Investors के लिए अच्छी खबर! मुश्किल दौर के बाद अब आएगा सुनहरा समय – जानिए पूरी कहानी। 2025

क्या आपने कभी ऐसी घड़ी महसूस की है, जब आपके सामने पूरा आकाश टूटने को हो, लेकिन आप चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते? जब आपके सारे Investment, आपकी सारी उम्मीदें और आपकी बनाई गई आर्थिक नींव एक-एक कर दरकने लगे… यही हाल है आज लाखों भारतीय Investors का। एक के बाद एक ऐसे झटके लगे हैं कि अब भरोसा करना भी मुश्किल हो गया है कि ये बुरे दिन आखिर कब खत्म होंगे।

शेयर बाजार की हर गिरावट अब किसी डरावने सपने जैसी लगती है, और हर उम्मीद एक अनसुनी प्रार्थना में बदल चुकी है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे। लेकिन उससे पहले, अगर आप हमारे चैनल पर नए हैं, तो कृपया चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें, ताकि हमारी हर नई वीडियो की अपडेट सबसे पहले आपको मिलती रहे। तो चलिए, बिना किसी देरी के आज की चर्चा शुरू करते हैं!

शेयर बाजार में पैसा लगाना हमेशा एक Risk भरा कदम माना जाता रहा है। लेकिन जब यह Risk एक अंतहीन अस्थिरता में बदल जाए, तब यह केवल आर्थिक नुकसान नहीं, बल्कि मानसिक तनाव और भविष्य को लेकर अनिश्चितता का कारण बन जाता है। पिछले एक साल में यही हुआ है — foreign investors की लगातार बिकवाली, वैश्विक घटनाओं की मार, और अब ईरान-इजरायल युद्ध जैसी स्थितियों ने बाजार को एक अनिश्चित अंधेरे में धकेल दिया है। यह माहौल सिर्फ संख्याओं का खेल नहीं रह गया है, अब यह आम इंसान की नींद, परिवार की जरूरतें और जीवन की दिशा तय करने वाला तूफान बन चुका है।

सितंबर 2024 में जब भारतीय शेयर बाजार ऑल टाइम हाई पर पहुंचा था, तो हर Investor को यही लगा कि अब उनके अच्छे दिन आ गए हैं। सेंसेक्स 85,000 और निफ्टी 26,000 के पार — यह आंकड़े सपनों की तरह थे। लोग एक-दूसरे को बधाई दे रहे थे, सोशल मीडिया पर पोर्टफोलियो की स्क्रीनशॉट्स शेयर की जा रही थीं। लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नहीं टिक सकी। जैसे ही कंपनियों के नतीजे निराशाजनक आने लगे, बाजार नीचे गिरने लगा। सबसे पहले Foreign institutional investors ने पैसा निकालना शुरू किया। और फिर जैसे-जैसे यह सिलसिला बढ़ता गया, बाजार ने घुटने टेक दिए। इस गिरावट ने Investors के आत्मविश्वास को झकझोर कर रख दिया।

मई तक आते-आते, सेंसेक्स 80,000 के नीचे आ गया और निफ्टी भी 23,000 से नीचे फिसल गया। लोगों के पोर्टफोलियो में लाल निशान छा गए। सोशल मीडिया पर Investors के फटे हाल मीम्स वायरल होने लगे। जिन लोगों ने रिटायरमेंट या बच्चों की पढ़ाई के लिए पैसे लगाए थे, वो अब परेशान थे कि अब आगे क्या करें। कुछ ने SIP रोक दी, तो कुछ ने स्टॉक्स बेचकर नुकसान में बाहर निकलना शुरू कर दिया। बाजार में एक डर का माहौल था, और तभी एक और झटका आया — ट्रंप टैरिफ।

अप्रैल के अंत में जब सबको लगा कि बाजार स्थिर हो रहा है, तभी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फिर से टैरिफ युद्ध छेड़ दिया। भारत पर 26% टैरिफ की घोषणा ने फिर बाजार को धराशायी कर दिया। Investors ने डर के मारे और शेयर बेचने शुरू कर दिए। एक बार फिर चारों ओर मंदी की आहट सुनाई देने लगी। कई फंड्स का N A V गिरा, foreign investors की धारणा और खराब हो गई, और भारतीय रुपये पर भी दबाव बढ़ने लगा।

इस टैरिफ का असर सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के बाजारों पर पड़ा। चीन, यूरोप, ब्राजील — हर जगह हलचल मच गई। और भारत, जो पहले से ही कमजोर पड़ चुका था, अब और अधिक दबाव में आ गया। हालांकि राहत की बात यह रही कि इस टैरिफ को 90 दिनों के लिए रोक दिया गया, लेकिन तब तक Investors का मनोबल कमजोर हो चुका था। रिस्क-एवर्जन इतना बढ़ गया कि लोग रियल एस्टेट और गोल्ड की तरफ शिफ्ट होने लगे।

इससे पहले लोग बाजार को लेकर जितने आश्वस्त थे, अब उतने ही सशंकित हो गए। हर छोटी-बड़ी घटना का सीधा असर शेयर बाजार पर दिखने लगा। और जैसे ही ट्रंप टैरिफ का असर थोड़ा कम हुआ, एक और त्रासदी ने सिर उठाया — पहलगाम आतंकवादी हमला। इस घटना ने न केवल लोगों के दिलों को तोड़ा, बल्कि बाजार की मनोवृत्ति को भी झकझोर कर रख दिया।

कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने 26 मासूम नागरिकों को गोलियों से भून डाला। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। भारत ने इसका जवाब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिए दिया और सीमा पार के कई आतंकी ठिकानों को तबाह कर दिया। हालांकि यह रणनीतिक प्रतिक्रिया थी, लेकिन इससे भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव काफी बढ़ गया। नतीजा — बाजार फिर से टूट गया। सेंसेक्स और निफ्टी दोनों ने एक और तेज गिरावट देखी। Investors को लगने लगा कि अब युद्ध की आशंका से उनकी पूरी संपत्ति खत्म हो सकती है।

जैसे ही भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर की खबर आई, बाजार में थोड़ी तेजी दिखी। लेकिन इस राहत ने ज्यादा देर तक टिकने का मौका नहीं पाया। क्योंकि अब नया संकट सामने आ चुका था — ईरान और इजरायल के बीच युद्ध। यह सिर्फ दो देशों का मामला नहीं रहा, बल्कि इसका असर पूरे ग्लोबल ऑर्डर पर दिखने लगा।

यह कोई आम सैन्य झड़प नहीं, बल्कि एक ऐसा संघर्ष है जो पूरी दुनिया के आर्थिक तानेबाने को हिला सकता है। वजह? स्ट्रेट ऑफ होर्मुज — वो समुद्री रास्ता जिससे होकर दुनियाभर के तेल का एक बड़ा हिस्सा गुजरता है। अगर युद्ध के चलते यह रास्ता बंद होता है, तो न सिर्फ तेल के दाम आसमान छू जाएंगे, बल्कि शिपिंग इंडस्ट्री, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर और यहां तक कि आपके मोबाइल फोन की बैटरी पर भी असर पड़ेगा। ये संकट सिर्फ अर्थव्यवस्था का नहीं, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी का बन जाएगा।

ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत अब 76 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई है और इसमें अभी और तेजी की आशंका है। इसका सीधा असर भारत की इकोनॉमी पर पड़ सकता है क्योंकि हम अपनी तेल जरूरतों का बड़ा हिस्सा Import करते हैं। और जब तेल महंगा होता है, तो ट्रांसपोर्ट, बिजली, खाद्य वस्तुएं — सब महंगे हो जाते हैं। यानी महंगाई की एक नई लहर आम आदमी को फिर झकझोर सकती है।

हालांकि कुछ experts का कहना है कि ईरान यह गलती नहीं करेगा कि वह होर्मुज को बंद करे, क्योंकि उसकी खुद की इकोनॉमी कच्चे तेल पर निर्भर है। लेकिन युद्ध की स्थिति में हर संभावना खुली रहती है। और जब तक स्थिति स्पष्ट नहीं हो जाती, तब तक बाजार में अस्थिरता बनी रहेगी। Investor डर और अनिश्चितता में उलझे रहेंगे।

अब सवाल यह उठता है कि ऐसे में आम Investor क्या करे? क्या सारे पैसे निकालकर बाजार से दूरी बना ले? या फिर इस तूफान के बीच भी डटे रहने की हिम्मत दिखाए? experts की मानें तो अभी घबराने का नहीं, बल्कि समझदारी दिखाने का समय है। लॉन्ग टर्म की सोच, अच्छे फंडामेंटल्स और धैर्य ही इस समय सबसे बड़ा हथियार हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है। बैंकिंग सिस्टम में पर्याप्त लिक्विडिटी है। सरकार की तरफ से भी फंडामेंटल्स को मजबूत रखने के प्रयास किए जा रहे हैं। ऐसे में जिन कंपनियों का बैलेंस शीट मजबूत है, जिनका बिजनेस मॉडल टिकाऊ है, उन पर दांव लगाना अब भी बेहतर रणनीति मानी जा रही है। SIP जारी रखने की सलाह दी जा रही है और बड़े Investors का भरोसा अभी भी बाजार में कायम है।

लॉन्ग टर्म के Investor अगर अभी भी अच्छे क्वालिटी के शेयरों में बने रहते हैं, तो जैसे ही स्थिति सामान्य होगी, सबसे पहले उन्हीं को इसका फायदा मिलेगा। इतिहास ने कई बार यह दिखाया है कि जो गिरावट में Investment करते हैं, वही तेजी में सबसे ज्यादा मुनाफा कमाते हैं।

लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आंख मूंदकर किसी भी शेयर में पैसा लगा दिया जाए। रिसर्च, एनालिसिस और सलाहकारों की मदद से ही Investment का फैसला किया जाना चाहिए। हर सेक्टर की अलग परिस्थिति होती है और हर कंपनी का अलग भविष्य। इसलिए समझदारी और विवेक के साथ चलना जरूरी है।

और हां, भावनाओं में बहकर हर गिरावट को अंत नहीं समझना चाहिए। कई बार बाजार का यह उतार-चढ़ाव ही भविष्य की बड़ी उड़ान की तैयारी होता है। Investment का खेल एक मैराथन है, स्प्रिंट नहीं। जो धैर्य से चलते हैं, वही अंत में जीतते हैं।

पिछले एक साल के घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बाजार केवल आंकड़ों से नहीं, बल्कि भावनाओं, वैश्विक नीतियों और भू-राजनीतिक घटनाओं से भी चलता है। और जो Investor इन सबके बीच संयम रखते हैं, वही अंत में विजेता बनते हैं। यही असली ‘वैल्थ क्रिएशन’ की कला है।

Conclusion

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