Mehul Purohit: बारकोड लगाने वाला लड़का बना करोड़ों का मालिक, सफलता की अनोखी कहानी! 2025

नमस्कार दोस्तों, कल्पना कीजिए, एक साधारण सा लड़का, जिसका जन्म एक छोटे शहर में हुआ था, जिसके पास बड़े सपने तो थे, लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए कोई सीधा रास्ता नहीं था। उसने बचपन में ही संघर्ष की असली परिभाषा को समझ लिया था। वह उन हजारों लोगों की तरह नहीं था, जो हालातों से हार मानकर अपने सपनों को मार देते हैं। वह हर हाल में आगे बढ़ना चाहता था, कुछ अलग करना चाहता था, अपने नाम को दुनिया में पहचान दिलाना चाहता था।

लेकिन हालात उसके अनुकूल नहीं थे। एक समय ऐसा भी आया जब घर की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई कि, वह पढ़ाई के साथ-साथ छोटे-छोटे काम करने पर मजबूर हो गया। किसी बड़ी कंपनी में नौकरी पाने की उम्मीद छोड़कर उसने दुकानों में जाकर बारकोड स्टिकर लगाने का काम किया। यह काम सिर्फ पेट भरने के लिए था, लेकिन इस दौरान उसने एक बेहद अहम चीज सीखी—”अगर आप किसी भी छोटे काम को पूरी ईमानदारी और मेहनत से करते हैं, तो वही काम आपको बड़े सपनों की ओर ले जाता है।”

आज वही लड़का, जो कभी छोटी दुकानों में जाकर बारकोड लगाता था, अब करोड़ों की कंपनी का मालिक है। यह कहानी है राजस्थान के बीकानेर के mehul purohit की, जिनकी सफलता की कहानी सिर्फ एक बिजनेस की कहानी नहीं, बल्कि एक संघर्ष, मेहनत, और जुनून की मिसाल है। उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और लगातार सीखने की आदत से, डिजिटल ब्रांडिंग और इन्फ्लुएंसर मैनेजमेंट की दुनिया में एक बड़ा नाम बना लिया है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

Mehul purohit ने बीकानेर के छोटे शहर से बड़े सपनों तक का सफर कैसे तय किया?

बीकानेर, एक ऐसा शहर जो अपनी मिठाइयों और पारंपरिक संस्कृति के लिए जाना जाता है, वहां से निकलकर कोई व्यक्ति डिजिटल मार्केटिंग की दुनिया में इतनी बड़ी पहचान बना लेगा, यह शायद ही किसी ने सोचा होगा। 8 फरवरी 2,001 को जन्मे mehul purohit का जीवन किसी भी अन्य मध्यमवर्गीय परिवार के लड़के की तरह ही शुरू हुआ था। उनका बचपन हंसी-खुशी में बीत रहा था, लेकिन एक हादसे ने उनके पूरे परिवार की जिंदगी को बदलकर रख दिया।

जब मेहुल सिर्फ छह साल के थे, तब उनके पिता कृती कुमार पुरोहित का निधन हो गया। एक छोटी उम्र में ही उन्होंने अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को डगमगाते हुए देखा। यह वह समय था जब उनके घर में हर दिन संघर्ष चल रहा था। उनकी मां मधु पुरोहित को अचानक ही अपने बच्चों की पूरी जिम्मेदारी उठानी पड़ी। उन्होंने अपनी पूरी ताकत लगाकर अपने बेटों को अच्छी शिक्षा दिलाने की कोशिश की, लेकिन यह इतना आसान नहीं था।

परिवार की जिम्मेदारियों को देखते हुए, मेहुल ने छोटी उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने दुकान-दुकान जाकर बारकोड स्टिकर लगाने का काम किया, ताकि कुछ पैसे कमाकर घर चला सकें। यह काम उन्हें बहुत छोटा लगता था, लेकिन उन्होंने कभी इसे बोझ नहीं समझा। इसके बजाय, उन्होंने इस काम के जरिए खुद को आत्मनिर्भर बनाने की पहली सीढ़ी पर रखा।

Mehul purohit को शिक्षा और करियर की पहली सीख कहां से मिली, और इसका उनके भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ा?

