Indigo की ऊंची उड़ान! जय-वीरू की जोड़ी ने बदला रुख, पर कंपनी रही मुनाफे में आगे I 2025

कभी दो दोस्त एक सपना देखते हैं—एक ऐसा सपना जो उन्हें जमीन से आसमान तक ले जाता है। एक ऐसा सफर जो सिर्फ मुनाफे और कंपनी के ग्रोथ का नहीं होता, बल्कि दोस्ती, भरोसे और साझा विज़न का भी होता है। लेकिन क्या होता है जब वही सपनों की उड़ान अचानक दो राहों में बंट जाए? जब व्यापार की ऊँचाइयाँ इतनी तेज हो जाएं कि दोस्ती पीछे छूट जाए? यह कहानी भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन Indigo की है, और उन दो दोस्तों की जो कभी ‘जय और वीरू’ की तरह साथ थे—राहुल भाटिया और राकेश गंगवाल। एक सपना, एक मिशन, और फिर एक ऐसी जुदाई जिसने इंडियन एविएशन को हिलाकर रख दिया।

Indigo का नाम आज भारत की हर फ्लाइट बुकिंग वेबसाइट पर सबसे ऊपर आता है। हाल ही में इंडिगो ने दुनिया की सबसे वैल्यूएबल एयरलाइन बनने का गौरव भी हासिल किया—भले ही कुछ घंटों के लिए, लेकिन इसने अमेरिका की दिग्गज डेल्टा एयरलाइंस को पीछे छोड़ा।

यह केवल मार्केट कैपिटलाइजेशन का खेल नहीं था, बल्कि भारत की एक घरेलू कंपनी द्वारा global platform पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का पल था। लेकिन जिस वक्त ये तमाम उपलब्धियां खबरों में छाई थीं, उसी वक्त एक और कहानी फिर से चर्चा में आ गई—Indigo के पीछे खड़े दो संस्थापक अब साथ नहीं हैं, और यह बंटवारा अब एक नए युग की शुरुआत है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

Indigo की शुरुआत 2006 में हुई, लेकिन इसकी कहानी 2004 में शुरू हो गई थी, जब राहुल भाटिया और राकेश गंगवाल एक साथ आए। राहुल भारत के एक सफल व्यवसायी थे और उनकी नजरें एविएशन के संभावित भविष्य पर थीं। वहीं राकेश गंगवाल, जो अमेरिका में रहते थे, दुनिया की जानी-मानी एयरलाइनों के साथ काम कर चुके थे और एविएशन की हर बारीकी को जानते थे।

यह मेल कुछ ऐसा था जैसे एक बिजनेस आइडिया को एक अंतरराष्ट्रीय अनुभव के पंख मिल जाएं। इंडिगो को DGCA से लाइसेंस तो मिल गया, लेकिन एयरक्राफ्ट नहीं थे। यही वह समय था जब गंगवाल के संपर्क काम आए और कंपनी ने एयरबस से लीज पर 100 विमानों की डील साइन कर ली। इस सौदे ने इंडिगो को उड़ान भरने का अवसर ही नहीं, आत्मविश्वास भी दिया।

जब Indigo ने 4 अगस्त 2006 को अपनी पहली उड़ान भरी, तब भारत में हवाई सफर को लेकर आम धारणा यह थी कि यह सिर्फ अमीरों के लिए है। टिकट महंगे थे, सुविधाएं सीमित थीं, और एविएशन सेक्टर में भरोसा कमजोर था। लेकिन इस जोड़ी ने तय किया कि वे इस सोच को बदलेंगे।

उन्होंने ‘लो कॉस्ट कैरियर’ मॉडल अपनाया—कम किराया, सीमित सुविधाएं, लेकिन समय पर और भरोसेमंद सेवा। राहुल और राकेश दोनों का फोकस एक ही था—यात्रियों को सहज, सुलभ और विश्वसनीय हवाई यात्रा देना। यही रणनीति इंडिगो की पहचान बन गई और धीरे-धीरे यह एयरलाइन आम लोगों के लिए पहली पसंद बनती गई।

इस मॉडल ने चमत्कार कर दिया। Indigo ने टर्नअराउंड टाइम को कम करके एक ही विमान से ज्यादा उड़ानें भरना शुरू किया। इसके अलावा, कंपनी ने मार्केटिंग पर भी सटीक निवेश किया—सीधा, सरल और प्रभावी संदेश दिया गया कि इंडिगो भरोसे का नाम है।

नतीजा ये हुआ कि इंडिगो ने अपने लॉन्च के महज 6 सालों में भारत की नंबर 1 एयरलाइन बनकर दिखाया। इस जोड़ी ने साबित कर दिया कि सिर्फ पैसे से नहीं, विज़न और सामंजस्य से भी कंपनियां बनाई जाती हैं। और जब जनता ने भरोसा दिखाया, तो Investors ने भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

लेकिन जब कोई संगठन तेज़ी से बढ़ता है, तो नेतृत्व में टकराव की संभावना भी बढ़ जाती है। जैसे-जैसे Indigo का स्केल बढ़ा, दोनों संस्थापकों की सोच में फर्क सामने आने लगा। सवाल यह नहीं था कि कौन सही है, बल्कि यह कि कंपनी को किस दिशा में ले जाना है। राकेश गंगवाल को लगता था कि कंपनी के गवर्नेंस स्ट्रक्चर में बदलाव होने चाहिए।

