कभी-कभी ज़िंदगी एक ऐसे मोड़ पर आ जाती है, जहां सब कुछ एक पल में बदल जाता है। एक मुस्कान, एक हँसी, एक सपना — सब कुछ पल भर में खत्म हो सकता है। कश्मीर के पहलगाम में हुआ ताजा आतंकी हमला भी कुछ ऐसा ही था। 26 निर्दोष लोगों की जान एक ऐसी क्रूरता ने ले ली, जिसने न सिर्फ परिवारों को उजाड़ा, बल्कि पूरे देश को शोक में डुबो दिया। सोचिए उन घरों के बारे में, जिनकी रसोई अब सूनी रह जाएगी, जिन बच्चों की स्कूल की फीस देने वाला कोई नहीं बचा I
और जिन मां-बाप की उम्मीदों का सूरज अब अस्त हो गया। ऐसे भीषण दर्द के बीच एक सवाल चुपचाप उभरता है — क्या इन टूटे हुए परिवारों को कोई आर्थिक सहारा मिल सकता है? और अगर हां, तो कैसे? आज हम उसी जरूरी सच को गहराई से जानने वाले हैं — आतंकी हमले में मौत के बाद कैसे मिलता है Insurance क्लेम, और इसके लिए किन नियमों को जानना बेहद जरूरी है।
भारत एक ऐसा देश है जिसने दशकों से आतंकवाद का सामना किया है। कभी 26/11 जैसे दिल दहला देने वाले हमले, कभी पुलवामा जैसी विभीषिका — हर बार निर्दोषों का खून बहा है। हर बार कुछ परिवार ऐसे रहे हैं जिनकी दुनिया ही उजड़ गई है। लेकिन दुःख के इन तूफानों के बीच एक बेहद व्यावहारिक सवाल उठता है — क्या मृतक के परिवार को Insurance के जरिए कुछ आर्थिक मदद मिल सकती है? जवाब है — हां, लेकिन कुछ शर्तों और प्रक्रियाओं के साथ। Insurance कंपनियों और सरकारों ने समय के साथ इस व्यवस्था को सरल बनाया है, लेकिन अभी भी बहुत सारे लोग इन अधिकारों और प्रक्रियाओं से अनजान हैं।
सबसे पहले समझना जरूरी है कि आम जीवन बीमा पॉलिसी में आतंकी हमले से हुई मौत को कवर किया जाता है या नहीं। पहले के नियमों में ऐसी घटनाओं को ‘एक्सक्लूजन’ यानी अपवाद माना जाता था। लेकिन बीमा रेगुलेटर संस्था IRDA ने पिछले कुछ वर्षों में जो बदलाव किए हैं, उनके मुताबिक अब अधिकतर जीवन Insurance पॉलिसियां आतंकवाद से हुई मौत को कवर करती हैं। यानी अगर कोई व्यक्ति आतंकी हमले का शिकार होता है और उसकी मृत्यु हो जाती है, तो उसके परिवार को Insurance राशि का पूरा दावा करने का हक है। लेकिन यह प्रक्रिया तभी आसान बनती है जब परिवार को मालूम हो कि किन दस्तावेजों की ज़रूरत होगी और किस तरह से दावा करना होगा।
एक महत्वपूर्ण बात जो अक्सर नजरअंदाज हो जाती है वह है एक्सीडेंटल डेथ बेनिफिट राइडर। आमतौर पर, अगर किसी की मौत सड़क हादसे या अन्य दुर्घटना से होती है तो उसे एक्स्ट्रा रकम मिलती है। उदाहरण के लिए, अगर किसी की लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी 50 लाख की है और उस पर 10 लाख का एक्सीडेंटल राइडर भी लिया गया है, तो हादसे में मौत पर 60 लाख मिलते हैं। लेकिन आतंकी हमले को ‘एक्सीडेंट’ की श्रेणी में नहीं रखा जाता। यानी ऐसे मामलों में सिर्फ मूल Insurance राशि ही मिलती है, राइडर बेनिफिट लागू नहीं होता। इस फर्क को जानना बेहद जरूरी है ताकि बाद में परिवार को निराशा न हो।
कुछ Insurance कंपनियां, जैसे न्यू इंडिया एश्योरेंस, विशेष रूप से आतंकवाद से संबंधित Insurance कवरेज भी देती हैं। ये न केवल जान-माल की सुरक्षा के लिए होती हैं, बल्कि मकान, वाहन और अन्य संपत्तियों के नुकसान की भरपाई के लिए भी होती हैं। आतंकी हमलों में अक्सर मकानों को क्षति पहुंचती है, गाड़ियां ध्वस्त हो जाती हैं। अगर किसी ने मकान या वाहन के लिए बीमा लिया है और उसमें आतंकवाद कवरेज शामिल है, तो वह भी क्लेम कर सकता है। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे आज के बदलते माहौल में गंभीरता से लेने की जरूरत है।
अब सवाल आता है क्लेम की प्रक्रिया का। सबसे पहली चीज़ जो बेहद जरूरी है, वह है डेथ सर्टिफिकेट और पुलिस रिपोर्ट। जब भी किसी हमले में मौत होती है, तो पुलिस एक रिपोर्ट तैयार करती है और वही रिपोर्ट Insurance क्लेम के लिए सबसे अहम दस्तावेज बनती है। सरकार भी ऐसे मामलों में डेथ सर्टिफिकेट में ‘मौत का कारण’ स्पष्ट रूप से दर्ज कराती है, जिससे क्लेम प्रक्रिया सुगम हो जाती है। कई बार सरकार खुद भी मृतक के परिजनों को मुआवजा देती है, लेकिन वह मुआवजा Insurance क्लेम से अलग होता है और दोनों पर अलग से हक बनता है।
