Raghuram Rajan की चेतावनी ने सबको चौंका दिया। India अगला China नहीं बन सकता! 2025

सोचिए… अगर आपको अभी बताया जाए कि भारत कभी भी “अगला चीन” नहीं बन पाएगा, तो क्या आप चौंकेंगे? शायद हां। क्योंकि अब तक यही सुनते आए हैं कि भारत अगली मैन्युफैक्चरिंग सुपरपावर बन सकता है—’मेक इन इंडिया’ से लेकर PLI योजनाओं तक, हर नीति में यही सपना दिखाया गया है। लेकिन अब उसी सपने पर एक ठंडी बाल्टी फेंकी है भारत के पूर्व आरबीआई गवर्नर और दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों में से एक—Raghuram Rajan ने। उन्होंने साफ शब्दों में कहा—अब एक और चीन के लिए जगह नहीं बची है। और भारत को अपना फोकस बदलना होगा। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

Raghuram Rajan की ये बात सिर्फ एक विचार नहीं, बल्कि एक सख्त चेतावनी है। उन्होंने कहा कि भारत को मैन्युफैक्चरिंग की दौड़ में ‘चीन 2.0’ बनने का सपना छोड़ देना चाहिए। अब सवाल ये उठता है कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा? और क्या ये भारत की विकास यात्रा के लिए एक खतरे की घंटी है? क्योंकि जब एक नामी अर्थशास्त्री यह कहता है कि ‘भारत अब मैन्युफैक्चरिंग बेस नहीं बन सकता’, तो उसके पीछे आंकड़े, अनुभव और ग्लोबल रियलिटी होती है, सिर्फ राय नहीं।

राजन ने यह टिप्पणी ऐसे वक्त में की है जब भारत की अर्थव्यवस्था एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है। युवा तेजी से नौकरी की तलाश में हैं, लेकिन इंडस्ट्री में उतनी गति नहीं दिख रही। भारत में हर साल करोड़ों युवा वर्कफोर्स में शामिल हो रहे हैं, लेकिन नौकरियों का अनुपात इस जनसंख्या विस्फोट का साथ नहीं दे रहा। ऐसे में मैन्युफैक्चरिंग को एक समाधान के रूप में देखा जाता रहा है। लेकिन क्या यह सच में समाधान है या एक भ्रम?

राजन का कहना है कि आज के समय में मैन्युफैक्चरिंग वैसी नहीं रही जैसी पहले थी। अब फैक्ट्रियों में भी मशीनें हावी हो चुकी हैं। असेंबली लाइन का काम, जो पहले लाखों मजदूर करते थे, अब रोबोट से हो रहा है। कंपनियों को अब मज़दूर नहीं, मशीन ऑपरेटर, रिपेयर इंजीनियर और सॉफ्टवेयर टेक्नीशियन चाहिए। यानि कि फैक्ट्रियों में भी स्किल चाहिए। ऐसे में “कम लागत पर अधिक मजदूरी” वाला मॉडल अब टिकाऊ नहीं रहा।

उनका मानना है कि चीन और वियतनाम जैसे देशों ने मैन्युफैक्चरिंग के लिए ना सिर्फ सस्ते श्रमिक दिए, बल्कि मजबूत इन्फ्रास्ट्रक्चर भी बनाया। उन्होंने लॉजिस्टिक्स, बिजली, ट्रांसपोर्ट, और नीति में वो दक्षता लाई जो फैक्ट्रियों की आत्मा होती है। वहीं भारत अभी भी आधारभूत सुविधाओं को लेकर संघर्ष कर रहा है। नीतियों का बदलता मिजाज, बिजली की अनिश्चितता, ज़मीन की उपलब्धता और श्रम कानून की जटिलताएं अभी भी Investors को हिचकिचाती हैं।

राजन ने खास तौर पर यह भी कहा कि भारत को नौकरियों के लिए सिर्फ मैन्युफैक्चरिंग पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। अगर भारत को आगे बढ़ना है, तो सर्विस सेक्टर, स्किल डेवलपमेंट और टेक्नोलॉजी पर ध्यान देना होगा। उनका कहना था, “जहां भी नौकरी मिले, करो… जहां भी नौकरी बना सको, बनाओ।” ये शब्द सीधे दिल में उतरते हैं, क्योंकि यही जमीनी सच्चाई है।

