Economy: भारत की अर्थव्यवस्था मरी नहीं, दौड़ रही है! IMF ने ट्रंप की चेतावनी को किया दरकिनार। 2025

कल्पना कीजिए—एक दिन सुबह जब दुनिया की सबसे ताकतवर आवाज़ ये कहे कि भारत की Economy ‘डेड’ है, तो क्या होगा? बाजार हिलेंगे? लोगों में घबराहट फैलेगी? या फिर राजनीति का पारा आसमान छूने लगेगा? और अगर उस आवाज़ का नाम हो—डोनाल्ड ट्रंप—तो यह बयान महज़ शब्द नहीं, एक अंतरराष्ट्रीय सियासी धमाका बन जाता है। अमेरिका के पूर्व और फिर से सत्तारूढ़ राष्ट्रपति का यह दावा कि भारत की Economy मृत है, सिर्फ एक तंज नहीं था—बल्कि एक वैश्विक चुनौती थी, भारत के आत्मसम्मान और उसकी आर्थिक साख पर सीधा वार।

लेकिन सवाल यह है—क्या वाकई भारत की Economy मृत हो चुकी है? या यह बस एक राजनीतिक हथकंडा है— जब देश के भीतर इस बयान को लेकर राजनीति गर्म हो रही है, तब ज़रूरी है कि हम नारों और नाराज़गी से आगे बढ़कर उन आंकड़ों की तरफ देखें जो बिना पक्षपात के सच्चाई दिखाते हैं। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

सबसे पहले नज़र डालते हैं International Monetary Fund यानी IMF की रिपोर्ट पर, जो जुलाई 2025 में जारी हुई। IMF ने साफ तौर पर कहा कि वैश्विक मंदी के दौर में भी भारत एक ‘ब्राइट स्पॉट’ है—एक ऐसा देश जहां Economy बाकी देशों की तुलना में कहीं ज़्यादा मजबूती से आगे बढ़ रही है। IMF के मुताबिक भारत की GDP वृद्धि दर 2025 और 2026 दोनों वर्षों के लिए 6.4% रहने की संभावना है। यह दर अमेरिका, चीन, जर्मनी, जापान—सभी विकसित देशों से अधिक है। यह आंकड़ा सिर्फ़ संख्या नहीं, भारत की गति, क्षमता और लचीलेपन का प्रमाण है।

IMF ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि यह वृद्धि दर भारत के Strong domestic consumption, public investment और structural reforms का नतीजा है। और खास बात ये कि अप्रैल 2025 में जब IMF ने 6.2% का अनुमान दिया था, उसी को जुलाई में बढ़ाकर 6.4% कर दिया गया। यानी हालात सुधर रहे हैं, बिगड़ नहीं रहे। IMF के मुताबिक 2027 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी Economy बन सकता है। अगर यह ‘मृत’ Economy है, तो फिर जीवित अर्थव्यवस्था किसे कहेंगे?

लेकिन सिर्फ़ IMF की बात नहीं। भारत सरकार भी ट्रंप के इस बयान को सीधा चुनौती दे रही है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने संसद में पूरी दृढ़ता के साथ कहा कि, भारत जल्द ही GDP के लिहाज़ से तीसरी सबसे बड़ी Economy बनेगा। उन्होंने ट्रंप की चेतावनी का जवाब बेहद सधे हुए शब्दों में दिया—”हम किसी दबाव में आकर नहीं, अपने राष्ट्रीय हितों को देखते हुए फैसले लेंगे। हम अपने किसानों, मजदूरों और MSMEs की सुरक्षा के साथ आगे बढ़ेंगे।”

पीयूष गोयल ने याद दिलाया कि भारत सिर्फ कुछ वर्षों में 11वीं सबसे बड़ी Economy से 5वीं पर पहुंच गया है। ये परिवर्तन अचानक नहीं आया, यह उन आर्थिक नीतियों का परिणाम है जो लंबे समय से लागू हो रही हैं—चाहे वो इंफ्रास्ट्रक्चर पर Investment हो, PLI स्कीम हो, या डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रम। ट्रंप का ‘डेड इकोनॉमी’ वाला जुमला, इस पूरी प्रगति को नकारने जैसा है। और भारत इसे आसानी से नजरअंदाज नहीं कर सकता।

पर वहीं, दूसरी ओर विपक्ष इस बयान को सरकार पर हमला करने के हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लोकसभा में कहा—”सिर्फ प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को छोड़कर सब जानते हैं कि भारत की Economy मृत है।” उन्होंने बेरोजगारी, महंगाई, MSMEs की हालत, किसानों की बदहाली, और सामाजिक असमानता जैसे मुद्दों का हवाला देकर सरकार की आर्थिक नीतियों को नाकाम बताया।