Insurance कंपनियां आतंकवादी हमलों में मारे गए लोगों के मामलों को सामान्य क्लेम से अलग तरीके से देखती हैं। ऐसे मामलों में वे आमतौर पर क्लेम जल्दी निपटाती हैं क्योंकि यहां सबूत जुटाने में ज्यादा वक्त नहीं लगता — पूरा मामला सार्वजनिक रिकॉर्ड में होता है, मीडिया रिपोर्ट्स होती हैं, सरकारी बयान होते हैं। इसलिए जिन परिवारों ने Insurance पॉलिसी ली हुई है, उनके लिए दावा करना अपेक्षाकृत आसान हो सकता है, बशर्ते जरूरी दस्तावेज समय पर जमा कर दिए जाएं और पॉलिसी की शर्तों का पालन किया गया हो।
एक और अहम बात यह है कि कई लोग जीवन Insurance लेते समय शर्तें ठीक से नहीं पढ़ते। पॉलिसी डॉक्यूमेंट को बारीकी से पढ़ना बेहद जरूरी है। यह जानना जरूरी है कि आपकी पॉलिसी किन स्थितियों में कवरेज देती है, किन स्थितियों में नहीं। कई कंपनियां सस्ता प्रीमियम देने के लालच में कवरेज सीमित कर देती हैं, जिसमें आतंकवादी गतिविधियां शामिल नहीं होतीं। इसलिए हमेशा प्रतिष्ठित बीमा कंपनियों से ही पॉलिसी लें और कवर शब्दावली को गहराई से समझें।
अब बात करते हैं हेल्थ इंश्योरेंस और प्रॉपर्टी इंश्योरेंस की। कई बार आतंकी हमलों में व्यक्ति मरता नहीं है, लेकिन घायल हो जाता है। ऐसे में हेल्थ इंश्योरेंस काम आता है। गंभीर चोटों, अस्पताल में भर्ती और इलाज के खर्च का भुगतान हेल्थ पॉलिसी के जरिए किया जा सकता है। इसी तरह अगर मकान या दुकान को क्षति पहुंची है, तो प्रॉपर्टी इंश्योरेंस से नुकसान की भरपाई हो सकती है, बशर्ते पॉलिसी में ‘आतंकवाद कवरेज’ शामिल हो। यही वजह है कि आज के दौर में मल्टीपल इंश्योरेंस कवर लेना बेहद जरूरी हो गया है।
अब आते हैं एक और संवेदनशील बिंदु पर—मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समर्थन। Insurance से पैसा तो मिल सकता है, लेकिन अपनों के खोने का दुख नहीं भर सकता। इसलिए ऐसे हमलों के बाद सरकारों और संस्थाओं को चाहिए कि वे प्रभावित परिवारों को सिर्फ आर्थिक मदद न दें, बल्कि काउंसलिंग, बच्चों की शिक्षा और पुनर्वास जैसी सुविधाएं भी प्रदान करें। कुछ निजी बीमा कंपनियां भी अब हेल्थ एंड वेलनेस प्रोग्राम के तहत मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने लगी हैं। यह एक सकारात्मक पहल है जिसे और बढ़ावा मिलना चाहिए।
कुल मिलाकर अगर निष्कर्ष निकालें तो यह साफ है कि भारत में जीवन Insurance पॉलिसी के तहत, आतंकी हमलों में मारे गए लोगों के परिजनों को क्लेम पाने का अधिकार है, लेकिन इसके लिए सही जानकारी, समय पर दस्तावेज, और जागरूकता बेहद जरूरी है। सरकार की कोशिश है कि ऐसे संवेदनशील मामलों में पीड़ित परिवारों को जल्दी राहत मिले, लेकिन खुद परिवारों को भी जागरूक और तैयार रहना चाहिए। Insurance कोई लक्जरी नहीं है, बल्कि आज के समय में यह एक अनिवार्यता है—खासकर ऐसे दौर में जब अनिश्चितता हमारी जिंदगी का स्थायी हिस्सा बन गई है।
तो अगली बार जब आप Insurance पॉलिसी खरीदें, या जब किसी प्रियजन के लिए भविष्य की योजना बनाएं, तो यह ज़रूर सोचिए कि कागज के उन पन्नों में सिर्फ शब्द नहीं छिपे हैं, बल्कि भविष्य की सुरक्षा, बच्चों की पढ़ाई, बुजुर्ग माता-पिता की दवाइयों, और एक उजड़े परिवार की आखिरी उम्मीद भी छुपी है। जिंदगी को किसी भी मोड़ पर रोकने वाली त्रासदियों का सामना मजबूत तैयारी से ही किया जा सकता है। और शायद, यही सबसे बड़ा सबक है, जो पहलगाम के मासूम शहीद हमें देकर गए हैं — कि ज़िंदगी की अनिश्चितताओं के बीच हमें अपने भविष्य की रक्षा खुद करनी होगी।
Conclusion

अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।
GRT Business विभिन्न समाचार एजेंसियों, जनमत और सार्वजनिक स्रोतों से जानकारी लेकर आपके लिए सटीक और सत्यापित कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। हालांकि, किसी भी त्रुटि या विवाद के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। हमारा उद्देश्य आपके ज्ञान को बढ़ाना और आपको सही तथ्यों से अवगत कराना है।
अधिक जानकारी के लिए आप हमारे GRT Business Youtube चैनल पर भी विजिट कर सकते हैं। धन्यवाद!”