कठिन परिस्थितियों में रहते हुए भी, मेहुल ने अपनी पढ़ाई को जारी रखा। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा रमेश इंग्लिश स्कूल, बीकानेर से पूरी की। लेकिन स्कूल के दिनों में ही उन्हें यह अहसास हो गया था कि सिर्फ डिग्री लेना ही काफी नहीं होगा। वे कुछ ऐसा करना चाहते थे, जिससे उन्हें आगे बढ़ने का सही अवसर मिले।

जब वे 11वीं कक्षा में पहुंचे, तब उन्होंने ग्राफिक डिजाइनिंग सीखने का फैसला किया। यह उनके लिए पूरी तरह से एक नई दुनिया थी। उन्होंने इंटरनेट और ट्यूटोरियल्स के जरिए खुद को इस क्षेत्र में Trained किया। इसके साथ ही उन्होंने फ्रीलांसिंग की दुनिया में भी कदम रखा और डिजिटल डिजाइनिंग में अपने Skill को निखारना शुरू कर दिया।

उनका मानना था कि अगर वे पढ़ाई के साथ-साथ डिजिटल मार्केटिंग और डिजाइनिंग का सही उपयोग करें, तो वे खुद को दूसरों से आगे रख सकते हैं। 2,021 में, उन्होंने महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर से अपनी ग्रेजुएशन पूरी की, लेकिन तब तक वे एक मजबूत डिजिटल ब्रांड बनाने की दिशा में काम करना शुरू कर चुके थे।

मल्टीफेज डिजिटल सिर्फ चार साल में करोड़ों का ब्रांड कैसे बना?

जब पूरी दुनिया 2021 में कोरोना महामारी के चलते आर्थिक संकट का सामना कर रही थी, तब मेहुल ने इसे अपने लिए एक अवसर में बदलने का फैसला किया। उन्होंने डिजिटल ब्रांडिंग और इन्फ्लुएंसर मैनेजमेंट के क्षेत्र में कुछ नया करने की ठानी और इसी सोच के साथ “मल्टीफेज डिजिटल” की शुरुआत की।

शुरुआत में यह सिर्फ एक छोटा स्टार्टअप था, लेकिन उनकी मेहनत और क्रिएटिव सोच ने इसे भारत की सबसे तेजी से बढ़ती डिजिटल मार्केटिंग कंपनियों में से एक बना दिया। कुछ ही समय में, उन्होंने छोटे स्टार्टअप्स से लेकर बड़े इंटरनेशनल ब्रांड्स तक के साथ काम करना शुरू कर दिया। उनकी सेवाओं में डिजिटल मार्केटिंग, सोशल मीडिया ब्रांडिंग, और इन्फ्लुएंसर मैनेजमेंट शामिल थे।

उनके बड़े भाई देवेंद्र पुरोहित उनके सबसे बड़े सपोर्टर बने। जब भी वे किसी कठिन निर्णय के सामने आते, तो उनके भाई हमेशा उनका मार्गदर्शन करते। मेहुल खुद कहते हैं कि “मेरे भाई देवेंद्र मेरी बैकबोन की तरह हैं। अगर वे मेरे साथ न होते, तो शायद मैं यहां तक नहीं पहुंच पाता।”

Mehul purohit एशिया के सबसे युवा एंटरप्रेन्योर कैसे बने?

2,022 मेहुल के जीवन का एक महत्वपूर्ण साल साबित हुआ। इसी साल उन्हें “Youngest Entrepreneur of Asia” का खिताब मिला। यह उनके लिए किसी सपने के सच होने जैसा था। इस पुरस्कार ने न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी पहचान बना दी। इसके बाद, 2,023 में उन्हें “Economic Times Young Industry Leaders Award” से नवाजा गया। यह सम्मान उन्हें बॉलीवुड अभिनेता सोनू सूद के हाथों मिला। यह वह पल था जब बीकानेर का यह साधारण लड़का भारत के बिजनेस वर्ल्ड में चमकता सितारा बन चुका था।

अगर आप सोच रहे हैं कि mehul purohit की सफलता रातोंरात आई, तो आप गलत हैं। उन्होंने हर दिन मेहनत की, असफलताओं से सीखा, और कभी हार नहीं मानी। उन्होंने हमेशा यह सिद्ध किया कि अगर आपके अंदर कुछ बड़ा करने का जुनून है, तो आप किसी भी ऊंचाई को छू सकते हैं। उनकी यह कहानी हमें यह सिखाती है कि छोटे शहरों में रहने वाले लोग भी बड़े सपने देख सकते हैं और उन्हें पूरा कर सकते हैं। कोई भी सफलता आसान नहीं होती, लेकिन अगर आप मेहनत, आत्मविश्वास और लगन के साथ आगे बढ़ते हैं, तो कोई भी मुश्किल आपको रोक नहीं सकती।

Conclusion

तो दोस्तों, mehul purohit की कहानी सिर्फ उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि हर उस युवा के लिए एक प्रेरणा है, जो बड़े सपने देखता है लेकिन रास्ते में मुश्किलें देखकर घबरा जाता है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, लेकिन अगर आप हिम्मत नहीं हारते, तो सफलता आपके कदम चूमती है। अगर आपको यह कहानी प्रेरणादायक लगी, तो इसे शेयर करें और अपनी राय कमेंट में बताएं।

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