क्या आपने कभी सोचा है कि एक ही चाल से दो निशाने कैसे लगाए जाते हैं? और अगर वो चाल अमेरिका जैसी महाशक्ति चल दे, तो पूरी Global अर्थव्यवस्था उसकी चपेट में आ जाती है। ठीक ऐसा ही हुआ है अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ‘रेसिप्रोकल Tariff ‘ नीति के बाद। इस नीति का सबसे बड़ा झटका चीन को लगा, जिसने अब अपने सुर ही बदल दिए हैं।
जिस चीन ने कभी भारत को केवल एक प्रतिस्पर्धी की तरह देखा था, आज वही चीन भारत से रिश्ते सुधारने और डील करने के लिए बेताब हो रहा है। यह बदलाव अचानक नहीं आया, बल्कि इसके पीछे छुपी है अमेरिका की आक्रामक व्यापार नीति, जिसने चीन की नींव को हिला दिया है। अब चीन को यह समझ आ गया है कि अगर उसे Global बाजारों में टिके रहना है, तो भारत जैसे भरोसेमंद और स्थिर अर्थव्यवस्था वाले देश के साथ गहरे रिश्ते बनाना अनिवार्य है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
चीन की ओर से इस बदले हुए रुख की पुष्टि खुद भारत में तैनात चीनी राजदूत जू फेइहोंग ने की है। टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में उन्होंने न सिर्फ भारत से अधिक व्यापारिक साझेदारी की इच्छा जताई, बल्कि चीन के विशाल उपभोक्ता बाजार को भारतीय कंपनियों के लिए खोलने का न्यौता भी दिया। उन्होंने कहा कि चीन भारतीय प्रीमियम Products का स्वागत करेगा और भारतीय व्यापारियों को चीन के बाजार में स्थापित होने में पूरी मदद करेगा। यह एक ऐसा प्रस्ताव है, जो भारत के लिए व्यापारिक दृष्टिकोण से काफी लाभदायक हो सकता है, लेकिन इसकी राजनीतिक और रणनीतिक परतों को समझना भी जरूरी है।
ये वही चीन है जिसने 2020 में गलवान घाटी विवाद के बाद भारत से हर तरह के आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों में दूरी बना ली थी। लेकिन अब अमेरिका की टैरिफ वॉर ने चीन को झुका दिया है। ट्रंप के टैरिफ दबाव ने चीन को भारत जैसे बाजार की अहमियत समझा दी है। चीन जान चुका है कि अगर उसे अमेरिका पर अपनी निर्भरता कम करनी है, तो भारत के साथ मजबूत और भरोसेमंद व्यापारिक संबंध बनाने होंगे। और यही वजह है कि चीन अब भारत के साथ एक नई शुरुआत करने के मूड में दिखाई दे रहा है।
चीनी राजदूत फेइहोंग ने कहा कि भारत और चीन का व्यापारिक रिश्ता पारस्परिक लाभ और सहयोग पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि चीन ने कभी भी जानबूझकर व्यापार सरप्लस का पीछा नहीं किया। बाजार में जो डिमांड होती है, उसी के अनुसार सप्लाई होती है और इसी प्रक्रिया में व्यापार घाटा या लाभ बनता है। ये बयान एक रणनीतिक प्रयास है भारत को यह भरोसा दिलाने का कि चीन अब निष्पक्ष व्यापार के पक्ष में है। लेकिन क्या भारत इस बार चीन पर भरोसा कर पाएगा? यह सवाल आने वाले समय में बेहद अहम होगा।
financial year 2024 में चीन में मिर्च, लौह अयस्क और सूती धागे जैसे भारतीय Products की डिमांड में जबरदस्त वृद्धि देखी गई। मिर्च की डिमांड में 17%, लौह अयस्क में 160% और सूती धागे में 240% की ग्रोथ दर्ज की गई। ये आंकड़े इस बात का संकेत हैं कि चीन भारतीय Products को लेकर गंभीर है और इनमें भारी संभावनाएं देख रहा है। इससे भारत को भी यह समझना होगा कि अगर सही रणनीति अपनाई जाए, तो वह चीन के बाजार में अपनी पकड़ को और मजबूत बना सकता है।
लेकिन चीन की इस ‘दोस्ती’ की पेशकश के पीछे एक शर्त भी है। चीनी राजदूत ने भारत से अपेक्षा जताई कि वह चीन की कुछ आर्थिक चिंताओं को गंभीरता से ले। उन्होंने भारत से अपेक्षा की कि भारतीय बाजार में चीनी कंपनियों को निष्पक्ष, पारदर्शी और गैर-भेदभावपूर्ण कारोबारी माहौल मिले। इसके बदले में चीन भारत के साथ व्यापार को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए तैयार है। यानी अगर भारत चीन की कंपनियों को अपने यहां अवसर देगा, तो चीन भारतीय Export को खुलकर स्वीकार करेगा।
