India and China: डियर ट्रंप! दोनों देशों को एक तराजू में तौलने से पहले हकीकत समझिए और सही तुलना करें। 2025

नमस्कार दोस्तों, क्या आपने कभी सोचा है कि दुनिया के सबसे ताकतवर देश का नेता, जो Global Economy और राजनीतिक समीकरणों को नियंत्रित करने का दावा करता है, अपने सबसे करीबी सहयोगी और सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी को एक ही नजर से देखने की गलती कर सकता है? हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों पर 100% टैरिफ लगाने की धमकी दी, जिसमें India and China दोनों शामिल हैं।

यह बयान सिर्फ आर्थिक नीतियों को नहीं हिला रहा, बल्कि यह सवाल खड़ा कर रहा है कि क्या ट्रंप India and China के बीच के बुनियादी अंतर को समझते हैं। भारत, जो अमेरिका का स्वाभाविक साझेदार है, और चीन, जो अमेरिका के लिए सबसे बड़ी आर्थिक और रणनीतिक चुनौती है, दोनों को एक तराजू में तौलना न केवल अनुचित है, बल्कि खतरनाक भी हो सकता है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

India and China के बीच क्या असमानताएं हैं?

India and China, दोनों एशियाई देश होने के बावजूद, हर दृष्टिकोण से अलग हैं। भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां व्यापार और Investment के लिए Transparent नीतियों का पालन किया जाता है। यहां विदेशी कंपनियों को स्वागत योग्य माहौल मिलता है, और उनके अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जाती है।

वहीं दूसरी ओर, चीन एक Authoritarian government system के तहत काम करता है, जहां विदेशी कंपनियों के लिए नियम सख्त और जटिल हैं।

उदाहरण के लिए, चीन में फेसबुक, गूगल, और उबर जैसी बड़ी अमेरिकी कंपनियों को कारोबार करने की अनुमति तक नहीं है। इसके विपरीत, भारत ने इन कंपनियों को अपने बाजार में स्थान दिया है, और ये कंपनियां यहां अरबों डॉलर का मुनाफा कमा रही हैं। यह फर्क अमेरिका के लिए यह समझने के लिए पर्याप्त है कि India and China को एक ही श्रेणी में रखना एक भूल होगी।

इसके साथ ही आपको बता दें कि, भारत और अमेरिका के बीच व्यापार हमेशा संतुलित और लाभकारी रहा है। Financial Year 2023-24 में दोनों देशों के बीच कुल व्यापार 118 बिलियन डॉलर का था। इसमें भारत ने 78 बिलियन डॉलर का Export किया और 42 बिलियन डॉलर का Import किया

इस संतुलित व्यापार से दोनों देशों को फायदा होता है। भारत से अमेरिका को Export किए जाने वाले product, जैसे टेक्सटाइल, फार्मास्यूटिकल्स और केमिकल्स, अमेरिकी उद्योगों के लिए खतरा नहीं हैं। इसके विपरीत, ये product अमेरिकी जरूरतों को पूरा करते हैं और उपभोक्ताओं को किफायती विकल्प प्रदान करते हैं।

वहीं, चीन के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा 360 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है। चीन से Export किए जाने वाले इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी जैसे product अमेरिकी उद्योगों के लिए गंभीर चुनौती हैं।

चीन और अमेरिका के बीच आर्थिक असंतुलन के क्या कारण हैं?

चीन और अमेरिका के बीच का व्यापारिक असंतुलन सिर्फ एक आर्थिक मुद्दा नहीं है; यह अमेरिका के लिए एक Long Term समस्या बन चुका है। चीन अपनी currency के मूल्य को जानबूझकर कम रखता है, जिससे उसके product अंतरराष्ट्रीय बाजार में सस्ते हो जाते हैं। इसके अलावा, चीन अपने Products की quality और कीमत के आधार पर अमेरिकी घरेलू उद्योगों को पीछे छोड़ने की कोशिश करता है।

2024 में, चीन और अमेरिका के बीच व्यापार घाटा 360 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जो स्पष्ट रूप से दिखाता है कि चीन अमेरिका के लिए न केवल एक Competitive है, बल्कि एक आर्थिक खतरा भी है। इसके विपरीत, भारत के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा सिर्फ 7 बिलियन डॉलर के आसपास है, जो यह दर्शाता है कि भारत एक स्थिर और संतुलित साझेदार है।

