एक ऐसा देश जो पहले ही कर्ज के बोझ में डूबा हुआ है, जिसकी अर्थव्यवस्था बर्बादी की कगार पर है, और अब वही देश अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी आर्थिक सांसों को जिंदा रखने के लिए घुटनों के बल बैठा है। बात हो रही है पाकिस्तान की—एक ऐसा मुल्क जो एक ओर तो कर्ज मांगता है और दूसरी ओर अपने पड़ोसी भारत से दुश्मनी निभाने से बाज नहीं आता। आज यही पाकिस्तान एक और गंभीर मोड़ पर खड़ा है, जहां उसके पास विकल्प के नाम पर सिर्फ समझौता और आत्मसमर्पण बचा है।
अब उसी पाकिस्तान को IMF से बेलआउट पैकेज की अगली किस्त लेने के लिए 11 नई शर्तों को पूरा करना होगा, और ये शर्तें इतनी कठोर हैं कि देश की पूरी अर्थव्यवस्था की आत्मा हिल सकती है। IMF ने साफ कर दिया है—जब तक ये शर्तें नहीं मानी जाएंगी, तब तक एक रुपया भी नहीं मिलेगा। और भारत से बढ़ता तनाव इस डील के लिए सबसे बड़ा रोड़ा बनकर उभरा है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
पाकिस्तान को IMF से 3 अरब डॉलर का बेलआउट पैकेज मिला था लेकिन अब जब अगली किस्त की बारी आई है तो, IMF ने अपनी मुहर के नीचे 11 शर्तों की लंबी सूची रख दी है। इनमें सबसे पहली शर्त है कि पाकिस्तान की संसद को 17.6 ट्रिलियन रुपये का बजट पास करना होगा। यह बजट सिर्फ सरकारी कामकाज के लिए नहीं, बल्कि विकास कार्यों के लिए 1.07 ट्रिलियन रुपये की व्यवस्था करेगा।
IMF का कहना है कि यह बजट जून 2025 तक पास होना चाहिए, नहीं तो पैकेज की किस्त रोक दी जाएगी। एक देश जो अपनी आमदनी से ज्यादा खर्च करता है और जहां महंगाई का हर महीने नया रिकॉर्ड बन रहा हो, उसके लिए इतना बड़ा बजट पास करना खुद में एक बड़ी चुनौती है।
दूसरी शर्त शायद पाकिस्तान के लिए सबसे कठिन साबित हो सकती है—देश के सभी चारों प्रांतों को Agricultural Income Tax Law लागू करना होगा। यानी अब उन बड़े जमींदारों और किसानों पर भी टैक्स लगेगा जो अब तक पूरी तरह टैक्स फ्री रहते थे। यह वर्ग पाकिस्तान की राजनीति, नौकरशाही और सेना के सबसे करीबी माने जाते हैं।
इनसे टैक्स वसूलना किसी राजनीतिक युद्ध से कम नहीं होगा। इसके लिए रिटर्न प्रोसेसिंग से लेकर टैक्सपेयर्स की पहचान, रजिस्ट्रेशन और जागरूकता अभियान चलाने तक, हर कदम को जून 2025 तक पूरा करना होगा। एक ऐसा देश जहां टैक्स की बात सुनते ही जनता सड़कों पर आ जाती है, वहां यह कदम किसी विस्फोटक हालात को जन्म दे सकता है।
तीसरी शर्त है गवर्नेंस एक्शन प्लान। IMF चाहता है कि पाकिस्तान, अपने गवर्नेंस डायग्नोस्टिक असेसमेंट के आधार पर सार्वजनिक रूप से सुधार योजनाएं घोषित करे। मतलब देश को अब कागज़ों पर नहीं, जमीनी स्तर पर सुधार दिखाना होगा। इसमें सरकारी विभागों में पारदर्शिता से लेकर भ्रष्टाचार नियंत्रण तक सब शामिल है।
यह वही पाकिस्तान है जहां ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में भ्रष्टाचार हर साल एक नया स्तर छूता है। IMF अब यही चाहता है कि वही पाकिस्तान अपने गवर्नेंस को दुनिया के सामने उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत करे। यह न केवल नीतिगत बदलाव की मांग है, बल्कि पूरी शासन व्यवस्था को एक नई दिशा देने की शर्त है।
चौथी बड़ी शर्त है वित्तीय रणनीति की लंबी रूपरेखा। पाकिस्तान को 2027 के बाद की आर्थिक योजना बनानी होगी, और 2028 से आगे के लिए इंस्टीट्यूशनल और रेगुलेटरी ढांचे का खाका तैयार करना होगा। IMF का कहना है कि देश को केवल आज नहीं, बल्कि भविष्य के लिए भी जवाबदेह बनाना जरूरी है।
लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या पाकिस्तान की सरकार, जिसका कार्यकाल खुद अनिश्चित होता है, वो इतनी long term योजना पर अमल कर पाएगी? क्या वहां की राजनीति इतने दीर्घगामी लक्ष्य को गंभीरता से लेने को तैयार है? या फिर ये सब भी एक और कागज़ी औपचारिकता बनकर रह जाएगा।