भारत पहले से ही हाई-वैल्यू सर्विसेज जैसे IT, फाइनेंस, कंसल्टिंग, और डिजिटलीकृत सेवाओं में अच्छा कर रहा है। दुनिया के सर्विस एक्सपोर्ट में भारत का 4.5% हिस्सा है, जो कि बहुत मायने रखता है। लेकिन राजन का कहना है कि अब हमें और भी गहराई में जाकर देखना होगा—जैसे कि घरेलू सेवाएं: ट्रक ड्राइवर, प्लंबर, AC टेक्नीशियन, हेल्थकेयर वर्कर—इन क्षेत्रों में स्किल ट्रेनिंग दी जाए, तो लाखों नौकरियां खड़ी हो सकती हैं। और ये नौकरियां सिर्फ महानगरों में नहीं, छोटे शहरों और गांवों तक भी फैल सकती हैं।

एक बड़ी बात जो राजन ने कही वो थी—भारत को “हर मौके” का फायदा उठाना होगा। चाहे वो घरेलू बाजार हो या एक्सपोर्ट। भारत G20 में सबसे तेजी से बढ़ने वाला देश है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय में अभी भी सबसे पीछे है। यानी अमीरी का भ्रम है, पर असल में बहुत कुछ बाकी है। जब तक गांव के नौजवान को लगता रहेगा कि उसके पास स्किल नहीं है, और शहर में भी काम नहीं है, तब तक ये विकास अधूरा है।

Raghuram Rajan ने ये भी कहा कि ग्लोबल माहौल तेजी से बदल रहा है। देशों में मैन्युफैक्चरिंग को लेकर राष्ट्रवाद बढ़ रहा है—हर देश चाहता है कि उसकी फैक्ट्री हो, उसकी नौकरी हो, उसका उत्पादन हो। ऐसे में भारत अगर मैन्युफैक्चरिंग के सपने को लेकर आगे बढ़ता है, तो उसे international competition के ऐसे महासमर में उतरना पड़ेगा जहां पहले से ही जगह कम है और दांव बहुत बड़ा।

वो चेतावनी देते हैं कि यह समय भारत के लिए अपनी रणनीति दोबारा सोचने का है। हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि ‘चीन बनना’ कोई आदर्श मॉडल नहीं है। भारत को ‘भारत’ बने रहना है—अपने अनोखे सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने और आर्थिक यथार्थ के साथ। और ये यथार्थ कहता है कि हमें वहां ताकत लगानी है जहां संभावना है—जैसे सेवा क्षेत्र, डिजिटल इनोवेशन, MSME और स्किल डेवलपमेंट।

एक बात और गौर करने वाली है कि राजन सिर्फ समस्या नहीं बताते, समाधान भी दिखाते हैं। वह कहते हैं कि अगर हम अपनी युवा शक्ति को सही दिशा में लगाएं, सही स्किल दें और डिजिटल रूप से तैयार करें, तो भारत सिर्फ नौकरी खोजने वाला देश नहीं रहेगा—बल्कि नौकरी देने वाला देश बन सकता है। यहीं से शुरुआत होती है एक नए इंडिया की कहानी की।

आज भारत के पास एक ऐसा जनसांख्यिकीय लाभ है जो पूरी दुनिया को नहीं मिला। एक युवा देश। लेकिन यही युवा शक्ति यदि बेरोजगारी की ओर धकेल दी जाए, तो यह वरदान अभिशाप में बदल सकता है। इसलिए जरूरी है कि शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट को नीति का केंद्र बनाया जाए। फॉर्मल और इनफॉर्मल सेक्टर के बीच की खाई को पाटने की योजना बने। स्किल्स को रोजगार से जोड़ने का रोडमैप तैयार हो।

