सोचिए, जब पूरा देश स्टॉक मार्केट, क्रिप्टोकरेंसी और गोल्ड-सिल्वर में Investment के नए रास्ते ढूंढ रहा है, तब कुछ लोग चुपचाप ऐसी चीज़ों में Investment कर रहे हैं जो न तो ट्रेडिंग ऐप पर लिस्टेड हैं, न ही डिजिटल वॉलेट में स्टोर होती हैं। ये हैं देश के अल्ट्रा रिच—वो लोग जो एक क्लिक में करोड़ों की डील कर देते हैं और एक निर्णय से पूरे बाजार का रुख मोड़ देते हैं। इन दिनों भारत के सबसे अमीर लोग स्टॉक, म्यूचुअल फंड और बिटकॉइन नहीं खरीद रहे, वे खरीद रहे हैं ज़मीन।
और यह फैसला केवल रिटर्न के लिए नहीं, बल्कि विरासत, शक्ति, स्थायित्व और सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए लिया जा रहा है। इस बदलाव के पीछे की सोच सिर्फ पैसा नहीं है—यह है सोच, दृष्टिकोण और आने वाले दशक की तैयारी, जहां जमीन महज़ संपत्ति नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक सत्ता का प्रतीक बन चुकी है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
आजकल की युवा पीढ़ी Investment को लेकर उत्साहित है। कोई गोल्ड में Investment कर रहा है, कोई म्यूचुअल फंड में SIP कर रहा है, तो कोई क्रिप्टोकरेंसी में बड़ी उम्मीदें लगा बैठा है। लेकिन भारत के 0.001% अमीर वर्ग—जिसमें यूनिकॉर्न फाउंडर, रॉयल फैमिलीज़ और पीढ़ियों से संपन्न घराने शामिल हैं—उनकी सोच इस भीड़ से अलग है।
वे जानते हैं कि असली संपत्ति वो होती है जो दिखती है, महसूस होती है और जिसकी सीमाएं सरकार नहीं तय करती। यही कारण है कि आज इन अल्ट्रा रिच लोगों का फोकस है रियल एस्टेट—लेकिन नॉर्मल फ्लैट या अपार्टमेंट नहीं, बल्कि ट्रॉफी पेंटहाउस, ब्रांडेड विला, और हाई-वैल्यू लैंड जो लंबे समय तक मूल्य को न केवल बनाए रखते हैं, बल्कि समय के साथ उसमें अपार वृद्धि की संभावना भी होती है।
लग्जरी रियल एस्टेट सलाहकार ऐश्वर्या कपूर के मुताबिक, भारत के टॉप अमीर लोग चुपचाप ऐसे पोर्टफोलियो बना रहे हैं जिनकी कीमत 75 करोड़ से शुरू होकर 500 करोड़ रुपये तक जाती है। ये पोर्टफोलियो क्रिप्टो या स्टॉक जैसी अस्थिर संपत्तियों पर नहीं टिके हैं, बल्कि ज़मीन और ब्रांडेड रियल एस्टेट पर केंद्रित हैं।
कपूर के अनुसार, ये Investor 3BHK अपार्टमेंट या लोकल हाउसिंग में पैसा नहीं डालते, बल्कि उनका ध्यान होता है वीकेंड विला, कमर्शियल फ्लोर, और ऐसे हाई-एंड प्रोजेक्ट्स जो आम जनता की नज़रों से दूर होते हैं। इन संपत्तियों के पीछे केवल रिटर्न की गणना नहीं होती, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए स्थायित्व, विरासत और सामाजिक प्रतिष्ठा की संरचना की जाती है।
ऐश्वर्या कपूर ने अपनी एक लिंक्डइन पोस्ट में कई ऐसे केस स्टडी शेयर किए हैं, जो यह दिखाते हैं कि भारत के अमीर लोग केवल घर ही नहीं खरीद रहे, बल्कि बड़े-बड़े कमर्शियल फ्लोर, ट्रॉफी पेंटहाउस, लीज पर लिए गए कॉर्पोरेट एरिया, और विदेशी लोकेशन पर संपत्ति का अधिग्रहण कर रहे हैं।
दिल्ली, मुंबई, गोवा, दुबई और लंदन जैसे शहरों में उनके पास ब्रांडेड होम्स और Investment प्रॉपर्टीज़ हैं। और ये संपत्तियां सिर्फ एक जगह खड़ी नहीं होतीं—इनसे मिलता है किराया, लिक्विडिटी और वैल्यू अप्रीसिएशन जो हर फाइनेंशियल मॉडल को पीछे छोड़ देता है। इन प्रॉपर्टीज़ के साथ एक अनदेखा लाभ भी जुड़ा होता है—सामाजिक रसूख और एक खास वर्ग में प्रवेश, जिसे पैसा तो खरीद सकता है, लेकिन समझदारी से ही कायम रखा जा सकता है।
ऐसी ही एक केस स्टडी में, दक्षिण दिल्ली के एक प्रतिष्ठित परिवार ने अपना 220 करोड़ रुपये का हेरिटेज बंगला बेच दिया, और गुड़गांव में एक 75 करोड़ रुपये का ब्रांडेड अपार्टमेंट खरीदा। ये फैसला सिर्फ घर बदलने का नहीं था, बल्कि रणनीति का हिस्सा था। इस कदम से उन्हें न केवल 145 करोड़ रुपये कैश मिला, बल्कि गुड़गांव की तेजी से बढ़ती प्रॉपर्टी मार्केट ने उनके नए घर की वैल्यू को पांच गुना तक बढ़ा दिया।