पांचवीं शर्त ने सभी को चौंका दिया—पाकिस्तान ने आगामी वित्तीय वर्ष के लिए 2.4 ट्रिलियन रुपये का रक्षा बजट रखा है, जो पिछले साल से 12 फीसदी ज्यादा है। लेकिन IMF की रिपोर्ट बताती है कि हालिया भारत-पाक तनाव के चलते इस राशि को बढ़ाकर 2.5 ट्रिलियन तक किया जा सकता है।
यह वह राशि है जो IMF के आर्थिक सुधार लक्ष्य को कमजोर कर सकती है, और भारत से दुश्मनी निभाने का नतीजा देश को और कर्ज के दलदल में धकेल सकता है। IMF का यह भी कहना है कि जब एक देश आर्थिक तंगी में हो, तब उसका सबसे बड़ा defence Expenditure नहीं, बल्कि विकास होना चाहिए। लेकिन पाकिस्तान जैसे देश के लिए कूटनीतिक बयानबाज़ी और आक्रोश ही प्राथमिकता है, न कि आर्थिक स्थिरता।
इसके अलावा, ऊर्जा सेक्टर से जुड़ी चार और शर्तें भी IMF ने सामने रखी हैं। पहली, सरकार को 1 जुलाई 2025 तक बिजली की नई दरें घोषित करनी होंगी, ताकि लागत की वसूली सुनिश्चित की जा सके। इसका मतलब सीधा है कि आम जनता को बिजली के लिए ज्यादा पैसे चुकाने होंगे।
दूसरी, 15 फरवरी 2026 तक गैस टैरिफ में बदलाव करना होगा। यह भी महंगाई को और अधिक बढ़ा सकता है। तीसरी, संसद को इस महीने के अंत तक कैप्टिव पावर लेवी को स्थायी बनाने वाला कानून पास करना होगा। और चौथी सबसे कठोर शर्त है बिजली बिल पर लगे सरचार्ज की सीमा को हटाना। यानी आम आदमी की जेब पर सीधा वार। गरीब और मध्यम वर्ग के लिए यह एक दोहरा संकट बन जाएगा—महंगाई की मार और सरकारी सरचार्ज का बोझ।
हालांकि, बाकी बची दो शर्तें भी कम कठोर नहीं हैं। IMF चाहता है कि पाकिस्तान तीन साल से पुरानी कारों के Import पर लगे प्रतिबंध को हटाए और संसद में इसके लिए कानून पेश करे। यह कदम पाकिस्तान के foreign currency reserves पर और दबाव डाल सकता है क्योंकि इससे Import में वृद्धि होगी।
वहीं, स्पेशल टेक्नोलॉजी ज़ोन में मिल रही टैक्स छूट को 2035 तक पूरी तरह खत्म करने की योजना भी तैयार करनी होगी। यह पाकिस्तान के स्टार्टअप और टेक्नोलॉजी सेक्टर को बड़ा झटका दे सकता है जो पहले से ही Investment की कमी से जूझ रहा है। मतलब यह कि आर्थिक सुधार की शर्तों में विकासशील क्षेत्रों की बलि भी चढ़ रही है।
अब बात करते हैं उस तनाव की, जिसने IMF को भी चिंता में डाल दिया है। 7 मई को भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर हमला किया। यह हमला 22 अप्रैल को जम्मू के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले का जवाब था, जिसमें 26 निर्दोष लोगों की मौत हुई थी।
इसके बाद 8 से 10 मई के बीच पाकिस्तान ने भारत के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने की कोशिश की। आखिरकार 10 मई को दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ, जिससे तनाव कुछ हद तक कम हुआ। लेकिन IMF की रिपोर्ट में यह साफ कहा गया है कि इस तरह के तनाव आर्थिक सुधार कार्यक्रमों के लिए खतरा हैं। इससे Investors का भरोसा डगमगाता है, बाज़ार अस्थिर होते हैं और Policy implementation में अड़चनें आती हैं।
IMF के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है। एक तरफ पाकिस्तान को बेलआउट चाहिए, दूसरी तरफ उसकी नीतियां और विदेश नीति उसे संकट में डाल रही हैं। भारत का विरोध, आतंकी संगठनों को संरक्षण, और आर्थिक लापरवाही अब उसके लिए महंगी साबित हो रही है। IMF ने भारत की अनुपस्थिति को भी नोट किया है—जब वोटिंग में भारत ने हिस्सा नहीं लिया, तो उसका सीधा संदेश यही था कि पाकिस्तान पर अब कोई भरोसा नहीं रहा। दुनिया की नजर में पाकिस्तान एक ऐसा देश बन चुका है जो आर्थिक रूप से भी अस्थिर है और राजनीतिक रूप से भी अनियंत्रित।
अब सवाल उठता है—क्या पाकिस्तान इन 11 शर्तों को पूरा कर पाएगा? क्या वह अपने ही अमीर वर्ग से टैक्स वसूलने की हिम्मत दिखा पाएगा? क्या वह भारत से दुश्मनी छोड़कर आर्थिक सुधारों पर ध्यान देगा? या फिर एक बार फिर दुनिया के सामने हाथ फैलाने को मजबूर होगा?
Conclusion
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