21 मई 2025 की सुबह जैसे ही IndusInd बैंक ने अपनी तिमाही रिपोर्ट पेश की, भारतीय शेयर बाजार और बैंकिंग जगत में खलबली मच गई। बीते दो दशकों से एक स्थिर और भरोसेमंद प्राइवेट बैंक के तौर पर स्थापित इंडसइंड ने पहली बार अपने नतीजों में घाटे की घोषणा की। 2,329 करोड़ रुपये का नेट लॉस सिर्फ एक संख्या नहीं थी—यह उस छवि का टूटना था, जिसे हिंदुजा परिवार ने वर्षों में सावधानीपूर्वक गढ़ा था।
यह उस भरोसे का बिखरना था, जिसे लाखों Investors ने IndusInd की बैलेंस शीट पर रखा था। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह झटका अचानक था? या फिर यह उन दरारों का परिणाम था जिन्हें वर्षों से नजरअंदाज किया जा रहा था? इस सवाल के जवाब में ही छिपी है आधुनिक बैंकिंग सिस्टम की सबसे बड़ी सीख, जो हर Investor और नीति निर्धारक के लिए जानना जरूरी है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
अगर हम इंडसइंड के सफर को गौर से देखें, तो यह केवल एक बैंक की असफलता की कहानी नहीं, बल्कि आधुनिक बैंकिंग की उस विफलता का आईना है, जहां मजबूत आंकड़ों के नीचे सड़न छिपी रहती है। 2019 से लेकर 2024 तक, इंडसइंड ने एक आदर्श ग्रोथ स्टोरी लिखी। बैंक की लोन बुक साल दर साल 13% की दर से बढ़ी। NIM यानी नेट इंटरेस्ट मार्जिन 4% से ऊपर स्थिर रहा, जो यह दर्शाता था कि बैंक अपने लोन से मुनाफा अच्छी तरह कमा रहा है।
R O A और R O E जैसे संकेतकों ने यह साबित किया कि पूंजी का उपयोग Efficiency से हो रहा है। ग्रॉस NPA महज 2.3% और पूंजी पर्याप्तता दर 17.4%—यह सब इंडसइंड को Investors की नजरों में ‘स्टार बैंक’ बनाता रहा। इस संख्यात्मक मजबूती ने इंडसइंड को दूसरों से अलग पहचान दिलाई, लेकिन कभी-कभी नंबरों के पीछे की कहानी ज्यादा खतरनाक होती है।
2023 में रिटेल Investors की संख्या 4 लाख से बढ़कर 6 लाख पार कर गई। Domestic Institutional Investors की हिस्सेदारी भी 25% से बढ़कर 40% हो गई। यह सब तब हो रहा था जब बैंकिंग सेक्टर में प्रतिस्पर्धा चरम पर थी और डिजिटल बैंकिंग तेजी से फैल रही थी। IndusInd ने न केवल ग्रोथ दिखाई बल्कि एक भरोसेमंद ब्रांड की छवि भी बनाई। लेकिन क्या ये सारी चमक असली थी या फिर पर्दे के पीछे कुछ और चल रहा था? यह सवाल तब और अहम हो जाता है जब हम समझते हैं कि Investors का भरोसा एक बार डगमगा जाए, तो उसे दोबारा पाना कितना मुश्किल होता है।
अगर हम थोड़ा पीछे देखें तो समझ आता है कि ये संकट अचानक नहीं आया। 2018 में जब NBFC संकट भारत में गहराया, तब इंडसइंड भी इसके चपेट में आया। उस समय इंफ्रास्ट्रक्चर फंडिंग को लेकर Risk सामने आए, लेकिन इसे मीडिया और बाजार ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी। 2021 में भारत फाइनेंशियल इन्क्लूजन के जरिए लोन एवरग्रीनिंग यानी पुराने लोन को छुपाने के लिए नए लोन जारी करने का मामला सामने आया। इसे एक ‘गड़बड़ी’ मानकर भुला दिया गया। जबकि ये वही दरारें थीं जिनसे आज इंडसइंड का भरोसा रिस-रिस कर बह रहा है। अगर उन संकेतों को गंभीरता से लिया गया होता, तो शायद बैंक आज इस स्थिति में न पहुंचता।
2025 के पहले तीन महीनों में हालात बदलने लगे। माइक्रोफाइनेंस लोन पोर्टफोलियो में डिफॉल्ट बढ़ने लगे। लेकिन इसे भी ‘सेक्टर की चुनौती’ कहकर टाल दिया गया। यही वह लापरवाही थी जिसने मार्च 2025 की तिमाही में एक ऐसा भूचाल ला दिया जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। 10 मार्च को बैंक ने बताया कि उसने 1,960 करोड़ रुपये की अन्य Income को रिवर्स किया है। इसका मतलब था कि पिछले मुनाफे के दावों में गंभीर गड़बड़ी थी। और यह सिर्फ Accounting की त्रुटि नहीं थी—यह आंतरिक नियंत्रण की विफलता थी, जो लंबे समय से नजरअंदाज की जा रही थी।