राहुल गांधी का यह बयान जहां जनता की समस्याओं की तरफ ध्यान दिलाता है, वहीं दूसरी ओर उनकी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता राजीव शुक्ला ने ट्रंप के बयान को ‘गलतफहमी’ करार दिया। यानी कांग्रेस के भीतर भी इस मुद्दे पर एकराय नहीं है। लेकिन फिर मैदान में उतरी प्रियंका चतुर्वेदी—शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट) की नेता—जिन्होंने ट्रंप के बयान को ‘अहंकार और अज्ञानता’ से भरा बताया। उन्होंने कहा कि भारत के सामने चुनौतियां जरूर हैं, लेकिन एक मृत Economy नहीं।

शशि थरूर ने इस पूरी बहस को एक और ज़रूरी कोण दिया। उन्होंने ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए 25% टैरिफ को ‘गंभीर’ बताया और कहा कि अगर अमेरिका ने भारत को इसी तरह निशाना बनाना जारी रखा, तो दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों पर बड़ा असर पड़ेगा। थरूर ने कहा कि 25% टैरिफ, रूस से तेल खरीद पर अलग से पेनाल्टी और संभावित 100% दंड—ये सभी भारत की अमेरिकी बाजार में स्थिति को अस्थिर कर सकते हैं।

लेकिन थरूर ने ये भी साफ किया कि भारत को अमेरिका की ‘अनुचित मांगों’ का विरोध करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत Export पर चीन जितना निर्भर नहीं है, और हमारे पास एक मज़बूत घरेलू बाजार है—जो हमें आत्मनिर्भर बनाता है। यही बात भारत को बाकी देशों से अलग बनाती है।

तो क्या ट्रंप का बयान सिर्फ एक राजनीतिक तंज था या इसके पीछे कोई ठोस कारण था? एक नज़र अगर अमेरिकी राजनीति पर डालें, तो समझ में आता है कि ट्रंप इस समय खुद घरेलू मोर्चे पर भारी दबाव में हैं। डॉलर की गिरती साख, चीन के साथ ट्रेड वॉर, और घरेलू बेरोजगारी जैसे मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए भारत को निशाना बनाना, ट्रंप के लिए एक आसान रणनीति हो सकती है।

लेकिन भारत अब वह देश नहीं रहा, जिसे दबाव में आकर फैसले बदलने पड़ें। आज भारत अपने हितों को पहले रखता है—चाहे वो रूस से सस्ता तेल लेना हो, या अमेरिका की टैरिफ पॉलिसी का विरोध करना। भारत अब ‘इंडिया फर्स्ट’ के सिद्धांत पर चल रहा है, और यह सिर्फ एक नारा नहीं, नीति बन चुका है।

अब ज़रा एक बार फिर आंकड़ों पर लौटें। IMF, World Bank, OECD जैसी तमाम अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के मुताबिक भारत की GDP वृद्धि दर 6.4 से 6.7% के बीच है—जो सभी G20 देशों में सबसे तेज़ है। ये संस्थाएं यह भी बता रही हैं कि भारत में Investment, उपभोग और रिफॉर्म—तीनों एक साथ आगे बढ़ रहे हैं। और यह एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था का संकेत है, न कि मृत अर्थव्यवस्था का।

हां, चुनौतियां हैं। बेरोजगारी, ग्रामीण Economy की धीमी चाल, कृषि क्षेत्र में सुधार की ज़रूरत, और शहरी असमानता जैसे मुद्दे भारत की जमीनी हकीकत हैं। लेकिन क्या ये समस्याएं भारत को ‘डेड’ बना देती हैं? बिल्कुल नहीं। हर बड़ी Economy में ऐसी चुनौतियां होती हैं। अमेरिका में भी महंगाई, स्टूडेंट डेट क्राइसिस, और रेसियल इक्वालिटी जैसे मुद्दे हैं। चीन में रियल एस्टेट संकट और डिमोग्राफिक स्लोडाउन है। लेकिन इन्हें कोई ‘डेड इकोनॉमी’ नहीं कहता।

सच ये है कि भारत एक ट्रांज़िशन में है—एक ऐसे बदलाव के दौर में जहां वो सिर्फ़ एक उभरती हुई Economy नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है। और यही बदलाव कुछ लोगों को असहज करता है—चाहे वो विदेश में हों या देश में। ट्रंप का बयान उसी असहजता का प्रतिबिंब है।

आने वाले दिनों में यह मुद्दा चुनावी बहस का केंद्र बनेगा। सरकार विकास के आंकड़े दिखाएगी, विपक्ष आम जनता की परेशानियों को सामने रखेगा। और जनता—वो तय करेगी कि कौन सच्चाई के करीब है। लेकिन एक बात साफ है—भारत की Economy मृत नहीं, जीवंत है। चुनौतीपूर्ण है, लेकिन ठहरी हुई नहीं। और सबसे ज़रूरी बात—यह सिर्फ़ सरकार की नहीं, हम सबकी अर्थव्यवस्था है। इसे बनाने और बिगाड़ने का हक़ भी हमारे ही हाथ में है।

Conclusion

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