Israel: दुश्मनों के बीच भी सुपरपावर बना रहा! जानिए Israel बनाम ईरान की पूरी कहानी और भारत को क्या मिला फायदा। 2025

अगर एक दिन ऐसा हो, जब पूरी दुनिया की नज़र दो देशों की ओर टिक जाए — एक वो देश जो टेक्नोलॉजी का राजा है, और दूसरा जो तेल की ताकत के दम पर चलता है — तो उस पल सवाल सिर्फ युद्ध का नहीं रह जाता, बल्कि ये बन जाता है आर्थिक शक्ति और भविष्य की लड़ाई का। क्या Israel वाकई इतना ताकतवर है? या ईरान की छिपी ताकतों को दुनिया ने अभी समझा नहीं? इस कहानी में हम उतरेंगे एक-एक आंकड़े के अंदर, और जानेंगे कि असली बादशाह कौन है — Israel या ईरान?” 

आज जब Israel और ईरान के बीच जंग की आग सुलग रही है, दुनिया की निगाहें इन दोनों मुल्कों की ताकत पर टिकी हुई हैं। लेकिन सवाल सिर्फ हथियारों का नहीं है, सवाल है – कौन देश वाकई में ज्यादा मजबूत है? किसके नागरिक ज्यादा कमाते हैं? कौन सी अर्थव्यवस्था अधिक स्थिर है? और अगर ये जंग लंबी चली, तो किस देश के पास उसे झेलने की ज्यादा ताकत है?

आइए, सबसे पहले बात करते हैं उस पैमाने की, जिसे किसी भी देश की आर्थिक सेहत का पहला संकेत माना जाता है – GDP यानी Gross domestic product। Israel की GDP लगभग 50 लाख करोड़ रुपये है, जबकि ईरान की GDP करीब 29 लाख करोड़ रुपये। यानि कुल आकार में Israel ईरान से काफी आगे है। पर कहानी यहां खत्म नहीं होती।

दरअसल, फर्क सिर्फ आंकड़ों का नहीं है। फर्क उस मॉडल का है जिस पर दोनों देशों की अर्थव्यवस्था टिकी हुई है। Israel की पूरी अर्थव्यवस्था इनोवेशन, टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर डिफेंस और स्टार्टअप्स के मॉडल पर चलती है। वहीं ईरान अभी भी कच्चे तेल के Export और पारंपरिक व्यापार पर निर्भर है। अगर कल दुनिया ने तेल पर निर्भरता घटा दी, तो ईरान की रीढ़ हिल सकती है, जबकि इजरायल उसी वक्त नई टेक्नोलॉजी में छलांग मार सकता है।

जनसंख्या के मामले में ईरान की आबादी Israel से लगभग 10 गुना अधिक है। लेकिन जब GDP को इस जनसंख्या से विभाजित करते हैं, तो असली अंतर सामने आता है — प्रति व्यक्ति आय। IMF और ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स के आंकड़े बताते हैं कि Israel में एक व्यक्ति की सालाना आय करीब 49 लाख रुपये है। वहीं ईरान में यह आंकड़ा सिर्फ 3.3 लाख रुपये है। यानी इजरायली नागरिक की औसत आमदनी, ईरानी नागरिक से करीब 15 गुना अधिक है। ये अंतर सिर्फ पैसे का नहीं, जीवनशैली, स्वास्थ्य, शिक्षा और अवसरों का भी है।

इस आर्थिक फर्क की जड़ें काफी गहरी हैं। Israel ने समय रहते खुद को एक इनोवेशन हब बना लिया। वहीं ईरान, अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों, आंतरिक राजनीति और तेल पर निर्भरता के कारण Global competition से काफी पीछे रह गया। और इसका असर सिर्फ आमदनी पर नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय भरोसे पर भी दिखता है।

अगर foreign currency reserves की बात करें, तो Israel के पास लगभग 19.2 लाख करोड़ रुपये का विदेशी रिजर्व है, जबकि ईरान के पास सिर्फ 2.9 लाख करोड़ रुपये। यानी जब बात आती है अंतरराष्ट्रीय संकट में अपनी मुद्रा को बचाने या व्यापारिक स्थिरता बनाए रखने की, तो Israel का कंधा कहीं ज्यादा मजबूत साबित होता है।