इस रिवर्सल में 423 करोड़ की Income भारत फाइनेंशियल में गलत तरीके से दिखाई गई थी। 595 करोड़ की अस्पष्ट एसेट्स-लायबिलिटी वृद्धि, 3,509 करोड़ के माइक्रोफाइनेंस स्लिपेज और 178 करोड़ की ब्याज Income रिवर्सल हुई। 760 करोड़ को इंटरेस्ट इनकम से Other Income में ट्रांसफर किया गया और 158 करोड़ के प्रोविजन को खर्चों में बदल दिया गया। ये सिर्फ आंकड़ों की हेरफेर नहीं थी, बल्कि इंटरनल ऑडिट, गवर्नेंस और पारदर्शिता की विफलता थी। बैंक का Management कहता रहा कि यह एक बार की गलती है, लेकिन बाजार ने इसे भरोसे की हार समझा। और भरोसे की दरार कभी भी शेयर प्राइस में बहुत बड़ा प्रभाव छोड़ सकती है।
अब सवाल यह है कि इस गिरावट से Investors को क्या सबक मिलता है? वॉरेन बफेट का वह प्रसिद्ध कथन—”बैंक में सबसे जरूरी बात होती है उनके लोन कितने सुरक्षित हैं, और इसे समझना सबसे कठिन होता है”—इंडसइंड के केस में बिल्कुल सटीक बैठता है। एक ऐसा बैंक जिसकी बैलेंस शीट चमचमा रही थी, जिसके वित्तीय संकेतक मिसाल बने हुए थे, वह अचानक डूबती हुई कश्ती क्यों लगने लगा? जवाब है—कभी-कभी डेटा सतह दिखाता है, गहराई नहीं। और यही गहराई Investors को अब समझनी होगी। आंकड़े आकर्षित कर सकते हैं, लेकिन पारदर्शिता और गवर्नेंस ही किसी संस्था की आत्मा होती है।
कम वैल्यूएशन को लेकर भी बाजार में भ्रम बना रहता है। जब P/B रेशियो 2 से नीचे गिरा और P/E 10 के पास आ गया, तो लोगों ने इसे रीरेटिंग का मौका समझा। लेकिन उन्होंने ये नहीं सोचा कि शायद यह वैल्यूएशन नहीं, चेतावनी हो सकती है। इंडसइंड बैंक की ये कहानी बताती है कि सिर्फ नंबर देखकर किसी स्टॉक को सस्ता या महंगा नहीं कहा जा सकता। पारदर्शिता, गवर्नेंस और Management की नीयत—इन सबका भी मूल्यांकन करना जरूरी होता है। Investment की दुनिया में अक्सर सबसे बड़ा नुकसान वहां होता है जहां भरोसा टूटता है, न कि आंकड़े।
और सबसे अहम बात—इस कहानी में हिंदुजा परिवार की भूमिका। गोपीचंद हिंदुजा और उनका परिवार NRI समुदाय के सबसे अमीर लोगों में गिने जाते हैं। IndusInd Bank की स्थापना हिंदुजा ग्रुप की सोच का नतीजा थी। दिवंगत श्रीचंद हिंदुजा ने इस बैंक की नींव रखी थी। इंडसइंड इंटरनेशनल होल्डिंग्स लिमिटेड (IIHL) इसके प्रमोटर हैं और यह कंपनी आज भी बैंक के संचालन में प्रमुख भूमिका निभाती है। ऐसे में जब इंडसइंड डगमगाता है, तो यह सिर्फ एक बैंक का संकट नहीं, बल्कि हिंदुजा साम्राज्य के गर्व का भी संकट बन जाता है। यह मामला दर्शाता है कि Inherited capital और ब्रांड वैल्यू भी तब तक स्थायी नहीं होती जब तक उसके साथ जिम्मेदारी, पारदर्शिता और दूरदर्शिता न हो।
IndusInd बैंक की इस गिरावट से एक और बड़ा संकेत मिलता है—कोई भी बैंक कितना भी पुराना, बड़ा या प्रतिष्ठित क्यों न हो, अगर पारदर्शिता से समझौता करेगा, तो उसकी साख कुछ ही महीनों में मिट्टी में मिल सकती है। भारत जैसे देश में जहां बैंकिंग सेक्टर लाखों लोगों के जीवन और Investment से जुड़ा है, वहां ऐसी घटनाएं सिर्फ कॉर्पोरेट असफलता नहीं होतीं, वे सार्वजनिक विश्वास का ह्रास होती हैं। और यह ह्रास उस आर्थिक ताने-बाने को प्रभावित करता है जिस पर पूरा देश खड़ा होता है। इसलिए यह कहानी केवल इंडसइंड की नहीं, बल्कि पूरे बैंकिंग सिस्टम की चेतावनी है।
Conclusion
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