Shocking: Inflation rate में गिरावट! फिर भी घर का बजट क्यों नहीं संभल रहा – जानिए 5 बड़े कारण I

सोचिए… सुबह की ताज़ी हवा में आप बालकनी में बैठे हैं, हाथ में चाय का प्याला है, और मोबाइल पर न्यूज़ ऐप खुला हुआ है। स्क्रीन पर बड़े-बड़े अक्षरों में खबर चमक रही है—”Inflation दर 8 साल के निचले स्तर पर!”। आप एक पल को ठहर जाते हैं, फिर मन में हल्की-सी राहत महसूस करते हैं—शायद अब बाजार में सब्ज़ियां सस्ती मिलेंगी, राशन का बिल थोड़ा कम आएगा, और शायद बच्चों की स्कूल फीस में भी राहत मिल जाए। लेकिन यह उम्मीद ज़्यादा देर टिकती नहीं।

शाम को जब सब्ज़ी मंडी जाते हैं, तो टमाटर का भाव आसमान छू रहा है, दूध के दाम में एक और रुपया जुड़ गया है, और राशन वाले ने दाल के पुराने रेट को छूने से भी मना कर दिया है। आप घर लौटते हैं और खुद से पूछते हैं—अगर सरकारी आंकड़े कह रहे हैं कि Inflation दर इतनी घट गई है, तो मेरे घर का खर्च क्यों नहीं घटा? यही सवाल सिर्फ आपके नहीं, पायल जैसे लाखों लोगों के हैं, जो हर महीने की शुरुआत में एक नया बजट बनाते हैं, लेकिन महीने के अंत में फिर वही ‘कम पैसे, ज़्यादा खर्च’ का खेल दोहराते हैं। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

असल में, Inflation दर यानी CPI एक औसत है, जिसमें सैकड़ों चीजों के दामों का कुल मिलाकर औसत निकाला जाता है। इसका मतलब यह है कि अगर Inflation दर कम होती है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि हर चीज सस्ती हो गई है। इसका मतलब सिर्फ इतना है कि कुल मिलाकर कीमतें पहले की तुलना में धीमी गति से बढ़ रही हैं। यानी अगर पिछले साल कीमतें हर महीने 10% बढ़ रही थीं और अब 2% बढ़ रही हैं, तो भी कीमतें घट नहीं रहीं—बस बढ़ने की रफ्तार कम हुई है। यही वजह है कि सरकारी रिपोर्ट और आपके पर्स की हकीकत अक्सर अलग होती है। जुलाई 2025 में Retail inflation rate 1.55% तक गिर गई—जून 2017 के बाद का सबसे निचला स्तर। लेकिन आपके घरेलू बजट पर यह असर क्यों नहीं दिख रहा, इसकी वजहें कई हैं, जो आंकड़ों में नहीं बल्कि हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में छुपी हैं।

पहला कारण—ज़रूरत की चीजें अब भी महंगी हैं। आंकड़ों में भले ही Food inflation rate -1.76% हो, लेकिन हमारे रसोई के हिसाब से कहानी कुछ और है। दाल के रेट ज़रा भी नहीं घटे, सरसों के तेल का डिब्बा वही महंगा है, मसालों की छोटी-सी पुड़िया भी अब पहले से ज्यादा रुपये मांगती है। प्याज की कीमत भले स्थिर हो, पर टमाटर का भाव जैसे रॉकेट बनकर ऊपर जा रहा है। हर बार सब्जी वाले से मोलभाव करते-करते आपको एहसास होता है कि यह गिरावट सिर्फ कागज़ पर है। LPG की कीमतें भी भले महीनों से नहीं बदलीं, पर यह ‘स्थिर’ कीमत कई परिवारों के लिए अभी भी बड़ी रकम है। रसोई से बाहर निकलें तो शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की लागत आपके बजट को और खा रही है। स्कूल फीस, किताबें, यूनिफॉर्म, और बच्चों की ट्यूशन—हर साल कुछ प्रतिशत महंगी हो जाती हैं। अस्पताल में एक मामूली चेकअप भी हजारों रुपये ले लेता है, और दवाओं का खर्च ऊपर से। यानी Inflation दर भले घट गई हो, लेकिन जिन चीजों की हमें सबसे ज्यादा जरूरत है, उनमें राहत नहीं मिलती, और यही हमारे बजट को दबाए रखता है।

दूसरा कारण—Income में वृद्धि न होना। Inflation दर कम होना सिर्फ एक आंकड़ा है, लेकिन अगर आपकी तनख्वाह नहीं बढ़ रही, तो आपके लिए यह आंकड़ा बेअसर है। पिछले कुछ सालों में ज्यादातर लोगों की सैलरी बढ़ने की रफ्तार Inflation से कम रही है। NSSO के आंकड़े बताते हैं कि 2024 में ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में ‘रियल वेज ग्रोथ’ यानी Inflation घटाने के बाद की वास्तविक Income 1 से 2% से भी कम रही। इसका मतलब है कि आपकी Income बढ़ी जरूर, लेकिन इतनी कम कि उससे बढ़ती हुई चीजों की कीमत का बोझ नहीं उतरता। सोचिए—अगर आपकी तनख्वाह साल में 2% बढ़ रही है, लेकिन बच्चों की स्कूल फीस 10% और दूध-सब्जी 5% बढ़ रहे हैं, तो आपके पर्स से हर महीने थोड़ा-थोड़ा ज्यादा पैसा निकल ही जाएगा। लंबे समय में यही फर्क आपकी बचत को घटा देता है, कर्ज लेने की मजबूरी बढ़ा देता है, और भविष्य के Investment को रोक देता है।

