैं। लेकिन इसी बढ़ते बाजार में अगर पारदर्शिता नहीं रही, तो उपभोक्ताओं का विश्वास टूटेगा और पूरा ई-कॉमर्स इकोसिस्टम प्रभावित होगा। इसीलिए सरकार अब इन भ्रामक तरीकों पर लगाम लगाने के लिए पूरी तरह से तैयार हो चुकी है। यह केवल एक कानूनी कार्रवाई नहीं, बल्कि भारत के डिजिटल भविष्य की नैतिक नींव रखने की प्रक्रिया है।

अंततः यह कदम केवल उपभोक्ता के हित की रक्षा नहीं करता, बल्कि एक स्वस्थ, पारदर्शी और भरोसेमंद डिजिटल बाजार की नींव भी रखता है। अब यह कंपनियों पर है कि वे इस चेतावनी को गंभीरता से लें और अपने प्लेटफॉर्म्स को ऐसे डिज़ाइनों से मुक्त करें जो ग्राहक को गुमराह करने के लिए बनाए गए हैं। और साथ ही, उपभोक्ताओं को भी जागरूक रहना होगा, ताकि वे जान सकें कि कब और कैसे उन्हें किसी डिज़ाइन या पैटर्न के जरिए प्रभावित किया जा रहा है।

Conclusion

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