इस वक्त चीन जिस तरह भारत को साधने की कोशिश कर रहा है, उसका एक बड़ा कारण अमेरिका के साथ चल रहा ट्रेड वॉर है। अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ की मार इतनी तेज हो गई है कि दोनों देशों ने एक-दूसरे पर भारी-भरकम शुल्क लगा दिए हैं। नतीजतन, अमेरिकी डॉलर कमजोर हो रहा है, Global investors का भरोसा डगमगा गया है, और बाजारों में अस्थिरता चरम पर है। इस स्थिति में चीन के पास विकल्प सीमित हो गए हैं, और भारत एक बड़े बाजार और रणनीतिक साझेदार के रूप में उसकी प्राथमिकता बन चुका है।
2 अप्रैल को जब ट्रंप ने दुनिया के सभी देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने का ऐलान किया, तो इसका सबसे बड़ा असर शेयर बाजारों पर दिखा। दुनियाभर के बाजारों में हाहाकार मच गया और अरबों डॉलर की संपत्ति डूब गई। इस भारी नुकसान को देखते हुए ट्रंप ने टैरिफ पर 90 दिनों की अस्थायी रोक लगा दी, लेकिन चीन को इस राहत से बाहर रखा। यही वजह है कि अब चीन को भारत जैसे देशों की जरूरत महसूस हो रही है। चीन अब भारत के साथ रिश्तों को केवल व्यापार नहीं, बल्कि रणनीति के रूप में देख रहा है।
चीनी राजदूत ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान की भी सराहना की, जिसमें उन्होंने कहा था कि Competition को संघर्ष में तब्दील नहीं होने देना चाहिए। फेइहोंग ने आगे कहा कि चीन भारत के साथ स्थायी और सहयोगात्मक संबंध चाहता है, और वह इस साल के Shanghai Cooperation Organization (SCO) सम्मेलन में पीएम मोदी का गर्मजोशी से स्वागत करेगा। यह बयान केवल कूटनीतिक नहीं है, बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि चीन अब अपने पुराने रुख से पूरी तरह हटने को तैयार है।
इस पूरे घटनाक्रम को देखें तो एक बात साफ है—डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ रणनीति ने चीन को घुटनों पर ला खड़ा किया है। और अब चीन भारत को सिर्फ एक बाजार नहीं, बल्कि एक संभावित साझेदार के रूप में देख रहा है। यह भारत के लिए भी एक सुनहरा मौका है। अगर भारत इस मौके का सही उपयोग करता है, तो वह चीन के बाजार में, अपने Products की पैठ बढ़ा सकता है और अपने व्यापार घाटे को कम कर सकता है। भारत अपनी मैन्युफैक्चरिंग, टेक्सटाइल, एग्रीकल्चर और टेक्नोलॉजी सेक्टर के प्रोडक्ट्स को नए सिरे से चीन में प्रमोट कर सकता है।
लेकिन सवाल यह भी है कि क्या भारत चीन पर भरोसा कर सकता है? क्या 2020 के अनुभव को भुलाकर एक बार फिर व्यापारिक रिश्तों को नई दिशा देना समझदारी होगी? या फिर यह चीन की एक और रणनीतिक चाल है, जिससे वह अमेरिका के दबाव से खुद को बचाना चाहता है? चीन की इतिहासिक रणनीति को देखते हुए भारत को सतर्कता और बुद्धिमानी से काम लेना होगा।
फिलहाल तो चीन का रुख बदला-बदला नजर आ रहा है। वो भारत से मिर्च, कपास, लोहा जैसी वस्तुएं मंगाने के लिए बेताब है। वहीं दूसरी तरफ, वह भारत से अपील कर रहा है कि चीनी कंपनियों को भारत में अधिक अवसर दिए जाएं। ये ‘गिव एंड टेक’ की नीति है—तुम हमें प्रीमियम Export दो, हम तुम्हें विशाल बाजार देंगे। इसमें लाभ भी है और जोखिम भी, जिसे भारत को बारीकी से समझना होगा।
भारत को इस समय सतर्क रहकर रणनीतिक रूप से फैसला लेना होगा। चीन के साथ व्यापार को बढ़ाना भारत के लिए लाभकारी हो सकता है, लेकिन इस साझेदारी के पीछे के राजनीतिक संकेतों को भी समझना होगा। चीन की नीयत और उसकी विदेश नीति का इतिहास इस बात का गवाह है कि वह जब-जब कमजोर होता है, तब-तब वह सहयोग की बात करता है, और जब मजबूत होता है तो दबाव बनाता है।
डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों ने भले ही Global अर्थव्यवस्था में हलचल मचा दी हो, लेकिन भारत के लिए यह एक अवसर बनकर उभरी है। अब ये भारत पर निर्भर करता है कि वह इस अवसर का कितना फायदा उठाता है और कितनी दूरदर्शिता के साथ अपने फैसले लेता है। यदि भारत संतुलित दृष्टिकोण से चीन के प्रस्तावों का मूल्यांकन करता है, तो यह न केवल व्यापार घाटा कम कर सकता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी कूटनीतिक स्थिति को भी और मजबूत बना सकता है।
Conclusion
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