भारत को सिर्फ बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों पर नहीं, बल्कि माइक्रो-लेवल पर ध्यान देना होगा—जैसे कारीगर, स्थानीय उद्यमी, डिजिटल मार्केटिंग करने वाले युवा, क्राफ्ट वर्कर्स, और यहां तक कि ग्रामीण महिला उद्यमी भी। ये सब मिलकर एक नया आर्थिक परिदृश्य बना सकते हैं, जहां विकास सिर्फ ग्रोथ रेट में नहीं, बल्कि लोगों की जिंदगी में महसूस हो।

यहां से बात सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक बदलाव की भी हो जाती है। जब एक युवा को लगता है कि वह अपनी मेहनत से कुछ बना सकता है—बिना मेट्रो शहर जाए, बिना किसी रिश्तेदार की मदद के—तभी वह समाज को भी कुछ लौटाता है। यही असली Inclusive Development है। और यही मॉडल भारत के लिए सबसे Relevant है।

राजन ने यह भी कहा कि सिर्फ हाई-टेक और अंग्रेज़ी स्किल्स वाले लोगों को ही अवसर नहीं मिलने चाहिए, बल्कि छोटे कौशल—जैसे मोटर मकैनिक, मोबाइल रिपेयर, ट्रक ऑपरेटर, पेंटर, फिटिंग एक्सपर्ट—इन सभी के लिए एक मजबूत इकोसिस्टम खड़ा किया जाए। और ये तभी मुमकिन होगा जब नीति निर्माताओं की सोच जमीन से जुड़ी हो, आंकड़ों से नहीं—आदमी से हो।

तो क्या भारत को मैन्युफैक्चरिंग छोड़ देनी चाहिए? बिल्कुल नहीं। लेकिन उसे यह समझना होगा कि मैन्युफैक्चरिंग अब वो जादू की छड़ी नहीं रही जो हर समस्या का हल निकाल दे। बल्कि यह एक ऐसा क्षेत्र है जो पहले से ही दबाव में है, ग्लोबल कॉम्पिटिशन से ग्रसित है, और तेजी से बदल रही टेक्नोलॉजी के बीच अपने भविष्य को तलाश रहा है।

अब वक्त है कि भारत अपनी असली ताकत को पहचाने—यानी उसका मानव संसाधन। हमारे पास दुनिया का सबसे बड़ा, सबसे युवा और सबसे जिज्ञासु वर्कफोर्स है। अगर हम उन्हें गाइड करें, उन्हें स्किल दें, और उन्हें भरोसा दें, तो भारत को किसी दूसरे देश की कॉपी करने की जरूरत नहीं। वह खुद एक नया मॉडल बना सकता है—भारत मॉडल।

इस मॉडल में टेक्नोलॉजी, उद्यमिता, ग्रामीण कौशल, महिला भागीदारी, और डिजिटल सेवाओं का मेल होगा। यह मॉडल भारत को केवल विकास नहीं, बल्कि सामाजिक समानता, आत्मनिर्भरता और भविष्य की वैश्विक भूमिका में भी स्थापित करेगा। और सबसे बड़ी बात—यह मॉडल भारत को भारत बनाए रखेगा, न कि किसी और की छाया।

Raghuram Rajan की बातों को सिर्फ एक आर्थिक बयान समझना भूल होगी। यह एक आइना है—जिसमें भारत को खुद को देखना है। और तय करना है कि हम किस दिशा में जाना चाहते हैं। क्या हम एक भीड़ में खोए हुए देश बनना चाहते हैं जो किसी और के मॉडल को कॉपी करता है? या फिर हम अपनी राह खुद बनाकर, अपने लोगों की ताकत पर भरोसा करके आगे बढ़ना चाहते हैं?

Conclusion

अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

GRT Business विभिन्न समाचार एजेंसियों, जनमत और सार्वजनिक स्रोतों से जानकारी लेकर आपके लिए सटीक और सत्यापित कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। हालांकि, किसी भी त्रुटि या विवाद के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। हमारा उद्देश्य आपके ज्ञान को बढ़ाना और आपको सही तथ्यों से अवगत कराना है।

अधिक जानकारी के लिए आप हमारे GRT Business Youtube चैनल पर भी विजिट कर सकते हैं। धन्यवाद!”

Spread the love

Leave a Comment