यह सिर्फ एक उदाहरण है कि कैसे ज़मीन या प्रीमियम रियल एस्टेट में Investment करके अमीर लोग एक नए तरह की आर्थिक स्वतंत्रता हासिल कर रहे हैं, जो स्टॉक या म्यूचुअल फंड जैसी पारंपरिक संपत्तियों से कहीं अधिक स्थायी और लाभदायक है।
कपूर का कहना है कि ऐसे 400 से 500 करोड़ रुपये के रियल एस्टेट पोर्टफोलियो को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहला—ब्रांडेड अपार्टमेंट जो अभी निर्माणाधीन हैं, दूसरा—कमर्शियल प्रॉपर्टी जो पहले से लीज पर दी जा चुकी है और तीसरा—ऐसी रणनीतिक भूमि जिसमें भविष्य में जोनिंग अपसाइड है। इन अवसरों को आप ऑनलाइन प्रॉपर्टी वेबसाइट पर नहीं पाएंगे।
न ही यह कोल्ड कॉल या एजेंट से मिलने वाले ऑफर होते हैं। ये इनवेस्टमेंट्स एक्सक्लूसिव नेटवर्क्स, प्राइवेट क्लब्स और फैमिली ऑफिस के माध्यम से होते हैं—जहां पैसा नहीं, पहुंच मायने रखती है। इन नेटवर्क्स का हिस्सा बनना ही एक प्रकार की प्रतिष्ठा है और यहां से मिलने वाले अवसर, अमूमन एक पीढ़ी को कई पीढ़ियों तक लाभ पहुंचाने की क्षमता रखते हैं।
अब सवाल उठता है कि आखिर जमीन ही क्यों? क्यों भारत के सबसे अमीर लोग ऐसी संपत्ति में पैसा लगा रहे हैं जो न तो टेक्नोलॉजी फ्रेंडली है, न ही लिक्विड? ऐश्वर्या कपूर कहती हैं कि रियल एस्टेट भारत की अंतिम ‘डायनेस्टी एसेट’ है। यह न केवल मूल्य में वृद्धि करता है, बल्कि सामाजिक प्रतिष्ठा, गोपनीयता और राजनीतिक लाभ का साधन भी बनता है।
जबकि स्टॉक्स और क्रिप्टो पूरी तरह ट्रैक और रेगुलेट किए जा सकते हैं, ज़मीन अभी भी भारत में कम रिपोर्टेड, लेकिन हाई वैल्यू एसेट है। यही कारण है कि बड़े-बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट्स, राजनेता, अभिनेता और वैश्विक Investor ज़मीन को अपनी विरासत के रूप में देख रहे हैं। यह संपत्ति उन्हें वित्तीय स्वतंत्रता ही नहीं, सामाजिक मान्यता और राजनीतिक असर भी प्रदान करती है, जो किसी और फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट से नहीं मिल सकती।
कपूर के अनुसार, ज़मीन में Investment करने के पीछे एक और कारण है—प्रभाव और धारणा। जब कोई व्यक्ति करोड़ों का एक विला या ट्रॉफी प्रॉपर्टी खरीदता है, तो वह केवल अपने लिए घर नहीं खरीदता, बल्कि एक संदेश देता है—शक्ति, स्थिति और सामाजिक स्वीकार्यता का। और यही चीज़ उसे बाकी Investors से अलग बनाती है।
यह Investment न केवल कैश रिटर्न देता है, बल्कि एक प्रकार की सामाजिक और राजनीतिक पूंजी भी बनाता है जो किसी भी और फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट से नहीं मिलती। यह संपत्ति धीरे-धीरे बढ़ती है, लेकिन उसका प्रभाव तुरंत महसूस होता है—चाहे वह किसी बिजनेस डील में हो, पॉलिटिकल कनेक्शन में या मीडिया की सुर्खियों में।
इस रियल एस्टेट रेस में सिर्फ भारतीय अल्ट्रा रिच ही नहीं, बल्कि ग्लोबल इन्वेस्टर्स और NRI भी शामिल हैं। UAE, सिंगापुर और अमेरिका में बसे भारतीय परिवार अब भारत लौटकर यहां पर ज़मीन खरीद रहे हैं। वे दिल्ली-एनसीआर, गोवा, पुणे, जयपुर और कोडाईकनाल जैसे लोकेशन्स में वीकेंड होम्स और रिटायरमेंट विला खरीद रहे हैं। इसके पीछे सिर्फ एक उद्देश्य नहीं, बल्कि कई विचार होते हैं—विरासत, टैक्स प्लानिंग, गोपनीयता और कई बार राजनीतिक पहुंच भी। इन सभी का संगम ही जमीन को सबसे सशक्त एसेट क्लास बना देता है।
आज रियल एस्टेट भारत में फिर से एक नई ऊंचाई पर पहुंच चुका है। कई स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स, इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, एयरपोर्ट्स, और मेट्रो नेटवर्क्स की वजह से ज़मीन की कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि देखी जा रही है। और यही वजह है कि भारत के अल्ट्रा रिच लोग इस ट्रेंड को सिर्फ फॉलो नहीं कर रहे—बल्कि लीड कर रहे हैं।
Conclusion
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