तीसरा कारण—फिजूलखर्ची की आदत। पहले जमाने में लोग हर खर्च को सोच-समझकर करते थे, लिस्ट बनाते थे, और महीने भर का हिसाब रखते थे। अब ज़िंदगी की रफ्तार तेज हो गई है, लेकिन उसके साथ खर्च करने की आदत भी बदल गई है। महंगे स्मार्टफोन, हाई-स्पीड इंटरनेट पैक, ओटीटी सब्सक्रिप्शन, ब्रांडेड कपड़े, और हर हफ्ते बाहर खाना—ये सब अब ‘ज़रूरत’ में गिने जाने लगे हैं। पहले जो विलासिता थी, वह अब लाइफस्टाइल बन गई है। और यही खर्च आपके बजट को चुपचाप खा जाते हैं। बाहर खाने का कल्चर इतना बढ़ गया है कि लोग हफ्ते में 2 से 3 बार रेस्तरां या फूड डिलीवरी ऐप से ऑर्डर कर लेते हैं। महीने के अंत में हिसाब लगाएं तो सिर्फ बाहर खाने पर 4 से 5 हजार रुपये आसानी से खर्च हो जाते हैं।

चौथा कारण—क्रेडिट कार्ड का जादू और जाल। पहले लोग किसी चीज को खरीदने के लिए महीनों पैसे जोड़ते थे, अब एक स्वाइप और वह चीज आपके घर। EMI, ‘Buy Now, Pay Later’, और मॉल में चल रहे ऑफर्स ने खरीदारी को आसान बना दिया है, लेकिन यह सुविधा धीरे-धीरे आपकी जेब काटती है। क्रेडिट कार्ड पर ऊंचा ब्याज, अगर बिल समय पर न भरा जाए तो लेट फीस, और गैर-जरूरी चीजों पर खर्च—ये सब आपके बजट को धीरे-धीरे कमजोर करते हैं। बहुत लोग सिर्फ ऑफर्स के लालच में ऐसी चीजें खरीद लेते हैं जिनका इस्तेमाल शायद कभी न हो। लेकिन उनका भुगतान आपकी Income से होता है, और यही कर्ज का जाल आपके ऊपर चढ़ जाता है।

पांचवां कारण—बिना योजना के खर्च। एक समय था जब परिवार बैठकर महीने भर का खर्च तय करते थे, राशन और बाकी ज़रूरतों की लिस्ट बनाते थे, और उसी के हिसाब से बाजार जाते थे। अब यह आदत खत्म हो गई है। मॉल में घूमते-घूमते जो पसंद आ गया, खरीद लिया। ऑनलाइन शॉपिंग में तो बस एक क्लिक और चीज आपके घर। बिना लिस्ट और क्रेडिट कार्ड के साथ शॉपिंग करना सबसे खतरनाक है, क्योंकि आपको अंदाजा ही नहीं होता कि आप महीने में कितना ज्यादा खर्च कर रहे हैं। यही वजह है कि महीने के आखिरी हफ्ते में अक्सर लोग परेशान रहते हैं कि पैसे कहां चले गए।

इसके अलावा भी कई अदृश्य दबाव हैं—घर का किराया और EMI उनमें सबसे बड़े हैं। बड़े शहरों में होम लोन लेना आसान है, लेकिन EMI 15 से 20 साल तक आपकी Income का बड़ा हिस्सा ले लेती है। और अगर आपके पास एक से ज्यादा लोन हैं, तो ब्याज का बोझ और बढ़ जाता है। यही नहीं, Inflation दर एक राष्ट्रीय औसत है, लेकिन अलग-अलग इलाकों में खर्च का असर अलग होता है। गांव में खाने-पीने की चीजों का असर ज्यादा है, जबकि शहर में किराया, ट्रांसपोर्ट और लाइफस्टाइल खर्च ज्यादा दबाव डालते हैं। GST और स्थानीय टैक्स भी कई चीजों को महंगा बनाए रखते हैं—जैसे पैकेज्ड फूड, रेस्टोरेंट का बिल, या तैयार कपड़े।

ट्रांसपोर्ट और लाइफस्टाइल खर्च

तो समाधान क्या है? यह मुश्किल लगता है, लेकिन नामुमकिन नहीं। आपको अपने खर्च पर नियंत्रण लाना होगा। ऑनलाइन शॉपिंग से पहले सोचें—क्या यह चीज सच में ज़रूरी है? महंगी चीजों के बजाय लोकल ब्रांड्स या सेकंड-हैंड विकल्प चुनें। थोक में राशन खरीदें, सीजनल सब्जियां लें, और बाहर खाने की आदत कम करें। क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल सीमित करें और बिल हमेशा समय पर चुकाएं। कोशिश करें कि EMI और कर्ज का बोझ कम से कम हो। सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करें या कारपूलिंग अपनाएं, ताकि पेट्रोल-डीजल का खर्च घटे।

Inflation दर कम होना एक अच्छी खबर है, लेकिन जब तक Income नहीं बढ़ेगी, खर्चों पर नियंत्रण नहीं होगा और कर्ज का बोझ घटेगा नहीं, तब तक आपके घर का बजट हल्का नहीं होगा। असली फर्क तभी आएगा जब आप अपनी कमाई और खर्च दोनों पर बराबर ध्यान देंगे—कमाई बढ़ाने के अवसर तलाशेंगे और खर्चों को प्राथमिकता देंगे। यही वह कदम हैं जो आपको Inflation के बावजूद वित्तीय राहत दे सकते हैं।

Conclusion

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