इसके साथ ही आपको बता दें कि भारत ने अमेरिकी कंपनियों और Investors के लिए अपने बाजार के दरवाजे हमेशा खुले रखे हैं। ऐपल, गूगल, फेसबुक और उबर जैसी कंपनियां भारत में न केवल व्यापार कर रही हैं, बल्कि अरबों डॉलर का मुनाफा भी कमा रही हैं। इसके अलावा, ये कंपनियां भारतीय अर्थव्यवस्था में रोजगार और तकनीकी उन्नति को बढ़ावा देती हैं।

इसके विपरीत, चीन ने विदेशी कंपनियों के लिए सख्त नीतियां लागू की हैं। चीन में विदेशी कंपनियों के लिए नियम इतने जटिल हैं कि कई कंपनियों को अपना कारोबार बंद करना पड़ा। यह फर्क दिखाता है कि भारत अमेरिकी Investors के लिए एक भरोसेमंद और स्वागतयोग्य बाजार है।

अमेरिका में भारतीय समुदाय का क्या योगदान है, और यह वहां की अर्थव्यवस्था और समाज को कैसे प्रभावित करता है?

अमेरिका में भारतीय समुदाय का योगदान केवल सांस्कृतिक तक सीमित नहीं है; यह आर्थिक और पेशेवर रूप से भी महत्वपूर्ण है। भारतीय मूल के लोग, जो अमेरिका की जनसंख्या का केवल 1.5% हैं, टैक्स कलेक्शन में 5 से 6% तक का योगदान करते हैं।

इसके अलावा, भारतीय मूल के कई लोग अमेरिका की Top कंपनियों और Technological Industries में नेतृत्व की भूमिका निभा रहे हैं। यह योगदान सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि अमेरिका और भारत के बीच संबंधों को गहराई देने में भी महत्वपूर्ण है। इसके विपरीत, चीन का Demographic contribution अमेरिका में तुलनात्मक रूप से कम है।

इसके अलावा, भारत और अमेरिका के संबंध केवल व्यापार तक सीमित नहीं हैं; ये संबंध लोकतांत्रिक मूल्यों और Transparency पर आधारित हैं। भारत में व्यापार और Investment के लिए स्थिर और Transparent नीतियां अपनाई जाती हैं। अमेरिकी कंपनियों को यहां विश्वास और सम्मान मिलता है।

दूसरी ओर, चीन की सत्तावादी नीतियां विदेशी कंपनियों के लिए मुश्किलें खड़ी करती हैं। चीन में Transparency की कमी और कठोर नीतियां अमेरिकी कंपनियों के साथ व्यापारिक संबंधों को कमजोर करती हैं। यह अंतर यह स्पष्ट करता है कि भारत अमेरिका के लिए एक स्वाभाविक साझेदार है, जबकि चीन सिर्फ एक प्रतिद्वंद्वी है।

ट्रंप को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार की जरूरत है, और यह अमेरिका की वैश्विक स्थिति और संबंधों को कैसे प्रभावित कर सकता है?

डोनाल्ड ट्रंप का यह सोचना कि India and China को एक ही तराजू में तौला जा सकता है, न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि खतरनाक भी है। India and China के साथ अमेरिका के संबंधों की प्रकृति अलग है, और दोनों देशों के लिए समान नीतियां लागू करना अमेरिकी हितों के खिलाफ जाएगा।

भारत ने हमेशा अमेरिका के साथ पारस्परिक सहयोग और विश्वास को बढ़ावा दिया है। चीन के विपरीत, भारत ने अमेरिकी Investors और कंपनियों को एक स्थिर और स्वागत योग्य माहौल प्रदान किया है। ट्रंप को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना चाहिए और यह समझना चाहिए कि भारत उनके लिए न केवल एक व्यापारिक साझेदार है, बल्कि चीन की चुनौती का सामना करने के लिए एक मजबूत सहयोगी भी है।

Conclusion

तो दोस्तों, India and China को एक तराजू में तौलना न केवल अनुचित है, बल्कि यह अमेरिका के Long Term हितों के खिलाफ भी है। भारत ने हमेशा अमेरिकी कंपनियों और Investors के लिए एक स्वागतयोग्य माहौल प्रदान किया है, जबकि चीन ने केवल बाधाएं खड़ी की हैं।

ट्रंप को यह समझने की जरूरत है कि भारत एक स्थिर, Transparent और लोकतांत्रिक साझेदार है, जो न केवल अमेरिका के व्यापारिक हितों को बढ़ावा दे सकता है, बल्कि चीन की चुनौती का सामना करने में भी मदद कर सकता है। यह वक्त है कि अमेरिका अपनी नीतियों को India and China के बीच के फर्क को समझते हुए तैयार करे, और अपने सबसे भरोसेमंद साझेदार के साथ संबंधों को और गहरा करे।

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