अब एक नजर डालते हैं ट्रेड यानी Import और Export पर। इस मामले में ईरान Israel से कहीं बड़ा खिलाड़ी नजर आता है। ईरान सालाना करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये का Import करता है और 1.4 लाख करोड़ रुपये का Export। इसका मुख्य कारण है उसका तेल Exporter देश होना। लेकिन ये आंकड़े सतही हैं। Israel की ट्रेड वैल्यू कम हो सकती है, लेकिन उसकी एक्सपोर्ट क्वालिटी हाई-टेक है — जैसे साइबर टेक्नोलॉजी, मेडिकल इनोवेशन, मिलिट्री हार्डवेयर और डिजिटल सर्विसेज। वहीं ईरान के ज्यादातर एक्सपोर्ट कमोडिटी बेस्ड हैं — जिनका भविष्य अनिश्चित है।

और जब बात आती है सेना और रक्षा बजट की, तो यहाँ भी Israel बाज़ी मारता दिखता है। उसका सालाना डिफेंस बजट लगभग 4 लाख करोड़ रुपये है, जबकि ईरान का सिर्फ 68 हजार करोड़ रुपये। यानी Israel हर साल ईरान से 6 गुना ज्यादा रकम अपने हथियार, सुरक्षा और टेक्नोलॉजी पर खर्च करता है। यही वजह है कि उसकी मिलिट्री को दुनिया की सबसे एडवांस्ड फोर्सेज में गिना जाता है।

Israel का आयरन डोम सिस्टम हो या साइबर इंटेलिजेंस नेटवर्क — उसकी सुरक्षा प्रणाली दुनिया के कई विकसित देशों से भी कहीं आगे है। वहीं ईरान की सेना संख्या बल में तो मजबूत हो सकती है, लेकिन टेक्नोलॉजी और लॉजिस्टिक्स में वह Israel के मुकाबले बहुत पीछे है।

इसका असर रणनीतिक साझेदारियों में भी दिखता है। Israel को अमेरिका, यूरोपीय यूनियन और जापान जैसे देशों से आर्थिक, टेक्नोलॉजिकल और मिलिट्री समर्थन प्राप्त है। वहीं ईरान अक्सर प्रतिबंधों, अंतरराष्ट्रीय आलोचना और अस्थिर कूटनीतिक रिश्तों से घिरा रहता है।

इजरायल की सेना न केवल तकनीकी रूप से उन्नत है, बल्कि उसके जवानों की ट्रेनिंग और इंटेलिजेंस यूनिट्स को दुनिया में सबसे बेहतरीन माना जाता है। वहीं ईरान के पास क्रांतिकारी गार्ड्स और क्षेत्रीय मिलिशियाएं हैं, जो अक्सर गैर-पारंपरिक युद्ध रणनीतियों पर आधारित होती हैं — लेकिन वे आधुनिक युद्ध की जटिलताओं में कमजोर साबित हो सकती हैं।

एक और पहलू है — आर्थिक संकट से उबरने की क्षमता। कोविड, वैश्विक मंदी, या युद्ध जैसी आपदाएं जब भी आती हैं, तो देश का रिकवरी सिस्टम उसकी असली ताकत दिखाता है। इजरायल ने महामारी के बाद बहुत तेजी से डिजिटल इनफ्रास्ट्रक्चर, हेल्थ केयर और शिक्षा प्रणाली को रिवाइव किया। वहीं ईरान लंबे समय से आर्थिक प्रतिबंधों और सीमित वैश्विक सहयोग से जूझ रहा है।

आज के वैश्विक दौर में टेक्नोलॉजी ही असली शक्ति है। और इस युद्ध के मैदान में Israel के पास वो हर हथियार है — डेटा, इनोवेशन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, और साइबर सिक्योरिटी। वहीं ईरान अभी भी तेल की कीमतों, धार्मिक कट्टरता और सैन्य तनाव के बोझ से उबरने की कोशिश कर रहा है।

लेकिन इस तुलना के बावजूद, ये भी मानना होगा कि ईरान के पास कुछ ऐसी रणनीतिक ताकतें हैं जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। उसका भौगोलिक स्थान, तेल का विशाल भंडार, और पश्चिम एशिया में उसकी छाया – उसे क्षेत्रीय शक्ति बनाते हैं। पर क्या सिर्फ कच्चे तेल और मिलिशिया की मदद से कोई देश सदी के सबसे आधुनिक युद्धों का सामना कर सकता है?

इस सवाल का जवाब आज की दुनिया के हर युवा, हर निवेशक और हर नीति निर्माता को समझना होगा। क्योंकि युद्ध सिर्फ गोले-बारूद का नहीं, आर्थिक नींव और डिजिटल शक्ति का भी है। और जब ये सवाल उठता है — कौन है असली सुपरपावर? — तो आंकड़े, टेक्नोलॉजी और विश्वसनीयता एक ही नाम की तरफ इशारा करते हैं — इजरायल।

Conclusion

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