उन्हें लगता था कि किसी एक व्यक्ति को अत्यधिक अधिकार देना Risk भरा हो सकता है। वहीं राहुल भाटिया का मानना था कि नेतृत्व में स्पष्टता और केंद्रियता होनी चाहिए। यही टकराव धीरे-धीरे एक बड़ी दीवार बन गया और वर्षों की साझेदारी दरकने लगी।

2022 में जब Indigo ने राहुल भाटिया को मैनेजिंग डायरेक्टर नियुक्त किया, तो वह क्षण इस दोस्ती में एक बड़ी दरार का सबब बन गया। गंगवाल ने न सिर्फ इसका विरोध किया, बल्कि उन्होंने कंपनी के बोर्ड से इस्तीफा दे दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने यह सार्वजनिक रूप से घोषणा कर दी कि वे कंपनी में अपनी हिस्सेदारी धीरे-धीरे बेचेंगे और पूरी तरह बाहर निकल जाएंगे।

इस बयान ने इंडियन कॉर्पोरेट जगत में हलचल मचा दी। हर कोई यह सोचने लगा कि इतना मजबूत गठबंधन आखिर क्यों और कैसे टूट गया, और क्या इससे कंपनी की साख और संचालन प्रभावित नहीं होगा।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, गंगवाल ने Indigo के आर्टिकल ऑफ एसोसिएशन में संशोधन की मांग की थी, जिससे कंपनी में बेहतर गवर्नेंस सुनिश्चित हो सके। लेकिन उनकी यह मांग बोर्ड ने खारिज कर दी। इससे आहत होकर उन्होंने अपने शेयर बेचना शुरू कर दिये।

2024 तक आते-आते उन्होंने और उनके फैमिली ट्रस्ट ने अपनी लगभग पूरी हिस्सेदारी बेच दी। इस ब्लॉक डील से उन्होंने करीब 11,000 करोड़ रुपये की वैल्यू अर्जित की, लेकिन एक सपना, एक साझेदारी और एक सफर—वो सब पीछे छूट गया। दोस्ती की जगह अब व्यापारिक रणनीति ने ले ली थी।

उनकी पत्नी शोभा गंगवाल ने भी अगस्त 2023 में Indigo में अपनी लगभग चार प्रतिशत हिस्सेदारी करीब 2,944 करोड़ रुपये में बेच दी थी। यह सब दर्शाता है कि यह निर्णय कोई भावुक पल में लिया गया कदम नहीं था, बल्कि एक सोच-समझकर उठाया गया रणनीतिक कदम था—जो इस बात को भी साबित करता है कि जब दो विचारधाराएं लगातार टकराती हैं, तो व्यापार में संबंध टूट ही जाते हैं। एक समय जो एयरलाइन साझी सोच और समान दिशा का प्रतीक थी, वह अब एकतरफा निर्णयों का केंद्र बन गई थी।

अब जब Indigo 2024 में सबसे वैल्यूएबल एयरलाइन की सूची में खड़ी है, तब गंगवाल का वहां होना लगभग प्रतीकात्मक भी नहीं रहा। लेकिन अगर इंडिगो के इतिहास को बिना राकेश गंगवाल के पढ़ा जाए, तो वह अधूरा होगा। भले ही आज कंपनी के लीडरशिप स्ट्रक्चर से उनका नाम मिट गया हो, लेकिन उस नींव में उनके अनुभव, उनके फैसले और उनकी दूरदृष्टि आज भी जिंदा है। हर Indigo फ्लाइट जो समय पर टेकऑफ करती है, उसमें कहीं न कहीं उस इंसान की भी भूमिका है जो अब उससे अलग हो चुका है।

इस पूरी कहानी से हमें कई सबक मिलते हैं। सबसे बड़ा सबक यह है कि दोस्ती और बिजनेस साथ चल सकते हैं, लेकिन केवल तब तक जब तक संवाद बना रहे। जैसे ही संवाद टूटता है, रिश्तों में दरार आनी तय है। गंगवाल और भाटिया की जोड़ी ने एक मिसाल बनाई कि कैसे सही सोच, और प्लानिंग से एक छोटा स्टार्टअप भी भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन बन सकता है। लेकिन उन्होंने यह भी सिखाया कि अगर पारदर्शिता और आपसी सम्मान न हो, तो कोई भी साझेदारी ज्यादा दिन नहीं टिक सकती।

आज राहुल भाटिया Indigo के एकमात्र कमांडर बन चुके हैं। कंपनी तेजी से विस्तार कर रही है, नए इंटरनेशनल रूट्स जोड़ रही है, और अपने डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन को भी गति दे रही है। लेकिन शायद कहीं न कहीं, राकेश गंगवाल का वह खाली कुर्सी भी याद दिलाती है कि हर उड़ान के पीछे एक पायलट ही नहीं, एक को-पायलट भी होता है, और अगर दोनों का तालमेल न हो, तो प्लेन चाहे जितना भी बड़ा हो, उसकी दिशा डगमगा सकती है।

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